Saturday, April 10, 2010

गाय काटने वाले मुसलमानों की प्रार्थना ऊपर वाला कैसे सुन सकता है जी ? - भोले भाले गिरी जी ने पुराण मर्मज्ञ महर जी को टोका । question ?

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पार्ट 3
समावेश जी ने आते ही , जबड़ा सहलाते अवध्य बाबू से पूछा - क्यों भाई , क्या हुआ ?दर्द से बेहाल अवध्य बाबू बोले - नीचे से तो पहले ही दुख रहा था और गिरी जी के कारण अब ऊपर से भी दुखने लगा । हाय रे मेरी क़िस्मत ।इस बार वकील साहब ने सिम्पैथी जताई । पूछा - क्यों भाई , नीचे से क्यों दुख रहा है , और वह भी बुढ़ापे में ?मानों वकील साहब ने साँप की दुम पर पैर रख दिया था ।अवध्य बाबू फुंकारे - अरे ! यह नामुराद क़ब्ज़ तो होता ही बुढ़ापे में है ।महर जी भला कब कम थे । बोले - लेकिन मैंने तो सुना है कि क़ब्ज़ होने के लिए पेट में रोटी आदि कुछ होना ज़रूरी है ?ठाकरे का हज्जाम आश्चर्यचकित था । बोला - तो क्या इनके बेटे बहू इन्हें रोटी नहीं देते ?बेगाने बाबू भी दुमछल्ला स्टाइल में बोले - क्या इतने बड़े नगर में कोई गुरूद्वारा आदि भी नहीं है क्या ?अवध्य बाबू कराहते हुए बोले - अरे भाई ! यहां गुरूद्वारा भी है और मज़ारों का लंगर भी है । सब कुछ है यहां पर । अगर ये सब न होते तो भला मैं कैसे ज़िन्दा रह पाता ?परवीन जी ने अपनी एरिस्टोक्रेट मुस्कुराहट के साथ पूछा - तो इसका मतलब तो यह हुआ कि आप रोज़ खाते हैं ?अवध्य बाबू ने कहा - हां भई हां । मैं भले ही लंगर का खाता हूं लेकिन खाता रोज़ हूं ।गिरी जी ने भी अपनी झेंप मिटाने की ख़ातिर पूछा - जब आप रोज़ खाते है तो आपको क़ब्ज़ भी तो रोज़ ही लगता होगा ?अवध्य बाबू बोले - नहीं जी , लंगर के खाने का तो पेट आदी हो गया है । हुआ यूं कि हमारे मुहल्ले में कई बूढ़ी गाय घूमती रहती हैं । वे भी रिटायर्ड लोगों की तरह बड़ा दुख भरा जीवन जीती हैं । सड़क पर पड़ी पॉलिथीन की पन्नियां खा खाकर कष्ट भोगकर मरती रहती हैं । इतना कष्ट तो उन्हें अज्जू कसाई की छुरी से भी न होता होगा । बहरहाल अपने भगवा दल वाले और हम जैसे तो इस इन्तेज़ार में रहते हैं कि यह आखि़र मरेगी कब ?परवीन जी बोले - क्यों , क्या आपको उसकी खाल उतारनी है या उसका क्रियाकर्म करना है । अवध्य बाबू बोले - राम राम राम ! खाल हम क्यों उतारने लगे ?तो फिर क्यों करते हैं आप गय्या के मरने का इन्तेज़ार ?अवध्य बाबू बोले - पुण्य की ख़ातिर भाई ।समावेश जी भी चकरा गये । पूछा - गऊ के मरने में आपको कैसे पुण्य मिलता है और उसका आपके क़ब्ज़ से क्या सम्बन्ध है ?अवध्य बाबू ने समझाना आरम्भ किया । बोले - देखिये । गाय हमारी मां है कि नहीं ?परवीन जी के अलावा सभी ने हामी भरी ।