Wednesday, January 25, 2012

प्लीज़ क्रांति न करे कोई No Revolution

देश में आज अंग्रेज़ी राज नहीं है और उनके क़ानून में कुछ घटा बढ़ाकर हमने उसे अपना भी बना लिया है लेकिन हमें देखना होगा कि इस क़ानून का लाभ देश के ग़रीबों को कितना मिल रहा है ?
दहेज उत्पीड़न के एक मुक़ददमे को लड़ते हुए आज एक लड़की को चार साल हो गए हैं। हमने देखा है कि उसे अब तक न तो उसके पति से कोई खर्चा मिला है और न ही उसकी ससुराल से उसका सामान ही वापस मिला है। अभी कितने साल और लग जाएं इसका कोई अंदाज़ा नहीं है। ऐसे में ज़ालिम पक्ष को सज़ा दिलाने के लिए कौन कब तक लड़े और अपनी उम्र गंवाए ?

आम हालात यह हैं कि लोग पुलिस और अदालत के चक्कर से बचना बेहतर समझते हैं।
देश में क़ानून का होना ही काफ़ी नहीं है बल्कि उसका फ़ायदा अमीर और ग़रीब सबको मिले और न्याय तेज़ी के साथ हो, यह भी ज़रूरी है।
कुछ लोगों को फांसी का हुक्म दिया जा चुका है लेकिन उन्हें फांसी नहीं दी जा रही है। यह भी चिंता की बात है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी सज़ा पूरी हो चुकी है लेकिन उनके केस की पैरवी करने वाला कोई नहीं है। वे जेलों में बंद हैं।
आज 26 जनवरी है।
लोग ख़ुश हैं। ख़ुश होने की वजह भी है लेकिन जो लोग आज के दिन भी ख़ुश नहीं हैं उनके पास भी ग़मगीन होने की कुछ वजहें हैं। हमारा ख़ुश होना तब तक कोई मायने नहीं रखता जब तक कि हमारे दरम्यान ग़म के ऐसे मारे हुए मौजूद हैं जिनका ग़म हमारी मदद से दूर हो सकता है और हमारी मदद न मिलने की वजह से वह उनकी ज़िंदगी में बना हुआ है।
हमारे अंदर अनुशासन की भावना बढ़े, हम ख़ुद को अनुशासन में रखें और किसी भी परिस्थिति में शासन के लिए टकराव के हालात पैदा न करें।
जो लोग आए दिन धरने प्रदर्शन करते हुए शासन और प्रशासन से टकराते रहते हैं, उन्हें 26 जनवरी पर यह प्रण कर लेना चाहिए कि अब वे देश के क़ानून का सम्मान करेंगे और किसी अधिकारी से नहीं टकराएंगे बल्कि उनका सहयोग करेंगे।
टकराकर देश को बर्बाद न करें।
लोग अंग्रेज़ो से टकराए तो वे देश से चले गए और आज बहुत से लोग यह कहते हुए मिल जाएंगे कि देश में आज जो असुरक्षा के हालात हैं, ऐसे हालात अंग्रेज़ों के दौर में न थे।
कहीं ऐसा न हो कि फिर टकाराया जाए तो देश और गड्ढे में उतर जाए।
सो प्लीज़ हरेक आदमी यह भी प्रण करे कि अब हम क्रांति टाइप कोई काम नहीं करेंगे।
जो राज कर रहा है, उसे राज करने दो।
एक जाएगा तो दूसरा आ जाएगा।
अपना भला हमें ख़ुद ही सोचना है।
शासन करने वालों ने जनता की चिंता कम ही की है।
उनसे आशा ही न रखोगे तो निराशा भी न होगी।
जीवन को सकारात्मक विचारों से भरिए और सरकार और पब्लिक की शिकायतें करने के बजाय यह देखिए कि किसी को हमसे तो कोई शिकायत नहीं है।
इस बार 26 जनवरी को ऐसे मनाएं।

