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Friday, December 10, 2010

Fwd: @ अनुशासन , मेरा पहला तजर्बा ईमेल से पोस्ट करने का

---------- Forwarded message ----------
From: ish vani <eshvani@gmail.com>
Date: Sat, 11 Dec 2010 07:39:45 +0530
Subject: @
To: eshvani.eshvani@gmail.com

@ उर्दू शायरी ! ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया !

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1- http://vedquran.blogspot.com/2010/07/way-for-mankind-anwer-jamal.html
ईश्वर एक है और उसने मानवता को सदा एक ही धर्म की शिक्षा दी है। मानव का धर्म है मानवता । मानवता के लिए ईश्वर के धार्मिक अनुशासन को धारण करना ज़रूरी है । आज आदमी किसी भी अनुशासन को मानने के लिए तैयार नहीं है , न तो ईश्वर के अनुशासन को और न ही उस अनुशासन को जिसके नियम उसने खुद बनाए हैं अपने लिए ।
किसी भी अनुशासन को न मानने का मतलब है अराजकता । आज हर तरफ़ अराजकता है ।
ख़ुदा के बंदो , ख़ुदा के फ़रमान को नहीं मानते तो कम से कम उन बातों को तो मानो , जिन्हें मानना तुम खुद भी ज़रूरी मानते हो ।

अगर तुम उन्हें मान लोगे तो तुम्हारे जीवन से बहुत से दुख दूर हो जाएंगे ।
सच के एक अंश को मानना तुम्हें तैयार करेगा पूरे सच को मानने के लिए ।

आज का इंसान इसलिए दुखी नहीं है कि वह दुख की वजह नहीं जानता बल्कि वह इसलिए दुखी है कि वह किसी भी विधि और अनुशासन का पालन करना नहीं चाहता ।

परलोक में मिलने वाले अच्छे-बुरे परिणाम की धारणा को वहम क़रार देने वाले बुद्धिजीवियों ने मनुष्य को उस शक्तिशाली प्रेरणा को ही नष्ट कर डाला है जो उसे कष्ट उठाकर भी अनुशासित रहने के लिए प्रेरित किया करती थी ।

गुमराह बुद्धिजीवियों ने मानवता को न केवल तबाही के गड्ढे में धकेला है बल्कि वह उससे निकल न सके वे इसके लिए भी कटिबद्ध हैं , अपनी ग़लती और अपराध को न मानकर।

'न तो हरेक विचार शुभ औरकल्याणकारी है और न ही हरेक रास्ता इंसान को उसकी मंज़िल पहुंचा सकता है ।'
जो इस बात को जानता है , वास्तव में वही जानता है कि वह कौन सा मार्ग है जिसके पालन को ईश्वर ने मनुष्य का धर्म निश्चित किया है , सनातन काल से ।