Friday, January 28, 2011

ऋषियों को नाहक़ इल्ज़ाम न दो The truth about great rishies ? part second

आप नहीं जानते कि परमेश्वर और परमात्मा में क्या भेद है ?
अगर आप इन ऋषियों का सच्चा चरित्र सामने ला सकते हैं तो लाईये मैं आपकी मदद करूंगा और अगर आप उनके महान और पवित्र चरित्र को वापस नहीं ला सकते तो मुझे लाने दीजिए और आप मेरी मदद कीजिए। आपके द्वारा मेरे काम में रूकावट डालने की कोई भी ऐसी वजह आपके पास नहीं है जिसे पेश करके आप अपनी आत्मा को संतुष्ट कर सकें और जब आपकी आत्मा ही संतुष्ट न होगी तो फिर परमात्मा कैसे संतुष्ट होगी ?
और परमेश्वर को आप कैसे संतुष्ट कर पाएंगे जिसे कि आप जानते तक नहीं हैं। आप तो परमात्मा को ही परमेश्वर मानकर चल रहे हैं। आपको तो आज पता ही नहीं है कि परमेश्वर वह है जो कि परमात्मा का भी स्वामी और आराध्य है। लेकिन आप परमात्मा को ही कब जानते हैं ?
आपको क्या पता कि परमात्मा कौन है ?
आपको तो अपने ज्ञान का घमंड है। आप तो यह समझते हैं कि वास्तव में ज्ञान केवल आपके पास है और दुनिया भर की जातियां केवल मूढ़ हैं और इनमें मुसलमान सबसे बढ़कर हैं। जबकि हक़ीक़त इसके बिल्कुल उलट है।

ज्ञान पाने के लिए ज्ञानी का अनुसरण अनिवार्य है
परमेश्वर और परमात्मा के स्वरूप का भेद और उनकी प्राप्ति का मार्ग हमारे पूर्वज ऋषियों ने बताया है लेकिन उनकी प्राप्ति केवल बातों से, केवल ध्यान-मौन और समाधि से संभव नहीं है। उनकी प्राप्ति के लिए ऋषियों का अनुकरण करना अनिवार्य है और ऋषियों के अनुकरण के लिए उनके पवित्र चरित्र का सच्चा ज्ञान ज़रूरी है। यह ज्ञान आज मुसलमानों को घटिया समझने वाले एक भी हिन्दू के पास उपलब्ध ही नहीं है। अगर किसी के पास हो तो वह सामने आए ताकि मैं उसका अनुकरण कर सकूं वर्ना तो मैं कहता हूं कि यह ‘ज्ञान‘ मेरे पास है, आप सब मेरा अनुकरण करें।
जो कम जानता है वह अपने से ज़्यादा जानने वाले का अनुकरण करता ही है। इसमें झगड़े की क्या बात है ?
इसके बावजूद भी आपको मेरा प्रस्ताव मंजूर नहीं है तो कोई बात नहीं है, जाने दीजिए। मौत बहुत जल्द आपको आपके मालिक के सामने हाज़िर करने वाली है तब आप अपने अपराध का जवाब देते रहिएगा कि आपने किस आधार पर ऋषियों के पाक चरित्र पर लांछन लगाए ?

आपने किस आधार पर अपने धर्म से खिलवाड़ किया ?
आपने किस आधार पर ऋषियों की परंपरा को छोड़कर अंग्रेज़ों की परंपरा का अनुसरण किया ?
आज अंग्रेज़ अपनी परंपराओं से खुद परेशान हैं। वे खुद आपकी परंपराओं को और विश्व की दूसरी परंपराओं को आज़माकर देख रहे हैं। उन्होंने भी आपकी ही तरह अपने ऋषियों का चरित्र विकृत कर डाला। आप बाइबिल उठाकर देख लीजिए। हज़रत नूह अ. से लेकर हज़रत लूत तक जाने कितने ही नबियों के चरित्र पर कालिख पातने की कोशिश की और उन्होंने भी मुसलमानों को खुद से घटिया समझा।
बाइबिल में पवित्र नबियों पर घिनौने आरोप के दो प्रमाण
1. ‘और नूह किसानी करने लगा, और उसने दाख की बारी लगाई। और वह दाखमधु पीकर मतवाला हुआ; और अपने तम्बू के भीतर नंगा हो गया। तब कनान के पिता हाम ने, अपने पिता को नंगा देखा, और बाहर आकर अपने दोनों भाइयों को बतला दिया।‘ (उत्पत्ति, 9, 20-22)
2. ‘इस प्रकार से लूत की दोनों बेटियां अपने पिता से गर्भवती हुईं।‘(उत्पत्ति, 19, 36)
मैं इस बयान को पढ़कर सच ही मान लेता और तब मैं अपने पूर्वजों पर, इन दो महान सत्पुरूषों के प्रति अन्जाने ही एक भयंकर अपराध कर बैठता जैसे कि करोड़ों लोग आज भी इन दोनों झूठी कहानियों को सच मानकर कर रहे हैं। मुझे इस महापाप से बचाया पवित्र कुरआन ने। पवित्र कुरआन हज़रत नूह अ.
के बारे में कहता है कि-
‘कहा गया कि ऐ नूह ! उतरो, हमारी तरफ़ से सलामती के साथ और बरकतों के साथ, तुम पर और उन समुदायों पर जो तुम्हारे साथ हैं।‘ (हूद, 48)
http://www.artbulla.com/zion/Noah.html
हज़रत नूह अ. को हिन्दू राष्ट्र जल प्रलय वाले मनु महाराज के नाम से जानता है और उनके नाम से जोड़कर इंसान के लिए संस्कृत में मनुज और मनुष्य बोला जाता है। गोया कि वह न होते तो आज हम भी न होते। उनके ऊपर ईश्वर अपनी कृपा होना बताता है और उन लोगों पर भी जो कि उनके साथ हों अर्थात उन्हें आदर्श मानकर उनके सिद्धांतों का पालन करते हों।
परमेश्वर पवित्र कुरआन के माध्यम से हज़रत लूत अ. के बारे में बताता है कि-
‘और लूत को हमने हिकमत (तत्वदर्शिता) और इल्म अता किया और उसे उस बस्ती से छुटकारा दिया जो गंदे काम करती थी। निस्संदेह वह बहुत बुरे, फ़ासिक़ लोग थे। और हमने उसे अपनी रहमत में दाखि़ल किया। बेशक वह नेक लोगों में से था। (अलअंबिया, 75)
कुरआन केवल इन दो ऋषियों-नबियों को ही आदर्श और सत्य घोषित नहीं करता बल्कि वह तमाम ऋषियों-नबियोंकहता है कि-
‘उनमें से हरेक नेक था।‘ (अलअनआम, 86)
और फिर वह केवल इतना ही नहीं कहता बल्कि वह लोगों से कहता है कि तुम सब उन सभी ऋषियों-नबियों पर आस्था व्यक्त करो और कहो कि-
‘हम उस (ईश्वर) के रसूलों (ऋषियों) में से किसी के साथ भेदभाव नहीं करते।‘ (अलबक़राः, 284)
पवित्र कुरआन के अलावा सभी ऋषियों की सच्चाई और पवित्रता का ऐसा उद्घोष आज किसी भी ग्रंथ में मुझे नहीं मिलता। अगर किसी और भाई को नज़र आए तो वह मुझे बताए।
हमारे पूर्वज ऋषियों के ऊपर लगने वाले तमाम आरोपों को बेबुनियाद क़रार देने वाले पवित्र कुरआन को भी जो लोग सत्य नहीं मानते, वे दरअस्ल नफ़रत में अंधे हो चुके हैं। अहंकार में आदमी अंधा हो जाता है। ज्ञान का द्वार उसके सामने होता है लेकिन वह उसमें प्रवेश नहीं कर पाता। हिन्दुओं और अंगेज़ों की प्रॉब्लम सेम है और उसका समाधान भी समान ही है।
हिन्दुओं और अंग्रेजों की ही नहीं बल्कि खुद मुसलमानों की भी सारी समस्याओं की जड़ ऋषियों के आदर्श का अनुकरण न करना है। बस दूसरी क़ौमों और मुसलमानों में जो बुनियादी अंतर है वह यह है कि दूसरी क़ौमों के पास वह ईशवाणी आज सुरक्षित नहीं है जो उनके ऋषियों के अंतःकरण पर अवतरित हुई थी लेकिन मुसलमानों के पास वह सुरक्षित है, न केवल उनके लिए वरन् सारी मानव जाति के लिए। इसी ईशवाणी पवित्र कुरआन में हिन्दुओं के ऋषियों का सच्चा चरित्र आज भी पूरी पवित्रता के साथ जगमगा रहा है। इसी पवित्र कुरआन में अंग्रेज़ों के पास पैग़ाम लाने वाले नबियों का बयान भी मौजूद है। जो चाहे देख ले, जो चाहे मान ले, किसी को कोई रोक-टोक नहीं है कि यह नहीं देख सकता, वह उसे नहीं छू सकता।