तो बस । जब वह हमारी मां है तो उसका क्रियाकर्म भी करना ज़रूरी है और क्योंकि मां तो वह सब हिन्दुओं की है सो सभी से सहयोग लेना भी ज़रूरी है । भगवा दल सबसे चन्दा बटोर लेता है ।परवीन जी ने कहा - चन्दा कोई बटोरे और क़ब्ज़ आपको हो ?बात कुछ समझ में नहीं आई । अरे भाई मय्यत की तेरहवीं की रस्म भी तो होती है और उसमें कुछ खाना खिलाना भी तो होता है कि नहीं ?‘ओह आई सी ।‘ परवीन बाबू ने कहा और फ़ौरन अपने लैपटॉप पर कुछ सर्च करने बैठ गए । अब रोज़ रोज़ तो गय्या मरती नहीं सो राम जाने अगली गय्या कब मरे ? यही सोचकर हमने खू़ब सारा माल ठूंस लिया ।गिरी जी ने नतीजा भी घोषित कर दिया - फिर तो आपको क़ब्ज़ तो होना ही था । लेकिन वैसे यह दावत थी कब ?मैंने ढुंढवाया था आपको , लेकिन आप रामदेव बाबा जी से आशीर्वाद लेने हरिद्वार गए हुए थे।ओह तो यह 2 अप्रैल 2010 की बात है । फिर आपने क्या किया ?करना क्या था ? गऊ का मूत हरेक तरह का क़ब्ज़ तोड़ने में रामबाण है । इसमें तेज़ाब की भारी मात्रा पाई जाती है । मैं तुरन्त दो चार गायों के पिछवाड़े सहलाकर औषधि ले आया और बेपेन्दी का पूरा लोटा चढ़ा गया । लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ ।तो आपको किसी ढंग के डॉक्टर को दिखाना चाहिये था । - वकील साहब ने सलाह दी।अजी देख लिया ढंग के डॉक्टर को भी । गया था मैं डॉक्टर जमाल के पास इलाज कराने । वे तो बैठे थे अन्दर , बाहर खड़ा अपना प्रकाश झा का लग्गू पत्रकार किसी एसीपी के ड्राइवर से बतिया रहा था । मेरी समस्या सुनकर बोला कि इतनी मामूली सी समस्या के लिए डॉक्टर साहब से क्या मिलना ? इसका इलाज तो उनका कम्पाउण्डर ही कर देगा । मुझे भी यही प्रॉब्लम थी । उसने गणेश क्रिया कर दी । बस समस्या ख़त्म ।भय्या मैंने उनकी बात मान ली । पहले उसने कमरा बन्द करके मेरे साथ गणेश क्रिया कर दी और जब उसने बात बनती न देखी और गऊ मूत पर मेरा अगाध विश्वास देखा तो वह टॉयलेट में जाकर एक जार भर लाया और मुझे पिला दिया । उसके पीते ही मुझे खुलकर दस्त हो गया । मैंने उससे पूछा कि भई गऊ मूत तो मैं खुद भी पीकर आया था लेकिन इत्ता तेज़ असर तो मैंने उसका कभी देखा नहीं । यह आखि़र था क्या ?वह बोला - बाबू जी था तो यह भी मूत ही लेकिन इसकी पॉवर थोड़ा ज़्यादा थी ।क्या मतलब ? क्या इसमें भी पॉवर कम ज़्यादा होती है ?देखिये ! हरेक औषधि की पॉवर कम ज़्यादा होती है तो भला फिर मूत की क्यों न होगी ?मैंने कहा - अब ज़्यादा सस्पेंस क्रिएट किये बिना पॉवर बढ़ाने का तरीक़ा जल्दी से बता दो ।वह बोला - सीधी सी बात है । देखिये ! गाय लाख माता सही लेकिन है तो जानवर ही ।क्यों ?बिल्कुल है ।मनुष्य की योनि सर्वश्रेष्ठ योनि मानी जाती है कि नहीं ?बिल्कुल ।