Thursday, January 19, 2012

'Love Jihad' उर्फ़ नाच न जाने आंगन टेढ़ा

डा. दिव्या श्रीवास्तव उर्फ़ ZEAL: लव-जेहाद के जवाब में

लव जिहाद का चर्चा फिर उठाया जा रहा है और इसके नाम पर इस्लाम और मुसलमान को बदनाम किया जा रहा है.
लड़के लड़कियां साथ साथ पढ़ रहे हैं, काम काज भी साथ साथ ही कर रहे हैं. इन्हें अपने मां बाप की इज़्ज़त का भी ख़याल होता है। ऐसे में वे अपनी शादियां अपने मां बाप की पसंद से ही करते हैं या फिर अपनी पसंद उन्हें बताकर उनकी रज़ामंदी ले लेते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो उनसे ऊपर होकर ख़ुद अपनी शादी कर लेते हैं या फिर लिव इन रिलेशन में रहने लगते हैं।
क्या दूसरे समुदाय के लड़के और लड़कियों को ‘लिव इन रिलेशन‘ में रहने की प्रेरणा भी मुसलमान युवक ही देते हैं ?
इसमें इस्लाम और जिहाद कहां से आ गया ?
इस्लाम तो यह कहता है कि अजनबी औरत मर्द तन्हाई में आपस में इकठ्ठे ही न हों कि जज़्बात में उबाल आए और क़दम बहक जाएं.

अन्तर्जातीय और अंतरधार्मिक विवाह का प्रचलन आज आम है. किसी की भी लड़की किसी के साथ भी जा सकती है और जा रही है. जिस समाज में लड़की को पेट में ही मारा जा रहा है और बड़े होने पर उसके बाप से मोटा दहेज मांगा जाता है. उस समाज में लड़की के सामने क्या समस्याएं हैं, इन्हें तो उस समाज की लड़कियां ही जान सकती हैं.
ऐसी लड़कियों को पढ़ाया लिखाया इसलिए भी जाता है कि वे कमा सकें और ऐसी कमाऊ लड़की को कम दहेज के साथ भी क़ुबूल कर लिया जाता है सिर्फ़ इसलिए कि वह सोने का अंडा देने वाली मुर्ग़ी है.
उसके शरीर से लुत्फ़ उठाओ, उससे अपनी नस्ल चलाओ और फिर उसकी आमदनी से ही उसके बच्चे पालो और अपना जीवन स्तर भी ऊंचा उठा लो,
यह सोच आज आम हो चली है.
औरत भी अक्ल रखती है और अपना भला बुरा वह अच्छी तरह समझ सकती है.
वह देख भी रही है और सोच भी रही है.
इसी का नतीजा है कि वह एक ऐसे समाज का हिस्सा बनना चाहती है जहां लड़कियों को पेट में नहीं मारा जाता और न ही घरों से बाहर हवस के मारों के सामने धकेल दिया जाता है माल कमाने के लिए.
वह एक ऐसे समाज का हिस्सा बनना पसंद करती है जहां विधवा को भी दोबारा विवाह करने का अवसर ऐसे ही हासिल है जैसे कि किसी कुंवारी लड़की को.
जहां उसे मासिक धर्म के दिनों में भी सम्मान के साथ उसी बिस्तर पर सुलाया जाता है जिस पर कि वह पहले सोती थी और उसे बादस्तूर उसी रसोई में खाना पकाने दिया जाता है जिसमें कि वह रोज़ पकाती है.
इसी तरह की सहूलत और इज़्ज़त पाने के लिए आज दूसरे समुदायों की कन्याएं मुस्लिम युवकों से शादी कर रही हैं। दरअसल वे अपनी समस्याएं हल कर रही हैं और मुसलमानों की समस्याएं बढ़ा रही हैं.
जो औरत को ज़िंदा जलाने का रिकॉर्ड रखते हैं वे ही उनकी इन समस्याओं के जनक हैं. वे इनके पीछे अपनी भूमिका स्वीकारने के बजाय इल्ज़ाम मुस्लिम समुदाय पर ही लगा रहे हैं कि वे ‘लव जिहाद‘ कर रहे हैं. ऐसा वे केवल अपनी तरफ़ से ध्यान हटाने के लिए कर रहे हैं. इस देश में मुसलमान कोई लव जिहाद नहीं कर रहे हैं लेकिन ऐसा बेबुनियाद इल्ज़ाम लगाकर वे फ़साद ज़रूर कर रहे हैं। इसी के साथ वे अपने समुदाय की लड़कियों की बुद्धि पर भी प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं कि पढ़ाई लिखाई के बाद भी उनमें विवेक जाग्रत नहीं होता.
हरेक लड़का लड़की अपने साधनों को देखते हुए अपनी ज़रूरत और अपना शौक़ पूरा कर रहा है। जिसे जो भा रहा है, उसे वह अपना रहा है.
इसे लव जिहाद का नाम देना दूसरों को भरमाना है.
लव जिहाद नाम की कोई चीज़ हक़ीक़त में होती तो क्या हम न करते ?
लेकिन हमारा निकाह भी परंपरागत मुस्लिम घराने की लड़की से हुआ और हमारे दोस्तों का भी. हमारे बाप, दादा, चाचा, मामा, नाना और हमारे पीर मौलाना सबका निकाह परंपरागत घराने की मुस्लिम लड़कियों से ही हुआ और मुस्लिम समाज का आम रिवाज यही है.
‘लव जिहाद‘ के इल्ज़ाम को बेबुनियाद साबित करने के लिए हमारी ज़िंदगी ही काफ़ी है. जो लोग यह इल्ज़ाम लगाते हैं कि मुसलमान चार चार शादियां करते हैं. वे भी देख सकते हैं कि हमारे न तो 4 बीवियां हैं, न 3 और न ही 2 और यही हाल हमारे दोस्तों का है. हमारा ही नहीं बल्कि यही हाल इस्लाम के आलिमों का है. हिंदुस्तान भर के छोटे-बड़े सभी आलिमों को देख लीजिए और आप बताईये कि किसके 4 बीवियां हैं और किसके 25 बच्चे हैं ?
झूठे इल्ज़ाम लगाना सिर्फ़ नफ़रत फैलाना है और आज राष्ट्रवाद का अर्थ बस यही नफ़रत फैलाना भर रह गया है. इसका असर उल्टा हो रहा है. इस्लाम के बारे में जितना भ्रम फैलाया जा रहा है, लोग उसके बारे में जानने के लिए उतने ही ज़्यादा उत्सुक हो रहे हैं और जब वे सच जानते हैं तो उनकी सारी ग़लतफ़हमियां पल भर में काफ़ूर हो जाती हैं.

