Sunday, December 26, 2010

बंदर क्यों डरते हैं लंगूर से ? One nail drives out another

जनाब सतीश सक्सेना जी मेरे बड़े हैं और मैं उनका आदर करता हूँ और सम्मान भी थोड़ा नहीं करता बल्कि इस ब्लाग जगत में मेरी तरफ से यह अधिकार केवल उन्हीं के लिए रिजर्व है कि वे मुझे जो चाहे कह सकते हैं । अव्वल दिन से मैंने तय कर रखा है कि उनके कहे के बदले में मैं उन्हें कुछ न कहूंगा ।
यानि ऐसा कुछ भी न कहूंगा जो कि एक बुज़ुर्ग को नहीं कहा जाना चाहिए । हां , अगर कहीं उस सच्चे बादशाह की शान में कोई बदतमीज़ी की जाएगी जो कि एक है और सबका मालिक है तो फिर जरूर उन्हें टोका जाएगा लेकिन अदब के साथ या फिर वे किसी समस्या का ग़लत आकलन करके उसका समाधान भी ग़लत पेश करने लगें तो भी मजबूरन बताना ही पड़ेगा कि हुजूर आप बड़े हैं लेकिन आपसे यहाँ चूक हो रही है लेकिन अदब के साथ । न तो एक बड़े को आदर देने का मतलब यह है कि जिस देश और परिवेश में हम रहते हैं उसकी समस्याओं पर ध्यान न दिया जाए , उन्हें दूर करने पर विचार ही न किया जाए और न ही आदर देने का मतलब यह है कि बड़े को उसकी ग़लती भी न बताई जाए । उनके आदर में कमी लाए बिना उनके दावे और आरोप की ग़लती बताई जा सकती है। यह तब और भी ज़रूरी हो जाता है जबकि विषय देशवासियों के कल्याण से जुड़ा हो और मंच भी सार्वजनिक हो । ऐसे में लोगों को ग़लतफ़हमी का शिकार होकर ग़लती कर बैठने से बचाना एक अनिवार्य कर्तव्य बन जाता है ।
A- अपनी ताजा पोस्ट 'काँटे बबूल के' में , जनाब सतीश साहब , आपने मुझे संबोधित करते हुए कहा है कि मुझे दूसरों के धर्म में कमियां नहीं निकालनी चाहियें ऐसा करके मैं एक ग़लत परिपाटी डाल रहा हूं ।
जनाब सतीश जी, आपका यह भी दावा है कि आप ईमानदार हैं ।
अगर वाक़ई आप ईमानदार हैं तो आप बताएं कि क्या दूसरे के धर्म में कमियां निकालने की परिपाटी मैं डाल रहा हूं या मैं पहले से चली आ रही परिपाटी पर प्रहार करके उसे नष्ट कर रहा हूं ?
अगर वाक़ई आप ईमानदार हैं तो बताएं कि जब श्री अरविंद मिश्रा जी हिंदू धर्म की इसलाम से तुलना करके बताते हैं कि हिंदू धर्म में शराब तक पीने की इजाजत है और इसलाम में इस तरह की छूट नहीं है इसलिए इसलाम की तुलना में हिंदू धर्म अत्यंत महान है और इसलाम को सुधारा जाना चाहिए तब आपने मिश्रा जी को धार्मिक लंगूर कहने का साहस क्यों न किया ?
जो कि आपने मुझे बेहिचक कह दिया । क्या सिर्फ इसलिए कि वे बहरहाल एक हिंदू हैं और मैं एक मुस्लिम ?
या फिर इसलिए कि मुझे टिप्पणी देने वाले कम हैं और उन्हें ज्यादा ?
उन्हें नाराज करके आप टिप्पणीकारों को खुद से विमुख नहीं करना चाहते थे ?
मुझे तो आप कई बार कानून की धमकी भी दे चुके हैं लेकिन आपने मिश्रा जी को एक बार भी कानून की धमकी न दी , क्यों भला ?
एक ही जुर्म को करने वाले दो लोगों के साथ आपका बर्ताव अलग अलग क्यों है ?
क्या इसलिए कि दोनों का धर्म अलग है या इसलिए कि आपको दोनों की अमीरी के लेवल में अंतर दिखाई दे रहा है ?
और 'अपेक्षाकृत कमजोर आदमी' को आप आसानी से 'ग़लत' घोषित कर ही देते हैं क्योंकि आपको इसमें अपना कोई नुक़्सान दिखाई नहीं देता । क्या इसी का नाम ईमानदारी है ?
पुराने ब्लागर मिश्रा जी हैं या मैं ?
दूसरे के धर्म में कमी निकालने की परिपाटी मैं शुरू कर रहा हूँ या मुझसे पुराने ब्लागर पहले से ही दूसरों के धर्म में कमियां निकालते आ रहे हैं ?
और आप न सिर्फ चुपचाप देखते आ रहे हैं बल्कि उन्हें टिप्पणियाँ देकर पुष्ट भी करते आ रहे हैं ।
आप बताईये कि इसलाम में कमियां निकालने वालों के ब्लाग पर जाकर आपने कितनी बार अपनी नाराज़गी दिखाई ?
कितनी बार उन्हें क़ानून की धमकी दी और क्या फिर आपने उन्हें टिप्पणी देना बंद किया जैसा कि आप मेरे साथ करते आ रहे हैं ?
अगर आपने नहीं किया है तो फिर या तो आप कुछ लापरवाह और मूडी हैं या आप मुसलमान को जिस पैमाने से नापते हैं , हिंदुओं को भी उसी पैमाने से नापना ज़रूरी नहीं समझते ?
B- 'अमन के पैग़ाम' ब्लाग को उचित समर्थन नहीं मिल रहा है और खुद आपको भी उस ब्लाग पर 20 से भी कम टिप्पणियाँ मिलीं हैं ।
इसका ठीकरा भी आपने मेरे सिर पर फोड़ डाला कि मैं अमन के पैग़ाम पर टिप्पणी करता हूँ इसलिए अमन के पैग़ाम पर अच्छे लेखक को भी लोग उचित सम्मान नहीं दे पाए ।
क्या खूब विश्लेषण किया है ?
टिप्पणी तो मैं आपके और बहन दिव्या जी के ब्लाग पर भी करता हूँ और दोनों ही जगह मॉडरेशन भी लगा है। इसके बावजूद दोनों ही जगह अप्रूवल के बाद मेरी टिप्पणी प्रकाशित भी की जाती है । जिसका मतलब है कि ब्लाग स्वामी को मेरी टिप्पणी में कोई बात काबिले ऐतराज नज़र नहीं आई । मेरी टिप्पणियाँ दोनों ही ब्लाग पर छपीं और इसके बाद भी दोनों ही ब्लाग के लेखकों को लोगों ने बदस्तूर उचित सम्मान देना जारी रखा ।
अत: स्पष्ट है कि अगर लोग किसी लेखक को उचित सम्मान देना चाहें तो मेरी टिप्पणी उनके लिए बाधक नहीं बनती ।