सब पढ़ें, सब बढ़ें
मौजूद तो आज वेद और बाइबिल भी हैं लेकिन उनके स्कॉलर्स मानते हैं कि वे प्रक्षिप्त हैं। वेदों में आस्था रखने वाले सनातनियों की संख्या ज़्यादा है। वे मानते हैं कि ब्राह्मण ग्रंथ वेदों का हिस्सा हैं जबकि आर्य समाजी विद्वान इसे नकारते हैं। यही तय नहीं है कि कितना हिस्सा वेद हैं और कितना हिस्सा उसमें वेद के अतिरिक्त है ?
सनातनी पब्लिक को डील करने वाले शंकराचार्यों की ओर से आज भी औरत और शूद्र को धर्मतः वेद पढ़ने व सुनने की अनुमति नहीं है। यूं लोग अपनी मुठमर्दी से उसे पढ़ने लगें तो आज लोकतंत्र में वे कुछ कर नहीं पाते लेकिन पूर्वकाल में इस जुर्म की भयानक सज़ाएं वे हमेशा से देते आए हैं।
बाइबिल की मूल प्रति के नए नियम की पुस्तकें हज़रत ईसा अ. के सामने नहीं लिखी गईं और न ही उनकी भाषा ही में उन्हें लिखा गया है। वे वेटिकन सिटी में रखी हुई हैं। हरेक आदमी तो छोड़िए, हरेक ईसाई भी उन्हें नहीं देख सकता।

ऋषि पवित्र हैं
यही ढकना-छिपाना हमेशा ऋषियों के चरित्र और इतिहास को भूलने का कारण बना है। बहरहाल आज हिन्दू साहित्य में उनके बारे में चाहे कैसे भी क़िस्से-कहानियां मशहूर हों, वे वास्तव में पवित्र थे, यह उनकी उपाधि ‘ऋषि‘ शब्द से ही बिल्कुल साफ़ ज़ाहिर है।
आपको ऋषियों को पवित्र मानना होगा और उनका अनुकरण करना होगा। उनसे जुड़ना होगा। आज दुनिया का कोई भी आदमी बिना कुरआन की मदद के अपने ऋषि से जुड़ ही नहीं सकता। अगर कोई जुड़ सकता है, अगर वाक़ई वह बिना कुरआन की मदद के अपने ऋषि की परंपरा का पालन कर सकता है तो वह करके दिखा दे।

मुझ पर बेवजह ऐतराज़ क्यों ?
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यह संवाद डा. श्याम गुप्ता जी के लिए क्रिएट किया गया है। उन्होंने मुझसे पूछा था कि -
‘...सब कुछ ठीक कहते हुए भी निम्न उद्धृत वाक्य की क्या आवश्यकता थी। यह प्रोवोकेटिव ... होता है और प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। इससे बचना चाहिये।
‘‘...हिंदू साहित्य में ऋषियों के चरित्र आज वैसे शेष नहीं हैं जैसे कि वास्तव में वे पवित्र थे। कल्पना और अतिरंजना का पहलू भी उनमें पाया जाता है।‘‘
यह है जानबूझकर नादान बनने की एक्टिंग करना। जब आप खुद कह रहे हैं कि भागवत की रचना करने वाले ने चतुराई से काम लिया है और अनीश्वरवादी बुद्ध तक को विष्णु का अवतार घोषित कर दिया है तो आप खुद यह स्वीकार कर रहे हैं कि हिन्दू साहित्य में समय-समय पर मिलावटें होती रही हैं। वही बात मैं कह रहा हूं तो आप मानने के बजाय ऐतराज़ क्यों कर रहे हैं ?
देखिए आपने खुद क्या लिखा है कि हिन्दू साहित्य में परिवर्तन हुआ है .
हिन्दू साहित्य ऋषियों को पवित्र मानने में मेरी कोई सहायता नहीं करता क्योंकि उनमें कल्पना और अतिरंजना का पहलू मुझे भी मिला है और मुझसे पहले के हिन्दू स्कॉलर्स को भी। उन्हें पवित्र मानने का आदेश मुझे हदीसों में मिलता है।
अब बताईये कि आपको मेरी किस बात पर ऐतराज़ है ?
मेरे द्वारा ऋषियों को हदीस के मुताबिक़ पवित्र घोषित करने में ?
या हिन्दू साहित्य में परिवर्तन हुआ बताने में, जो कि आप खुद भी मानते हैं ?

Wednesday, January 26, 2011

ऋषियों को नाहक़ इल्ज़ाम न दो Do you know the truth about great rishies ? part first

ऋषियों का अहसान मानव जाति पर
ईश्वर सर्वव्यापी है और उसका नाम भी। दुनिया की हरेक ज़बान में ऐसे शब्द हैं जिनसे इस दुनिया के बनाने वाले और पालने वाले के गुणों को बोध होता है। ऐसे ही दुनिया की तमाम क़ौमों में ऐसे शब्द भी पाए जाते हैं जिनसे ऐसे ज्ञानी पुरूषों का बोध होता है जिन्होंने ईश्वरीय वाणी को अपने अंतःकरण में धारण में धारण किया, उसके अनुसार आचरण किया और लोगों को अपने आदर्श का अनुसरण की प्रेरणा दी। ऐसे सत्पुरूष की संख्या दस-बीस नहीं है बल्कि हज़ारों में है। एक हदीस के मुताबिक़ इनकी कुल संख्या लगभग एक लाख चैबीस हज़ार है। अगर दुनिया में आज माता-पिता, भाई-बहन का रिश्ता पवित्र माना जाता है तो यह इन्हीं सत्पुरूषों की पवित्र शिक्षा का नतीजा है वर्ना दुनिया के सारे वैज्ञानिक और दार्शनिक मिलकर भी रिश्तों की पवित्रता क़ायम नहीं कर सकते और न ही इसके लिए कोई वैज्ञानिक कारण बता सकते हैं।
पवित्रता विज्ञान की समझ से परे का विषय है। रिश्तों की पवित्रता ही एक इंसान को जानवर से अलग करती है। जानवर के लेवल से ऊपर उठाने वाले, मानव जाति को उसकी पवित्रता और उसकी असल मंज़िल का ज्ञान कराने वाले यही सत्पुरूष थे जो इस धरती के हरेक हिस्से में अलग-अलग दौर में आए। उनकी भाषाएं तो बेशक जुदा थीं लेकिन उन सबका संदेश एक ही था, उन सबका आचरण पवित्र था। सभी ने अपने फ़र्ज़ को अदा करने के लिए, हमें इंसान बनाने के लिए भीषण अत्याचार सहे, अपना अपमान सहा और अपनी जानें भी दीं। उन्होंने तो हमें सब कुछ दिया लेकिन हमने उन्हें क्या दिया ?
हमने उन्हें बदनामी दी, हमने उनके नामों का मज़ाक़ उड़ाया, हमने उनकी शिक्षा को भुलाया, उनके आदर्श इतिहास को भुलाया और अपने मन की बेहूदा कल्पनाओं को उनकी कथा कहकर समाज में फैलाया। उनकी कुर्बानियों का उन्हें हमने यह सिला दिया।
क्या अच्छा सिला दिया हमने अपने साथ भलाई करने वालों को ?
इन सत्पुरूषों को अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग उपाधियों से पुकारा जाता है। अरबी-हिब्रू में इन्हें नबी और रसूल कहा जाता है, फ़ारसी में इन्हें पैग़म्बर कहा जाता है और संस्कृत में इन्हें ‘ऋषि‘ कहा गया है।

ऋषि का अर्थ क्या है ?
‘साक्षात्कृंतधर्माण ऋषयो बभूवुः‘। (नि. 1 , 20)
अर्थ- धर्म को साक्षात करने वाले मनुष्य ऋषि कहलाते हैं।
जो धर्म को साक्षात करने वाले मनुष्य हैं, वे कभी अधर्म नहीं कर सकते यह स्वयंसिद्ध है। इसके बावजूद हिन्दू साहित्य में ऋषियों के बारे में ऐसी कहानियां मिलती हैं जो कि अधर्म के सिवा कुछ भी नहीं हैं। रामायण में भी ऐसी कहानियों की भरमार है। संकेत मात्र के लिए एक श्लोक का अनुवाद पेश है-
‘अयोध्या कांड (सर्ग 91, 52) में लिखा है कि भरत के साथ आए अयोध्यावासियों का सत्कार करते हुए ऋषि भरद्वाज ने शराबियों के लिए शराब और मांस खाने वालों के लिए अच्छे अच्छे मांस जुटाए।‘

(क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म ?, पृष्ठ 63)
क्या यह कहानी एक ऋषि के आचरण से मेल खाती है ?
इन कहानी लिखने वालों ने सिर्फ़ इतना ही नहीं किया कि ऋषियों के बारे में झूठी कहानियां लिखकर लोगों को उनसे नफ़रत दिलाई बल्कि उनके आचरण को इतना कलंकित दिखाया कि लोग उन्हें आदर्श मानना तो दूर उनके नाम से भी नफ़रत करने लगें। ऋषि भरद्वाज के साथ भी ही जुल्म किया गया। उनके पैदा होने के पीछे एक ऐसी गंदी कहानी जोड़ दी गई जो कि कभी सच नहीं हो सकती। देखिए-
श्रीमद्भागवतपुराण में आता है कि अपने बड़े भाई उतथ्य की गर्भवती पत्नी ममता के साथ बृहस्पति ने बलात्कारपूर्वक संभोग किया और उसके वीर्य से भरद्वाज नामक पुत्र उत्पन्न हुआ.
अंतर्वत्न्यां भ्रातृपत्न्यां मैथुनायां मैथुनाय बृहस्पतिः,
प्रवृत्ते वारितो गर्भ शप्त्वा वीर्यमवासृजत .
तं त्यक्तुकामां ममतां भर्तृत्यागविशंकिताम्,
नामनिर्वचनं तस्य श्लोकमेकं सुरा जगुः .
मूढ़े भर द्वाजमिमं भर द्वाजं बृहस्पतेः
यातौ तदुक्त्वा पितरौ भरद्वाजस्ततस्त्वयम् .
चोद्यामाना सुरैरेवं मत्वा वितथमात्मजम्, व्यसृजत् .
-श्रीमद्भागवतपुराण, 9,20,36-39
अर्थात, बृहस्पति गर्भवती भावज से संभोग में प्रवृत्त हुआ. उसे रोका. वह गर्भ को शाप दे कर संभोगरत हुआ और उसका वीर्य स्खलित हुआ. उस वीर्य को भावज फेंकना चाहती थी ताकि उस का पति उससे नाराज हो कर उसे त्याग न दे. तब देवताओं ने कहा- हे मूर्ख औरत, इस द्वाज (वीर्य) को भर (धारण किए रह). उसने उसे धारण किया और जिस पुत्र को उसने जन्म दिया वह ‘भरद्वाज‘ कहलाया.