गृहस्थ जीवन में ख़राबी कैसे आई ?
अपने समाज से युवक युवतियों का पलायन रोकने का उपाय मात्र यह है कि जो फ़ेसिलिटी इस्लाम उन्हें देता है, उसे अपने घरों में ही उन्हें उपलब्ध करा दिया जाए.
यह देखकर एक सुखद अहसास होता है कि अब हिंदू समाज में सती प्रथा लगभग ख़त्म हो चुकी है. विधवाओं के विवाह भी होने लगे हैं और मासिक धर्म के दिनों में भी अब हिंदू औरतों को घर गृहस्थी में काम करने का अधिकार मुसलमान औरतों की तरह ही दिया जाने लगा है. लेकिन शायद अभी कुछ और परिवर्तन की आवश्यकता है.
सन्यासियों को गृहस्थों ने अपना गुरू बनाया तो उन्होंने धर्म यह बताया कि पति अपनी पत्नी के साथ संभोग केवल तब करे जबकि संतान प्राप्ति की इच्छा हो. इसी के साथ कुछ सन्यासी गुरूओं ने गृहस्थ हिंदुओं को मुर्ग़ा, मछली, प्याज़ और लहसुन जैसी चीज़ों को भी खाने से रोक दिया जो कि वीर्यवर्द्धक और स्तंभक हैं. सन्यासियों को गृहस्थ धर्म का पालन करना नहीं होता. सो उन्हें इरेक्शन और रूकावट की भी ज़रूरत नहीं होती बल्कि उनकी ज़रूरत तो इनसे मुक्ति होती है. इसीलिए उन्हें ऐसे खान पान की ज़रूरत होती है जिससे उनके जज़्बात सर्द पड़ जाएं. सन्यासी की ज़रूरत अलग है और गृहस्थ की ज़रूरत अलग है लेकिन गृहस्थों को भी सन्यासियों ने वही खान पान बताया जो कि ख़ुद खाते थे. नतीजा यह हुआ कि घर घर में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और रूकावट की कमी जैसी समस्याएं खड़ी हो गईं. इस तरह की बातों ने भी दाम्पत्य जीवन को आनंद से वंचित किया है. नारी के कोमल मन को न जानने के कारण ही इस तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं। यह अच्छी बात है कि अब इन पाबंदियों को भी दरकिनार किया जा रहा है. कंडोम और मांस की बढ़ती हुई बिक्री यही बताती है.
ईश्वर इस तरह की पाबंदियां लगाता ही नहीं है, जिन्हें लोग निभा न सकें.
आज कम्पटीशन का ज़माना है और लोग बेहतर का चुनाव करना चाहते हैं.
पहले इस्तेमाल करो और फिर विश्वास करो का नारा भी आज सबके कानों में पड़ रहा है.
पति अगर मुसलमान है तो संतान की इच्छा के बिना भी पत्नी के साथ अंतरंग समय बिता सकता है और अपने आहार की वजह से उसे चरम सुख के शीर्ष पर भी पहुंचा सकता है.

अपने प्रेम को पवित्र कैसे बनाएं ?
ख़त्ना का लाभ पति के साथ पत्नी को भी मिलता है. लिंग के अगले हिस्से को ढकने वाली खाल बचपन मे हटा दी जाती है ताकि वहां गंदगी के कण सड़कर बीमारियां न फैलाएं. जो औरतें बिना ख़त्ना वाले मर्दों के साथ रहती बसती हैं, उनके अंदर यही सड़न दाखि़ल हो जाती है और गर्भाशय कैंसर जैसी बहुत सी बीमारियां पैदा कर देती है. जिन औरतों का गर्भाशय निकाला जाता है, उनके पतियों के बारे में जाना जाए तो वे अधिकतर बिना ख़त्ना वाले होंगे. इस्लाम एक रहमत है लेकिन लोग इससे चिढ़कर अपना जीवन दुनिया में भी नर्क बना रहे हैं.
चरम सुख के शीर्ष पर औरत का प्राकृतिक अधिकार है और उसे यह उपलब्ध कराना उसके पति की नैतिक और धार्मिक ज़िम्मेदारी है.
प्रेम को पवित्र होना चाहिए और प्रेम त्याग भी चाहता है. ख़त्ना के ज़रिये फ़ालतू की खाल त्याग दी जाती है और इस त्याग के साथ ही प्रेम मार्ग पवित्र हो जाता है.
गर्भनाल भी काटी जाती है और बढ़े हुए बाल और नाख़ून भी शुद्धि और पवित्रता के लिए ही काटे जाते हैं. लिहाज़ा ख़त्ना पर ऐतराज़ केवल अज्ञानता है.
मुसलमान पति से मिलने वाले लाभ को हर घर में आम कर दिया जाए तो हर घर आनंद से भर जाएगा और नारी के मन पर किसी भौतिक अभाव का भी प्रभाव न पड़ेगा.
मुसलमानों को इल्ज़ाम न दो बल्कि जो वे देते हैं आप भी वही आनंद उपलब्ध कराइये.

एक दूसरे से अच्छी बातें सीखिए.
अच्छी बातें एक दूसरे से सीखने में कोई हरज नहीं है,
मुसलमान योग शिविर में जाते हैं और आसन सीखते हैं,
आप उनसे दाम्पत्य जीवन के आनंद का रहस्य जान लीजिए,
हक़ीक़त यह है कि पवित्र प्रेम में जो मज़ा आता है उसे अल्फ़ाज़ में बयान करना मुमकिन नहीं है.
ज़रा सोचिए कि आज मुसलमान को संदिग्ध बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. शिक्षा और आय में उसे पीछे धकेला ही जा चुका है. इसके बावजूद भी जब एक लड़की अपना दिल हारना चाहती है तो वह एक मुसलमान युवक को ही क्यों चुनती है ?
जबकि आधुनिक साधन लेकर ख़ुद उसके समुदाय के युवक भी उसके आस पास ही घूम रहे हैं.

धर्म-मतों की दूरियां अब ख़त्म होनी चाहिएं. जो बेहतर हो उसे सब करें और जो ग़लत हो उसे कोई भी न करे और नफ़रत फैलाने की बात तो कोई भी न करे. सब आपस में प्यार करें. बुराई को मिटाना सबसे बड़ा जिहाद है.
जिहाद करना ही है तो सब मिलकर ऐसी बुराईयों के खि़लाफ़ जिहाद करें जिनके चलते बहुत सी लड़कियां और बहुत सी विधवाएं आज भी निकाह और विवाह से रह जाती हैं।
हम सब मिलकर ऐसी बुराईयों के खि़लाफ़ मिलकर संघर्ष करें.
आनंद बांटें और आनंद पाएं.
पवित्र प्रेम ही सारी समस्याओं का एकमात्र हल है.

Monday, January 16, 2012

जिहाद का मतलब क्या है और जन्नत का हक़दार कौन है ? Jihad and Jannat

Dr. Anwer Jamal with Maulana Wahiduddin Khan







Dr. Ayaz Ahmad  with Maulana Wahiduddin Khan
Maulana Wahiduddin Khan after session
‘ग़ुस्सा ईमान में फ़साद डाल देता है।‘
मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक हदीस की तश्रीह करते हुए फ़रमा रहे थे।
मैं ईमान से रब्बानी सोच मुराद लेता हूं। ईमान से रब्बानी सोच पर बुरा असर पड़ता है।
ग़ुस्से से आपको बचना है। दुनिया का मामला हो या दीन का मामला हो, ग़ुस्से को मैनेज कीजिए।
‘यू हैव टू मैनेज योर एंगर‘
यह फ़ॉर्मूला है इस्लाम का। इसी में फ़लाह है। दावती ऐतबार से भी और दूसरे मामलात में भी।
इसके बाद मौलाना ने दुआ की और अपना लेक्चर ख़त्म कर दिया। मौलाना के लेक्चर को इंटरनेट के ज़रिये पूरी दुनिया में टेलीकास्ट किया जा रहा था।
हम कल (तारीख़ 15 जनवरी 2012 दिन इतवाद)मौलाना साहब से मिलने के लिए और उनका लेक्चर सुनने के लिए निज़ामुद्दीन , नई दिल्ली गए थे। हमारे साथ अनस ख़ान और डा. अयाज़ अहमद भी थे। अब उनके बायीं तरफ़ भाई रजत मल्होत्रा जी आकर बैठ गए। लोगों ने एक स्लिप पर अपने सवाल लिखकर पूछने शुरू कर दिए और रजत भाई की गोद में रखे हुए लैपटॉप दुनिया के अलग अलग मुल्कों से सवाल और कॉम्पलीमेंट्स आने लगे।
एक सवाल जिहाद के बारे में आया।
मौलाना ने कहा कि जिहाद के माअना कोशिश के हैं। किसी अच्छे काम के लिए पीसफ़ुल एक्टिविटी करना जिहाद है।
जिहाद का मतलब क़िताल (युद्ध) नहीं है। क़ुरआन में आया है कि ‘ व-जाहिद बिहिम जिहादन कबीरा‘ यानि ‘और इस (क़ुरआन) के ज़रिये से उनके साथ जिहाद ए कबीर करो।
क़ुरआन कोई हथियार नहीं है। क़ुरआन कोई तलवार या बम नहीं है।
इस बारे में आप हमारी दो किताबें देखें,
1. ट्रू जिहाद
2. प्रॉफ़ेट ऑफ़ पीस
मौलाना की किताब ‘प्रॉफ़ेट ऑफ़ पीस‘ को पेंग्विन ने पब्लिश किया है।

एक सवाल आया कि कुछ लोग फ़िक्री ताक़त को कम और असलहे की ताक़त को ज़्यादा समझते हैं। क्या यह सही है ?
मौलाना ने फ़रमाया कि यह ग़लत बात है। असलहे की ताक़त से बड़ी कामयाबी मिलने की कोई मिसाल तारीख़ (इतिहास) में नहीं है। रूस अफ़ग़ानिस्तान में और अमेरिका इराक़ में नाकाम हुआ।
पीसफ़ुल एक्टिविटी का तरीक़ा अख्तियार करना फ़िक्री ताक़त का इस्तेमाल करना है।
एक है पीसफ़ुल एक्टिविज़्म और दूसरा है वॉयलेंट एक्टिविज़्म।
1857 में आज़ादी के लिए वॉयलेंट एक्टिविटी की गई लेकिन आज़ादी नहीं मिली जबकि महात्मा गांधी ने 1947 में पीसफ़ुल एक्टिविटी की और आज़ादी मिल गई।
तशद्दुद (हिंसा) सें मक़सद हासिल नहीं होता बल्कि बात और बिगड़ जाती है।
फ़िक्र की ताक़त को इस्तेमाल करने का मतलब है नज़रिये की ताक़त को इस्तेमाल करना।

सैटेनिक वर्सेज़ के बारे में एक सवाल आया कि इस्लमी तारीख़ में इसका क्या मक़ाम है ?
मौलाना ने कहा कि इस्लामी तारीख़ में सैटेनिक वर्सेज़ का कोई मक़ाम ही नहीं है। ख़ुशवंत सिंह ने जब इसे पढ़ा था तो उन्होंने इसके प्लॉट को रद्दी क़रार दिया था। यह फ़ेल हो जाएगा लेकिन मुसलमानों ने इसे लेकर शोर मचाया तो इसकी ख़ूब सेल हुई।

जन्नत के बारे में किसी भाई ने नेट के ज़रिये दरयाफ़त किया कि मौलाना जन्नत पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?
मौलाना ने सूरा ए ताहा की 76 वीं आयत पढ़ी ‘व-ज़ालिका जज़ाऊ मन तज़क्का‘ यानि यह बदला है उस शख्स का जो पाकीज़गी (पवित्रता) अख्तियार करे।
जो अपने आपको पाक करता है। उसके लिए जन्नत है। जितनी भी नेगेटिव थिंकिंग्स हैं, उनसे ख़ुद को पाक करना है। नफ़रत, हसद और ग़ुस्से से ख़ुद को पाक करना है।

एक सवाल यह आया कि ‘डिवोटी ऑफ़ गॉड‘ बनने के लिए क्या करना चाहिए ?
मौलाना ने कहा कि गॉड की क्रिएशन में ग़ौरो-फ़िक्र करना चाहिए। क्रिएटर को आप अपनी आंखों से तो देख नहीं सकते। क्रिएटर तक पहुंचने का रास्ता उसकी क्रिएशन है। आप उसे उसकी क्रिएशन में पाते हैं।
‘गॉड अराइज़ेज़‘ मेरी किताब है। उसमें यही है। मैं पेड़ को देखता हूं तो मुझे यही अहसास होता है और जब मैं इंसान को देखता हूं तो मुझे यही अहसास होता है। चांद, सूरज और सितारे को, जिसको भी देखो तो यही अहसास होता है।

फूल और कांटे एक ही शाख़ पर हैं।
एक सवाल के जवाब में मौलाना ने फ़रमाया कि ज़िंदगी प्रॉब्लम्स से भरी हुई है लेकिन इसी के साथ उसमें अपॉरचुनिटीज़ भी होती हैं। फूल और कांटे एक ही शाख़ पर हैं।
‘इन्ना मअल उसरि युसरा‘ (क़ुरआन 94, 6) यानि ‘बेशक मुश्किल के साथ आसानी है‘
प्रॉब्लम को इग्नोर कीजिए और अपॉरचुनिटीज़ को गेन कीजिए।