D- इतिहास उन लोगों माफ नहीं करेगा जिन्होंने दोहरे पैमाने अपनाकर सच को सामने आने से रोका होगा और सच यह है कि सबका मालिक एक है । हर चीज उसी के हुक्म की पाबंद है और हरेक इंसान को भी उसके हुक्म की पाबंदी करनी चाहिए ।
देश और समाज का व्यापक हित इसी में है और जो न मानना चाहे और शराब पीकर नई रश्मियों के शबाब के नज़्ज़ारे करना चाहे या और आगे बढ़कर 'गे' बनना चाहे तो बने लेकिन इसलाम में कमी तो न निकाले कि किसी अनवर जमाल को बोलना पड़े ।
लंगूर कभी ख़ुद से नहीं आता । उसे वे लोग लेकर आते हैं जो बंदरों के आतंक से त्रस्त होते हैं और उनसे मुक्ति चाहते हैं । लंगूर जहां होता है । बंदर वहां से पलायन कर जाते हैं जैसा कि ब्लाग जगत में भी अब बंदरों की उछलकूद काफ़ी कम हो चुकी है ।
बंदर को पहचानना हो तो लंगूर को उसके सामने ले आओ, अगर डर कर भाग जाएं तो समझ लीजिए कि वह बंदर था।
एक लंगूर से हज़ारों बंदर डरते हैं ।
क्यों डरते हैं ?
कौन बताएगा ?

('हमारी वाणी' एग्रीगेटर का शुक्रिया कि उसने लोगों की टिप्पणियों की लालसा को कम कर दिया है। अब चिठ्ठाजगत नहीं है, यहाँ
कमेन्ट न करके कुछ और अच्छा पढ़कर अपने वक़्त का सही इस्तेमाल कर लें.)
जनाब सतीश जी का लेख जिसका जवाब मैंने यहाँ दिया है .

Sunday 26 December 2010


कांटे बबूल के -सतीश सक्सेना 

डॉ अनवर जमाल

आपके इस लेख में उठाये प्रश्न और मुझे लिखे पत्र  
"...मेरी नई पोस्ट देखेंऔर बताएं कि जनाब अरविन्द मिश्र की राय से आप कितना
सहमत हैं और इस पोस्ट में आप मुझे जिस रूप रंग में देख रहे हैं , क्या यह
बंद ज़हन की अलामत है ?"

के जवाब में अपना स्पष्टीकरण दे रहा हूँ ....
- आप से नाराजी की, मेरी वजह केवल एक मुद्दे को लेकर है, आपको हिन्दू धर्म के ऊपर अपनी राय और व्याख्या नहीं देनी चाहिए उससे हिन्दू आस्थावान पाठकों को बेहद तकलीफ होती है ! सम्मान पूर्वक भी, हमारी मान्यताओं की व्याख्या करते समय, यह नहीं भूलना चाहिए कि आप हिन्दू धर्म के प्रति आस्थावान नहीं है ! 
ऐसा करके आप मेरे विचार से गलत परिपाटी डाल रहे हैं, जिसका परिणाम यही होगा जिसकी आप शिकायत कर रहे हैं !
-डॉ अनवर जमाल का एक विशेष स्वरूप, हिंदी ब्लॉगजगत में स्थापित हो चूका है ! एस .एम. मासूम  के लेख पर जाकर आप की टिप्पणी का अर्थ, भी लोग अपने हिसाब से लगायेंगे और परिणाम उनके ब्लॉग पर बेहतरीन लेखकों के बावजूद, उस अच्छे काम को उचित सम्मान नहीं मिल पायेगा ! 
इसके अतिरिक्त हर पाठक के दिल में, लेखक का एक प्रभामंडल बन जाता है, टिप्पणियों को क्वालिटी और संख्या , अधिकतर इसी सम्मान पर निर्भर है !    
-आपने मुझ पर शक करके अपनी शक्की मानसिकता का परिचय दिया था उससे मैं बहुत घायल हुआ...यकीन करें मेरी कथनी करनी में फर्क नहीं है और मैं कोई काम किसी को प्रभावित करने के लिए कभी नहीं करता ! मेरे पास बेहतर लेखनी और ईमानदारी है , मैं चाहता तो उस वक्त ही स्पष्ट जवाब दे सकता था मगर मैंने यह उचित नहीं समझा और आपको एक वर्ग विशेष का प्रचारक मानते हुए अपने आपको उस लाइन से ही दूर हटा लिया ! 
-एक बात और, तीर छूटने के बाद, घायल से कोई नहीं कहता कि उसने बेवकूफी में  तीर चलाया ! मर्म बिंध जाने का असर आप मेरे लेखों में ढून्ढ सकते हैं, शायद आपको उस सतीश सक्सेना की जरूरत ही नहीं थी ! खैर , मुझे उसकी कोई शिकायत नहीं ...आपके अपने उद्देश्य हैं जिन्हें आप बेहतर जानते हैं !
  स्थापित लेखक और विद्वान् होने के कारण मैं आपसे तो बिलकुल ही उम्मीद नहीं करता कि आप मान जायेंगे ...बहरहाल लगी चोट,  घायल ही बेहतर जानता है, अनवर भाई ! हमें प्यार की समझ होनी चाहिए !
अगर कभी मेरी बात कभी सच लगे, तो अपने आप को व्यापक देश हित में, बदलने की कोशिश करें लोग आपको वही  प्यार और सम्मान देंगे जिसके लायक आप अपने को मानते हैं  !
योगेन्द्र मौदगिल की दो लाइने मुझे बहुत पसंद हैं ...
" मस्जिद की मीनारें बोलीं, मंदिर के कंगूरों से  !
मुमकिन हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से " 
सादर 
(कृपया इस लेख पर टिप्पणिया न दें  ...अपने सम्मानित पाठकों से क्षमायाचना सहित )

