दिव्या जी की कुछ ताज़ा पोस्ट देखकर ऐसा लगता है कि अब उनके लेखन का मक़सद सिर्फ़ जज़्बात भड़काना भर रह गया है।
ऐसी ही एक पोस्ट का लिंक यह है :
http://zealzen.blogspot.in/ 2012/04/blog-post_7615.html
दिव्या जी ! आप देखेंगी कि इसके बाद भी लोग न भड़केंगे।
इसके बाद आप उन हिंदुओं को क्या कहेंगी ?
जो इतना साफ़ चित्र देखकर भी आपके भड़काने में नहीं आए ?
हो सकता है कि उन्हें भड़कता न देखकर आप ख़ुद ही भड़क जाएं !
अपनी प्यारी पार्टी की हार के बाद आपका मूड वैसे ही उखड़ा हुआ है।
हिंदू भाई आवागमन की मान्यता के अनुसार मानते हैं कि जो गाय काटता है वह मरकर गाय ही बन जाता है ताकि उसे वह काटे जिसे उसने काटा था।
इस हिसाब से पेशावर के ये पठान पिछले जन्म की वो गायें हैं जिन्हें इस क़साई ने काटा था जो कि अब गाय बना पड़ा है।
इस तरह जिसे आप गाय समझ रही हैं यह पिछले जन्म का क़साई है और जो आज क़साई दिख रहे हैं ये पिछले जन्म की गायें हैं।
अब आप तय कीजिए कि आप पिछले जन्म की कई गायों का साथ देंगी या कि एक क़साई का जो कि आज गाय दिख रहा है ?
यहां एक सवाल यह भी वाजिब है कि कुछ हिंदू वर्ग सुअर को भी चारों तरफ़ से छरियां भोंक भोंक मर मारते हैं और फिर खाते हैं। आपने कभी कोई पोस्ट सुअर हत्या के विरोध में नहीं बनाई जबकि हिंदू धर्म के अनुसार वह भी एक अवतार का रूप है। मछली भी विष्णु जी के अवतार का एक रूप है और हिंदुओं में यह बड़े चाव से खाई जाती है।
यह सरासर दोहरा पैमाना है कि विदेश में अफ़ग़ान बाशिंदे गाय काटें तो विरोध और अपनी बग़ल में गाय कट रही हो तो कोई विरोध नहीं और अपना वर्ग सुअर काट रहा हो और मछली खा रहा हो तो कोई विरोध नहीं।
http://zealzen.blogspot.in/
दिव्या जी ! आप देखेंगी कि इसके बाद भी लोग न भड़केंगे।
इसके बाद आप उन हिंदुओं को क्या कहेंगी ?
जो इतना साफ़ चित्र देखकर भी आपके भड़काने में नहीं आए ?
हो सकता है कि उन्हें भड़कता न देखकर आप ख़ुद ही भड़क जाएं !
अपनी प्यारी पार्टी की हार के बाद आपका मूड वैसे ही उखड़ा हुआ है।
हिंदू भाई आवागमन की मान्यता के अनुसार मानते हैं कि जो गाय काटता है वह मरकर गाय ही बन जाता है ताकि उसे वह काटे जिसे उसने काटा था।
इस हिसाब से पेशावर के ये पठान पिछले जन्म की वो गायें हैं जिन्हें इस क़साई ने काटा था जो कि अब गाय बना पड़ा है।
इस तरह जिसे आप गाय समझ रही हैं यह पिछले जन्म का क़साई है और जो आज क़साई दिख रहे हैं ये पिछले जन्म की गायें हैं।
अब आप तय कीजिए कि आप पिछले जन्म की कई गायों का साथ देंगी या कि एक क़साई का जो कि आज गाय दिख रहा है ?