बस । जब आप पर गऊ का मूत बेअसर हो गया तो मैं समझ गया कि अब औषधि की पॉवर बढ़ाने का समय आ गया है और मैंने तुरन्त आपकी भलाई की ख़ातिर अपना ....क्या ऽऽऽ ? - मैं चिल्लाया और उसे मारने को उठ ही रहा था कि अचानक मेरे पेट में फिर मरोड़ सा उठा और मैं टॉयलेट की तरफ़ को भागा लेकिन वह कम्पाउण्डर नाराज़ हो गया था । उसने मुझे धकिया कर दरवाज़ा लगा लिया । वह अपनी फ़ीस मारे जाने से भी दुखी था और मेरी बदतमीज़ी से भी ।फिर आपका हुआ क्या ? - गेंदालाल जी ने अपना नक़ली रे बैन का काला चश्मा उतारकर उत्सुकतावश पूछ ही लिया ।होना क्या था ? , जिसके लिए इनसान अपना टॉयलेट बन्द कर देता है । उसके लिए वह मालिक अपना विशाल टॉयलेट तो सदा खुला ही रखता है ।अयं क्या मतलब ? - हस्बे आदत गिरी जी कुछ भी न समझे ।अरे भाई ! मैं खोलकर वहीं सड़क के किनारे नाले पर बैठ गया , मजबूरी थी । क्या करता ?फिर तो आपका पेट ख़ूब साफ़ हुआ होगा और सुलभ शौचालय वाले की मज़्दूरी भी न देनी पड़ी होगी ?अजी ऐसे नसीब हमारे कहां ? अभी मैं बैठा ही था कि मुहल्ले के कई कुत्ते वहां आ गये । वे समझे कि मैं उनके ठिए पर क़ब्ज़ा करने के वहां बैठ गया हूं । सो वे मुझ पर भौंकने लगे । उस समय उनके साथ एक कुतिया भी थी । उसे इम्प्रैस करने की ख़ातिर एक काला कुत्ता तो मेरा गला पकड़ने के लिए आगे बढ़ने लगा ।फिर क्या हुआ ? - गिरी बाबू ने उनसे ऐसे पूछा मानो वे फ़िल्म नटवरलाल के अमिताभ बच्चन से स्टोरी सुन रहे हों ।होना क्या था ? आगे तो भागने के लिए जगह थी नहीं और जगह भी होती तो खड़े होने तक की ताक़त भी घुटनों में न बची थी । सो एक बार फिर कुदरत काम आई ?वह कैसे ? - इस बार बैंगनी शर्ट वाले बेगाने बाबू से न रहा गया ।वैरी सिम्पल , विदेशियों के हमले के समय हमारी सेनाओं के हाथी क्या करते थे ?- अवध्य बाबू बोले - बताओ , बताओ ?सब चुप हो गये । सबने आशा भरी नज़रों से ठाकरे के हज्जाम की तरफ़ देखा । उनमें एक वही था जो अज्जू क़साई से चारजन्य जैसे अख़बार की रद्दी पढ़ पढ़ कर विद्वान सा बन गया था । ठाकरे के हज्जाम का सीना उनकी नज़रों का केन्द्र बनते ही फूलने के लिए मचलने लगा । उसकी जीभ इतिहास की जुगाली करने के कुलबुलाने लगी । लेकिन फिर भी उसने थोड़ी सी मिन्नत करवाना ज़रूरी समझा ताकि कोई उसे आदर का भूखा न समझ ले । दुमछल्ले बेगाने बाबू के आग्रह पर उसने बताया - हमारे हाथी दुश्मनों पर टूट पड़ने के बजाए उनके तीर खाकर पीछे की तरफ़ दौड़ा करते थे और अपने ही सैनिकों को कुचलकर वे विदेशियों को विजय श्री थाली में परोस दिया करते थे ।तो क्या विदेशी हमलावरों की विजय के श्रीगणेश में देसी हाथियों की भी भूमिका रही है ? - गेंदालाल जी चैंके ।वकील साहब बोले - बात हाथी की नहीं कुत्ते की चल रही थी । हां तो अवध्य जी आप अपना बयान जारी रखें ।