Monday, May 23, 2011

उसे हंसी आ रही है और मुझे रोना / यहाँ जिसे देखिए एक से एक नमूना

श्री राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ जी ने अपने ब्लॉग पर घोषणा कर दी है कि

'कुरआन या कोई धर्म माँस खाने को नहीं कहता ।'


इसी के साथ जनाब फ़रमाते हैं कि मुझे क़ुरआन के बारे में यह दावा पढ़कर भी हंसी आती है कि कोई आदमी क़ुरआन जैसा नहीं बना सकता । एक दो जगह और उन्होंने बताया है कि उन्हें हंसी आती है ।
इसलाम का मज़ाक़ उड़ाने वाली उनकी इस पोस्ट को आज वंदना जी ने चर्चामंच पर भी जगह दी। हमने इसका लिंक वहीं देखा और उन्हें बताया कि उनका ख़याल ग़लत है।
आजकल हम ख़ुद को बदलने में लगे हुए हैं इसलिए राजीव जी को बख़्श दिया और बस केवल तथ्य देकर आ गए। उनकी हंसी के बारे में कुछ न कहा।
लेकिन हिंदू ब्लॉगर्स भाई बताएं कि क्या उन्हें हंसना ज़रूरी है ?
क्या उनकी यह हरकत ठीक है ?

अगर ठीक नहीं है तो फिर किसी हिंदू भाई ने उन्हें टोका क्यों नहीं ?
हम टोकेंगे तो आदमी की हंसी मूलाधार चक्र के पास से निकल जाएगी।

आजकल लोग शाँत ब्लॉगिंग कर रहे हैं और हम भी ग़ज़ल और अफ़साने लिख रहे हैं ।
क्या ऐसा करते हुए हम बुरे लग रहे हैं ?
क़ुरआन में जो लिखा है , पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब ने उसके अनुसार आचरण करके भी दिखाया है। जो कोई इस्लाम और कुरआन को जानना चाहे , उसे लाज़िम है कि वह मुहम्मद साहब की जीवनी भी पढ़े। तब वह जान लेगा कि वास्तव में खान-पान और रहन-सहन के बारे में इस्लामी व्यवस्था क्या है ?
अगर कोई ऐसा नहीं करता और फिर भी हंसता है तो उसका हंसना यही बताता है उसे सच्चाई की कोई तलाश नहीं है , बस शब्दों के साथ खिलवाड़ करना है ।

इसके बाद जनाब ने सारा ज़ोर इस बात पर लगा दिया कि गो और गौ में क्या अंतर है और गोमांस भक्षण का अर्थ यह नहीं बल्कि यह निकलता है।
भाई साहब एक एक शब्द के कई-कई अर्थ निकलते ही हैं और संभव है कि जो आप बता रहे हैं वह अर्थ भी निकलता हो लेकिन एक नज़र प्राचीन आर्य परंपराओं पर भी डाल लेते तो पता चल जाता कि आर्य ‘गोमांस भक्षण‘ अर्थ क्या लेते थे ?

गोमांस परोसने के कारण यशस्वी बना राजा रंतिदेव : महाभारत 

                        (वनपर्व 208 199/8-१०)


आपको यह इस लिंक पर जानकारी कम लगे तो आप इस लिंक पर चले जाइये आपकी भरपूर तसल्ली हो जायेगी।

अध्याय 11 : क्या हिन्दू कभी गोमांस नहीं खाते थे?



हमने तो उनकी पूरी पोस्ट पढ़ी और यह कमेंट देकर चले आए, जिसे सत्य की खोज वास्तव में है, वह विचार करके बताए कि हमने क्या सही कहा और क्या ग़लत कहा ?


