जनाब अरविंद मिश्रा जी ब्लाग जगत के बिग ब्लागर्स में से एक हैं, बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, गुणी हैं और बहुत थोड़ा सा वक्त मैंने उनके साथ गुज़ारा है लेकिन जितना भी गुज़ारा है या ख़ुद ब ख़ुद गुज़रा है, यादगार गुज़रा है। न मैं उन्हें कभी भुला पाऊंगा और शायद न ही वे मुझे। एक लंबे अर्से के बाद आज वे फिर मुझसे मुख़ातिब हुए हैं और मुझे उर्दू और हिंदी दोनों ज़ुबानों में ‘मित्र और दोस्त‘ भी कहा है तो यह हवा के एक ऐसे ख़ुशगवार झोंके की मानिंद है जो किसी चमेली और रात की रानी को छूकर आ रहा हो। बड़े वे हैं ही तो उनके कुछ कहने का अर्थ भी बड़ा ही होना चाहिए। जनाब मिश्रा जी फ़िरक़ापरस्तों को मुंह पर ही फ़िरक़ापरस्त कहने का हौसला रखते हैं। मैंने लखनऊ ब्लागर्स एसोसिएशन के कम्यूनिटी ब्लाग पर यह सवाल पूछा था कि जब ‘अपने महबूब की हर शै से प्यार होता है तो फिर ऐसा क्यों है कि सीता माता से प्यार है लेकिन उनकी ज़मीन से और उस पर आबाद लोगों से प्यार नहीं है। उन्हें ग़रीबी की वजह से अपने से हल्का और तुच्छ क्यों माना जाता है ?
और यही बर्ताव मुसलमानों के साथ क्यों है कि मुस्लिम पीरों के मज़ारों का तो सम्मान किया जा रहा है और उन्हीं मज़ारों का सम्मान करने वाले मुसलमानों की उपेक्षा की जा रही है। पीरों से अपने कामों में मदद मांगने वाले ख़ुद मुसलमानों की मदद करने के लिए क्यों तैयार नहीं हैं ?क्या इसे ‘वर्चुअल कम्युनलिज़्म‘ कहा जा सकता है ?
इस लेख पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने अपनी पसंद और नापसंद का ज़िक्र किया है और कहा है कि-
हमारे साथ मुश्किल यह है कि हम हिन्दू मुसलमान ,ईमान और कुरआन ,अल्लाह और भगवान् के ऊपर जा ही नहीं पा रहे हैं -दिन रात यही सब...मैं तो तंग और क्लांत हो चला हूँ ,जैसे दुनिया में और कोई मुद्दे,मसायल नहीं हैं ! कुएं से बाहर निकलिए मित्र -ज़रा खिडकियों को खोलिए ,ताजे हवा के झोके और नयी रश्मियों का भी नजारा तो कीजिये -खुदा कसम बड़ा मजा आयेगा!ये दिन रात के स्वच्छ संदेशों और पैगामों की चिल्ल पों बंद कीजिये दोस्त -
ज़ाहिर है कि उन्होंने हम कहकर संबोधित को मेरे साथ ख़ुद को भी संबोधित किया है लेकिन दरअस्ल यह बड़े लोगों का एक स्टाइल होता है दूसरों को समझाने का। वे ख़ुद तो इन सब बातों से ऊपर उठ ही चुके होंगे और उनके दिमाग़ की खिड़कियां भी खुली ही होंगी। अब रही मेरी बात तो आप अगर मुझे ‘हज के बारे में‘ बताते हुए देखेंगे तो कहीं ‘यज्ञ करने वालों के दरम्यान‘ बैठा पाएंगे। आप मुझे एक जगह ‘चर्च में केक काटते हुए‘ देखेंगे तो दूसरी जगह ‘देश अखंडता के लिए जान देने वालों के साथ‘ खड़ा हुआ पाएंगे।
क्या मेरे व्यक्तित्व में इतने डिफ़रेंट शेड्स और इतनी उदारता देखने के बावजूद भी यह कहना ज़्यादती नहीं है कि मेरे दिमाग़ की खिड़कियां बंद हैं या मैं दूसरे मसायल से नावाक़िफ़ हूं ?
या मेरे बारे में भी यह राय महज़ इसलिए बना ली जाती है कि मैं एक मुसलमान हूं ?