बस फिर क्या था मैं भी अपने पूर्वजों की तरह जान बचाने के लिए पीछे को लुढ़क गया । - अवध्य बाबू बोले ।नाले में गिरकर भी आप नहीं डूबे ? - समावेश जी को भी ताज्जुब हुआ ।अरे भाई ! आप जैसे पौराणिकों को तो कम से कम ताज्जुब न होना चाहिये ।क्यों भाई ?आप तो चमत्कार को मानते हैं न ?हां । जब जल में डूबती धरती को बचाने के लिए विष्णु जी स्वयं सुअर बनकर आ सकते हैं तो क्या मुझ जैसे धरती के लाल को बचाने के लिए एकाध सुअर भी नहीं भेज सकते ?क्या मतलब ? - गिरी बाबू ने तो मानो अक्ल पर बिल्कुल ही ज़ोर न डालने की क़सम खा रखी थी ।अरे भाई ! हरेक मुश्किल के साथ वह प्रभु कोई न कोई आसानी भी ज़रूर देता है । मैं ऊपर से सीधा नाले में खड़ी एक सुअरिया की पीठ पर पेट के बल गिरा । उस समय उसका पति अपना शक्ति परीक्षण कर रहा था लेकिन उस बेचारे ने अपनी पत्नी के ऊपर मेरे गिरने का बिल्कुल भी बुरा न माना । वैसे भी वह अनाड़ी और नौसिखिया सा ही लग रहा था ।वह कैसे ? वकील साहब पूछ बैठे ।अजी सुअरिया और आदमी में कुछ तो अन्तर होता ही है लेकिन उसे तो अन्त तक भी ज़रा अहसास न हुआ ।क्या मतलब ? सबने समवेत स्वर में पूछा और फिर खु़द ही समझ भी गये । फिर भी उन्होंने पूछा - और आपने प्रतिरोध भी नहीं किया ?प्रतिरोध के लिए तो छोड़ो , हिलने तक की तो ताक़त मुझमें थी नहीं । खै़र , प्रभु जो भी करते हैं भले के लिए करते हैं और इससे मेरा रहा सहा क़ब्ज़ भी दूर हो गया ।वाक़ई साहब , आपको तो पेटा का अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष होना चाहिये । आपने तो बिल्कुल पश्चिमी लोगों की तरह जीवों के जज़्बात का ख़याल रखा है । कोई क्या जानेगा आपके इतने बड़े उपकार को ?अवध्य बाबू बोले - जल्दी ही लोग मेरे इस उपकार को जानेंगे क्योंकि अपने मुरीद सहसपुरिया की डिमांड पर डा. जमाल मेरी आपबीती लिख रहा है । फिर क्या हुआ ? गिरी जी फिर बोले ।अबे क्या सारी स्टोरी एक ही सांस में सुनेगा ? चल तू एकाध लोटा पानी ला ।क्या पीने के लिए ?नहीं रे ! बस ज़रा पेट में मरोड़ सा उठ रहा है ।इतना सुनना था कि वकील साहब की सलाह पर गिरी जी , समावेश जी , महर जी और ठाकरे के हज्जाम ने , चारों ने उन्हें किसी बग़ैर कफ़न की अर्थी की तरह हाथ पैर से पकड़ कर उठा लिया और उन्हें टॉयलेट की तरफ़ ले भागे और परवीन बाबू अपना पेट पकड़कर ज़मीन पर लोट पोट होकर देर तक क़हक़हे लगाते रहे ।गेंदालाल जी ने अपने सर पर कुछ गीलापन महसूस किया तो सर पर हाथ फिराकर देखा और यह समझने का प्रयास करते रहे कि उनके सर पर यह सड़ी हुई कढ़ी आई कहां से ?लेकिन परवीन की उनपर नज़र पड़ी तो वे तुरन्त समझ गये कि वे चारों अवध्य बाबू को गेंदालाल के सर से क्रॉस करके ले गये हैं और यह उनमें से ही टपक कर गेंदालाल जी पर गिर गया है । यह देखकर तो परवीन जी का हंस हंस कर हाल और भी ज़्यादा बुरा हो गया और वकील साहब भी मुंह घुमाकर ज़ेरे लब मुस्कुराने लगे । ( ....जारी )