कुछ कमेंट्स जो इस लेख पर आये . 
DR. ANWER JAMAL said...
जब योगेन्द्र मौद्गिल जैसे लोगों को मज़हब में लंगूर नज़र आते हैं और आप जैसे लोगों को उनके विचार पसंद भी आने लगते हैं तो फिर अनवर जमाल को बताना पड़ता है कि लंगूर और बंदर मज़हब को मानने वालों में नहीं होते बल्कि उनमें होते हैं जो कि मज़हब को नहीं मानते । हां , उनके पास से भटक कर मज़हब वालों के पास भी लंगूर आ जाएं या बंदरों के आतंक से मुक्ति पाने और उन्हें डराने के लिए वे लंगूर पाल लें , ऐसा ज़रूर हो सकता है। आप ख़ुद भी देख सकते हैं कि बंदर और लंगूर मस्जिद की मीनारों पर नहीँ होते बल्कि मंदिर के फ़र्श से लेकर कलश तक पर, हर जगह होते हैं। झूठ मैं बोलता नहीं और सच लोगों को हज़्म होता नहीं। जो कोई भी जो कुछ लिखता है उसे केवल ब्लागर्स ही नहीं पढ़ते बल्कि वह मालिक स्वयं भी पढ़ता है । उस न्यायकारी अविनाशी परमेश्वर को साक्षी मानकर आदमी सन्मार्ग पर ख़ुद भी चले और दूसरों को भी सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे , मनुष्य का धर्म यही है और इसी को हिंदू धर्म कहा जाता है । मेरा विचार तो यही है । इसी में मेरी आस्था है और इसी के अनुसार मेरा कर्म भी है। यदि इसके अलावा हिंदू होने के लिए प्राचीन हिंदू ऋषियों की रीति कुछ और हो तो आप बताएं मैं उसे भी पूरा करूंगा, इंशा अल्लाह !
सतीश सक्सेना said...
@ डॉ अनवर जमाल , अफ़सोस है कि आपने मेरा लेख ध्यान से नहीं पढ़ा , मज़हब के लँगूर उन लोगों को कहा जाता है जो लोगों में नफरत फ़ैलाने का काम करते हैं !जो लोग अपने धर्म को छोड़ दूसरे धर्मों की कमियां, विनम्रता से भी बताएं मेरे विचार से वे इस देश के समाज के दोषी हैं ! खैर ... मैं समाज सुधारक नहीं हूँ न धार्मिक नेता अतः मैं यह बहस यहाँ नहीं छेड़ सकता , आप जो कर रहे हैं आप उसके जिम्मेवार खुद हैं ! आपने मेरी चर्चा की अतः यह जवाब देने को मजबूर था !
DR. ANWER JAMAL said...
जनाबे आली ! आप एक कवि हैं और कवि कुछ भी सोचने के लिए आजाद होता है । आपको मैं अपना बड़ा भी मानता हूँ और एक बड़ा अपने छोटे को कुछ भी कहने का पूरा राइट रखता है हमारे क़स्बाई समाज में। आप दूसरे धर्म में नम्रतापूर्वक कमियां निकालने वाले को लंगूर मानते हैं तब तो धृष्टतापूर्वक कमियां निकालने वालों को आप निश्चित ही भेड़िया मानते होंगे ? नाम मैं लूंगा नहीं क्योंकि ... ख़ैर , पूरा दिन गुज़र गया और ले देकर 4 टिप्पणियां ही नज़र आ रही हैं । उनमें भी 3 तो हम बड़े मियां छोटे मियां की ही हैं । ये हुआ तो क्या हुआ ? 'अमन के पैग़ाम' पर भी आपके साथ ऐसा न हुआ जो कि अब आपके निजी ब्लाग पर होता हुआ हर कोई देख रहा है । अब आपको कुछ नए विषय तलाशने होंगे ! अंत में आप मेरे निज अस्तित्व पर कितनी भी चोट करें मैं आपको कभी पलटकर जवाब न दूंगा । बड़ों की डांट डपट और गालियां छोटों को दुआएं बनकर लगते हुए मैं आए दिन देखता हूं । इसीलिए मेरे शब्दों में या मेरे लहजे में आपके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ सम्मान है , प्रेम है और कुछ भी नहीं । जीवन जा रहा है और मौत क़रीब से क़रीबतर आती जा रही है । जब हम मरकर उस लोक में इकठ्ठा होंगे जहां आप मेरी आत्मा के भाव को प्रकट देख सकेंगे तब आप यक़ीनन जान लेंगे कि दुनिया में आपसे मेरा प्रेम सच्चा था । एक संवेदनशील आदमी से इतनी आर्द्र विनती पर्याप्त मानी जानी चाहिए । एक यादगार और अनुपम पोस्ट ! कई कोण से !!
सतीश सक्सेना said...