स्वांस स्वांस का करो विचारा । बिना स्वांस का करो आहारा । 
सीधी सी बात है । जिसकी स्वांस का आवागमन होता है । वह जीव है । और उसको मारना पाप ही है । अर्थात इस भक्ष्य अभक्ष्य निर्णय हेतु स्वांस को आधार माना गया है
 @भाई राजीव जी ! आप संतों का आदर करते हैं उनके बताए आहार को ही लेना चाहते हैं तो आप इस धरती पर जीवित नहीं रह सकते। इन संतों को पशु-पक्षी सांस लेते नज़र आए तो लिख दिया कि आहार में श्वास को आधार मानो लेकिन उन्हें ‘सत्य का ज्ञान‘ नहीं था कि पेड़-पौधे भी सांस लेते हैं। आज वैज्ञानिकों ने उस सत्य का पता चला लिया है जिसका पता इन संतों को नहीं था। वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि ‘पेड़-पौधे भी सांस लेते हैं।‘वैज्ञानिक वनस्पति जगत को भी जीवित वस्तुओं में ही शुमार करते हैं। अगर इन संतों की बात मान ली गई तो मानव जाति का जीवन इस पृथ्वी पर संभव नहीं है बल्कि अगर अपने उसूल पर ख़ुद संत ही चलें तो वे ख़ुद भी जीवित न रह पाएंगे। बस जो मन में समा गया उसे नियम बनाकर परोस दिया। इसी का नाम दर्शन और फ़िलॉसफ़ी है और हद तो तब हो जाती है जबकि ये लोग क़ुरआन की मूल भाषा का ज्ञान प्राप्त किए बिना ही उसकी आयतों के अर्थ भी बताने लगते हैं। अगर इन्हें इस्लाम के बारे में कोई बात कहनी है तो उसे कहने से पहले इस्लामी विद्वानों से मिलकर पूरी बात पता कर लेनी चाहिए। आजकल तो ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं कि अगर आप फ़ोन करके भी कुछ जानना चाहें तो वे आपको फ़ोन पर भी पूरी जानकारी देंगी।
 ये फ़ोन नं. ऐसे ही हैं 011-24355454, 41827083, 24356666, 46521511फ़ैक्स 011-45651771इन पर मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब, दिल्ली की ओर से नियुक्त किसी सेवाकर्मी से बात होती है। उनके लेक्चर्स के वीडियो देखने की सुविधा निम्न वेबसाइट पर है  
हिंदू ग्रंथों और मुस्लिम ग्रंथों में मांसाहार को अनुचित नहीं माना गया है। देखिए यह लिंक  

भूख से तड़पती गायें , श्रद्धा रखिये तो कुछ खिलाइए भी 

the cows might have died of eating polythene.

2 comments:

Shah Nawaz said...

यह वाकई गलत बात है... किसी भी मज़हब का मज़ाक बनाने वाले का विरोध अवश्य ही करना चाहिए और जिसे सही जानकारी है उसे वोह समझाने की कोशिश करनी चाहिए...

वैसे कुरआन में मांस खाने की इजाज़त है. यह अलग बात है की इजाज़त है, हुक्म नहीं, इसीलिए अक्सर मुस्लिम शाकाहारी भी होते हैं. असल में शाकाहारी होना या मांसाहारी होना किसी धर्म विशेष से नहीं बल्कि इंसान की व्यक्तिगत पसंद से सम्बंधित है.

iqbal said...

मांस खाओ या न खाओ, उससे मुझे मतलब नहीं लेकिन हैरत की बात है, मुसलमान भाई आये और कुरआन से सम्‍बन्धित आपकी गलत बातों को नज़रअन्‍दाज कर गयेः
आप गलत लिखते हैं कि ''इसकी आयतों की तरह कोई दूसरी आयत नहीं बना सकता । या''
सही लिखते हैं कि ''इसमें कुछ मिलाया नहीं जा सकता।''

जनाब कुरआन में 114 सूरतें हैं यानि अध्‍याय हैं उनमें से एक जैसी सूरत बना कर दिखाने के लिए कहा गया है न कि आयत जो 6666 हैं
And if you (Arab pagans, Jews, and Christians) are in doubt concerning that which We have sent down (i.e. the Qur'an) to Our slave (Muhammad, Peace be upon him ), then produce a surah (chapter) of the like thereof and call your witnesses (supporters and helpers) besides Allah, if you are truthful. [Qur'an 2:23]

अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को

This is a challenge that still stands today, as no one has met this challenge in the over one thousand four hundred (1,400) years since it was first made. This is a point upon which we ask the reader to ponder.

और वाकई इसमें कुछ मिलाया नहीं जा सकता, आप जो यह मिलावट दिखा रहे हैं यह अनुवाद में है, असल कुरआन में कोई बदलाव कभी कर सका है न कर सकेगा, यह मैं नहीं अल्‍लाह कहता है
a href="http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/3-7.html">
अल्‍लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता