Thursday, June 30, 2011

हे भिक्षुक ! सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था भिक्षा मांगने से रोकती है

'देश और विदेशों में कोई हिन्दू नहीं, यह शब्द केवल कागजों तक ही सीमित है।'
यह दावा किया गया है मशहूर हिंदी ब्लॉग ‘लोकसंघर्ष पत्रिका‘ पर।
भिक्षु विमल कीर्ति महास्थविर (मोबाइल नं. 07398935672) कहते हैं कि
‘हिन्दू’ शब्द का सम्बन्ध धर्म से नहीं, इस शब्द का सम्बन्ध ‘सिन्धु नदी’ से है।
‘हिन्दू’ शब्द मध्ययुगीन है। श्री रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में ‘हिन्दू’ शब्द हमारे प्राचीन साहित्य में नही मिलता है। भारत में इसका सबसे पहले उल्लेख ईसा की आठवीं सदी में लिखे गए एक ‘तन्त्र ग्रन्थ’ में मिलता है। जहाँ इस शब्द का प्रयोग धर्मावलम्बी के अर्थ में नहीं किया गया जाकर, एक, ‘गिरोह’ या ‘जाति’ के अर्थ में किया गया है।
गांधी जी भी ‘हिन्दू’ शब्द को विदेशी स्वीकार करते हुए कहते थे- हिन्दू धर्म का यथार्थ नाम, ‘वर्णाश्रमधर्म’ है।
हिन्दू शब्द मुस्लिम आक्रमणकारियों का दिया हुआ एक विदेशी नाम है। ‘हिन्दू’ शब्द फारसी के ‘ग़यासुल्-लुग़ात’ नामक शब्दकोश में मिलता है। जिसका अर्थ- काला, काफिर, नास्तिक सिद्धान्त विहीन, असभ्य, वहशी आदि है और इसी घृणित नाम को बुजदिल लोभी ब्राह्मणों ने अपने धर्म का नाम स्वीकार कर लिया है।
हिंसया यो दूषयति अन्यानां मानांसि जात्यहंकार वृन्तिना सततं सो हिन्दू: से बना है, जो जाति अहंकार के कारण हमेशा अपने पड़ोसी या अन्य धर्म के अनुयायी का, अनादर करता है, वह हिन्दू है। डा0 बाबा साहब अम्बेडकर ने सिद्ध किया है कि ‘हिन्दू’ शब्द देश वाचक नहीं है, वह जाति वाचक है। वह ‘सिन्धु’ शब्द से नहीं बना है। हिंसा से ‘हिं’ और दूषयति से ‘दू’ शब्द को मिलाकर हिन्दू बना है।
अपने आपको कोई ‘हिन्दू’ नहीं कहता है, बल्कि अपनी-अपनी जाति बताते हैं।


इसी के साथ वह दावा करते हैं कि
‘‘भगवान बुद्ध की ‘श्रेष्ठ व्यवस्था’, बौद्ध धर्म के बराबर संसार में कोई दूजी व्यवस्था नहीं है।‘‘
इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने इंसानियत की शिक्षा दी और ऐसे टाइम में दी जबकि ब्राह्मणों का विरोध करना आसान नहीं था। उनका साहस और मानवता के प्रति उनकी करूणा क़ाबिले तारीफ़ है लेकिन यह दावा निःसंदेह अतिश्योक्ति से भरा हुआ है।

भीख मांगना आज जुर्म है और बौद्ध धर्म गुरू का नाम ही भिक्षु है भिक्षा मांगने के कारण। भिक्षा मांगने की व्यवस्था के बारे में तो यह नहीं कहा जा सकता कि इस जैसी व्यवस्था संसार में दूसरी है ही नहीं। दूसरे मतों में भी भिक्षा मांगने की परंपरा रही है।
आज के ज़माने में केवल वही व्यवस्था सर्वश्रेष्ठ कही जा सकती है जिसमें भिक्षा मांगने से रोका गया हो और मेहनत की कमाई खाने की प्रेरणा दी गई हो।।
पता कीजिए कि वह धर्म कौन सा है जो अपने अनुयायियों को भिक्षा और भीख मांगने से रोकता है ?

3 comments:

Ayaz ahmad said...

बेहतरीन पोस्ट

DR. ANWER JAMAL said...

हमारे देश में भीख मांगना एक आम बात है। मांगने वाले कहीं तो ग़रीबी की वजह से मांग कर खा रहे हैं और कहीं यह बाक़ायदा एक पेशा बन चुका है और दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहरों में तो इसके माफ़िया भी हैं और कहीं यह धर्म के अनिवार्य कर्तव्य का रूप ही बता दिया गया और धार्मिक शिक्षा के साथ बच्चों को मांग कर खाने की ट्रेनिंग दी जाती रही है। जो लोग ख़ुद मांग कर खाते हों वे दूसरों को मेहनत का उपदेश क्या देंगे ?
...और अगर देंगे तो ऐसे उपदेश प्रभावित ही न कर पाएंगे !

Anil Kumar said...

भिक्षा मांगना बिलकुल जुर्म है. और सभी धर्मो के लोग मंगाते हैं.
बाकी भिक्षा से बौद्ध भिक्षा इस तरह अलग है कि यहाँ भिक्षा मांगकर आपको घर चलाने कि शिक्षा नहीं दी जाती बल्कि बौद्ध सन्देश लोगो तक पहुचे इसलिए इसकी व्यस्था की गई है.
दूसरे धर्मो में भी फकीर, संत आदि हुए है जो खुद उत्पादन में लग कर लोगो को शिक्षा देने में अपना जीवन बिताया और जीने के लिए लोगो पर निर्भर रहे.
व्यक्तिगत खर्चे और घर चलाने के लिए भिक्षा मांगने के मै भी विरोधी हूँ लेकिन चीजों को सही सन्दर्भ और तथ्य में पेश किया जाना चाहिए.
zanil7, JNU, New Dlehi