अनवर भाई ... कृपया उपरोक्त पोस्ट दुबारा पढ़ें , वहां सबसे नीचे यह अनुरोध है कि इस पोस्ट पर टिप्पणियां न करें, अगर यह अनुरोध नहीं होता तो आज टिप्पणिया ५० से अधिक होतीं मगर मुझे एक दूसरे को भला बुरा कहने वाली टिप्पणियां यहाँ नहीं चाहिए और न अपनी वाहवाही बाली पोस्ट ! आपकी टिप्पणी प्रकाशित इसीलिए कर रहा हूँ कि विषय आप से ही सम्बंधित है ! मैं हर उस आदमी को बुरा मानता हूँ जो दूसरों की आस्था का मूल्यांकन करे, आपकी आलोचना और आपसे मेरी दूरी का कारण सिर्फ यही है ........ अगर वास्तव मझे अग्रज का दर्जा दे रहे हैं तो आज से हिन्दू धर्म के ऊपर कुछ भी न लिखें न अच्छा न आलोचनात्मक ...यह आपका विषय नहीं है ! जो इस्लाम में कमियां निकालने का प्रयत्न करे उसकी टिप्पणी अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर, यह अहसास कराने का कार्य न करे कि आप जुल्म का शिकार हैं ! कोई सच्चा और सही व्यक्ति दूसरे का मज़ाक नहीं उडाएगा यह कार्य वही करते हैं जो खुद दूषित हैं ! चाहे वह काम किसी भी धर्म के खलाफ क्यों न किया जाए ... आपके प्रेम पर शक नहीं है ! चिंता है आपके सोच की जिसको बदलने में मैं अपने आपको नाकाम मान रहा हूँ ! यह एक महान देश है अनवर भाई हम दोनों इसी जमीन में पैदा हुए और यही मिटटी में मिल जायेंगे ..इस मिटटी और यहाँ के नमक का ख़याल रखते हुए जो दायित्व हैं उन्हें हम दोनों को पूरा करना होगा ! क्षणिक कडवाहट भुलाने वाले और समाज हित में काम करने वालों को देश याद रखता है ! हर हालत में साथ रहकर जीना सीखना पड़ेगा ...अन्यथा इतिहास हरगिज़ माफ़ नहीं करेगा ...
एस.एम.मासूम said...
यहाँ जो बहस हो रही; है उसका कोई मतलब मुझे समझ मैं नहीं आता?आप ज़रा उनलोगों को देखें जिन्होंने लेख़ या कविता; भेजी; है "अमन का पैग़ाम" पे; वोह बड़े और समझदार ब्लोगेर्स हैं. और हकीकत मैं काबिल ए इज्ज़त और काबिल ए फख्र हैं और आप बहुत ध्यान दे देखें उसको पढने वाले और तारीफ करने वाले वोह भी हैं , जिन्होंने कुछ दिन पहले ही ब्लॉगजगत के धर्म युद्ध मैं बड़े बड़े किरदार अदा किये हैं. आज जब वही लोग; अमन और शांति का सन्देश देते हैं, तो किसी को; यह अमन के पैग़ाम की कामयाबी; नहीं लगती . क्यों?कोई तो कारण होगा की आज कुछ लोग अलग अलग बहाने से "अमन का पैग़ाम" के खिलाफ बोल रहे हैं. क्यों? शायद इसका जवाब मैं खुद तलाश रहा हूँ?क्यों की यह तो सत्य है की शांती सन्देश देना कम से कम किसी धर्म के खिलाफ बोलने से तो अच्छा ही है.जबकि यहाँ की बहस; यह बता रही है की दूसरे के धर्म पे व्यंग करना अमन के पैग़ाम देने बेहतर काम है.. मेरे नाम से संबोधित करके बात कही जा रही थी  इसी कारण मेरे लिए कुछ कहना आवश्यक हो गया... ज़रा यह पोस्ट पढ़ लें; शायद आप समझ जाएं..ग़लत कहा हो रहा है.. सतीश जी, किसी ब्लॉग पे टिप्पणी करने वालों की टिप्पणी का असर उस ब्लॉग पे भी; पड सकता है. मैं इस बात से सहमत नहीं. लेकिन इस बात की ख़ुशी; अवश्य हुई की आप ने; हकीकत बयान कर दी और यह बात भी साफ़ हो गयी की अमन के पैग़ाम पे बेहतरीन; लेख़ , कविताओं और ब्लोगेर्स के सहयोह के बाद भी, लोग क्यों नहीं आ रहे?सतीश जी मज़हब के लँगूर उन लोगों को कहा जाता है जो लोगों में नफरत फ़ैलाने का काम करते हैं यह बात सही हैं., लेकिन यह लंगूर सभी धर्म मैं मौजूद हैं. शायद आप इस बात से सहमत होंगे..अमन का पैग़ाम ऐसे ही लंगूरों के को इंसान बनाने के लिए आया है..और ऐसे ही लंगूरों की साजिशों का शिकार भी हो रहा है..सतीश जी यदि मैं ऐसा ब्लोगर भी दिखा सकता हूँ; जिसने दूसरे धर्म का मज़ाक उदय; है अपने ब्लॉग से लेकिन आप की ही नज़र मैं नहीं आ पाया और आप उसकी हिमायत कर गए तो? यह इस लिए कह रहा हूँ क्यों की आप की नज़र मैं आ जाता तो आज आप उसके खिलाफ भी कुछ कह रहे होते ऐसी मुझे आशा है.वैसे एक बात कहता चलूँ कोई व्यक्ति; ज़िंदगी के हर दौर मैं एक जैसा; नहीं रहता. इस लिए जब कोई शांति की बात करे तो उसका साथ दो और जब वही नफरत की बात करे तो उसके खिलाफ बोलो.. क्यों की नफरत व्यक्ति से नहीं उसकी बुराईयों; से की जाती है.. मैं हमेशा कहता हूँ यह ना देखो कौन कर रहा है बल्कि यह देखो क्या कह रहा है..यह लेख़ भी पढ़ लें जो बहुत कुछ कह रहा है..और वहां यह भी बता दें आप के क्या विचार हैं...
सतीश सक्सेना said...
मुझे जो कहना था इस लेख में स्पष्ट कर चुका हूँ ... इसका अर्थ सामान्य है और कोई भी व्यक्ति समझ सकता है बार बार स्पष्टीकरण देना मैं उचित नहीं समझता ! जो समझना ही न चाहें उन्हें समझाने की कोशिश सिर्फ बेवकूफी ही होगी ! आप दोनों को आदर सहित !