यहां एक सवाल यह भी वाजिब है कि कुछ हिंदू वर्ग सुअर को भी चारों तरफ़ से छरियां भोंक भोंक मर मारते हैं और फिर खाते हैं। आपने कभी कोई पोस्ट सुअर हत्या के विरोध में नहीं बनाई जबकि हिंदू धर्म के अनुसार वह भी एक अवतार का रूप है। मछली भी विष्णु जी के अवतार का एक रूप है और हिंदुओं में यह बड़े चाव से खाई जाती है।
यह सरासर दोहरा पैमाना है कि विदेश में अफ़ग़ान बाशिंदे गाय काटें तो विरोध और अपनी बग़ल में गाय कट रही हो तो कोई विरोध नहीं और अपना वर्ग सुअर काट रहा हो और मछली खा रहा हो तो कोई विरोध नहीं।
दिव्या जी यह काम ब्लॉगस्पॉट पर कर रही हैं और यहां उनके विरूद्ध शिकायत भी की जा सकती है लेकिन उनके विरूद्ध शिकायत सुनी जाएगी, इसमें संदेह है।
दलितों और कम्युनिस्टों के ब्लॉग्स के विरूद्ध अक्सर शिकायतें की जाती हैं लेकिन उन्हें बंद नहीं किया गया।
दिव्या जी का भी नहीं होगा।
नफ़रतें दिलों में दीवार खड़ी करती हैं और उनका असर समाज पर देर सवेर ज़रूर आता है। देश के दुश्मन यही काम कर रहे हैं।
दिव्या जी थाईलैंड में रहती हैं। गाय वहां भी काटी जाती है। उन्हें गाय से प्रेम होता तो वह थाईलैंड में गाय बचाने के लिए आंदोलन चलातीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि उन्हें गाय से नहीं बल्कि रूपयों से प्यार है।
उन्हें अपनी नौकरी-व्यापार प्यारा है। सो थाईलैंड में वह गऊ काट कर खाने वालों की सेहत का रख रखाव दिल लगाकर कर रही हैं। उनके राष्ट्रवाद को गाय से प्रेम नहीं है बल्कि मुसलमानों से नफ़रत है।
उन्होंने गूगल से ढूंढा तो उन्हें एक फ़ोटो नज़र आया जिसमें मुसलमान गाय के पास खड़े हैं। उर्दू से वह जाहिल हैं। सो उन्हें पता भी नहीं चला कि उर्दू में यह लिखा है कि ये लोग अफ़ग़ान शरणार्थी हैं जो पेशावर में पनाह लिए हुए हैं।
अगर दिव्या जी को इन अफ़ग़ान नागरिकों के अमल पर ऐतराज़ है तो वहां जाकर उनका विरोध करें। यह ख़याल ही रोंगटे खड़े कर देने वाला है। वहां तो अमेरिका जाकर पछता रहा है।
गूगल से यह तस्वीर ढूंढने में उन्हें सैकड़ों तस्वीरें नज़र आई होंगी लेकिन उन्होंने इस तस्वीर को ही चुना क्योंकि नफ़रत का ज़हर फैलाने का काम इसी तस्वीर के ज़रिये मुमकिन है।
दारूल उलूम देवबंद हिंदुस्तान के कुछ ख़ास इलाक़ों में मुसलमानों से गाय न काटने के लिए कह चुका है। जिसका मक़सद हिंदुस्तानी समाज को टकराव से बचाना है। उसके इस फ़तवे को मुल्क के बुद्धिजीवियों ने सराहा भी है। इसके बावजूद उन्होंने यह काम किया है।
घर को आग लगाने वाले चराग़ यही हैं और ख़बरदार करना हमारा काम है।
इसके बावजूद भी हमें दिव्या जी से कोई रंजिश नहीं है। हमें पता है कि आदमी पुराना और ग़लत इतिहास पढ़ता है तो मर चुके महमूद ग़ज़नवी का तो कुछ कर नहीं पाता। मौजूदा मुसलमानों को ही ठिकाने लगाने की मुहिम पर निकल खड़ा होता है जो कि कभी पूरी हो नहीं सकती।
आपस का टकराव ख़त्म हो तो भारत की ताक़त दुनिया की अकेली ताक़त होगी।
जो लोग भारत में टकराव की फ़िज़ा बना रहे हैं वे भारत का भला नहीं कर रहे हैं।
विदेशी आतंकवादियों के आने-बुलाने की ज़मीन यही लोग बनाते हैं।
हमें भारत पर हमले के नाम से ही नफ़रत है। इसलिए जब भी अशांति और आतंकवाद के बीज बोये जाते हैं तो हम उनकी जड़ जमने से पहले ही उन्हें कुरेद कर सबको दिखा देते हैं।
चाहे बीज बोने वाला नाराज़ होकर हमें गालियां ही क्यों न बकने लगे !
