Wednesday, June 1, 2011

एक ही चीज़ के अलग अलग भाषाओं में नाम अलग अलग होना स्वाभाविक है - Dr. Anwer Jamal



सनातन धर्म सभी मनुष्यों को 'आत्मवत' देखने की शिक्षा देता है और जो ऐसा नहीं करता उसे अज्ञानी , मूर्ख और नर्क में गिरने वाला बताता है। एक परिवार को भाषा, क्षेत्र और संस्कृति के अंतर के कारण खंडित और विभाजित करना सबसे बड़ी ग़लती है। जो मनुष्य यह ग़लती करता है वह धर्म पर होता ही नहीं । सारी मनुष्य जाति मनु की संतान और एक परिवार है. यहाँ सभी अपने हैं, गैर तो यहाँ कोई कभी था ही नहीं और न ही आज है.

आप सनातन धर्म का पालन कीजिए , इस्लाम का पालन ख़ुद ब ख़ुद हो जाएगा। इस्लाम का अर्थ है ईश्वर की आज्ञा का पालन करना। इसी से मन, बुद्धि और आत्मा को शांति मिलती है। मनुष्य का सनातन धर्म यही है।

जो सदा से चला आ रहा हो उसे सनातन कहते हैं।
इस्लाम शब्द सुनकर यह लगता है कि जैसे सनातन धर्म से हटने के लिए कहा जा रहा है, यह भ्राँति मात्र है।
अगर आपको प्यासा देखकर मैं आपके प्यार में आपसे कहूँ कि आइये कोल्ड ड्रिंक ले लीजिए तो क्या आपका यह कहना उचित होगा ?
"कि आपकी सोच तो बहुत गंदी है जो आप मुझसे कोल्ड ड्रिंक पीने के लिए कह रहे हैं । हम तो 'शीतल पेय' पीने वालों में से हैं । जाओ मियाँ जाओ और पहले अपनों को पिलाओ कोल्ड ड्रिंक।"
जो ऐसा कहे, उसे क्या समझा जाए और आख़िर कैसे समझाया जाए ?
कुछ भाई ऐसे हैं जिन्होंने  डेढ़ साल तक मेरे लेख पढ़े और आप आज तक वे यह नहीं जान पाए कि एक ही चीज़ के अलग अलग भाषाओं में नाम अलग अलग होना स्वाभाविक है। लड़ने और बुरा मानने के लिए यह उचित कारण नहीं है मैंने धर्म के लिए अरबी भाषा का शब्द क्यों इस्तेमाल कर लिया ?
यहाँ सभी मेरे प्यारे भाई-बहन हैं और रहेंगे। मैं कभी आपको पराया मानने वाला नहीं हूँ।
इंसान को सच्ची ख़ुशी तभी मिलती है जब वह सबको अपना समझता है और नेकी के जिस रास्ते पर ख़ुद चलता है और दूसरों को भी उसी की प्रेरणा देता है।
ऐसे लोगो की मानसिकता को देखते हुए अब मैं इस्लाम का संस्कृत पर्यायवाची प्रयोग करूंगा और कहूँगा कि आप सनातन धर्म का पालन करें। सनातन धर्म भी गुटखा खाने, शराब पीने, फ़िज़ूलख़र्ची करने और अपनी वासनाओं में जीने से रोकता है जो कि मानवता की तबाही का कारण है.

1. अब आप देख लीजिए कि आप अपनी वासना पर चलते हैं या ईश्वर की आज्ञा पर ?
2. जब आप कोई काम करते हैं तो आप उसमें अपना लाभ और अपनी सुविधा देखते हैं या ईश्वर की आज्ञा ?

अगर आप ईश्वर की आज्ञा पर चलते तो आप मानते कि सारी वसुधा एक परिवार है और इसका मुखिया केवल एक ईश्वर है तब आप सोचें कि यहाँ पराया कौन है?
हरेक मनुष्य अपना है जबकि लोग  मुझसे कहते हैं कि मैं अरबों भाई-बहनों को पराया समझूँ ?
क्या मुझे ऐसा करना चाहिए ?
जबकि हम सभी को मिलकर कहना चाहिए
'धर्म की जय हो'
सादर ,

वंदे ईश्वरम् !
कृपया देखें :

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