दोने से द्रोणाचार्य
यही भरद्वाज एक बार गंगास्नान करने गया. वहां उसने स्नान कर के कपड़े बदल रही घृताची नामक अप्सरा को देखा. उसके शरीर के एक भाग से उसका कपड़ा सरक गया. उसे देख भरद्वाज का वीर्य स्खलित हो गया. उससे एक बालक उत्पन्न हुआ, जो द्रोण से उपजने के कारण ‘द्रोण‘ कहलाया.
गंगाद्वारं प्रति महान् बभूव भगवानृषिः ,
भरद्वाज इति ख्यातः .
ददर्शाप्सरसं साक्षाद् घृताचीमाप्लुतामृषिः ,
रूपयौवनसम्पन्नां मद्दृप्त्तां मदालसाम् .
तस्या पुनर्नदीतीरे वसनं पर्यवर्तत ,
व्यपकृष्टांबरां दृष्ट्वां तामृषिश्चकमे ततः .
तत्र संसक्तमनसो भरद्वाजस्य धीमतः ,
ततोऽस्य रेतश्चस्कंद तदृषिद्र्रोण आदधे .
ततः समभवद् द्रोणः कलशे तस्य धीमतः .
-महाभारत आदिपर्व, 129,33-38
(क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म ?, पृष्ठ 327, 328)
एक मुसलमान का विश्वास आजकल इस मुल्क में ज़रा कम किया जाता है, इसलिए ये दोनों उद्धरण एक ख्याति प्राप्त ब्राह्मण विद्वान श्री सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ जी की पुस्तक से लिए गए हैं। यह पुस्तक ‘विश्वबुक्स, दिल्ली‘ द्वारा प्रकाशित है.
http://www.vishvbook.com/
आपकी आत्मा क्या कहती है ?

क्या यह कहानी सच हो सकती है ?
नहीं न ?
मैं भी ऐसी बातों को सच नहीं मानता। दरअस्ल ये कहानियां धर्म की गद्दी पर विराजमान हिन्दू कवियों ने अपने मन से खुद ही लिख ली हैं ताकि वे किसी की भी औरत और दौलत से मनमानी कर सकें और जब कोई टोके तो ऋषियों की कहानी सुनाकर उन्हें संतुष्ट कर सकें कि वे पाप नहीं कर रहे हैं बल्कि उनका कल्याण कर रहे हैं।
आज अनवर जमाल भरद्वाज ऋषि के बारे में गालियों से भी गंदी कहानी को धो-मांझ रहा है जो खुद को उनकी औलाद बताते हैं वे भारद्वाज गोत्र वाले मज़े से कोट पैंट पहनकर भागवत की कथाएं सुन रहे हैं। जहां उनके बाप पर गंदे आरोप लगाए जाते हैं, वहां वे मज़े से जाते हैं और जो इस्लाम उनके बाप भरद्वाज को ही नहीं बल्कि हरेक ऋषि को पवित्र घोषित करता है, उससे उन्हें घिन आती है। जो सत्य को अपने अहंकार के कारण तुच्छ जानकर उसका तिरस्कार करता है, वह जहां भी जाएगा, ज़िल्लत ही पाएगा। यही उनका दंड है, चाहे उन्हें उसका पता चले या न चले।
आज हिन्दू साहित्य में हरेक ऋषि के चरित्र को भरद्वाज जी की तरह ही दूषित दिखाया जाता है और उनके वंशज मज़े से उस साहित्य का प्रचार कर रहे हैं।
है न ताज्जुब की बात ?

भारत का उद्धार होगा ऋषियों के अनुकरण से
जब धर्म को भुला दिया जाए और उसे धंधा बना लिया जाए तब इंसान की ग़ैरत ऐसे ही मर जाती है।
ऋषियों के सच्चे चरित्र का लोप होने के कारण ही आज भारत दुर्दशा का शिकार है और जब तक ऋषियों का सच्चा चरित्र लोगों के सामने नहीं आएगा और लोग उनका अनुकरण नहीं करेंगे तब तक भारत का उद्धार हरगिज़ हरगिज़ होने वाला नहीं है। यह मेरा दृढ़ मत है।
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यह संवाद डा. श्याम गुप्ता जी के लिए क्रिएट किया गया है। उन्होंने मुझसे पूछा था कि -

‘...सब कुछ ठीक कहते हुए भी निम्न उद्धृत वाक्य की क्या आवश्यकता थी। यह प्रोवोकेटिव ... होता है और प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। इससे बचना चाहिये।
‘‘...हिंदू साहित्य में ऋषियों के चरित्र आज वैसे शेष नहीं हैं जैसे कि वास्तव में वे पवित्र थे। कल्पना और अतिरंजना का पहलू भी उनमें पाया जाता है।‘‘

http://forum.thiazi.net/showthread.php?p=1703163

Saturday, January 22, 2011

The absolute peace 'शांति के लिए वेद कुरआन' पर धारावाहिक बनकर कैसा लगेगा ?

श्रीपाल चौधरी नासिर खान के गेट अप men

वरूण चैधरी 
वरूण चैधरी मेरा भतीजा है क्योंकि वह श्रीपाल चैधरी का बेटा है। श्रीपाल चैधरी मेरे दोस्त हैं और मुझे भाई की तरह मानते हैं। डी. डी. कश्मीर के लिए बनाए जा रहे सीरियल ‘द कारपेट मेकर‘ के सैट पर वरूण चैधरी डायरेक्टर रंजन शाह को असिस्ट कर रहे थे। वरूण चैधरी दिल्ली के एक प्रतिष्ठित इंस्टीच्यूट से एडिटिंग का कोर्स कर रहे हैं। उन्हें एक प्रोजैक्ट तैयार करना है अपने कोर्स के लिए। श्रीपाल चैधरी जी ने मुझ से कहा कि मैं अपने वेद-कुरआन की थीम को आधार बनाकर उनके लिए एक सिंगल लाइन स्टोरी तैयार कर दूं। उसे वे अपने इंस्टीच्यूट में जमा करा देंगे और उसका स्क्रीन प्ले वग़ैरह  अप्रूवल के बाद लिखा जाएगा।एक तरफ़ तो मैं शूटिंग में व्यस्त था और दूसरी तरफ़ ब्लागिंग में। दूसरी कई ज़िम्मेदारियां भी साथ में लगी हुई थीं। इसी दरम्यान मुझे तीन घंटे का वक्त मिल गया बिल्कुल आखि़री दिन। मैंने उसी एक सिटिंग में वरूण के लिए एक स्टोरी तैयार कर दी और उसकी सॉफ़्ट कॉपी के साथ उसकी हार्ड कॉपी भी उन्हें सौंप दी।
श्रीपाल चौधरी एक Don के गेट अप में
श्रीपाल जी (दाढ़ी में)  इस पर एक धारावाहिक भी बनाना चाहते हैं। इस स्टोरी पर धारावाहिक बनकर कैसा लगेगा ?
आप ज़रा इसे पढ़कर बताएं। इस प्रोजैक्ट का लिंक यह है-

