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Saturday, December 25, 2010

अनवर जमाल एक और रूप अनेक Shades of the sun

जनाब अरविंद मिश्रा जी ब्लाग जगत के बिग ब्लागर्स में से एक हैं, बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, गुणी हैं और बहुत थोड़ा सा वक्त मैंने उनके साथ गुज़ारा है लेकिन जितना भी गुज़ारा है या ख़ुद ब ख़ुद गुज़रा है, यादगार गुज़रा है। न मैं उन्हें कभी भुला पाऊंगा और शायद न ही वे मुझे। एक लंबे अर्से के बाद आज वे फिर मुझसे मुख़ातिब हुए हैं और मुझे उर्दू और हिंदी दोनों ज़ुबानों में ‘मित्र और दोस्त‘ भी कहा है तो यह हवा के एक ऐसे ख़ुशगवार झोंके की मानिंद है जो किसी चमेली और रात की रानी को छूकर आ रहा हो। बड़े वे हैं ही तो उनके कुछ कहने का अर्थ भी बड़ा ही होना चाहिए। जनाब मिश्रा जी फ़िरक़ापरस्तों को मुंह पर ही फ़िरक़ापरस्त कहने का हौसला रखते हैं। मैंने लखनऊ ब्लागर्स एसोसिएशन के कम्यूनिटी ब्लाग पर यह सवाल पूछा था कि जब ‘अपने महबूब की हर शै से प्यार होता है तो फिर ऐसा क्यों है कि सीता माता से प्यार है लेकिन उनकी ज़मीन से और उस पर आबाद लोगों से प्यार नहीं है। उन्हें ग़रीबी की वजह से अपने से हल्का और तुच्छ क्यों माना जाता है ?
और यही बर्ताव मुसलमानों के साथ क्यों है कि मुस्लिम पीरों के मज़ारों का तो सम्मान किया जा रहा है और उन्हीं मज़ारों का सम्मान करने वाले मुसलमानों की उपेक्षा की जा रही है। पीरों से अपने कामों में मदद मांगने वाले ख़ुद मुसलमानों की मदद करने के लिए क्यों तैयार नहीं हैं ?
क्या इसे ‘वर्चुअल कम्युनलिज़्म‘ कहा जा सकता है ?
इस लेख पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने अपनी पसंद और नापसंद का ज़िक्र किया है और कहा है कि-
हमारे साथ मुश्किल यह है कि हम हिन्दू मुसलमान ,ईमान और कुरआन ,अल्लाह और भगवान् के ऊपर जा ही नहीं पा रहे हैं -दिन रात यही सब...मैं तो तंग और क्लांत हो चला हूँ ,जैसे दुनिया में और कोई मुद्दे,मसायल नहीं हैं ! कुएं से बाहर निकलिए मित्र -ज़रा खिडकियों को खोलिए ,ताजे हवा के झोके और नयी रश्मियों का भी नजारा तो कीजिये -खुदा कसम बड़ा मजा आयेगा!ये दिन रात के स्वच्छ संदेशों और पैगामों की चिल्ल पों बंद कीजिये दोस्त -