क्या अपने ज़हन के खुलेपन को दिखाने के लिए मैं फ़िल्मी कलाकारों में शामिल हो जाऊं ?
लेकिन अगर मैं ऐसा कर लूं तो क्या तब आप लोग यह मान लेंगे कि अनवर जमाल के ज़हन की खिड़कियां खुली हुई हैं ?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि अनवर जमाल के दिमाग़ की खिड़कियां भी खुली हों और आपके लिए उसके दिल के दरवाज़े भी लेकिन ख़ुद आपकी ही खिड़कियां दरवाज़े बंद हों ? (माफ़ी के साथ अर्ज़ है)
...तो लीजिए हम अब आपकी मान्यता पाने की ख़ातिर यह भी करेंगे।
... और लीजिए, देखिए अनवर जमाल को एक टी.वी. और फ़िल्मी कलाकार के रूप में-
यह सीरियल कारपेट मेकर्स की समस्याओं को दिखाता है कि कैसे बिचैलिए दलाल उनका एक्सप्लायटेशन करते हैं। नासिर हुसैन एक बूढ़े कारोबारी हैं और नूर उनकी पोती है। सुलेमान एक दलाल है और ...
यानि कि एक पूरी कहानी है जिसे फिर कभी सुनाया जाएगा। फ़िलहाल तो महज़ यह दिखाना था कि अनवर जमाल के व्यक्तित्व का एक रंग यह भी है कि वह ग्लैमर वल्र्ड का भी हिस्सा है।
अनवर जमाल बहुआयामी प्रतिभा का धनी होने के बावजूद अपने मुसलमान होने की क़ीमत अदा कर रहा है। उसे मिलने वाली टिप्पणियों को देखकर यह जाना जा सकता है।
वर्तमान पोस्ट पर आपकी टिप्पणियों सादर आमंत्रित हैं।
यह पोस्ट जनाब अरविंद मिश्रा के विचारार्थ सार्वजनिक की जाती है।
आपका भाई अनवर जमाल, एक कलाकार के रूप में मेकअप कराते हुए |
मुहूर्त शाट के समय प्रोड्यूसर संजेश आहूजा |
डी.डी. कश्मीर के लिए बने सीरियल ‘द कारपेट मेकर‘ के उद्घाटन के अवसर पर यूनिट के सदस्य |
शूटिंग करते हुए कलाकार |
आपका भाई अनवर जमाल |
सीमा और अंजलि मां बेटी के रोल में |
नासिर हुसैन के रोल में श्रीपाल चौधरी |
एक ज़ख्मी के रूप में नूर बनी हुई अंजलि |
सीरियल के डायरेक्टर रंजन शाह विलेन सुलेमान के रोल में |
14 comments:
भाई ,आप यह भूल जाएँ की आप मुसलमान हैं और मैं यह कि मैं हिन्दू तब कोई बात बने ..जब मैंने आपको दोस्त कहा था तो हिन्दू मुसलमान से ऊपर ही उठ कर ही ....
बहरहाल आपकी तकरीरों की उम्र ज्यादे हो और उनसे कुछ हासिल हो सके यही तमन्ना है !
मानव अंगों के व्यापार पर बनी अपनी फ़िल्म का या D. D. Urdu पर प्रसारित सीरियल का कुछ हिस्सा दिखा दिया होता तो एक एक्टर के तौर पर आपको आंकना आसान होता ।
मिश्रा जी ने जो नेक ख़्वाहिश आपके लिए ज़ाहिर की है , मैं उससे सहमत हूं ।
अनवर जमाल साहब,
प्रतिभाशाली को जाहिल हमेशा से ज़लील करने की कोशिश करता रहा है. सच और हक को हमेशा झूटों ने हम हमेशा बहाने बना बना के दबाने की कोशिश की है..
वैसे पसंद अपनी अपनी ख्याल अपना अपना. कोई मज़हब के उपदेशों को , नसीहतों को सुन ना नहीं चाहता तो कोई मुन्नी हुई बदनाम को पसंद नहीं करता. कोई सत्संग मैं जाना पसंद करता है तो कोई शीला की जवानी सपरिवार देखना पसंद करता है..
क्या किया जा सकता है....
लोगों की मर्ज़ी जहाँ चाहें, जिसकी बदनामी का मज़ा लें , जहाँ चाहें जिसकी जवानी देखें, शराब और नशा जहाँ मना ना हो, उसको मानें लेकिन धार्मिक उपदेश देने वालों को, पैग़ाम देने वालों का मजाक ना उड़ाएं..
lovely pics !
डॉ अनवर जमाल ,
- आप से नाराजी कि मेरी वजह केवल एक मुद्दे को लेकर है, आपको हिन्दू धर्म के ऊपर अपनी राय और व्याख्या नहीं देनी चाहिए उससे हिन्दू आस्थावान पाठकों को बेहद तकलीफ होती है ! सम्मान पूर्वक भी हमारी मान्यताओं की व्याख्या करते समय, यह नहीं भूलना चाहिए कि आप हिन्दू धर्म के प्रति आस्थावान नहीं है ! ऐसा करके आप मेरे विचार से गलत परिपाटी डाल रहे हैं, जिसका परिणाम यही होगा जिसकी आप शिकायत कर रहे हैं !
-डॉ अनवर जमाल का एक स्वरूप, हिंदी ब्लॉगजगत में स्थापित हो चूका है ! मासूम भाई के लेख पर जाकर आप की टिपण्णी का अर्थ लोग अपने हिसाब से लगायेंगे और परिणाम उनके ब्लॉग पर बेहतरीन लेखकों के बावजूद, उस अच्छे काम को उचित सम्मान नहीं मिल पायेगा, इसके अतिरिक्त पाठक के दिल में, लेखक का प्रभामंडल बन जाता है, टिप्पणियों का स्वरुप और सम्मान इसी सम्मान पर टिकता है
contin...http://satish-saxena.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html
एस एम् मासूम ,
आप खुद इस टिपण्णी में जाहिल शब्द का उपयोग कर रहे हैं ...गुस्से से आप कभी भी सही सन्देश नहीं दे सकते, यह गुण आप डॉ अनवर जमाल से सीखें ..इनकी सहनशक्ति की मैं कद्र करता हूँ ! !
अनवर जमाल साहब बारास्ता सतीश जी के ब्लाग आपके इस ब्लाग पर पहली बार आना हुआ। मैं अरविंद मिश्र जी के कथन से सौफीसदी सहमत हूं।
नए रोल के लिए शुभकामनायें ...आप कामयाब रहेंगे !
यह तो अच्छा हुआ मेरे अमन के पैगाम देने के पहले ही मुझे मासूम साहब ने जाहिली नवाज दी ..पैगाम दे देने के बाद यह विशेषण तो मुझे कहीं का न रखता ....खुदा खैर करे ....
मैंने जाहिल होने के मासूम पैगाम को सर माथे ले लिया है क्योकि वह तो वस्तुतः मैं हूँ ही न जाने फिर भी मासूम जी क्यों मेरे पीछे पैगाम के लिए लगे थे-अच्छा हुआ जमाने को एक जाहिल के पैगाम से पीछा छूटा..
http://search-satya.blogspot.com/2010/12/blog-post.html
मानव से महामानव बनने के लिए - जगत के मिथ्या होने का प्रतिपादन
पिछली पोस्ट में आपने जगत की भ्रमरूपता के विषय में पढ़ा की किस प्रकार यह संसार न होते हुए भी इन्द्रियों के द्वारा दृश्यमान होता है और अनुभव में आता है !
इस प्रकार एक स्वाभाविक प्रश्न स्वतः ही जन्म ले लेता है, की फिर यहाँ किया हुआ पाप पुण्य सब, अच्छा-बुरा, आत्मा परमात्मा सब भ्रमरूप ही हैं !
परन्तु संसार को मिथ्या समझने पर कर्म विहीनता और पलायन की स्थिति उत्तपन्न होगी, जो समाज के लिए हितकर नहीं !! भारतीय दर्शन पलायान का नहीं अपितु कर्म का दर्शन है, ऐसे में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित शास्त्र और श्रीराम को भगवान् बनाने वाला संवाद भला पलायन की अनुमति कैसे दे सकता है !
श्री योगवाशिष्ठ - श्रीराम और उनके गुरु वशिष्ठ जी के बीच हुआ संवाद है
http://search-satya.blogspot.com/2010/12/blog-post.html
Ek Sundar kam ke liye badhai
मिश्रा जी हिंदु और मुस्लिम से ऊपर उठकर किस आधार पर सोचें ? आप इसका पूरा विवरण दे तो ज्यादा अच्छा होगा ।
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