Friday, January 21, 2011

आपकी-हमारी गाढ़ी कमाई पर डाका कौन डाल रहा है ? The organised crime against India

कौन देगा मेरे सिर्फ़ एक सवाल का जवाब ?
हरीश भाई ! आपकी ही तरह स्वामी श्री लक्ष्मीशंकराचार्य जी को भी उस साहित्य ने गुमराह कर दिया था जो कि इंसानियत के दुश्मन हमारे देश में लंबे अर्से से फैलाते आ रहे हैं। आप उनकी लिखी किताब ‘इस्लाम : आतंक ? या आदर्श‘ पढ़िये, इस्लाम और कुरआन के बारे में आप जो ग़लतफ़हमियां जबरन पाले बैठे हैं, सब दूर हो जाएंगी। गीता पूरी तरह से एक युद्ध का उपदेश है। उसके बारे में तो आपको कभी ऐतराज़ नहीं हुआ बल्कि आप तो उसे पढ़ने की सलाह भी देते हैं। मैंने आपकी बात पर कोई ऐतराज़ भी नहीं किया कि इसमें तो राज्य के लालच में अपने रिश्तेदारों और गुरूजनों को मारने की प्रेरणा उन भाईयों को दी जा रही है, जो सब के सब एक पत्नी के तो थे लेकिन एक बाप के न थे।
आपने एक और लेख लिख डाला और 15-20 सवाल और कर डाले। आपके हरेक सवाल का जवाब दिया जाएगा ताकि आपके दिल के हरेक कोने से तमाम ग़लतफ़हमियों के जाले निकल जाएं और आपका मन निर्मल हो जाए लेकिन उससे पहले आपको मेरे केवल एक सवाल का जवाब देना होगा जो कि मैंने आपसे पूछा है कि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः‘ आपके किस ग्रंथ में है ?
अगर यह किसी हिंदू धर्म ग्रंथ में है ही नहीं तो फिर आप क्यों कह रहे हैं कि यह हमारे धर्म की मान्यता है ?
जो सिद्धांत किसी भी हिंदू धर्म ग्रंथ में नहीं है वह हिंदू धर्म की मान्यता हो कैसे गया ?
अनवर जमाल कभी हिन्दू धर्म का या हिन्दू भाईयों का विरोध नहीं करता बल्कि वह अफ़वाह फैलाने का विरोध करता है जैसे कि हिन्दू धर्म और इस्लाम के बारे में आप अफ़वाह फैला रहे हैं।
जिस सूचना या बात का कोई आधार और स्रोत ज्ञात न हो और वह बात भी बेबुनियाद हो, उसे अफ़वाह कहा जाता है।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः‘ आपसे ठीक से लिखा तक नहीं गया है। यह आपका ज्ञान है। चलिए अब आप ब्लाग जगत के सारे विद्वानों को बुला लीजिए अपनी मदद के लिए और बाहरी दुनिया कि ज्ञानियों से भी जाकर पूछ आईये और मेरे सिर्फ़ एक सवाल का जवाब दीजिए।
इस संवाद से आपको पता चल जाएगा कि आपको दूसरों के ही बारे में नहीं बल्कि खुद अपने बारे में भी कितनी बड़ी ग़लतफ़हमियां हैं ?
धर्म में इसी तरह लोगों ने पहले भी हिंदू धर्म में अपनी तरफ़ से बातें मिलाई हैं और यह सिलसिला आज भी बदस्तूर चला आ रहा है। इसी मिलावट के कारण के हिंदू धर्म का स्वरूप विकृत हो चुका है। जब उस स्वरूप विकृत हो गया तो आप जैसे लोगों ने अपना भेष-भाषा और संस्कार सभी कुछ बदल डाले यहां तक कि धर्म का नाम भी आपके पास शेष न बचा। धर्म के लिए हिंदू शब्द किसी भी हिंदू धर्म ग्रंथ में नहीं आया है। आपसे न तो इसकी परंपराएं सुरक्षित रखी गईं और न ही आप इसके संस्कारों का ही पालन आज कर रहे हैं। तब भी आप अपना अहंकार और हठ छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं, ऐसा क्यों ?
आपका दावा है कि अधिकतर मुसलमान बुरे होते हैं जबकि हिन्दू अच्छे होते हैं।
मैं भी यही मानता हूं कि
मुसलमानों का चरम परम पतन हो चुका है
और
इस विषय में आप नीचे दिए गए दो लिंक्स पर जाकर मेरे विचार देख सकते हैं। मैं कभी पक्षपात नहीं करता। जो हालात मैं देखता हूं उसके आधार पर जो निष्कर्ष निकलता है, मैं वही कहता हूं। हरेक ब्लागर वही कहता है।
हिन्दू भाईयों के बारे में इतने अच्छे विचार रखने के बाद भी मुझे आप जैसे लोगों ने कभी थैंक्स नहीं कहा, ऐसा क्यों ?
अभी भाई खुशदीप जी ने अपनी पोस्ट में यह जानकारी दी है-

आपकी-हमारी गाढ़ी कमाई पर डाका (किस्त-1) 

चुनाव आयोग का कहना है कि देश में 1200 राजनीतिक पार्टियां पंजीकृत हैंण्ण्ण्इनमें से सिर्फ 16 फ़ीसदी ही यानि 200 पार्टियां ही राजनीतिक गतिविधियों में लगी हैंण्ण्ण्बाकी ज्यादातर पार्टियां राजनीतिक चंदे के नाम पर काली कमाई को धो कर व्हाईट करने में लगी हैं...

..अब आप बताईये कि ये 1200 राजनीतिक पार्टियां और इसके समर्थक मुसलमान हैं या हिंदू ?
देश की बर्बादी का सारा इल्ज़ाम आप मुसलमानों पर डाल रहे हैं तो आप इन्हें क्या कहेंगे और कब कहेंगे ?
इसकी मैं इंतज़ार नहीं करूंगा क्योंकि पहले मुझे उस सवाल का जवाब चाहिए जो मैंने आप से ऊपर पूछा है।
आपको मैं अब भी कोई इल्ज़ाम नहीं दूंगा और आपको भी मैं अच्छा आदमी ही मानता हूं। ग़लतफ़हमियां अच्छे-अच्छों को भ्रम में डाल देती हैं। मेरी कोशिश होगी कि आपकी ग़लतफ़हमियां दूर कर दी जाएं।
आपने सवाल करके मेरी ज़िम्मेदारी को और भी बढ़ा दिया है।

Thursday, January 20, 2011

क्या प्राकृत और संस्कृत से पहले से पंजाबी भाषा मौजूद थी ? Isn't Sanskrit the oldest one ?


बाबा फरीद अपने मुरीदों के दरमियान
पंजाबी भाषी लोगों में सिख मुश्किल से 25 फीसद ही होंगे, जबकि 75 फीसद जुबान बोलने वाले हिंदू और मुसलमान हैं। विश्व के 13 करोड़ लोग यह भाषा बोलते हैं। इसमें सिखों की संख्या ज्यादा से ज्यादा तीन करोड़ होगी। इसके साथ ही नई खोजों से यह भी साबित हुआ है कि पंजाबी बोलने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इनसे यह भी पता चला है कि आम धारणा के विपरीत पंजाबी संस्कृत भाषा की उपज नहीं, बल्कि पहले से ही विकसित थी। इसका द्रविण भाषा के साथ भी गहरा संबंध है। भाषा के बारे में नई खोजों से यह भी साफ हो गया है कि मातृ भाषा के जानकार लोग ही दूसरी भाषा में माहिर हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें व्याकरण की जानकारी होती है। ऐसी धारणा गलत साबित हो गई है कि मातृभाषा सीखने वाला बच्चा अंग्रेजी में कमजोर हो जाएगा।
भारतीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के उपाध्यक्ष डाक्टर सतिंदर सिंह नूर ने इस मौके पर अकादमी की ओर से 24 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है। पंजाबी का इससे अहम स्थान है। यह भारतीय भाषाओं की रीढ़ है। विश्व के 160 देशों में पंजाबी भाषा बोली जाती है। यूनेस्को की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में 13 करोड़ लोगों की भाषा पंजाबी है। सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीनी (150 करोड़), अंग्रेजी बोलने वाले 53 करोड़ हैं। तीसरे स्थान पर हिंदी बोलने वालों की संख्या 48 करोड़ है।
उन्होंने कहा कि पंजाबी हिंदुस्तान की सबसे पुरानी भाषाओं में शामिल है। विश्व की पांच प्रमुख सांस्कृतिक केद्रों में पंजाब शामिल रहा है। ताजा अनुसंधान से पता चला है कि प्राकृत और संस्कृत से पहले से पंजाबी भाषा मौजूद थी, हालांकि तब उसका नाम कुछ और हो सकता है। इसका पता इससे चलता है कि सबसे प्राचीन द्रविण भाषाओं से पंजाबी का गहरा संबंध है। तामिल में ही पंजाबी के एक हजार से ज्यादा शब्दों का पता चला है। हड़प्पा-मोहेनजोदड़ो सभ्यता के नष्ट होने से पहले ही पंजाबी भाषा मौजूद थी। सभ्यता नष्ट होने पर यहां के लोग विस्थापित होकर पूर्वी प्रदेश में फैले। संथाल भी पुराने पंजाबी हैं। उनका लोकगीत पंजाबी से भरा हुआ है। यहां से लोग तक्षशिला, श्रीनगर, नालंदा विश्वविद्यालय के रास्ते येरूशलम तक गए। इसलिए चीन, कंबोडिया तक सभी भाषाओं में पंजाबी शामिल है। इस बारे में अध्य्यन जारी है। मुल्तान से दूसरा रास्ता हड़प्पा-मोहेनजोदड़ों से होकर दिल्ली, अजमेर, गुजरात, आंध्र प्रदेश , चेन्नई तक गया, इसलिए पंजाबी दक्षिण भारतीय भाषाओं की भी रीढ़ बनी। ऋगवेद, गीता, बाल्मिकी रामायण, ज्यादातर उपनिषद की रचना का केंद्र भी पंजाब ही रहा है। पंजाबी बोलने वालों में नानक पंथी, उदासी साधु, सन्यासी, सिकलीगर (बंजारे) शामिल हैं। खासकर महाराष्ट्र में ही तीन करोड़ सिकलीगर हैं।
उन्होंने कहा कि पंजाबी पंजाबियों की पहली भाषा है और अंग्रेजी उनकी दूसरी भाषा है। हिंदी संवाद की भाषा है। 1950 में पंजाबी में तीन लाख शब्द थे, जबकि अब बढ़कर 13 लाख हो गए हैं। दूसरी ओर अंग्रेजी में महज 16 लाख शब्द हैं।
   इस मौके पर पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के उपकुलपति डाक्टर जसपाल सिंह ने कहा कि पाकिस्तान के ज्यादातर हिस्सों में पंजाबी भाषा बोली जाती है। ब्रिटेन के कई इलाकों में पंजाबी को दूसरी भाषा का दर्जा मिला है। कनाडा, सिंगापुर समेत 160 देशों में पंजाबी बोली जाती है। इसलिए पंजाबी भाषा का निरंतर विकास जारी है। भले ही भाषा पर कई तरह के खतरे मंडरा रहे हैं, लेकिन इसके खत्म होने की कोई आशंका नहीं है, क्योंकि सदियों तक कायम श्री गुरू ग्रंथ साहिब की रचना भी इसी लिपि में हुई है।

इस बारे में पूरी पोस्ट पढने के लिए क्लिक करें-
http://hamaravatan.blogspot.com/2011/01/blog-post_19.html


गुरु नानक साहब का कलाम उर्दू में -
http://urdubooks.biz/urdubooks/index.php?cPath=25&osCsid=8144970f7d67bbaf269ff4516f568fe7

Wednesday, January 19, 2011

गुस्से की ऊर्जा से काम लेना सीखिए ? The energy of anger

गुस्सा मेरे वालिद साहब की एक नुमायां पहचान है। उनका गुस्सा बचपन से ही मुझे डराता आया है। मैंने तय किया था कि मैं कभी गुस्सा नहीं करूंगा क्योंकि गुस्से से होने वाले नुक्सान को मैं जानता हूं। मेरी कोशिश हमेशा यही रहती है कि खुद अपनी तरफ़ से किसी को कोई दुख न दिया जाए, किसी की आलोचना न की जाए, किसी को कोई चुभती हुई बात न कही जाए ताकि सुनने वाले को बुरा न लगे और उसे गुस्सा न आए और पलटकर वह भी मुझे ऐसी कोई बात न कहे कि मुझे भी उसकी बात पर गुस्सा आ जाए। यही वजह है कि मेरे आसपास के लोग बहुत से ऐसे काम करते हैं जिन्हें मैं सही नहीं समझता लेकिन तब भी मैं उन्हें नज़रअंदाज़ कर देता हूं। समाज में सबके साथ रहना है तो दूसरों की ग़लतियों को नज़रअंदाज़ भी करना पड़ता है और कभी कभी उन्हें ढकना भी पड़ता है। हरेक परिवार अपने सभी सदस्यों को इसी रीति से जोड़ता है। क़स्बे और कॉलोनी के लोग भी इसी उसूल के तहत एक दूसरे से जुड़े रह पाते हैं। ब्लाग जगत भी एक परिवार है और यहां भी इसी उसूल को अपनाया जाना चाहिए।
इस कोशिश के बावजूद कभी कभी मुझे गुस्सा आ जाता है और तब मैं यह सोचता हूं कि आखि़र मुझे गुस्सा आया क्यों ?
हमारे ऋषियों ने जिन पांच महाविकारों को इंसान के लिए सबसे ज़्यादा घातक माना है उनमें से क्रोध भी एक है। हज़रत मुहम्मद साहब स. ने भी उस शख्स को पहलवान बताया है जो कि गुस्से पर क़ाबू पा ले।
इसके बावजूद हम देखते हैं कि कुछ हालात में ऋषियों को भी क्रोध आया है, खुद अंतिम ऋषि हज़रत मुहम्मद साहब स. को भी क्रोधित होते हुए देखा गया है।
हिंदू साहित्य में ऋषियों के चरित्र आज में वैसे शेष नहीं हैं जैसे कि वास्तव में वे पवित्र थे। कल्पना और अतिरंजना का पहलू भी उनमें पाया जाता है लेकिन हदीसों में जहां पैग़म्बर साहब स. के क्रोधित होने का ज़िक्र आया है तो वे तमाम ऐसी घटनाएं हैं जबकि किसी कमज़ोर पर ज़ुल्म किया गया और उसका हक़ अदा करने के बारे में मालिक के हुक्म को भुला दिया गया। उन्होंने अपने लिए कभी क्रोध नहीं किया, खुद पर जुल्म करने वाले दुश्मनों को हमेशा माफ़ किया। अपनी प्यारी बेटी की मौत के ज़िम्मेदारों को भी माफ़ कर दिया। अपने प्यारे चाचा हमज़ा के क़ातिल ‘वहशी‘ को भी माफ़ कर दिया और उनका कलेजा चबाने वाली ‘हिन्दा‘ को भी माफ़ कर और मक्का के उन सभी सरदारों को भी माफ़ कर दिया जिन्होंने उन्हें लगभग ढाई साल के लिए पूरे क़बीले के साथ ‘इब्ने अबी तालिब की घाटी‘ में क़ैद कर दिया था और मक्का के सभी व्यापारियों को उन्हें कपड़ा, भोजन और दवा बेचने पर भी पाबंदी लगा दी थी। ऐसे तमाम जुल्म सहकर भी उन्होंने उनके लिए अपने रब से दुआ की और उन्हें माफ़ कर दिया। इसका मक़सद साफ़ है कि अस्ल उद्देश्य अपना और अपने आस-पास के लोगों का सुधार है। अगर यह मक़सद माफ़ी से हासिल हो तो उन्हें माफ़ किया जाए और अगर उनके जुर्म के प्रति अपना गुस्सा ज़ाहिर करके सुधार की उम्मीद हो तो फिर गुस्सा किया जाए।
जो भी किया जाए उसका अंजाम देख लिया जाए, अपनी नीयत देख ली जाए, संभावित परिस्थितियों का आकलन और पूर्वानुमान कर लिया जाए।
वे आदर्श हैं। उनका अमल एक मिसाल है। उनके अमल को सामने रखकर हम अपने अमल को जांच-परख सकते हैं, उसे सुधार सकते हैं।
मुझे गुस्सा कम आता है लेकिन आता है।
आखि़र आदमी को गुस्सा आता क्यों है ?
हार्वर्ड डिसीज़न लैबोरेट्री की जेनिफ़र लर्नर और उनकी टीम ने गुस्से पर रिसर्च की है। उसके मुताबिक़ हमारे भीतर का गुस्सा कहीं हमें भरोसा दिलाता है कि हम अपने हालात बदल सकते हैं। अपने आने वाले कल को तय सकते हैं। जेनिफ़र का यक़ीन है कि अगर हम अपने गुस्से को सही रास्ता दिखा दें तो ज़िंदगी बदल सकते हैं।
हम अपने गुस्से को लेकर परेशान रहते हैं। अक्सर सोचते हैं कि काश हमें गुस्सा नहीं आता। लेकिन गुस्सा है कि क़ाबू में ही नहीं रहता। गुस्सा आना कोई अनहोनी नहीं है। हमें गुस्सा आता ही तब है, जब ज़िंदगी हमारे मुताबिक़ नहीं चल रही होती। कहीं कोई अधूरापन है, जो हमें भीतर से गुस्सैल बनाता है। दरअस्ल, इसी अधूरेपन को ठीक से समझने की ज़रूरत होती है। अगर हम इसे क़ायदे से समझ लें, तो बात बन जाती है।
जब हमें अधूरेपन का एहसास होता है, तो हम उसे भरने की कोशिश करते हैं। और यही भरने की कोशिश हमें कहीं से कहीं ले जाती है। हम पूरे होकर कहीं नहीं पहुंचते। हम अधूरे होते हैं, तभी कहीं पहुंचने की कसमसाहट होती है। यही कसमसाहट हमें भीतर से गुस्से में भर देती है। उस गुस्से में हम कुछ कर गुज़रने को तैयार हो जाते हैं। हम जमकर अपने पर काम करते हैं। उसे होमवर्क भी कह सकते हैं और धीरे धीरे हम अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते चले जाते हैं।
असल में यह गुस्सा एक टॉनिक का काम करता है। हमें भीतर से कुछ करने को झकझोरता है। अगर हमारा गुस्सा हमें कुछ करने को मजबूर करता है, तो वह तो अच्छा है न।
                   (हिन्दुस्तान, 6 जनवरी 2011, पृष्ठ 10)
मैंने बहन रेखा श्रीवास्तव जी की एक पोस्ट देखी, जिसमें वे गुस्सा कर रही थीं।
उसे पढ़कर मुझे भी उस आदमी पर गुस्सा आ गया था जिस पर कि उन्हें गुस्सा आया था और तब मैंने उनसे कहा था कि मैं गुस्से पर कुछ लिखूंगा।
इससे पहले मैं बहन अंजना जी से भी कह चुका था कि गुस्से पर आपका आर्टिकल तो मैंने पढ़ लिया लेकिन इसके एक दूसरे पर मैं लिखूंगा। क्या मैं उस लेख की भूमिका में ईमेल से मिली आपके पत्र को इस्तेमाल कर सकता हूं। उन्होंने बखुशी इजाज़त दे दी।
दरअस्ल उन्होंने कहा था कि आप अच्छा लिखते हैं। मुझे आपके लेख पसंद आते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे आप बहुत तफ़्तीश के बाद ही कोई लेख लिखते हैं।
इसके बाद मैंने उनसे दरयाफ़्त किया था कि आपको मेरा कौन सा लेख सबसे ज़्यादा पसंद है और कौन सा लेख नापसंद है ताकि मैं अपने आप को सुधार सकूं ?
तब उन्होंने लिखा कि

आदरणीय अनवर भाई,
उर्दू पापा और दादी से सीखी, यानी की बचपन से बोलती हूँ. सिर्फ बोल पाती हूँ, लिखना सीखने की कोशिश कर रही हूँ. दिल्ली में स्कूल में उर्दू अब नहीं सिखाते, इस वजह से सीख नहीं पाई. दिल की बात उर्दू में कहना आसान लगता है, बड़ी मीठी ज़बान है. 

रही बात, आपके लिखाई के बारे में. आपके हर लेख में आपकी जानकारी, आपका इल्म साफ़ नज़र आता है. पता चलता है की यूँ ही नहीं लिख रहें बल्कि आप जो भी लिखते हैं काफी तफ्तीश के बाद लिखते हैं. यह बात मुझे अच्छी लगती है. दूसरी बात जो मुझे अच्छी लगती है वो ये है आप अक्सर लोंगों को और मजहबों को मिलाने की कोशिश करते हैं. आपका मिर्ज़ा ग़ालिब पे लिखा लेख मुझे बहोत अच्छा लगा. 

 आपके ब्लॉग पे मुझे गुस्सा अच्छा नहीं लगता, चाहे वो आपका हो या किसी और का. गुस्से से डर लगता है मुझे, ऐसा लगता है की गुस्सा अमन का दुश्मन है. गुस्से पे कुछ लिखा था कुछ दिन पहले, शायद आपको पसंद आये. गुस्सा तो हम सबको आता है, पर गुस्से से जब रिश्ते बिगड़ने लगते हैं तो लगता है की गुस्सा हम पर ग़ालिब हो रहा है. 

