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Wednesday, January 19, 2011

गुस्से की ऊर्जा से काम लेना सीखिए ? The energy of anger

गुस्सा मेरे वालिद साहब की एक नुमायां पहचान है। उनका गुस्सा बचपन से ही मुझे डराता आया है। मैंने तय किया था कि मैं कभी गुस्सा नहीं करूंगा क्योंकि गुस्से से होने वाले नुक्सान को मैं जानता हूं। मेरी कोशिश हमेशा यही रहती है कि खुद अपनी तरफ़ से किसी को कोई दुख न दिया जाए, किसी की आलोचना न की जाए, किसी को कोई चुभती हुई बात न कही जाए ताकि सुनने वाले को बुरा न लगे और उसे गुस्सा न आए और पलटकर वह भी मुझे ऐसी कोई बात न कहे कि मुझे भी उसकी बात पर गुस्सा आ जाए। यही वजह है कि मेरे आसपास के लोग बहुत से ऐसे काम करते हैं जिन्हें मैं सही नहीं समझता लेकिन तब भी मैं उन्हें नज़रअंदाज़ कर देता हूं। समाज में सबके साथ रहना है तो दूसरों की ग़लतियों को नज़रअंदाज़ भी करना पड़ता है और कभी कभी उन्हें ढकना भी पड़ता है। हरेक परिवार अपने सभी सदस्यों को इसी रीति से जोड़ता है। क़स्बे और कॉलोनी के लोग भी इसी उसूल के तहत एक दूसरे से जुड़े रह पाते हैं। ब्लाग जगत भी एक परिवार है और यहां भी इसी उसूल को अपनाया जाना चाहिए।
इस कोशिश के बावजूद कभी कभी मुझे गुस्सा आ जाता है और तब मैं यह सोचता हूं कि आखि़र मुझे गुस्सा आया क्यों ?
हमारे ऋषियों ने जिन पांच महाविकारों को इंसान के लिए सबसे ज़्यादा घातक माना है उनमें से क्रोध भी एक है। हज़रत मुहम्मद साहब स. ने भी उस शख्स को पहलवान बताया है जो कि गुस्से पर क़ाबू पा ले।
इसके बावजूद हम देखते हैं कि कुछ हालात में ऋषियों को भी क्रोध आया है, खुद अंतिम ऋषि हज़रत मुहम्मद साहब स. को भी क्रोधित होते हुए देखा गया है।
हिंदू साहित्य में ऋषियों के चरित्र आज में वैसे शेष नहीं हैं जैसे कि वास्तव में वे पवित्र थे। कल्पना और अतिरंजना का पहलू भी उनमें पाया जाता है लेकिन हदीसों में जहां पैग़म्बर साहब स. के क्रोधित होने का ज़िक्र आया है तो वे तमाम ऐसी घटनाएं हैं जबकि किसी कमज़ोर पर ज़ुल्म किया गया और उसका हक़ अदा करने के बारे में मालिक के हुक्म को भुला दिया गया। उन्होंने अपने लिए कभी क्रोध नहीं किया, खुद पर जुल्म करने वाले दुश्मनों को हमेशा माफ़ किया। अपनी प्यारी बेटी की मौत के ज़िम्मेदारों को भी माफ़ कर दिया। अपने प्यारे चाचा हमज़ा के क़ातिल ‘वहशी‘ को भी माफ़ कर दिया और उनका कलेजा चबाने वाली ‘हिन्दा‘ को भी माफ़ कर और मक्का के उन सभी सरदारों को भी माफ़ कर दिया जिन्होंने उन्हें लगभग ढाई साल के लिए पूरे क़बीले के साथ ‘इब्ने अबी तालिब की घाटी‘ में क़ैद कर दिया था और मक्का के सभी व्यापारियों को उन्हें कपड़ा, भोजन और दवा बेचने पर भी पाबंदी लगा दी थी। ऐसे तमाम जुल्म सहकर भी उन्होंने उनके लिए अपने रब से दुआ की और उन्हें माफ़ कर दिया। इसका मक़सद साफ़ है कि अस्ल उद्देश्य अपना और अपने आस-पास के लोगों का सुधार है। अगर यह मक़सद माफ़ी से हासिल हो तो उन्हें माफ़ किया जाए और अगर उनके जुर्म के प्रति अपना गुस्सा ज़ाहिर करके सुधार की उम्मीद हो तो फिर गुस्सा किया जाए।
जो भी किया जाए उसका अंजाम देख लिया जाए, अपनी नीयत देख ली जाए, संभावित परिस्थितियों का आकलन और पूर्वानुमान कर लिया जाए।
वे आदर्श हैं। उनका अमल एक मिसाल है। उनके अमल को सामने रखकर हम अपने अमल को जांच-परख सकते हैं, उसे सुधार सकते हैं।
मुझे गुस्सा कम आता है लेकिन आता है।
आखि़र आदमी को गुस्सा आता क्यों है ?
हार्वर्ड डिसीज़न लैबोरेट्री की जेनिफ़र लर्नर और उनकी टीम ने गुस्से पर रिसर्च की है। उसके मुताबिक़ हमारे भीतर का गुस्सा कहीं हमें भरोसा दिलाता है कि हम अपने हालात बदल सकते हैं। अपने आने वाले कल को तय सकते हैं। जेनिफ़र का यक़ीन है कि अगर हम अपने गुस्से को सही रास्ता दिखा दें तो ज़िंदगी बदल सकते हैं।
हम अपने गुस्से को लेकर परेशान रहते हैं। अक्सर सोचते हैं कि काश हमें गुस्सा नहीं आता। लेकिन गुस्सा है कि क़ाबू में ही नहीं रहता। गुस्सा आना कोई अनहोनी नहीं है। हमें गुस्सा आता ही तब है, जब ज़िंदगी हमारे मुताबिक़ नहीं चल रही होती। कहीं कोई अधूरापन है, जो हमें भीतर से गुस्सैल बनाता है। दरअस्ल, इसी अधूरेपन को ठीक से समझने की ज़रूरत होती है। अगर हम इसे क़ायदे से समझ लें, तो बात बन जाती है।
जब हमें अधूरेपन का एहसास होता है, तो हम उसे भरने की कोशिश करते हैं। और यही भरने की कोशिश हमें कहीं से कहीं ले जाती है। हम पूरे होकर कहीं नहीं पहुंचते। हम अधूरे होते हैं, तभी कहीं पहुंचने की कसमसाहट होती है। यही कसमसाहट हमें भीतर से गुस्से में भर देती है। उस गुस्से में हम कुछ कर गुज़रने को तैयार हो जाते हैं। हम जमकर अपने पर काम करते हैं। उसे होमवर्क भी कह सकते हैं और धीरे धीरे हम अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते चले जाते हैं।
असल में यह गुस्सा एक टॉनिक का काम करता है। हमें भीतर से कुछ करने को झकझोरता है। अगर हमारा गुस्सा हमें कुछ करने को मजबूर करता है, तो वह तो अच्छा है न।
                   (हिन्दुस्तान, 6 जनवरी 2011, पृष्ठ 10)
मैंने बहन रेखा श्रीवास्तव जी की एक पोस्ट देखी, जिसमें वे गुस्सा कर रही थीं।
उसे पढ़कर मुझे भी उस आदमी पर गुस्सा आ गया था जिस पर कि उन्हें गुस्सा आया था और तब मैंने उनसे कहा था कि मैं गुस्से पर कुछ लिखूंगा।
इससे पहले मैं बहन अंजना जी से भी कह चुका था कि गुस्से पर आपका आर्टिकल तो मैंने पढ़ लिया लेकिन इसके एक दूसरे पर मैं लिखूंगा। क्या मैं उस लेख की भूमिका में ईमेल से मिली आपके पत्र को इस्तेमाल कर सकता हूं। उन्होंने बखुशी इजाज़त दे दी।
दरअस्ल उन्होंने कहा था कि आप अच्छा लिखते हैं। मुझे आपके लेख पसंद आते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे आप बहुत तफ़्तीश के बाद ही कोई लेख लिखते हैं।
इसके बाद मैंने उनसे दरयाफ़्त किया था कि आपको मेरा कौन सा लेख सबसे ज़्यादा पसंद है और कौन सा लेख नापसंद है ताकि मैं अपने आप को सुधार सकूं ?
तब उन्होंने लिखा कि

आदरणीय अनवर भाई,
उर्दू पापा और दादी से सीखी, यानी की बचपन से बोलती हूँ. सिर्फ बोल पाती हूँ, लिखना सीखने की कोशिश कर रही हूँ. दिल्ली में स्कूल में उर्दू अब नहीं सिखाते, इस वजह से सीख नहीं पाई. दिल की बात उर्दू में कहना आसान लगता है, बड़ी मीठी ज़बान है. 

रही बात, आपके लिखाई के बारे में. आपके हर लेख में आपकी जानकारी, आपका इल्म साफ़ नज़र आता है. पता चलता है की यूँ ही नहीं लिख रहें बल्कि आप जो भी लिखते हैं काफी तफ्तीश के बाद लिखते हैं. यह बात मुझे अच्छी लगती है. दूसरी बात जो मुझे अच्छी लगती है वो ये है आप अक्सर लोंगों को और मजहबों को मिलाने की कोशिश करते हैं. आपका मिर्ज़ा ग़ालिब पे लिखा लेख मुझे बहोत अच्छा लगा. 

 आपके ब्लॉग पे मुझे गुस्सा अच्छा नहीं लगता, चाहे वो आपका हो या किसी और का. गुस्से से डर लगता है मुझे, ऐसा लगता है की गुस्सा अमन का दुश्मन है. गुस्से पे कुछ लिखा था कुछ दिन पहले, शायद आपको पसंद आये. गुस्सा तो हम सबको आता है, पर गुस्से से जब रिश्ते बिगड़ने लगते हैं तो लगता है की गुस्सा हम पर ग़ालिब हो रहा है. 

प्यारी माँ पर टिपण्णी नहीं दिखाई दी. फिलहाल वहीँ लिखने के लिये कुछ सोच रही हूँ. 
अगर मैंने कुछ गलत लिख दिया हो तो माफ़ कर दीजियेगा. 
आपकी बहन,
अंजना 
Anjana Dayal de Prewitt, MS
Humanitarian Psychologist
Functional Expert - Psychosocial Support
Phones: Home- 001-787-738-6632
Email: anjdayal@gmail.com
Blogs: http://anjana-prewitt.blogspot.com/
          http://losojosindios.blogspot.com/
          http://vrinittogether.blogspot.com/
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@ बहन अंजना जी ! इस प्यारे ब्लाग पर आपकी पहली रचना का हार्दिक स्वागत
है । आपकी रचना दिल से निकली है इसीलिए पढ़ने वाले के दिल पर असर करती है
। आपने इसमें रिश्तों की हक़ीक़त को ही नहीं बल्कि मौजूदा समाज की स्वार्थी
सोच को भी सामने ला खड़ा किया है।
हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. ने एक शख़्स से कहा था कि तेरी जन्नत तेरी मां के
क़दमों तले है ।
इसमें मां के प्रति विनय और सेवा दोनों का उपदेश है । मां भी अपनी औलाद
को हमेशा नेकी का रास्ता बताती है ।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है कि जब तक तुम बच्चों की मानिंद न हो
जाओ स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते ।
बच्चे मासूम होते हैं , ख़ुद को अपनी मां पर निर्भर मानते हैं । उसका कहना
मानते हैं लेकिन आज माँ बाप औलाद को बेईमानी के रास्ते पर खुद धकेल रहे
हैं।
वे अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा दौलतमंद देखना चाहते हैं । जिसके लिए
वे खुद भी बेईमानी करते हैं और उनके बच्चे भी उनसे यही सीखते हैं और अपनी
मासूमियत खो बैठते हैं जो कि बच्चे की विशेषता थी । मां ने भी सही
गाइडेंस देने का अपना गुण खो दिया और बच्चे की मासूमियत भी नष्ट कर दी और
तब इस धरती पर नर्क उतर आया हर ओर ।...
पूरी टिप्पणी आप ब्लाग पर पढ़ लीजिएगा ।
मैं सिर्फ़ 7 दिन में उर्दू लिखना पढ़ना और बोलना सिखा देता हूं हिंदी
जानने वाले को । इसके लिए मैंने एक ख़ास मैथड डिज़ायन किया है । आप भी
जल्दी ही सीख जाएंगी । अगर आपके पास उर्दू के ट्यूटर का इंतज़ाम न हो तो
मैं अपने किसी सत्यसेवी मित्र से बात करके देख सकता हूं , यदि आप चाहें
तो ?
ग़ुस्से से मुझे भी डर लगता है लेकिन यह फिर भी आता है । आपको भी आता होगा
। ग़ुस्सा आता क्यों है ?
और इसके क्या लाभ हैं जल्द ही मैं इस विषय में एक लेख लिखूंगा आपके लिए।
अगर आप इजाज़त दें तो मैं इस लेख की भूमिका में प्रेरक बने आपके इस पत्र
को भी रखना चाहता हूं ताकि लोगों को आपके विचार और आपके लेख का लिंक भी
उपलब्ध कराया जा सके।
आप मनोविज्ञान से संबंधित काउंसिलिंग भी इस ब्लाग पर दिया करें।
जैसे कि माँ अक्सर अपने बच्चों की ज़िद से परेशान रहती है । आप इसका हल बताएं ।
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बहरहाल मैंने कोशिश की है कि गुस्से के रचनात्मक पहलू को भी सामने लाया जाए ताकि हम अपने हालात को बदलने के लिए गुस्से की ऊर्जा से काम ले सकें और उसके नकारात्मक असर से खुद को बचा सकें। कुछ और भी बातें इस संबंध में हैं जिन्हें आगे फिर कभी कहा जाएगा।

Note : 
1- कैसे कैसे समर्थक ?- रेखा श्रीवास्तव जी
http://kriwija.blogspot.com/2011/01/blog-post_12.html?showComment=1294890581788#c1635763654543560095
2- Free Anger Management 83
http://hubpages.com/hub/Free-Anger-Management