दलितों और कम्युनिस्टों के ब्लॉग्स के विरूद्ध अक्सर शिकायतें की जाती हैं लेकिन उन्हें बंद नहीं किया गया।
दिव्या जी का भी नहीं होगा।
नफ़रतें दिलों में दीवार खड़ी करती हैं और उनका असर समाज पर देर सवेर ज़रूर आता है। देश के दुश्मन यही काम कर रहे हैं।
दिव्या जी थाईलैंड में रहती हैं। गाय वहां भी काटी जाती है। उन्हें गाय से प्रेम होता तो वह थाईलैंड में गाय बचाने के लिए आंदोलन चलातीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि उन्हें गाय से नहीं बल्कि रूपयों से प्यार है।
उन्हें अपनी नौकरी-व्यापार प्यारा है। सो थाईलैंड में वह गऊ काट कर खाने वालों की सेहत का रख रखाव दिल लगाकर कर रही हैं। उनके राष्ट्रवाद को गाय से प्रेम नहीं है बल्कि मुसलमानों से नफ़रत है।
उन्होंने गूगल से ढूंढा तो उन्हें एक फ़ोटो नज़र आया जिसमें मुसलमान गाय के पास खड़े हैं। उर्दू से वह जाहिल हैं। सो उन्हें पता भी नहीं चला कि उर्दू में यह लिखा है कि ये लोग अफ़ग़ान शरणार्थी हैं जो पेशावर में पनाह लिए हुए हैं।
अगर दिव्या जी को इन अफ़ग़ान नागरिकों के अमल पर ऐतराज़ है तो वहां जाकर उनका विरोध करें। यह ख़याल ही रोंगटे खड़े कर देने वाला है। वहां तो अमेरिका जाकर पछता रहा है।
गूगल से यह तस्वीर ढूंढने में उन्हें सैकड़ों तस्वीरें नज़र आई होंगी लेकिन उन्होंने इस तस्वीर को ही चुना क्योंकि नफ़रत का ज़हर फैलाने का काम इसी तस्वीर के ज़रिये मुमकिन है।
दारूल उलूम देवबंद हिंदुस्तान के कुछ ख़ास इलाक़ों में मुसलमानों से गाय न काटने के लिए कह चुका है। जिसका मक़सद हिंदुस्तानी समाज को टकराव से बचाना है। उसके इस फ़तवे को मुल्क के बुद्धिजीवियों ने सराहा भी है। इसके बावजूद उन्होंने यह काम किया है।
घर को आग लगाने वाले चराग़ यही हैं और ख़बरदार करना हमारा काम है।
इसके बावजूद भी हमें दिव्या जी से कोई रंजिश नहीं है। हमें पता है कि आदमी पुराना और ग़लत इतिहास पढ़ता है तो मर चुके महमूद ग़ज़नवी का तो कुछ कर नहीं पाता। मौजूदा मुसलमानों को ही ठिकाने लगाने की मुहिम पर निकल खड़ा होता है जो कि कभी पूरी हो नहीं सकती।
आपस का टकराव ख़त्म हो तो भारत की ताक़त दुनिया की अकेली ताक़त होगी।
जो लोग भारत में टकराव की फ़िज़ा बना रहे हैं वे भारत का भला नहीं कर रहे हैं।
विदेशी आतंकवादियों के आने-बुलाने की ज़मीन यही लोग बनाते हैं।
हमें भारत पर हमले के नाम से ही नफ़रत है। इसलिए जब भी अशांति और आतंकवाद के बीज बोये जाते हैं तो हम उनकी जड़ जमने से पहले ही उन्हें कुरेद कर सबको दिखा देते हैं।
चाहे बीज बोने वाला नाराज़ होकर हमें गालियां ही क्यों न बकने लगे !