प्यारी माँ पर टिपण्णी नहीं दिखाई दी. फिलहाल वहीँ लिखने के लिये कुछ सोच रही हूँ. 
अगर मैंने कुछ गलत लिख दिया हो तो माफ़ कर दीजियेगा. 
आपकी बहन,
अंजना 
Anjana Dayal de Prewitt, MS
Humanitarian Psychologist
Functional Expert - Psychosocial Support
Phones: Home- 001-787-738-6632
Email: anjdayal@gmail.com
Blogs: http://anjana-prewitt.blogspot.com/
          http://losojosindios.blogspot.com/
          http://vrinittogether.blogspot.com/
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@ बहन अंजना जी ! इस प्यारे ब्लाग पर आपकी पहली रचना का हार्दिक स्वागत
है । आपकी रचना दिल से निकली है इसीलिए पढ़ने वाले के दिल पर असर करती है
। आपने इसमें रिश्तों की हक़ीक़त को ही नहीं बल्कि मौजूदा समाज की स्वार्थी
सोच को भी सामने ला खड़ा किया है।
हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. ने एक शख़्स से कहा था कि तेरी जन्नत तेरी मां के
क़दमों तले है ।
इसमें मां के प्रति विनय और सेवा दोनों का उपदेश है । मां भी अपनी औलाद
को हमेशा नेकी का रास्ता बताती है ।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है कि जब तक तुम बच्चों की मानिंद न हो
जाओ स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते ।
बच्चे मासूम होते हैं , ख़ुद को अपनी मां पर निर्भर मानते हैं । उसका कहना
मानते हैं लेकिन आज माँ बाप औलाद को बेईमानी के रास्ते पर खुद धकेल रहे
हैं।
वे अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा दौलतमंद देखना चाहते हैं । जिसके लिए
वे खुद भी बेईमानी करते हैं और उनके बच्चे भी उनसे यही सीखते हैं और अपनी
मासूमियत खो बैठते हैं जो कि बच्चे की विशेषता थी । मां ने भी सही
गाइडेंस देने का अपना गुण खो दिया और बच्चे की मासूमियत भी नष्ट कर दी और
तब इस धरती पर नर्क उतर आया हर ओर ।...
पूरी टिप्पणी आप ब्लाग पर पढ़ लीजिएगा ।
मैं सिर्फ़ 7 दिन में उर्दू लिखना पढ़ना और बोलना सिखा देता हूं हिंदी
जानने वाले को । इसके लिए मैंने एक ख़ास मैथड डिज़ायन किया है । आप भी
जल्दी ही सीख जाएंगी । अगर आपके पास उर्दू के ट्यूटर का इंतज़ाम न हो तो
मैं अपने किसी सत्यसेवी मित्र से बात करके देख सकता हूं , यदि आप चाहें
तो ?
ग़ुस्से से मुझे भी डर लगता है लेकिन यह फिर भी आता है । आपको भी आता होगा
। ग़ुस्सा आता क्यों है ?
और इसके क्या लाभ हैं जल्द ही मैं इस विषय में एक लेख लिखूंगा आपके लिए।
अगर आप इजाज़त दें तो मैं इस लेख की भूमिका में प्रेरक बने आपके इस पत्र
को भी रखना चाहता हूं ताकि लोगों को आपके विचार और आपके लेख का लिंक भी
उपलब्ध कराया जा सके।
आप मनोविज्ञान से संबंधित काउंसिलिंग भी इस ब्लाग पर दिया करें।
जैसे कि माँ अक्सर अपने बच्चों की ज़िद से परेशान रहती है । आप इसका हल बताएं ।
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बहरहाल मैंने कोशिश की है कि गुस्से के रचनात्मक पहलू को भी सामने लाया जाए ताकि हम अपने हालात को बदलने के लिए गुस्से की ऊर्जा से काम ले सकें और उसके नकारात्मक असर से खुद को बचा सकें। कुछ और भी बातें इस संबंध में हैं जिन्हें आगे फिर कभी कहा जाएगा।

Note : 
1- कैसे कैसे समर्थक ?- रेखा श्रीवास्तव जी
http://kriwija.blogspot.com/2011/01/blog-post_12.html?showComment=1294890581788#c1635763654543560095
2- Free Anger Management 83
http://hubpages.com/hub/Free-Anger-Management

Monday, January 17, 2011

...लेकिन इतना माल आया कहां से ? Pure gold does not fear the flame

आ बैल मुझे मार
विधान सभा चुनाव क़रीब हैं। हमारी मुख्यमंत्री बहन सुश्री मायावती जी एक भ्रष्टाचार और भयमुक्त समाज देने के लिए पूरी तरह कमर कस चुकी हैं। अपने वादे को पूरा करने के लिए वे कई ऐसे विधायकों तक को जेल भेज चुकी हैं जिन्होंने अपने बाहुबल का और अपने धन का इस्तेमाल लोगों को धमकाने, सताने या उन पर मुक़द्दमा क़ायम कराने में किया है। ‘आदर्श घोटाला‘ बेशक दूसरे प्रदेश में हुआ है लेकिन यह भी सच है कि किसी भी प्रदेश का कोई भी नगर आज घोटालों से बचा हुआ नहीं है। मायावती जी का संबंध बादलपुर से है जो कि नोएडा के बहुत क़रीब है। नोएडा भी मुख्यमंत्री साहिबा की एक महत्वाकांक्षी योजना का अंग है। इसमें वे किसी भी प्रकार की अनियमितता देखना नहीं चाहती हैं।
आज मंहगाई अपने चरम पर है। हरेक छोटा-बड़ा सरकारी कर्मचारी जो ईमानदार है और ‘केवल वेतन‘ पर ही जीवित है। उसके लिए अपने ख़र्च के लिए अपना वेतन भी कम पड़ रहा है। यह एक सच है जिसे सब जानते हैं। ऐसे कठिन समय में भी जनाब सतीश सक्सेना जी लोगों को बतौर ईनाम कई लाख रूपया बांटने के लिए तत्पर हैं। वे बांट सकते हैं क्योंकि उनके पल्ले माल है। लेकिन इतना माल आया कहां से ?
हम तो ख़ैर यह नहीं पूछेंगे लेकिन ‘विजिलेंस‘ वाले ज़रूर पूछेंगे। मोबाइल के एसएमएस तक पर सरकार की कड़ी नज़र है। हरेक ईमेल की छानबीन की जाती है। ख़ुफ़िया विभाग की कई शाखाओं की नज़र इंटरनेट यूज़र्स पर हर दम रहती है। मामूली बातों को वे जानबूझकर टालते हैं लेकिन इससे कोई भी आदमी यह न समझे कि उन्हें देखने वाला कोई नहीं है। ऐसा सोचना बेबक़ूफ़ी होगा और घातक भी। अगर किसी की नज़र जनाब सतीश सक्सेना जी के अभियान पर पड़ गई और उनका ध्यान इस पर भी चला गया या फिर दिला दिया गया कि ये जनाब एक सरकारी कर्मचारी भी हैं तो कई तरह की एजेंसियों की पकड़ में आ जाने की संभावना है। हालांकि आम तौर पर सरकारी कर्मचारी अपनी कोठी से लेकर कुतिया तक अपनी पत्नी के नाम से ख़रीदता है ताकि किसी रोज़ अगर उसकी जांच होने लगे तो वह अपना दामन पाक-साफ़ दिखा सके लेकिन जब जांच हुआ करती है तो फिर कोई हीला-हवाला काम नहीं आया करता। इस सूचना के अधिकार ने आम जनता को एक अधिकार ही नहीं बल्कि बेईमान भ्रष्ट लोगों के खि़लाफ़ एक मज़बूत हथियार भी दे दिया है। मा़त्र दस रूपये का पोस्टल आर्डर लगाकर कोई भी आदमी किसी भी सरकारी कर्मचारी का पूरा शजरा जान सकता है और बिना किसी 5 हज़ार रूपये के ही मुक़द्दमा क़ायम हो जाता है क्योंकि तब वादी सरकार हुआ करती है। जनाब दिनेश राय द्विवेदी जी से इस मामले में विधिक सलाह ली जा सकती है।
अगर नोएडा जैसी जगह में कोई भ्रष्टाचार करता हुआ मिलना तो दूर वहां कोई सरकारी कर्मचारी ‘उत्पात‘ मचाता हुआ भी दिख गया तो आदरणीया मायावती जी को भी ख़बर करने की ज़रूरत न पड़ेगी बल्कि जनाब नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी साहब ही उसे एटा-गोंडा की तरफ़ चलता कर देंगे, तुरंत। वहां एक पैसे की आमदनी ‘अलग से‘ होगी नहीं और जो पिछला जमा है, उसमें से भी काम आ जाएगा। संभल वाले जनाब शफ़ीकुर्रहमान बर्क़ साहब भी ऐसे ‘उत्पात‘ को हरगिज़ माफ़ नहीं करेंगे। आपको पता ही होगा कि पूरी बसपा में वे एकमात्र ऐसे नेता हैं जो बहन जी के साथ मीटिंग में कुर्सी पर बैठते हैं।
हमारी सलाह तो यही है कि अगर आपने दौलत किसी तरह कमा भी ली है तो इसे यूं ज़ाहिर करते फिरना ठीक नहीं है। किसी की नज़र लग गई या किसी की सरकारी-ग़ैर सरकारी नज़र पड़ गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। आप जिस इलाक़े में रहते हैं वहां हरेक आदमी नरेन्द्र भाटी की तरह शरीफ़ नहीं है। वहां माफ़िया भी हैं और वे माफियां भी मंगवा देते हैं। वे यारों के यार टाइप के लोग हैं। हिंदू-मुस्लिम का भेद इन लोगों में कभी हुआ नहीं करता।
क्यों ख़ामख्वाह किसी को अपने पीछे लगाते हो ?
चैन से अपने बच्चे ब्याह लीजिए। हमारी सलाह तो यही है। बाक़ी आपकी मर्ज़ी।
इस पोस्ट को मैं आपके लिए और ब्लाग जगत की स्वतंत्रता के लिए हितकर नहीं मानता। जिन लोगों ने याकूब कुरैशी द्वारा ईनाम घोषित करने की निंदा की थी, उन्हें चाहिए कि वे सतीश जी की इस टुच्ची और निहायत घटिया हरकत का भी विरोध करें, अगर वे बुद्विजीवी हैं तो।
उनकी इन्हीं घटिया हरकतों के कारण आज ब्लागजगत में गुट और धड़े बने हुए हैं। ब्लागिंग के बेहतर भविष्य के लिए सतीश जी को एक डॉन की भांति आचरण करने से रोका जाना चाहिए।
मैं कहता हूं सच को सच और इतना दम यहां हरेक में है नहीं।
आपके हित के लिए जो सूचना और चेतावनी मैं आपको दे सकता था, वह आपको दे दी है। यह पोस्ट आने वाले समय में आपके गले का फंदा ही साबित होगी, ऐसी संभावना साफ़ नज़र आ रही है।
आप सदा कुशलता से रहें, ऐसी हम कामना करते हैं।
Please go to this link to know the context-

http://satish-saxena.blogspot.com/2011/01/blog-post_17.html

Sunday, January 16, 2011

खोट पर चोट Like cures like

किसी भी चीज़ के लिए केवल उसका दावा ही काफ़ी नहीं हुआ करता बल्कि उसके लिए दलील भी ज़रूरी होती है। यह दुनिया का एक लाज़िमी क़ायदा है। एक आदमी तैराक होने का दावा करे तो लोग चाहते हैं कि वे उसे तैरते हुए भी देखें। यह मनुष्य का स्वभाव है। ऐसी चाहत उसके दिल में खुद ब खुद पैदा होती है, यह  उसका जुर्म नहीं है। लेकिन अगर कोई आदमी कभी तैर कर न दिखाए और पानी में पैर डालने तक से डरे तो लोग उसे झूठा, फ़रेबी और डींग हांकने वाला समझते हैं लेकिन मैं जनाब सतीश सक्सेना जी को ऐसा बिल्कुल नहीं समझता। इसके बावजूद भी मैं चाहता हूं कि वे अपने दावे पर अमल किया करें। उनका दावा है कि वे ईमानदार हैं, कि वे अमन चाहते हैं, कि वे हिंदू-मुस्लिम में भेद नहीं करते। यह तो उनका दावा है लेकिन मैंने जब भी उन्हें देखा तो हमेशा इसके खि़लाफ़ ही अमल करते देखा।
आज हमारीवाणी पर एक अजीब से शीर्षक पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं वहां जा पहुंचा।
ज़ील (दिव्या) को पसंद है अंतर सोहिल की दाढ़ी
 मैं वहां क्या देखता हूं कि एक महिला ब्लागर को अश्लील गालियां दी जा रही हैं और जनाब सतीश साहब उन गालियां देने वालों को या उन्हें पब्लिश करने वाले ब्लागर को न तो क़ानून की धमकी दे रहे हैं और न ही उनसे इस बेहूदा बदतमीज़ी को रोके जाने की अपील ही कर रहे हैं। मुझे बड़ा अजीब सा लगा। बड़ों को अपना दामन बचाकर वापस आते देख मुझे सख्त झटका लगा।
हालांकि दिव्या जी मेरे सवाल पूछने की वजह से मुझसे नाराज़ हैं, उन्होंने मुझे गालियां भी दी हैं और अपने ब्लाग पर एक पोस्ट भी मेरे खि़लाफ़ लिखी है और भविष्य में मुझे कभी उनसे कोई टिप्पणी मिलने की भी उम्मीद नहीं है लेकिन इसके बावजूद मैंने वहां एक कोशिश करना ज़रूरी समझा, दिव्या जी मो खुश करने के लिए नहीं बल्कि अपने मालिक को राज़ी करने के लिए। वहां का माहौल इतना भयानक था कि जो भी बोल रहा था उसी पर बेनामी बंधु गालियां बरसा रहे थे।
जनाब सतीश सक्सेना जी वहां यह कह कर वापस आ गए-

ज़ील के बारे में कितना रद्दी वियू है यार लोगों का। छि: हम तो यहाँ से जा रहे हैं।
...लेकिन मेरा काम ग़लत होते देखकर चुप रहना नहीं है। मैंने भाई किलर झपाटा जी से यह अपील की-

DR. ANWER JAMAL ने कहा…
किलर झपाटा जी ! आपको सादर प्रणाम ! ऐसा लगता है कि आप मूलतः एक सच्ची आत्मा हैं और टैलेंटेड भी लेकिन एक ज्यादती आपके ब्लाग पर डा. दिव्या जी के साथ हो रही है । आप उनका विरोध बेशक करें लेकिन उनकी खिल्ली न उड़ाएं । उन्हें गालियां न दें । वे जो कुछ कर रही हैं उनके पीछे उनकी कुछ मजबूरियां हो सकती हैं । वे आपकी और मेरी सगी बहन न भी सही तब भी वे इसी देश की नारी हैं , मनु की संतान हैं । और मनु निस्संदेह महान हैं। साड़ी दिव्या जी का परिधान है। उनकी साड़ी मत खींचिये। ख़ुद को दुःशासन मत बनाईये। प्लीज़, आपसे मेरी हाथ जोड़कर आंसुओं के साथ यह विनती है कि बेनामी अश्लील कमेंट हटा लीजिए। आपकी पोस्ट ठीक है । इतना चलता है । दर्द की दास्तान को एक औरत से ज़्यादा भला कौन पहचान सकता है ? औरत दर्द से जन्म लेती है , पहले बेटी और फिर बहू होने का दर्द सहती है । मासिक दर्द भी वही सहती है और प्रसव के समय का दर्द भी उसी का मुक़द्दर है और उसके बाद भी ढेरों दर्द हैं जिन्हें वह झेलती है और फिर भी मुस्कुराती है और तब वह कहलाती है प्यारी माँ इस प्यारे से ब्लाग के ज़रिए मैं एक मां के अज़ीम किरदार को सामने लाने की कोशिश कर रहा हूं और आपसे सहयोग की आशा रखता हूँ । कृप्या आप सभी भाई एक Follower और पाठक के रूप में इस ब्लाग से जुड़कर अपने अहसास और जज़्बात को सामने लाएं, शायद कि किसी की सेच और उसका दिल नर्म पड़ जाए अपनी मां के लिए और उसकी मां बुढ़ापे में ज़िल्लत उठाने से या दर-दर की ठोकरें खाने से बच जाए। माँ को अपनाईये ! माँ को बचाईये !! अपनी पवित्र मां की ख़ातिर एक औरत को अश्लील गालियों से बचाएं ।
उसके बाद मैंने वहीं पर जनाब सतीश सक्सेना जी के ज़मीर को भी झिंझोड़ने की कोशिश की-

DR. ANWER JAMAL ने कहा…
एक सवाल दोहरे पैमाने वालों से @ जनाब सतीश सक्सेना जी ! आप तो कानून की धमकी भी देना जानते हैं और शिकायत करना भी। तब भी आपने यहाँ न तो किसी को कानून का संदर्भ दिया और न ही Abuse report की। आपने तो यहाँ फैली गंदगी का विरोध तक न किया और न ही आप अपने ब्लाग पर जाकर कोई पोस्ट ही किलर झपाटा जी के विरूद्ध लिखने की हिम्मत करेंगे । क्या इसी का नाम ईमानदारी है । अपनी टिप्पणी और मेरी अपील को देखिए और जान लीजिए कि आपसे नैतिकता भी दिल्ली की ही तरह दूर है । अभी आपने जाना है नहीं कि ईमान का नूर वास्तव में होता क्या है ? मात्र गालियाँ खाने के डर से आप मिमियाते हुए निकल गए। रचना जी की तो तौहीन की कल्पना मात्र से ही आप आगमयी गाली बक रहे थे और यहां पीठ दिखाकर भाग रहे हैं ? रचना जी में और डा. दिव्या जी में आप अंतर क्यों कर रहे हैं ? आप बुढ़ापे में धृतराष्ट्र बनेंगे तो बालक लड़ मरेंगे । ब्लाग जगत में मचे घमासान में आपका प्क्षपात और आपका भय सदा ही एक बड़ा कारण रहा है , सो आज भी है । मिटा दीजिए अपने प्रोफ़ाइल से अपनी ईमानदारी की तारीफ़ । वह एक ढोंग और पाखंड के सिवाय कुछ भी तो नहीं है। अपने मुँह मियाँ मिठठू बनने से क्या लाभ ? आपकी ब्लागिंग का कोई सार्थक उद्देश्य भी तो होना चाहिए ? लेकिन ब्लागिँग तो आपके लिए एक नशा मात्र है। कृप्या नशे से मुक्ति पाईये और छोटों को राह सीधी दिखाईये । और जनाब अरविंद मिश्रा जी से भी एक शिकवा किया-
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
@ आदरणीय अरविंद मिश्रा जी ! मैंने भी डा. दिव्या जी से अपनी एक पोस्ट में कुछ सवाल पूछे थे और उस पोस्ट में आपका नाम होने के कारण आपकी मौजूदगी वहाँ वाजिब भी था और मैंने आपसे आने की विनती भी की थी लेकिन आपने कहा कि मैं खुद को उस औरत से बहुत दूर कर चुका हूँ लेकिन आप तो यहाँ सबसे पहले आसीन हैं जबकि यहाँ न तो आपका कोई जिक्र है और न ही क़ातिल बंधु ने ही कोई बुलावा आपको भेजा है । ये दो पैमाने क्यों ? आप हमारे मित्र हैं on the record भी और आप खुद भी मित्र और दोस्त कहते हैं। अब अपने इस दोस्त को कारण बता दीजिए प्लीज़ !