ज़ाहिर है कि उन्होंने हम कहकर संबोधित को मेरे साथ ख़ुद को भी संबोधित किया है लेकिन दरअस्ल यह बड़े लोगों का एक स्टाइल होता है दूसरों को समझाने का। वे ख़ुद तो इन सब बातों से ऊपर उठ ही चुके होंगे और उनके दिमाग़ की खिड़कियां भी खुली ही होंगी। अब रही मेरी बात तो आप अगर मुझे ‘हज के बारे में‘ बताते हुए देखेंगे तो कहीं ‘यज्ञ करने वालों के दरम्यान‘ बैठा पाएंगे। आप मुझे एक जगह ‘चर्च में केक काटते हुए‘ देखेंगे तो दूसरी जगह ‘देश अखंडता के लिए जान देने वालों के साथ‘ खड़ा हुआ पाएंगे।
क्या मेरे व्यक्तित्व में   इतने डिफ़रेंट शेड्स और इतनी उदारता देखने के बावजूद भी यह कहना ज़्यादती नहीं है कि मेरे दिमाग़ की खिड़कियां बंद हैं या मैं दूसरे मसायल से नावाक़िफ़ हूं ?
या मेरे बारे में भी यह राय महज़ इसलिए बना ली जाती है कि मैं एक मुसलमान हूं ?
क्या अपने ज़हन के खुलेपन को दिखाने के लिए मैं फ़िल्मी कलाकारों में शामिल हो जाऊं ?
लेकिन अगर मैं ऐसा कर लूं तो क्या तब आप लोग यह मान लेंगे कि अनवर जमाल के ज़हन की खिड़कियां खुली हुई हैं ?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि अनवर जमाल के दिमाग़ की खिड़कियां भी खुली हों और आपके लिए उसके दिल के दरवाज़े भी लेकिन ख़ुद आपकी ही खिड़कियां दरवाज़े बंद हों ? (माफ़ी के साथ अर्ज़ है)
...तो लीजिए हम अब आपकी मान्यता पाने की ख़ातिर यह भी करेंगे।
... और लीजिए, देखिए अनवर जमाल को एक टी.वी. और फ़िल्मी कलाकार के रूप में-
यह सीरियल कारपेट मेकर्स की समस्याओं को दिखाता है कि कैसे बिचैलिए दलाल उनका एक्सप्लायटेशन करते हैं। नासिर हुसैन एक बूढ़े कारोबारी हैं और नूर उनकी पोती है। सुलेमान एक दलाल है और ...
यानि कि एक पूरी कहानी है जिसे फिर कभी सुनाया जाएगा। फ़िलहाल तो महज़ यह दिखाना था कि अनवर जमाल के व्यक्तित्व का एक रंग यह भी है कि वह ग्लैमर वल्र्ड का भी हिस्सा है।
अनवर जमाल बहुआयामी प्रतिभा का धनी होने के बावजूद अपने मुसलमान होने की क़ीमत अदा कर रहा है। उसे मिलने वाली टिप्पणियों को देखकर यह जाना जा सकता है।
वर्तमान पोस्ट पर आपकी टिप्पणियों सादर आमंत्रित हैं।
यह पोस्ट जनाब अरविंद मिश्रा के विचारार्थ सार्वजनिक की जाती है।
आपका भाई अनवर जमाल, एक कलाकार के रूप में मेकअप कराते हुए
मुहूर्त शाट के समय प्रोड्यूसर संजेश आहूजा
डी.डी. कश्मीर के लिए बने सीरियल 
‘द कारपेट मेकर‘ के उद्घाटन के अवसर पर 
यूनिट के सदस्य
शूटिंग करते हुए कलाकार
आपका भाई अनवर जमाल
सीमा और अंजलि मां बेटी के रोल में
नासिर हुसैन के रोल में श्रीपाल चौधरी

एक ज़ख्मी के रूप में नूर बनी हुई अंजलि

सीरियल के डायरेक्टर
रंजन शाह विलेन सुलेमान के रोल में

Friday, December 10, 2010

Fwd: @ अनुशासन , मेरा पहला तजर्बा ईमेल से पोस्ट करने का

---------- Forwarded message ----------
From: ish vani <eshvani@gmail.com>
Date: Sat, 11 Dec 2010 07:39:45 +0530
Subject: @
To: eshvani.eshvani@gmail.com

@ उर्दू शायरी ! ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया !

--
1- http://vedquran.blogspot.com/2010/07/way-for-mankind-anwer-jamal.html
ईश्वर एक है और उसने मानवता को सदा एक ही धर्म की शिक्षा दी है। मानव का धर्म है मानवता । मानवता के लिए ईश्वर के धार्मिक अनुशासन को धारण करना ज़रूरी है । आज आदमी किसी भी अनुशासन को मानने के लिए तैयार नहीं है , न तो ईश्वर के अनुशासन को और न ही उस अनुशासन को जिसके नियम उसने खुद बनाए हैं अपने लिए ।
किसी भी अनुशासन को न मानने का मतलब है अराजकता । आज हर तरफ़ अराजकता है ।
ख़ुदा के बंदो , ख़ुदा के फ़रमान को नहीं मानते तो कम से कम उन बातों को तो मानो , जिन्हें मानना तुम खुद भी ज़रूरी मानते हो ।

अगर तुम उन्हें मान लोगे तो तुम्हारे जीवन से बहुत से दुख दूर हो जाएंगे ।
सच के एक अंश को मानना तुम्हें तैयार करेगा पूरे सच को मानने के लिए ।

आज का इंसान इसलिए दुखी नहीं है कि वह दुख की वजह नहीं जानता बल्कि वह इसलिए दुखी है कि वह किसी भी विधि और अनुशासन का पालन करना नहीं चाहता ।

