From: ish vani <eshvani@gmail.com>
Date: Sat, 11 Dec 2010 07:39:45 +0530
Subject: @
To: eshvani.eshvani@gmail.com
@ उर्दू शायरी ! ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया !
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1- http://vedquran.blogspot.com/2010/07/way-for-mankind-anwer-jamal.html
ईश्वर एक है और उसने मानवता को सदा एक ही धर्म की शिक्षा दी है। मानव का धर्म है मानवता । मानवता के लिए ईश्वर के धार्मिक अनुशासन को धारण करना ज़रूरी है । आज आदमी किसी भी अनुशासन को मानने के लिए तैयार नहीं है , न तो ईश्वर के अनुशासन को और न ही उस अनुशासन को जिसके नियम उसने खुद बनाए हैं अपने लिए ।
किसी भी अनुशासन को न मानने का मतलब है अराजकता । आज हर तरफ़ अराजकता है ।
ख़ुदा के बंदो , ख़ुदा के फ़रमान को नहीं मानते तो कम से कम उन बातों को तो मानो , जिन्हें मानना तुम खुद भी ज़रूरी मानते हो ।
अगर तुम उन्हें मान लोगे तो तुम्हारे जीवन से बहुत से दुख दूर हो जाएंगे ।
सच के एक अंश को मानना तुम्हें तैयार करेगा पूरे सच को मानने के लिए ।
आज का इंसान इसलिए दुखी नहीं है कि वह दुख की वजह नहीं जानता बल्कि वह इसलिए दुखी है कि वह किसी भी विधि और अनुशासन का पालन करना नहीं चाहता ।
परलोक में मिलने वाले अच्छे-बुरे परिणाम की धारणा को वहम क़रार देने वाले बुद्धिजीवियों ने मनुष्य को उस शक्तिशाली प्रेरणा को ही नष्ट कर डाला है जो उसे कष्ट उठाकर भी अनुशासित रहने के लिए प्रेरित किया करती थी ।
गुमराह बुद्धिजीवियों ने मानवता को न केवल तबाही के गड्ढे में धकेला है बल्कि वह उससे निकल न सके वे इसके लिए भी कटिबद्ध हैं , अपनी ग़लती और अपराध को न मानकर।
'न तो हरेक विचार शुभ औरकल्याणकारी है और न ही हरेक रास्ता इंसान को उसकी मंज़िल पहुंचा सकता है ।'
जो इस बात को जानता है , वास्तव में वही जानता है कि वह कौन सा मार्ग है जिसके पालन को ईश्वर ने मनुष्य का धर्म निश्चित किया है , सनातन काल से ।
11 comments:
ईश्वर एक है और उसने मानवता को सदा एक ही धर्म की शिक्षा दी है।
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सही कहा है ..धर्म एक है मज़हब अलग अलग हैं .
@ जनाब मासूम साहब ! आज मैं अपने ब्लॉग की सैटिंग में जाकर ईमेल के ऑप्शंस को बरत कर देख रहा था कि देखें क्या होता है ?
कमेंट होता है या पोस्ट होती है ?
देखा तो डायरेक्ट पोस्ट हो गई ।
वैरी गुड , अच्छा लगा आज कुछ नया सीखकर ।
उर्दू शायरी के साथ आपका भी शुक्रिया ।
नई पोस्ट लायें तो लिंक यहीं चिपका दीजिएगा ।
हम अकेले ही नहीं प्यार के दीवाने सनम
आप भी नज़रें झुकाने की अदा भूल गए
अब तो सोचा है दामन ही तेरा थामेंगे
हाथ जब हमने उठाए हैं दुआ भूल गए
फ़ारूख़ क़ैसर की एक ग़ज़ल , जो दिल को छूते हुए आत्मा में जा समाती है ।
आज का इंसान इसलिए दुखी नहीं है कि वह दुख की वजह नहीं जानता बल्कि वह इसलिए दुखी है कि वह किसी भी विधि और अनुशासन का पालन करना नहीं चाहता ।
bilkul sahi kaha aapne
ईश्वर एक है
पूर्णत: सहमत।
@ Thakur sahab ! शुक्रिया !
@ भास्कर भाई हमारे
बड़े दिन बाद पधारे !
@ परमजीत सिंह बाली जी ! आपकी स्वागत है और आपकी सहमति का भी !
धन्यवाद !
अमन तो अपने आप में खुद एक नियामत है ..खुद ही एक पैगाम है
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