13 comments:
आपकी बात से सहमत हूँ.हालाँकि मैं किसी भी जानवर को मारने व माँसाहार के खिलाफ हूँ.लेकिन इसे रोकने के नाम पर धार्मिक विद्वेष फैलाने के भी सख्त खिलाफ हूँ.हमें कोई सार्थक बदलाव करना ही हैं तो अपने घर या अपने धर्म से करना चाहिये.
आपस का टकराव ख़त्म हो तो भारत की ताक़त दुनिया की अकेली ताक़त होगी।
जो लोग भारत में टकराव की फ़िज़ा बना रहे हैं वे भारत का भला नहीं कर रहे हैं।
विदेशी आतंकवादियों के आने-बुलाने की ज़मीन यही लोग बनाते हैं।
दिव्याजी ने हिंदी ब्लॉगिंग में महत्वपूर्ण योगदान किया है। किंतु,पिछले कुछ समय की उनकी दो-चार पोस्टें निश्चय ही निंदनीय हैं। इन्हें देखकर यह यक़ीन करना मुश्किल होता है कि हम उन्हीं दिव्याजी को पढ़ रहे हैं जिनकी पोस्टें कभी गहन बौद्धिक विचार-विमर्श का केंद्र हुआ करती थीं।
इस विषय पर अभी हम अपने ही देश में लड रहे हैं,, कभी आस्ट्ेलिया की गउ की फिकर हम क्यूं नहीं कर रहे
Video: Disturbing Abuse Of Australian Cattle At Slaughterhouses
www.disinfo.com/2011/06/video-disturbing-abuse-of-australian-cattle-at-slaughterhouses/
आपको मेरी टिप्पणी में ऐसा क्या आपत्तिजनक लगा कि न केवल आप ने मेल पर इसकी मुझे शिकायत की,न केवल ऐसा न करने कि नसीहत दी बल्कि मेरी टिप्पणी डिलीट भी कर दी!
कुँवर जी,
Achhi post hai
Bahut hi acchha likha anwar bhai aapne. Divya ji jais "deshbhakt" ke lie musalamanon se nafrat sabse zaruri hissa hai unki zindagi ka. Divya ji jaisi log asset na hokar liability hain samaj ke lie aur aise bhagwa nafratparast ka bahishkaar karna chahiye. ek lafz muhabbat ka bol nahi sakti - keval nafrat phailana unki deshbhakti hai.
जब गाय की बात आती है तो उनके मज़हब के हिसाब से उनकी सोच आ जाती है और जब बकराईद की बात आती है तब भी हमारा मज़हब या हमारी सोच नहीं बल्कि अपने धर्म के मुताबिक ही अपनी सोच सामने लेकर आते है. यह सही है कि वह गाय की इज्ज़त अपने धर्म के हिसाब से करते हैं, लेकिन वही इज्ज़त दूसरों के धर्म की क्यों नहीं की जाती जब बातें दूसरों की धार्मिक रीतियों की होती है?
बकराईद पर बातें तर्क की होती हैं और गाय पर धर्म की, वाह जी वाह!
@ प्यारे भाई कुंवर जी ! हमने टिप्पणी हटाने के साथ ही सूचित भी किया था कि आप हमें संबोधित कीजिए और पोस्ट की आलोचना कीजिए।
इस विषय में आपके ब्लॉग पर भी हम बता चुके हैं।
धन्यवाद !
