Saturday, September 24, 2011

कहावत क्यों बने उनके बोल ?

'बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद'
'भैंस के आगे बीन बजाना'
ये और ऐसी दूसरी बहुत सी कहावतें हमारी ज़बान में मशहूर हैं। इस तरह की कहावतें हरेक ज बान में मशहूर हैं। अरबी की एक कहावत है कि
'हरेक बर्तन से वही छलकता है जो कि उसमें होता है।'

 ये कहावतें आम तौर पर समाज के किसी अनुभवी आदमी की वाणी से निकली होती हैं और गुजरे जमाने के ये आदमी आम तौर पर अनपढ  होते थे। अनपढ  होने के बाद भी वे ज्ञानी थे। ज़िन्दगी की किताब को उन्होंने बहुत ध्यान से पढ़ा होता था।
अपनी ज़िन्दगी के तजर्बों को ही वे अपनी ज बान में कहते थे तो उनसे प्यार करने वाले उन्हें ज बानी याद कर लेते थे और फिर वे दूसरों को बताते थे। दूसरों को भी सुनकर लगता था कि हां, बात में तो दम है। सैकड़ों और हज़ारों साल बाद आज भी उनकी बात वैसी ही सच निकलती है जैसी कि तब थी जब उन्होंने उसे कहा था।
ऐसे थे हमारे पूर्वज, जिनकी बात में दम था, सच्चाई थी और अच्छाई थी। आज हमें नहीं मालूम कि किस कहावत को किस आदमी ने कहा ?
लेकिन कहावत को सुनते ही हम जान लेते हैं कि इसे कहने वाले ने ज़िंदगी को कितनी गहराई से महसूस किया होगा ?
आज कहावतें कहने वाले हमारे पूर्वज नहीं हैं, उनकी जगह आज हम खड़े हैं।
क्या हमारी ज़बान से भी ऐसी बातें निकलती हैं कि लोग उन्हें सुनें तो उन्हें 'मार्ग' मिले या सुनकर कम से कम कुछ अच्छा ही लगे ?
जो कुछ हम कहते हैं, वह हमारी सोच को ज़ाहिर ही नहीं करता बल्कि कुछ और लोगों को प्रेरणा भी देता है। अच्छा कलाम अच्छी राह दिखाता है और बुरी बात बुरी राह दिखाती है।
अच्छा आदमी, जो अच्छी राह चलता है कभी बुरी बात मुंह से नहीं निकाल सकता। हमारा कलाम यह भी बताता है कि हम किस राह पर चल रहे हैं ?
ब्लॉगिंग में आज़ादी बेहद है।
यहां हरेक आदमी दिल खोलकर लिखता है।
आदमी जो लिखता है, लिखने के बाद उसे खुद भी पढ़ना चाहिए और अपने कलाम के आईने में उसे खुद को देखना चाहिए कि वह अच्छा आदमी है या बुरा आदमी ?
अपने कलाम की रौशनी में उसे यह भी देखना चाहिए कि वह अच्छी राह पर चल रहा या कि बुरी राह पर ?
उसकी बात से लोगों को अच्छी सीख मिल रही है या कि बुरी ?
इससे फ़ायदा यह होगा कि जो आदमी खुद को बुरी राह पर देखे, वह अपनी राह बदलकर सही राह पर आ जाए।
अगर चाहें तो हम ब्लॉगिंग के ज रिये अपने चरित्र का विकास भी सरलता से कर सकते हैं।
दुनिया भर के बारे में रायज नी करना और खुद से गाफ़िल रहना सिर्फ़ यह बताता है कि चाहे हमने बेहतरीन यूनिवर्सिटीज  में पढ़ा है लेकिन 'ज्ञान' हमें वास्तव में मिला ही नहीं है।
ज्ञान हमें मिला होता तो हमने कुछ अच्छा कहा होता और कुछ अच्छा किया होता।
दूसरों का मज़ाक़ और अश्लील फब्तियां कसना ज्ञानी लोगों का काम न तो पहले कभी था और न ही आज है।
हमने लिखना बेशक सीख लिया है लेकिन अपने पूर्वजों की रीत भुला बैठे, जो कि बोलते थे तो कहावत बन जाया करती थी।
And see
 हदीस-शास्त्र !
● वह व्यक्ति (सच्चा, पूरा, पक्का) मोमिन मुस्लिम नहीं है जिसके उत्पात और जिसकी शरारतों से उसका पड़ोसी सुरक्षित न हो।

No comments: