क्या इसे ‘वर्चुअल कम्युनलिज़्म‘ कहा जा सकता है ?
इस लेख पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने अपनी पसंद और नापसंद का ज़िक्र किया है और कहा है कि-
हमारे साथ मुश्किल यह है कि हम हिन्दू मुसलमान ,ईमान और कुरआन ,अल्लाह और भगवान् के ऊपर जा ही नहीं पा रहे हैं -दिन रात यही सब...मैं तो तंग और क्लांत हो चला हूँ ,जैसे दुनिया में और कोई मुद्दे,मसायल नहीं हैं ! कुएं से बाहर निकलिए मित्र -ज़रा खिडकियों को खोलिए ,ताजे हवा के झोके और नयी रश्मियों का भी नजारा तो कीजिये -खुदा कसम बड़ा मजा आयेगा!ये दिन रात के स्वच्छ संदेशों और पैगामों की चिल्ल पों बंद कीजिये दोस्त -
ज़ाहिर है कि उन्होंने हम कहकर संबोधित को मेरे साथ ख़ुद को भी संबोधित किया है लेकिन दरअस्ल यह बड़े लोगों का एक स्टाइल होता है दूसरों को समझाने का। वे ख़ुद तो इन सब बातों से ऊपर उठ ही चुके होंगे और उनके दिमाग़ की खिड़कियां भी खुली ही होंगी। अब रही मेरी बात तो आप अगर मुझे ‘हज के बारे में‘ बताते हुए देखेंगे तो कहीं ‘यज्ञ करने वालों के दरम्यान‘ बैठा पाएंगे। आप मुझे एक जगह ‘चर्च में केक काटते हुए‘ देखेंगे तो दूसरी जगह ‘देश अखंडता के लिए जान देने वालों के साथ‘ खड़ा हुआ पाएंगे।
क्या मेरे व्यक्तित्व में इतने डिफ़रेंट शेड्स और इतनी उदारता देखने के बावजूद भी यह कहना ज़्यादती नहीं है कि मेरे दिमाग़ की खिड़कियां बंद हैं या मैं दूसरे मसायल से नावाक़िफ़ हूं ?
या मेरे बारे में भी यह राय महज़ इसलिए बना ली जाती है कि मैं एक मुसलमान हूं ?
क्या अपने ज़हन के खुलेपन को दिखाने के लिए मैं फ़िल्मी कलाकारों में शामिल हो जाऊं ?
लेकिन अगर मैं ऐसा कर लूं तो क्या तब आप लोग यह मान लेंगे कि अनवर जमाल के ज़हन की खिड़कियां खुली हुई हैं ?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि अनवर जमाल के दिमाग़ की खिड़कियां भी खुली हों और आपके लिए उसके दिल के दरवाज़े भी लेकिन ख़ुद आपकी ही खिड़कियां दरवाज़े बंद हों ? (माफ़ी के साथ अर्ज़ है)
...तो लीजिए हम अब आपकी मान्यता पाने की ख़ातिर यह भी करेंगे।
... और लीजिए, देखिए अनवर जमाल को एक टी.वी. और फ़िल्मी कलाकार के रूप में-
यह सीरियल कारपेट मेकर्स की समस्याओं को दिखाता है कि कैसे बिचैलिए दलाल उनका एक्सप्लायटेशन करते हैं। नासिर हुसैन एक बूढ़े कारोबारी हैं और नूर उनकी पोती है। सुलेमान एक दलाल है और ...
यानि कि एक पूरी कहानी है जिसे फिर कभी सुनाया जाएगा। फ़िलहाल तो महज़ यह दिखाना था कि अनवर जमाल के व्यक्तित्व का एक रंग यह भी है कि वह ग्लैमर वल्र्ड का भी हिस्सा है।
अनवर जमाल बहुआयामी प्रतिभा का धनी होने के बावजूद अपने मुसलमान होने की क़ीमत अदा कर रहा है। उसे मिलने वाली टिप्पणियों को देखकर यह जाना जा सकता है।
वर्तमान पोस्ट पर आपकी टिप्पणियों सादर आमंत्रित हैं।
यह पोस्ट जनाब अरविंद मिश्रा के विचारार्थ सार्वजनिक की जाती है।
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आपका भाई अनवर जमाल, एक कलाकार के रूप में मेकअप कराते हुए |
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मुहूर्त शाट के समय प्रोड्यूसर संजेश आहूजा |
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डी.डी. कश्मीर के लिए बने सीरियल ‘द कारपेट मेकर‘ के उद्घाटन के अवसर पर यूनिट के सदस्य |
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शूटिंग करते हुए कलाकार |
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आपका भाई अनवर जमाल |
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सीमा और अंजलि मां बेटी के रोल में |
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नासिर हुसैन के रोल में श्रीपाल चौधरी |
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एक ज़ख्मी के रूप में नूर बनी हुई अंजलि |
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सीरियल के डायरेक्टर रंजन शाह विलेन सुलेमान के रोल में |