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पार्ट 4
जिस हाल में वे चारों अवध्य बाबू को लेकर गये थे , ठीक उसी तरह वे उन्हें बिना कफ़न की अर्थी की तरह उठाये हुए ले आये । फ़र्क़ था तो बस इतना कि पहले उनके बदन पर नीचे लुंगी थी और अब वहां सिर्फ़ एक लंगोट सा था और उनका निचवाड़ा टॉयलेट में पानी से धुलने के बाद ऐसे चमक रहा था जैसे खाल उतरने के बाद अज्जू क़साई की दुकान पर टंगा हुआ मुर्ग़ा चमकता है । उन चारों ने यानि कि गिरी जी , महर जी , बेगाने बाबू और ठाकरे के हज्जाम ने अवध्य बाबू को उनकी पुरानी जगह पर वापस पटख़ दिया । ज़मीन में कूल्हे ठुकते ही अवध्य बाबू के मुंह से बेइख्ितयार निकला - हाय राम , मरा ।
तुम मरने वालों में से नहीं हो , वह डॉक्टर सही कहता है कि तुम अवध्य हो । - चिढ़कर गिरी जी बोले ।
प्राचीन भारतीय संस्कृति में तो तुम जैसे लोगों को 50 वर्ष का होते ही वन में भेज दिया करते थे । कम से कम पीछा तो छूट जाता था बीमार बुड्ढों से - महर जी ने अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति की महिमा गाये जाने का एक अदना सा मौक़ा गंवाना भी मुनासिब न समझा ।
गिरी जी हवन्नक़ों की तरह महर जी को तकते हुए पूछ बैठे - महर जी ! आप भारतीय संस्कृति की बुराई कर रहे हैं या बड़ाई ?
ठाकरे के हज्जाम ने उन्हें दुत्कारते हुए कहा - अरे अक्ल के कोल्हू ! भारतीय संस्कृति की बुराई तो मुसलमान , ईसाई और कम्यनिस्ट करते हैं , हम तो राष्ट्रवादी हैं , हम तो बड़ाई करते हैं ।
फिर ठीक है - गिरी जी भी निश्चिंत हो गये ।
हां तो अवध्य बाबू ! आप अपना बयान फिर से आरम्भ करें । - वकील साहब ने कहा ।
हां जी ! जब आपने उस सुअर को मूर्ख बनाया तो फिर क्या हुआ ?
अरे होना क्या था ? एक सुअर हटा तो दूसरा जुट गया और दूसरा हटा तो तीसरा जुट गया । पांच तक तो मुझे याद है फिर ..... ।
फिर ... ? - गेंदालाल जी को अपना बचपन याद आ रहा था ।
फिर कुछ होश न रहा । मैं उस सुअरिया की पीठ पर पेट के बल लेटा लेटा ही बेहोश हो गया ।
सुअरिया एक और सुअर पांच ? ये सुअरिया है या कोई वेस्टर्न सिटीज़न ? - परवीन जी ने भी पूछा लेकिन महर जी इतना बड़ा सेहरा किसी विदेशी के सर पर भला कैसे बंधने दे सकते थे। तुरन्त बोले - नहीं , एक पांच की परम्परा सबसे पहले हमारी संस्कृति में पायी जाती है । गिरी जी ने फिर पूछा - आप भारतीय संस्कृति की बुराई कर रहे हैं या तारीफ़ ?
महर जी ने समझाया - देखो , हम कौन हैं ?