इसके बाद किसी बेनामी ने कहा-


सतीश सक्सेना केवल कमजोरों को निशाना बनाता है और दिव्या जैसों को सहलाता है. देखो कल दिव्या का कमाल ZEAL said... . @- सतीश सक्सेना -- अभी तक आयी टिपण्णी में सिर्फ आपकी टिपण्णी ऐसी है जो मोडरेशन लायक है । और कोई लेख होता आपकी टिपण्णी मोडरेट करके सड़ने के लिए छोड़ देती । लेकिन इस लेख पर आपकी टिपण्णी प्रकाशित करके ये सिद्ध किया जाएगा की अनावश्यक एवं निरर्थक टिप्पणियों के लिए ही मोडरेशन लगाया जाता है। पाठकों से निवेदन है कृपया सतीश जी की टिपण्णी प्रकाशित होने का इंतज़ार करें। आभार।

यह तो मैंने जो कहा सो कहा। अब आप लोग बताईये कि क्या ख़ाली ईमानदारी का दावा काफ़ी है या आदमी को ईमानदार होना भी चाहिए ?
क्या दोहरा और ढुलमुल रवैये को ईमानदारी का नाम दिया जाएगा ?
या इसे मौक़ापरस्ती कहा जाएगा ?
अगर जनाब सतीश सक्सेना जी अपने बारे में कोई दावा न करते और मेरी आलोचना-समीक्षा न करते तो मुझे उनसे कोई भी अपेक्षा न होती जैसे कि मुझे दूसरे सैकड़ों ब्लागर्स से नहीं है लेकिन जब वे एक उपदेशक और व्यवस्थापक होने की कोशिश करते हैं तो मुझे उनसे अपेक्षा होना नेचुरल है।
उनके द्वारा मेरी अपेक्षा पर पूरा न उतरना हमेशा से ही मेरे लिए एक दुखद बात रही है। आज की घटना ने उसी पुराने अहसास को फिर से ताज़ा कर दिया है।

इस लेख का आशय उन्हें नीचा दिखाना हरगिज़ हरगिज़ नहीं है।
इसका आशय केवल उन्हें उनकी वास्तविकता से रू ब रू कराना है।
अगर उनमें आशातीत तब्दीली नोट नहीं की जाती है तो यह प्रयास शीघ्र ही एक अभियान का रूप ले लेगा।
कुम्हार घड़े के खोट पर चोट करता है तो उसका आशय कोई यह नहीं समझता कि यह कुम्हार इस घड़े का दुश्मन है और अपनी खुन्नस निकाल रहा है। मैं एक लंबे से उनसे आत्मनिरीक्षण करने और अपने साथ निष्पक्ष व्यवहार करने की अपील करता आ रहा हूं लेकिन वे समय की कमी की वजह से इस ओर उचित ध्यान नहीं दे पाए। लिहाज़ा अब थोड़ा खुलकर ध्यान दिलाना ज़रूरी हो गया है।
आशा है कि इसे ब्लागिंग के एक सामान्य व्यवहार की तरह ही लिया जाएगा।
किसी को मेरी किसी कमी की तरफ़ ध्यान दिलाना वांछित हो तो मैं उसका स्वागत करता हूं और अपनी कमी को हर समय छोड़ने के लिए तैयार हूं।

आपकी-हमारी गाढ़ी कमाई पर डाका (किस्त-1)...खुशदीप

आज भाई खुशदीप सहगल साहब के ब्लाग पर भी हमारी वाणी के तुफ़ैल जाना हो गया। उनका लेख सचमुच एक शानदार लेख है। उस पर भी मैंने आज अपने विचार दिए हैं। उन्हें अब आपके सामने पेश कर रहा हूं ताकि किसी को उनमें कुछ सुधार करना हो तो कर दे-
DR. ANWER JAMAL said...
भाई साहब ! आपने सच सामने रख दिया है लेकिन आम तौर पर ऐसा होता है कि जनता उस आदमी को अपना नेता नहीं चुनती जो नेक हो लेकिन गरीब या मध्यमवर्गीय हो बल्कि लोग उसे चुनते हैं जो अपना माल उसे 'पिलाता' है । वोट तो बड़ी चीज़ है यहाँ तो लोग टिप्पणी देने से पहले भी आदमी का धर्म जाति और प्रदेश देखते हैं । एक साहब को मैंने अपने ब्लाग का लिंक भेजा ,अपने टिनी-मिनी एग्रीगेटर में उसे नहीं जोड़ा । ये लालच और तंगनज़री हमारी पब्लिक में आम है, देशी भारतीयों में ही नहीं बल्कि प्रवासियों तक में । काश कम से कम वे तो छोड़ते तंगदिली। अगर वे छोड़ते तो फिर वे भारतीयों को भी समझाते और यहां के लोग उनसे समझते भी क्योंकि यहां के लोग हीनभावना के शिकार हैं । जो साहब लोगों के देश में रहता है उसे तुरंत महान मान लेते हैं । विवेकानंद जी की भी पहले किसी ने न सुनी लेकिन गोरों के देश से आते ही उन्हें युगदृष्टा मान लिया गया। जर्मनी दो टुकड़ों में था लेकिन आज एक है । काश उस देश के लोगों से ही हमारे देश के लोग प्रेरणा लेकर आपस में जुड़ना सीखते । आपके लेख ने और इस पर आई टिप्पणियों ने मेरे अंदर कुछ इस तरह का वैचारिक अंधड़ पैदा कर दिया है । शुभ प्रभात । यहां ब्लागजगत में कितनी मीटिंग्स हुईं क्या उसमें कभी एक बार भी उस सभा का अध्यक्ष उसे बनाया गया जो आर्थिक रूप से दरिद्र और वैचारिक रूप से समृद्ध हो ? नहीं न ? ऊँची उड़ान वाले की औलाद की शादी में शिरकत के फोटो की तो यहां प्रदर्शनी लगाई जाती है लेकिन वही आदमी अपनी ज़िंदगी में किसी ग़रीब की शादी में भी तो कभी गया होगा ? उसका तो फ़ोटो न कभी उसने खींचा और न कभी उसने दिखाया । केवल धन कुबेरों की ही लल्लो चप्पो क्यों ? केवल इसलिए ताकि वे झूठ को महज़ औपचारिकतावश भी बुलावा भेजें तो ये विदेश घूमने की अपनी दबी पड़ी इच्छाओं को पूरा करने पहुंच जाएं और नाम होगा दोस्ती का , कि देखो बेचारा कितना प्यार करता है , बुलाते ही भागा चला आया। नहीं भाई , पीठ में छुरी मारने वाले ये जनाब दोस्ती को क्या जानें ? हाई सोसायटी में घूम फिर कर ये अपना क़द बढ़ा रहे हैं , लुत्फ़ ले रहे हैं और अपने बच्चों के लिए रिश्ते भी ढूंढ रहे हैं । दोस्तों को अपनी ग़र्ज़ के लिए यूज़ कर रहे हैं ये मियां मिठठू । ब्लागिंग को ये लोग अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं...
...लेकिन अफ़सोस हर जगह ऐसे ही स्वहितपोषकों को सिर माथे पर बिठाया जाता है क्योंकि इनके पास दौलत का जलवा है, जिससे लोगों की आंखे चौंधिया जाती हैं और तब लोग इनके ऐब को नहीं देखते लेकिन ... अनवर जमाल इन सबसे जुदा है और इसीलिए उसका कलाम भी सबसे जुदा है । मुल्क की बदहाली को अगर ख़ुशहाली में बदलना है तो हमें अपने अंदर न्याय चेतना का विकास करना होगा , सही आदमी को इज्जत देने के साथ साथ ख़ुदग़र्ज़ों को किनारे करना भी सीखना होगा और इसकी शुरूआत अपने होल्ड वाले एरिया से करनी होगी , ब्लाग जगत से करनी होगी वर्ना पूर्व मुख्यमंत्री श्री राजनाथ सिहं जी के शब्दों में 'बिना कृति के कुछ अर्थ नहीं है बड़े शब्दों का' भाई साहब बुरा मत मानिएगा लेकिन अगर मानना चाहें तो मान लेना जो मेरे दिल में आ चुका है उसे कहूंगा जरूर और अगर मेरी बात ग़लत हुई तो फिर बिना देर किए आपसे माफी भी मांगूगा । अगर हमारे नेता बुरे हैं तो इसका मतलब यह है कि हम बुरे हैं क्योंकि उन्हें चुनने वाले , उन्हें अपना नेता बनाने वाले हम लोग ही तो हैं । बार बार बुरे आदमी संसद भवन आदि जगहों में आखिर पहुँच कैसे रहे हैं ? हम सुधरेंगे तभी जग सुधरेगा । हमेशा सच का साथ खुलकर दीजिए ।

आज ब्लॉगजगत के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया ऐसे लोगों ने...http://www.amankapaigham.com/2011/01/blog-post_14.html


 एक्सक्यूज़ मी, क्या मैं भी मियां मिट्ठू बन सकता हूँ ?
 http://www.amankapaigham.com/2011/01/blog-post_12.html