परलोक में मिलने वाले अच्छे-बुरे परिणाम की धारणा को वहम क़रार देने वाले बुद्धिजीवियों ने मनुष्य को उस शक्तिशाली प्रेरणा को ही नष्ट कर डाला है जो उसे कष्ट उठाकर भी अनुशासित रहने के लिए प्रेरित किया करती थी ।

गुमराह बुद्धिजीवियों ने मानवता को न केवल तबाही के गड्ढे में धकेला है बल्कि वह उससे निकल न सके वे इसके लिए भी कटिबद्ध हैं , अपनी ग़लती और अपराध को न मानकर।

'न तो हरेक विचार शुभ औरकल्याणकारी है और न ही हरेक रास्ता इंसान को उसकी मंज़िल पहुंचा सकता है ।'
जो इस बात को जानता है , वास्तव में वही जानता है कि वह कौन सा मार्ग है जिसके पालन को ईश्वर ने मनुष्य का धर्म निश्चित किया है , सनातन काल से ।

Friday, December 3, 2010

Prejudice मेरे बारे में बदगुमानियों के पीछे एक बड़ी वजह आपकी ज़हनियत भी है। क्या आप इसे स्वीकार करते हैं ?

बहन अपर्णा "पलाश" बेवजह मुझ से बदगुमान क्यों ?
मैं अब तक तक़रीबन 200 से ज़्यादा लेख लिख चुका हूं और कमेंट्स की तादाद याद नहीं है और न ही अब उन्हें काउंट किया जा सकता है। इन सबमें मैंने यही लिखा है कि ईश्वर एक है और उसका धर्म भी एक ही है। जो लोग ऐसा नहीं मानते, उन्होंने मुझ पर ऐतराज़ किए। मैंने उनके ऐतराज़ का खोखलापन साबित कर दिया, दलील से। तब उन्होंने मेरी नीयत पर शक ज़ाहिर किया। कहते हैं कि शक का इलाज हकीम लुक़मान के पास भी नहीं था। हां, तब नहीं था लेकिन अब है। कैसे है और किसके पास है, यह एक मुकम्मल और अलहदा पोस्ट का विषय है।
ख़ैर, शक और बदगुमानी अगर ज़हन में लेकर आप किसी लेख को पढ़ते हैं तो यह लेख और लेखक दोनों के साथ अन्याय करना है।
बहन पलाश ने मेरे साथ ऐसा ही अन्याय किया है। आप खुद देख सकते हैं। नीचे आप लिंक पर जाकर पहले मेरा लेख देखिए और फिर उनकी टिप्पणी और फिर मेरा जवाब जो मैंने उन्हें दिया है।
मेरे बारे में बदगुमानियों के पीछे एक बड़ी वजह आपकी ज़हनियत भी है।
क्या आप इसे स्वीकार करते हैं ?

ईश्वर का ही नाम अल्लाह है .


[000_0074.jpg]
अपर्णा "पलाश" said...
आप जिस उपनिषद की बात कर रहे है , कृपया उसके रचयिता का नम भी बता दीजिये ।
और रही बात ईशवर और अल्लाह के अलग होने की , तो हो सकता है आप ने दोनो को साक्षात अलग अलग देखा हो , और यह आपका परम सौभाग्य रहा होगा ।
हो सकता है । आपका प्रयास सफल हो हम तो यही दुआ करते है । आप अपने जीवन में अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने में सफल हो जायें क्योकिं हमे तो इसकी तनिक भी जरूरत नही। हम सूरज को आइना नही दिखाते । क्या नवीन है और क्या पुरातन शायद यह जानने के लिये आपको अभी और अध्धययन की आवश्यकता है ।

November 24, 2010 8:13 PM
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मेरा जवाब जो मैंने उन्हें दिया है
@ सिस्टर पलाश ! मैंने कहाँ लिखा है कि अल्लाह और ईश्वर दो हैं ?
इसका मतलब यह हुआ कि आपने पोस्ट को ध्यान से नहीं पढ़ा है .
कृपया दोबारा पढ़ें .
किसी तत्वपूर्ण लेख पर केवल सरसरी नज़र डालकर टिपण्णी कर देना लेख और लेखक के साथ अन्याय करना भी है
और खुद को नादान ज़ाहिर करना भी , और आप ऐसी नहीं हैं .
प्लीज़ लेख दोबारा पढ़ें .