@ कुमार राधा रमण जी ! एक ज़माना था जबकि दिव्या जी की पोस्ट्स में समाज और इलाज के बारे में बहुत कुछ होता था। ब्लॉगर्स का जमघटा वहां टिप्पणी के लिए लगा रहता था। एक बार तो उनकी पोस्ट पर लगभग 300 कमेंट्स आ गए लेकिन जैसे जैसे चुनाव क़रीब आता गया। उनके लेखन से वह सब ग़ायब होता गया और इसी के साथ वे लोग भी ग़ायब हो गए जिन्हें वह अपना मम्मी-पापा, ताऊ-चाचा और बहन-भाई कहती थीं। 300 टिप्पणी वाली ब्लॉगर को 30 टिप्पणियां भी न मिलें तो स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना स्वाभाविक है। यही सोचकर हम उनकी किसी बात का बुरा नहीं मानते। अब तो उन्होंने टिप्पणी ऑप्शन ही बंद कर दिया है।
समर्थन चाहे जिस पार्टी का किया जाए लेकिन सामाजिक सदभाव पर आघात किसी भी पार्टी के लिए न किया जाए।
हमारा काम दिलों को जोड़ना होना चाहिए न कि उन्हें तोड़ना।
सच कहने वालों का अपमान करके उन्हें ख़ामोश करने की कोशिश शैतान किया करते हैं। शैतानों को जो नज़रअंदाज़ कर सकता है, इंसान वही बन पाता है। जैसे जैसे इंसानियत का दायरा बढ़ता जाएगा वैसे शैतानियत का ख़ात्मा होता चला जाएगा।
आपके ईमानदार कमेंट के लिए आपका शुक्रिया।
@ भाई शहरयार ! देर आयद दुरूस्त आयद,
आपकी बात पर यही कहा जा सकता है।
सबको एक पैमाने से नापने की ईमानदारी दिखाई जाए तो हमारा देश विश्व का निराला देश होगा।
आज़ादी तब पाई है जबकि हमारे बुज़ुर्गों ने बहुत बड़ी क़ीमत चुकाई है। आपस का टकराव हमें फिर से ग़ुलाम बना देगा।
इसलिए नफ़रत और टकराव से हमेशा बचना चाहिए।
टकराना ही है तो देश के दुश्मनों से और नफ़रत के पुजारियों से टकराना चाहिए ताकि देश की अखंडता और शांति बनी रहे।
@ तारकेश्वर गिरी जी ! आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई।
आपका शुक्रिया !
इसी विषय से संबंधित हमारी एक पुरानी पोस्ट का अंश आप यहां देखिए, नए शीर्षक के साथ,
साथ ही देशप्रेमियों का स्वागत है हमारी नई पोस्ट पर
मुझे गालियां देने वाले इस देश, समाज और मानवता का अहित ही कर रहे हैं Abusive language of so called nationalists
http://ahsaskiparten.blogspot.in/2012/04/abusive-language-of-so-called.html
गो रक्षा की नीति ?
@ राजन जी ! यह भारत है। यहां गाय काटने पर ब्राह्मण-बनियों की भावनाएं आहत हो जाती हैं तो पेड़ काटने पर विश्नोई समाज की और मक्खी-मच्छर मारने पर जैनियों की। सबकी भावनाओं का ध्यान पहले ख़ुद हिंदू समाज रखकर दिखाए। पहले ख़ुद आदर्श प्रस्तुत करे और उसके बाद दूसरों से उस पर चलने के लिए कहे।
अपने आदर्शों के मुताबिक़ व्यवहार न करने वालों को भावनाएं भड़का कर समाज में नफ़रत की दीवारें खड़ी करने का कोई हक़ नहीं है।
जो आदमी जहां रह रहा है, वहां वह अपने आदर्शों के लिए कितना बलिदान दे रहा है ?
किसी के चरित्र को जानने के लिए यही सच्चा पैमाना है और दिव्या जी जैसे तमाम प्रचारक इसमें झूठे ही साबित होते हैं।
गो रक्षा निस्संदेह होनी चाहिए और उसका तरीक़ा यह है कि यह पता लगाया जाए कि विश्व में सबसे अच्छी और सबसे ज़्यादा गाय कहां पाई जाती हैं ?
फिर यह जाना जाए कि गो संवर्धन और गो रक्षा के विषय में उनकी नीति क्या है ?
उस नीति पर चला जाए तो निश्चय ही गो रक्षा भी होगी और सभी वर्गों का सहयोग भी मिलेगा।
धन्यवाद !
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