इंसान और जानवर में बुनियादी फ़र्क़ यह है कि जानवर जो भी करता वह उसके पीछे उसका स्वभाव होता है , उसे सही ग़लत की तमीज़ या तो होती नहीं है या बहुत कम होती है। जबकि इंसान जो कुछ करता है उसके पीछे उसका फैसला होता है जो वह अपने विवेक से यह देखकर लेता है कि सही क्या है ?
इंसान हमेशा सही करता है , जानबूझ कर कभी ग़लत नहीं करता और कभी ग़लत जानकारी की बुनियाद पर भ्रम में पड़कर कुछ ग़लत कर बैठता है तो जब भी उसे अपनी ग़लती का अहसास होता है वह उसे सुधार कर सही कर लेता है।
इंसान का ज़मीर उसे ग़लत पर क़ायम नहीं रहने देता।
इंसान का यही काम इंसानियत कहलाता है और इंसान के इसी परम कर्तव्य को मानव धर्म कहा जाता है। लेकिन इस कर्तव्य को निबाहने की शक्ति आदमी को तब ही मिल पाती है जबकि उसे 'सत्य का ज्ञान' हो जाता है ।
सत्य का ज्ञान यह है कि आदमी यह जान ले कि वह मात्र शरीर ही नहीं जो कि आंख से दिखाई देता है बल्कि अस्ल में वह एक आत्मा है जो कि आंख से दिखाई नहीं देती। शरीर बढ़ता भी है , घटता भी है और नष्ट भी हो जाता है लेकिन शरीर के नष्ट होने से आत्मा नहीं होती। यह आत्मा अनाथ नहीं है बल्कि इसका मालिक वही है, जिसने इसे अपनी सामर्थ्य से रचा है। जैसे आत्मा नज़र नहीं आती वैसे ही इसका रचनाकार भी नज़र नहीं आता क्योंकि उसने आत्मा को अपने स्वरूप पर रचा है। हरेक नज़र आने वाली चीज़ के पीछे बेशुमार चीज़ें ऐसी होती हैं जो कि आंख से नज़र नहीं आतीं। जो चीज़ें आंख से नज़र नहीं आतीं , इंसान उन तक अपनी अक़्ल से पहुंच जाता है और जो जहां तक इंसान अपनी अक़्ल के बल पर भी न पहुंच सके उन हक़ीक़तों को भी इंसान पा लेता अपनी तड़प और लगन के बल पर , प्रार्थना के बल पर। जब आदमी किसी सच्चाई को पाने में ख़ुद को बेबस महसूस करता है तो उस बेबसी और दीनता की हालत में प्रार्थना के जो भाव इंसान के दिल में उठते हैं उसके ज़रिये उस पर ऐसी गहरी हक़ीक़तें खुलती हैं जिन तक किसी की अक़्ल कभी नहीं पहुंच सकती। रूहानी सच्चाईयों को जानने वाले हमेशा यही लोग हुआ करते हैं। ये लोग दुनिया को भी जानते हैं और जो दुनिया के बाद है उसे भी जानते हैं। ये लोग ज़िंदगी के उस हिस्से को भी जानते है जो मौत की सरहद के इस पार है और उस हिस्से को भी जानते हैं जो कि उस पार है । इनके ज्ञान की सच्चाई इनके कर्म से हरेक कमी और कमजोरी को दूर कर देती है । जो इनके रब का हुक्म होता है वही इनकी ख्वाहिश होती है । ज़माना जैसे सोचता है ये वैसे नहीं सोचते बल्कि ये वैसे सोचते हैं जैसे कि एक आदर्श इंसान को सोचना चाहिए । ये लोग अपने मालिक के हुक्म की बुनियाद पर सोचते हैं जबकि ज़माने वाले अपने जान माल के नफ़े नुक़्सान की बुनियाद पर फ़ैसला करते हैं । यही वजह है कि ज़ालिमों के सामने जब दुनिया वालों की हिम्मतें पस्त हो जाती हैं , 'सत्य का ज्ञान' रखने वाले तब भी उनका मुकाबला करते हैं और उन्हें शिकस्त देते हैं । उनकी यही बात उन्हें आदर्श सिद्ध करती है ।
हज़रत इमाम हुसैन एक ऐसे ही आदर्श हैं ।
शहादते हुसैन का फ़ैज़ सिर्फ़ किसी एक मत या नस्ल या किसी एक इलाक़े के लोगों को ही नहीं पहुंचा बल्कि सारी दुनिया को पहुंचा और रहती दुनिया तक पहुंचता रहेगा ।
नालायक़ और ज़ालिम हाकिम आज भी दुनिया के अक्सर देशों पर बिना हक़ क़ाबिज़ हैं और इसकी वजह यही है कि आम लोगों शहीदों के प्रति श्रद्धा तो रखते हैं लेकिन उनके आदर्श का अनुसरण नहीं करते । मौत यज़ीद की हुई है लेकिन ज़ुल्म का सिलसिला आज भी जारी है। नफ़रतें और अदावत बड़े पैमाने पर आतंकवाद की शक्ल ले चुका है और लालच भ्रष्टाचार की । यही नफ़रतेँ, अदावतें और भ्रष्टाचार आज हर परिवार में घर कर चुका है । अक्सर आदमियों ने परलोक के स्वर्ग नर्क और ईश्वर को मन का वहम समझ लिया है । जिसके नतीजे में वे अमर और अनंत ऐश्वर्यशाली जीवन की आशा खोकर दुनिया की ऐश के लिए जी रहे हैं। जो लोग ऐश के लिए जीते हैं वे कुर्बानी देने और कष्ट उठाने से हमेशा घबराया करते हैं। आज समाज में जितने भी जुर्म पाप और ख़राबियां हैं उनके पीछे कोई एक आदमी नहीं है बल्कि पूरे समाज की ग़लत सोच ज़िम्मेदार है । 10 मौहर्रम का दिन एक बोध दिवस है। इस अवसर पर आदमी अपने ज़िंदगी के मक़सद और उसे पाने के मार्ग को जान सकता है।
आदमी जानवर नहीं है कि बस खाये पिये , बच्चे पैदा करे और मर जाए बल्कि वह एक इंसान है और उसे हमेशा वही करना चाहिए जो कि सही है ।
सही क्या है ?
इसे जानने के लिए आदर्श व्यक्ति का अनुसरण करना चाहिए । जो इंसान होते हैं वे यही करते हैं और इसी को इंसानियत कहा जाता है ।
3 comments:
bhai praveen sahji ne bheja idhar-
achhi lagi apki bhali post.......
sadar....
एक बेहतरीन पेशकश अनवर जमाल साहब.. आप का बहुत बहुत शुक्रिया
धन्यवाद् इसे पेश करने का. ऐसे ही कुछ लेख और सन्देश यहाँ भी देखें कर्बला मैं ऐसा क्या हुआ था की इसकी याद सभी धर्म वाले मिल के मनाते हैं. हिन्दू शायर दिलगीर लखनवी (झंडू लाल)-"घबराए गी जैनब हिलती है ज़मीन , रोता है फलक : सौज : ज्योति बावरी क्या कहते हैं संसार के बुद्धीजीवी, दार्शनिक, लेखक और अधिनायक, कर्बला और इमाम हुसैन के बारे मिलिए इस हिंदू भाई से जो मौला अली और इमाम हुसैन को मुसलमानों से भी ज्यादा चाहते हैं
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