Tuesday, March 29, 2011

किस किस हाल से गुज़र रही है आज एक औरत अपने जीवन में ? Family Life

अभी तक ज्यादातर वर्किंग वुमन ही डिप्रेशन की शिकार होती थीं, और इसका कारण घर-दफ्तर का तनाव होता था। मगर अब गृहिणियां भी इसकी जद में आ रही हैं।
मैं अपने साथ काम करने वाली एक ऐसी महिला को जानती थी, जिसे मैंने अक्सर अवसाद से घिरा पाया। कार्यालय में उसका मन कम ही लगता था। घर की, बच्चों की, चिंता में वह ज्यादा रहा करती थी। मेरे यह कहने पर कि वह नौकरी करती ही क्यूं है, तो उसका कहना था घर कैसे चलेगा? पति के बारे में पूछने पर अक्सर वह टालमटोल कर जाती।
अपने दूसरे साथियों से जानकारी लेने पर पता चला कि उसका पति शराबी है और उसे कोई नौकरी नहीं देता। साथ ही यह भी पता चला कि वह कई बार आत्महत्या की कोशिश कर चुकी है। उसके बाद तो कई बार मेरे और उसके बीच घर-परिवार की चर्चा चलती रही, उसके मन की गुत्थियां मुझे खुलती नजर आने लगीं। वह काम में भी मन लगा रही थी और खुश भी दिखती थी। कुछ दिन बाद मैंने नौकरी छोड़ दी। उससे भी नाता टूट गया। हाल ही में मुझे अखबार के जरिए उसकी मौत की खबर मिली। उसने ऊँचाई से कूद कर आत्महत्या कर ली थीं। इतने सालों बाद भी आत्महत्या का जुनून उसे सवार था, जबकि मुझे मिली जानकारी के अनुसार घर की स्थिति पहले से बहुत बेहतर थी। यह सचमुच काफी तकलीफदेह बात है कि हाउसवाइव्स में डिप्रेशन के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। उपेक्षा, प्रताड़ना, अर्न्तद्वंद, पारिवारिक कलह या फिर अवसाद से घिरी स्त्री, मुक्ति का उपाय खोजते-खोजते मृत्यु को अधिक आत्मीय समझने की भूल कर रही है। पहले घर और फिर सामाजिक तौर पर एक अहम भूमिका निभाने वाली महिला का इस तरह का अंत दुखद बात लगती है। नेशनल क्राइम ब्यूरो ने रिपोर्ट में बताया है कि हर दिन 123 महिलाएं आत्महत्या कर रही हैं, जिनमें 69 गृहणियां हैं। मनोविज्ञानी बताते हैं कि गृहस्थी का बोझ उठाने वाली महिलाओं को अक्सर कलह से भी गुजरना पड़ता है। कभी आर्थिक तंगी कलह का विषय होती है, तो कभी बच्चों की परवरिश और कभी पत्नी का सोशल न हो पाना भी कलह का एक अहम कारण बन जाता है।
कलह से कुढ़न और कुढ़न से अवसाद हावी होने लगता है और अवसाद से निकलने में अगर मदद न की जा सकी तो वह आत्महत्या का कारण जाती है। इसमें वे महिलाएं और भी घातक स्थिति में मिलती है जो विवाह उपरान्त घर-परिवार की ख्वाहिश लेकर आती हैं और पति की लापरवाही या आर्थिक परेशानी की वजह से नौकरी करने को मजबूर हो जाती हैं। उनकी काबिलियत जहां घर के दायरे तक की ही थी, उसके लिए उसे घर के बाहर जूझना पड़ता है। यहीं से उसके मन के भीतरी हिस्सों पर कुठाराघात शुरू हो जाता है।
डिप्रेशन की वजह
1. सामाजिक तौर-तरीके का अभाव
2. पति का र्दुव्यवहार
3. सास-ससुर के लांछन
4. मानसिक या शारीरिक परेशानी
5. प्यार में धोखा
6. पति की बेवफाई
7. दहेज प्रताड़ना
8. अकेलापन
9.बच्चों की तकलीफ
10. सामाजिक लांछन
11. दुराचार की शिकार
साभार  हिन्दुस्तान दिनांक ३० मार्च २०११ 
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-Tension-50-50-164019.html