मैं तो गिरी हूं और आपका पता नहीं ? - गिरी जी ने जवाब दिया ।
देखो , कर दी न गिरी हुई बात ? यही सवाल आप किसी मुसलमान से पूछिये तो हरेक मुसलमान एक ही जवाब देगा , कहेगा कि मुसलमान हैं । हिन्दू से पूछो तो वह अपनी जाति बताएगा । - महर जी ने ऐतराज़ जताया ।
तो क्या करें ? क्या हम भी खुद को मुसलमान बताया करें ? - बेगाने बाबू बोले ।
अरे नहीं , लेकिन कम से कम हम खुद को हिन्दू तो कह सकते हैं , क्यों ? - महर जी ने समझाया ।
लेकिन हमें तो बचपन से ही यही आदत पड़ जाती है कि जब भी पूछा जाए कि आप कौन लोग हो तो हमें तो अपनी जाति ही बतानी पड़ती है । नामकरण से लेकर अंतिम संस्कार तक , कहीं भी हिन्दू कहने से काम नहीं चलता बल्कि हरेक मौक़े पर हमें अपनी जाति ही नहीं बल्कि कुल और गोत्र तक बताने पड़ते हैं । हमारे तो नामों तक के साथ जातिसूचक शब्द जुड़े होते हैं । मुसलमानों का क्या है ? न तो उस डॉक्टर के नाम के साथ उसका गोत्र लिखा है और न ही उस आफ़त को यहां ब्लॉगबानी का रास्ता दिखाने वाले उमर की ही जाति का कुछ पता चलता है । - गिरी जी बोले ।
प्लीज़ कम टू द प्वाइंट । हां तो अवध्य बाबू , फिर क्या हुआ ? - वकील साहब ने बहस को बहकने से बचाते हुए कहा ।
अजी होना क्या था ? बस बेहोश होने से पहले मैं यही सोच रहा था कि ‘देसी वूमेन हैज़ अराइव्ड‘ की अर्चना जी तो चार शौहरों की डिमांड मन में पाले पाले ही बुढ़ा गयीं और एक यह सुअरिया है कि पांच पांच यार लिए खड़ी है । हो सकता है ईश्वर उनके मन की मुराद पूरी करने के लिए उन्हें अगली योनि सुअरिया की ही दे दे । - अवध्य बाबू बोले ।
हें हें हें...। गेंदालाल जी ने भी अपनी खीसें निपोरीं - एक बात कहूं कि अगर अर्चना जी अगले जनम में सुअरिया बनायी गईं तो उन पांच में से एक सुअर तो मै बनना चाहूंगा ।
वो क्यों भाई ? - वकील साहब ने क्वेश्चन पुट अप किया ।
देखिये , मैं मानता हूं कि अर्चना जी भी एक अट्रैक्शन हैं लेकिन दरअस्ल मैं मुसलमानों से बहुत नफ़रत करता हूं और उनसे सदा दूर रहना चाहता हूं और मुसलमान सुअर को सदा दूर ही रखते हैं इसलिए ...। - गेंदालाल जी ने समझाया ।
उत्तम विचार - महर जी ने गेंदालाल जी की तस्दीक़ की और कहा - देखिये भाइयो ! मुसलमान अपनी दुआओं में जन्नत यानि स्वर्ग मांगते हैं अगर उनकी मांग ऊपर वाले ने पूरी कर दी तो ... ।
गाय काटने वाले मुसलमानों की प्रार्थना ऊपर वाला कैसे सुन सकता है जी ? - भोले भाले गिरी जी ने पुराण मर्मज्ञ महर जी को टोका ।
देखो बन्धुओं ! मैंने अजामिल की कथा पढ़ी है । उसने हरेक पाप किया था लेकिन मरते समय उसने अपने नौकर नारायण को पुकारा और उसके सारे पाप क्षमा हो गये और वह स्वर्ग को गया । मुसलमान भी जीवन भर चाहे कुछ करे लेकिन मरते समय कलिमा ज़रूर पढ़ लेता है । सो उसके माफ़ होने के पूरे चांस हैं । महर जी ने अपनी आशंका जताई ।
हां , यह बात तो है , हालत कैसी भी टाइट हो मुसलमान मरते टाइम कलिमा ज़रूर पढ़ता है। यह तो मैंने भी देखा है । - गिरी जी ने गवाही दी ।
गेंदालाल जी दाऊद स्टाइल में गिरी जी पर तर्राये - क्यों बे ! तूने कहां देख लिया मुसलमान को मरते हुए ?