5 comments:

Sharif Khan said...

ब्लॉगिंग बुद्धिजीवियों का एक साफ़ सुथरा विचार मन्च है परन्तु इसमें भी साफ़ और निष्पक्ष विचार रखने वालों तक को ओछी मानसिकता वाले महापुरुषों के उलाहने झेलने पड़ जाते हैं। इस सब के बावजूद हमको सच बात कहने में तनिक भी झिझक नहीं होनी चाहिए और साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि हमारी लेखनी किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए।

एस एम् मासूम said...

हम इंसान हैं यही हमारे लिए महत्वपूर्ण है..…वीणा श्रीवास्तव
अपने 'स्व' की मद में डूबा इन्सान सूक्तियां बोलता है..रश्मि प्रभा...एक अनुरोध है सभी ब्लोगर भाइयों से
अजब ब्लॉगजगत की गजब कहानी भाग -२ टिप्पणी ब्लोगर समूह

Ayaz ahmad said...

अनवर भाई आपको देखकर अच्छे अच्छे भाग खड़े हुए । सतीश सक्सेना जी ने क्या खूब मिसाल दी और आपको सही पहचान भी लिया कि यही वह ब्लागपुरुष है जो ब्लागजगत का सही उद्धार कर सकते हैं । लेकिन अभी तक जो लोग आपकी बहूआयामी प्रतिभा से पूरी तरह परिचित नही हुए है वह भी आपको अब पहचान रहें हैं ।

Satish Saxena said...


मैं ऐसे किसी भी व्यक्ति को सही नहीं मानता जो इस्लाम की बुराई करे....

रह गया सवाल आपके सम्मान का तो मैं आपसे कम नहीं करता ...

निस्संदेह आप इस्लाम के लिए एक नेक काम कर रहे हैं मगर मत भिन्नता केवल एक जगह है कि जिस धर्म के आप मानाने वाले नहीं हैं उस पर कुछ न कहें !

हर हाल में हमें दूसरों का सम्मान सीखना होगा क्योंकि धर्म सब अच्छे होते हैं बस उनकी व्याख्या अधर्मियों द्वारा नहीं होनी चाहिए !
सादर

Anonymous said...

जमाल का एक विशेष स्वरूप, हिंदी ब्लॉगजगत में स्थापित हो चूका है !..सतीश सक्सेना

बी.न.शर्मा का कौन सा रूप हिंदी ब्लॉगजगत में स्थापित हो चूका है !? यह नहीं बताता कोई?

सतीश क्या बी.न.शर्मा के के ब्लॉग पे जाने वालों की पीठ थपथपाना तुमने बंद किया?