इसके बाद सभी ने हल्का सा नाश्ता किया। इसके बाद इसी हॉल में हम सबने एक साथ ज़ुह्र की नमाज़ अदा की। मौलाना ज़कवान नदवी साहब ने नमाज़ में इमामत की।
नमाज़ से पहले हमने मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब से बात की और हमने मौलाना से अपने सिरों पर हाथ भी रखवाया और उनसे दुआ भी करवाई।
हमने मौलाना को अपनी डायरी दी और कुछ नसीहत लिखने के लिए कहा तो उन्होंने मौलाना ज़कवान नदवी साहब से हमारी डायरी पर यह लिखवाया-
‘दावत को अपना मिशन बनाइये और बक़िया तमाम चीज़ों को अपना प्रोफ़ेशन‘
इसके नीचे उन्होंने अपने हाथ अपने दस्तख़त कर दिये और ज़कवान साहब ने फिर तारीख़ लिखकर पता लिख दिया।
1 निज़ामुददीन वेस्ट मार्कीट, नई दिल्ली।

ज़कवान नदवी साहब, भाई रजत मल्होत्रा, भाई नवदीप कपूर, भाई साजिद अनवर और भाई नसीब साहब से भी मुलाक़ात हुई। हॉल से निकल कर हम मौलाना के बुक हाउस में आए और कुछ किताबें ख़रीदीं और फिर पास में बनी उनकी कोठी पर भी गए। निज़ामुददीन में सी- 29 उनकी कोठी है। क़ुरआन शरीफ़ के अंग्रेज़ी अनुवाद वह तोहफ़े के तौर पर देते हैं। उन्होंने हमें उनकी कुछ कॉपी दीं और ‘सत्य की खोज‘ और ‘रिएलिटी ऑफ़ लाइफ़‘ की भी कुछ कॉपियां दीं।
सत्य की खोज की एक कॉपी आज हमने अपने दोस्त वैद्य नरेश गिरी जी को दी।

सुबह ट्रेन से निकले थे। हम घर से सुबह पौने पांच बजे निकले थे और मौलाना के सेंटर पर हम तक़रीबन 12 बजे पहुंचे। हम वापस बस से लौटे तो हमें 9 बज गए। सर्दी में यह सफ़र वाक़ई एक मुश्किल सफ़र था लेकिन ख़ुदा की मुहब्बत और उसके बंदे को देखने के शौक़ ने इसे आसान बना दिया।
अनस ख़ान के लिए भी यह एक यादगार सफ़र था। दिल्ली उन्होंने पहली बार देखा है।
मौलाना पीस एंड स्प्रिच्युएलिटी के लिए काम कर रहे हैं और इसे उनके सेंटर पर पूरी तरह महसूस किया जा सकता है। मौलाना से जुड़े हुए औरत मर्द, सभी अलग अलग उम्र के हैं लेकिन सभी के चेहरे पर पीस साफ़ झलकती है।
मौलाना को सुनना, उनसे मिलना अपने आप में एक ऐसा तजर्बा है जिसे बस महसूस ही किया जा सकता है।

Tuesday, January 10, 2012

A reseaerch about human race

Source : हमारे पूर्वज

फोटो फ़ीचर : हमारे पूर्वज

होमो रूडोलफेनियस (20 लाख साल पूर्व)। क़ेन्या में मिले अ‍वशेषों के आधार पर ये मॉडल तैयार किया गया है।
PoorvazPoorvazPoorvazPoorvazPoorvazPoorvaz

Sunday, January 8, 2012

आदि मानव रोजाना बच्चों का मांस खाते थे. man eater

आदि मानव रोजाना बच्चों का मांस खाते थे. नई रिसर्च में यह सामने आया है.