कुछ कारण ऐसे हैं जिनकी चर्चा आम तौर पर की ही नहीं जाती . उनकी जानकारी भी आपको होनी चाहिए ताकि आप सच जान सकें और खुद अपनी और दूसरों की सचमुच मदद कर सकें . सच्चाई यह है कि तमाम कठिनाइयों के बावुजूद जिस तरह मुसलमानों में कन्या भ्रूण की ह्त्या नहीं की जाती , ठीक  ऐसे ही आत्महत्या भी नहीं की जाती.   

आत्महत्या करने में हिन्दू युवा अव्वल क्यों ? under the shadow of death

आज आप खतरे में जी रहे हैं. आपके बच्चे कभी भी कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं और कोई भी गलत क़दम उठा सकते हैं . आप उन्हें सिखाइए  एक प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पित होकर जीना , सही फैसले लेना और सही तरीके से जीना इससे पहले कि वे आवेश में आकर या जज़्बात की रु में बहकर खुद को तबाह कर बैठें हमेशा के लिए . फैसला है आपका क्योंकि जीवन भी है आपका . 


8 comments:

POOJA... said...

acchhi post hai... aajkal atmahtya to aise karte hain jaise oopar koi sale lagi ho ya amrit bant raha hai jo abhi nahi le paae to kabhi nahi milega...

Unknown said...

महिलाओं द्वारा आत्महत्या जैसे कदम उठाना दुखदायी है। वैसे भी आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं होती।

आपका अख्तर खान अकेला said...

shi khaa mhilaaon ke liyen srkar hmesha chintit rhti he krodon arbon ke bjt khrch kr qanun or yojnayen bnaati he lein saara bjt bhrst neta or adhikari cht kar jaate hen unhen mdad krne ke liyen qaanun to hen lekin kriyanviti ke liyen karyvaahi nhin he achchi hi nhin bhut achchi post mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Kroor yatharth ka satek vardan.

---------------
जीवन की हरियाली के पक्ष में।
इस्लाम धर्म में चमत्कार।

DR. ANWER JAMAL said...

'जियो क्योंकि हमारा मालिक चाहता है कि अभी हम जियें.'
@ पूजा जी ! आपकी टिप्पणी को मैं गागर में सागर की संज्ञा देता हूँ . आपकी यह टिप्पणी भी ऐसी ही है.
आपने सच कहा जो भी कहा है . ख़ुदकुशी करने वाला सोचता है कि मरकर दुःख से पीछा छूट जायेगा लेकिन उसे सोचना चाहिए कि पाप से तो दुःख बढ़ता है कम नहीं होता . आदमी का अंतिम कर्म तो प्रभु से क्षमा याचना का और पुण्य का कर्म होना चाहिए ताकि आदमी के कर्मों का खाता उसके अच्छे कर्म पर बंद हो . इसीलिए मरते समय कालिमा पढ़ा जाता या ऊपरवाले का नाम लिया जाता है. ख़ुदकुशी करने वाला इसके खिलाफ अंतिम कर्म पाप का करके मरता है और खुद को परलोक की यातना का पात्र बनाता है . दुनिया की तकलीफ से घबराया तो मर गया और मरकर जो तकलीफ वह पायेगा , उससे बचने के लिए वह कहाँ जायेगा ?
मुसलमान यही सोचता है और ख़ुदकुशी से रुक जाता है. हरेक की ज़िन्दगी में ऐसे अवसर ज़रूर आते हैं जब उसके सपने और अरमान टूटते हैं या हालात अपने काबू से बाहर जाते हुए लगते हैं . ऐसी बेबसी और गम के आलम में आदमी को लगता है कि अब उसकी ज़िन्दगी उसके लिए एक बोझ है, अब जीना बेकार है , क्या फायदा ऐसी अधूरी और अपमानजनक ज़िन्दगी जीने से और दुःख उठाने से ?
इस जीने से तो अच्छा है कि मर जाएँ .