मैंने फ़िल्म कुली में इक़बाल को मरते हुए देखा है । - गिरी जी बोले और गेंदालाल जी हो हो करके हंसने लगे ।
परवीन जी ने गिरी जी को समझाया - भई ! वह तो अमिताभ बच्चन था । कोई सचमुच का मुसलमान थोड़े ही था ?
लेकिन वह उस समय ऐक्टिंग तो यही कर रहा था कि एक मुसलमान सचमुच मरता कैसे है ? - गिरी जी ने उत्तर दिया तो सब लाजवाब हो गए ।
ख़ैर , मेरा कहना यह है कि मुसलमान अपने लिए ईश्वर उर्फ़ अल्लाह से जन्नत उर्फ़ स्वर्ग की दुआ मांगता है जोकि संभव है कि परलोक उर्फ़ आखि़रत में पूरी हो जाये जबकि हम तो ऐसी कोई प्रार्थना करते नहीं । हम तो केवल सांसारिक सुख ही मांगते हैं तो क्यों न हम अपने लिए अपनी पसन्द की कोई योनि आज से ही मांगना शुरू कर दें । क्यों भाइयों , क्या विचार है ? - महर जी ने पूछा ।
देखिये ! मुझे किसी भी योनि में जन्म मिल जाये चलेगा लेकिन मैं अगले जन्म में मनुष्य तो हरगिज़ न बनूंगा । - दुखी अवध्य बाबू ने घोषणा कर दी ।
हम आपकी पीड़ा समझ सकते हैं । आपको पांच पांच सुअर झेलने पड़े और वह भी इस बुढ़ापे में । मनुष्य योनि का आपका अनुभव अच्छा नहीं रहा । - ठाकरे का हज्जाम बोला ।
परवीन जी बोले - यू मिस्गाइडेड पीपुल ! कहीं कोई ईश्वर ही नहीं है तो फिर स्वर्ग नर्क कहां से होगा ?
महर जी भन्ना गये । बोले - परवीन जी ! आप यह बताइये कि आपके मुंह में कुल कितने दांत हैं ?
परवीन जी चकरा गये - क्या मतलब ?
आपको मतलब मैं बाद में बताऊँगा , पहले आप यह बताइये कि आपके मंुह में दांत कितने हैं ?
परवीन जी ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा - मुझे नहीं पता ।
जो चीज़ आपके प्रयोग में प्रतिदिन आ रही है और जिसे आप जब चाहे जान सकते हैं और आपकी नज़र के सामने भी है । जब आप उसे ही नहीं जानते तो फिर आप नज़र की पकड़ से बाहर चीज़ों के बारे में कुछ भी विश्वासपूर्वक कैसे कह सकते हैं ? - महर जी ने सवाल किया ।
परवीन जी घिर गये तो अपना तुरूप का पत्ता फेंका - मैं तो एगनॉस्टिक हूं ।
अभी तो आप नास्तिक थे । अब आप एगनॉस्टिक बन गये ।
यह एगनॉस्टिक क्या होता है ? - गिरी जी ने अपना जी. के. बढ़ाने की ख़ातिर पूछा ।
एगनॉस्टिक मीन्स संशयवादी । यानि कि ईश्वर हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता । - उन्होंने जवाब दिया ।
यह क्या बात हुई ?या तो नर बनो या फिर मादा । - बेगाने बाबू ने कहा तो ठाकरे के हज्जाम ने भी चुटकी ली - जैसे कुछ लोग जिस्म के ऐतबार से बीचरासे होते हैं ऐसे ही यह महाशय वैचारिक लेवल पर बीच के हैं - और यह कहकर वह हिजड़ों की तरह तालियां पीट पीट कर ठुमकने लगा और पान के देश मे मौजूद सभी लोग क़हक़हे लगाकर हंसने लगे। ( ...जारी )