ऐसे अवसर मेरी जिंदगी में भी बहुत बार आये और जब भी मरने का विचार आया तो परलोक की सज़ा के डर ने हमेशा अपने जीवन को ख़तम करने मुझे रोक दिया .

पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब स. ने मालिक के फज्लो करम से हमेशा मुझे सही रास्ता दिखाकर पाप करके मरने से बचा लिया . ऐसे अवसर पर दीन की समझ रखने वाले एक मुसलमान को उनकी वे हदीसें याद आती हैं जिनमें बताया गया है कि
जो कोई ख़ुदकुशी करके मरता है . मरने के बाद वह क़ियामत के रोज़ तक बार बार उसी तरीके से खुदकुशी करके मरता रहेगा. उसके पाप का यह दंड उसे मिलेगा.
हमने सोचा कि इतने बड़े दुःख को कैसे उठाएंगे ?
लिहाजा दुनिया का हरेक दुःख परलोक की उस यातना के सामने छोटा लगने लगा और जीना आसन हो गया और जीने का मक़सद भी सामने आ गया कि 'जियो क्योंकि हमारा मालिक चाहता है कि अभी हम जियें .'

रेखा श्रीवास्तव said...

अनवर भाई,

डिप्रेशन आजकल सिर्फ गृहणियों में ही नहीं बल्कि सभी में पल रहा है. सिर्फ महिलाओ में ही नहीं बल्कि पुरुषों और बच्चों में भी इसकी कमी नहीं है. बड़े बड़े अफसर और व्यापारी ऐसे कदम उठा लेते हैं. इसके लिए डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति खुद कभी भी निकल नहीं सकता है इसके लिए जरूरी है की उसके घर वाले इस ओर पहल करें और उनको उस डिप्रेशन से खुद समझा कर निकल सकें तो निकलें नहीं तोइसके लिए मनोचिकित्सक या फिर काउंसलर से मिल कर उसकी काउंसिलिंग करवाएं. इससे निज़ात का सबसे अच्छा यही तरीका है.

Neelam said...

Aatm hatya....paap hai ya punya pata nahi..magar haan ye aisa apraadh hai jise karne waale .ye apradh karte hue jaraa bhi nahi sochte..ya paristithyaan unhe sochne nahi detin.
Dippration ko maie bhi jhela hai 2saal...agar mere pati aur mere baccho ne uss waqt mujhe nahi sambhala hota to shayad main bhi aaj yahan nahi hoti...dippration se insan khud chaah kar bhi bahar nahi aa sakta..is se bahar nikaalne ke liye councling to sahara hai hi..magar aapno kaa sneh ,pyaar aur sath..ye uss se bhi kahin jyada jaruri hai.

Neelam said...

Aatm hatya...Paap hai..aisa aksar sunte hain..magar jo insaan aisa kadam uthane par vivash hota hai wo ye nahi soch paata ki ye paap haai ya punya..Aatm hatya apraadh hai.ek aisa gunaah jiski saja peechhe reh jaane wale apne bhugat -te hain.
dippration....ye bimaari hai..khud lee hue bimaari..har waqt nirashavaadi sochna...main khud iss bimaari se graasit rahi 2 saa...Rekha ji ne kaha concling se nijaat paaayi jaa sakti hai iss rog ji..ji han..mgar ye taabhi kargar hoti hai jab aapke apne aapko bharpur sehyog, prem, sneh,aur sath de...Mere pati aur mere bacchon ne mera bahut sath diya uss douraan jaab maain dippration se grasit thi..agar unka saath nahi mila hota to aaj main yahan nahi hoti,