Tuesday, March 29, 2011

किस किस हाल से गुज़र रही है आज एक औरत अपने जीवन में ? Family Life

अभी तक ज्यादातर वर्किंग वुमन ही डिप्रेशन की शिकार होती थीं, और इसका कारण घर-दफ्तर का तनाव होता था। मगर अब गृहिणियां भी इसकी जद में आ रही हैं।
मैं अपने साथ काम करने वाली एक ऐसी महिला को जानती थी, जिसे मैंने अक्सर अवसाद से घिरा पाया। कार्यालय में उसका मन कम ही लगता था। घर की, बच्चों की, चिंता में वह ज्यादा रहा करती थी। मेरे यह कहने पर कि वह नौकरी करती ही क्यूं है, तो उसका कहना था घर कैसे चलेगा? पति के बारे में पूछने पर अक्सर वह टालमटोल कर जाती।
अपने दूसरे साथियों से जानकारी लेने पर पता चला कि उसका पति शराबी है और उसे कोई नौकरी नहीं देता। साथ ही यह भी पता चला कि वह कई बार आत्महत्या की कोशिश कर चुकी है। उसके बाद तो कई बार मेरे और उसके बीच घर-परिवार की चर्चा चलती रही, उसके मन की गुत्थियां मुझे खुलती नजर आने लगीं। वह काम में भी मन लगा रही थी और खुश भी दिखती थी। कुछ दिन बाद मैंने नौकरी छोड़ दी। उससे भी नाता टूट गया। हाल ही में मुझे अखबार के जरिए उसकी मौत की खबर मिली। उसने ऊँचाई से कूद कर आत्महत्या कर ली थीं। इतने सालों बाद भी आत्महत्या का जुनून उसे सवार था, जबकि मुझे मिली जानकारी के अनुसार घर की स्थिति पहले से बहुत बेहतर थी। यह सचमुच काफी तकलीफदेह बात है कि हाउसवाइव्स में डिप्रेशन के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। उपेक्षा, प्रताड़ना, अर्न्तद्वंद, पारिवारिक कलह या फिर अवसाद से घिरी स्त्री, मुक्ति का उपाय खोजते-खोजते मृत्यु को अधिक आत्मीय समझने की भूल कर रही है। पहले घर और फिर सामाजिक तौर पर एक अहम भूमिका निभाने वाली महिला का इस तरह का अंत दुखद बात लगती है। नेशनल क्राइम ब्यूरो ने रिपोर्ट में बताया है कि हर दिन 123 महिलाएं आत्महत्या कर रही हैं, जिनमें 69 गृहणियां हैं। मनोविज्ञानी बताते हैं कि गृहस्थी का बोझ उठाने वाली महिलाओं को अक्सर कलह से भी गुजरना पड़ता है। कभी आर्थिक तंगी कलह का विषय होती है, तो कभी बच्चों की परवरिश और कभी पत्नी का सोशल न हो पाना भी कलह का एक अहम कारण बन जाता है।
कलह से कुढ़न और कुढ़न से अवसाद हावी होने लगता है और अवसाद से निकलने में अगर मदद न की जा सकी तो वह आत्महत्या का कारण जाती है। इसमें वे महिलाएं और भी घातक स्थिति में मिलती है जो विवाह उपरान्त घर-परिवार की ख्वाहिश लेकर आती हैं और पति की लापरवाही या आर्थिक परेशानी की वजह से नौकरी करने को मजबूर हो जाती हैं। उनकी काबिलियत जहां घर के दायरे तक की ही थी, उसके लिए उसे घर के बाहर जूझना पड़ता है। यहीं से उसके मन के भीतरी हिस्सों पर कुठाराघात शुरू हो जाता है।
डिप्रेशन की वजह
1. सामाजिक तौर-तरीके का अभाव
2. पति का र्दुव्यवहार
3. सास-ससुर के लांछन
4. मानसिक या शारीरिक परेशानी
5. प्यार में धोखा
6. पति की बेवफाई
7. दहेज प्रताड़ना
8. अकेलापन
9.बच्चों की तकलीफ
10. सामाजिक लांछन
11. दुराचार की शिकार
साभार  हिन्दुस्तान दिनांक ३० मार्च २०११ 
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-Tension-50-50-164019.html

कुछ कारण ऐसे हैं जिनकी चर्चा आम तौर पर की ही नहीं जाती . उनकी जानकारी भी आपको होनी चाहिए ताकि आप सच जान सकें और खुद अपनी और दूसरों की सचमुच मदद कर सकें . सच्चाई यह है कि तमाम कठिनाइयों के बावुजूद जिस तरह मुसलमानों में कन्या भ्रूण की ह्त्या नहीं की जाती , ठीक  ऐसे ही आत्महत्या भी नहीं की जाती.   

आत्महत्या करने में हिन्दू युवा अव्वल क्यों ? under the shadow of death

आज आप खतरे में जी रहे हैं. आपके बच्चे कभी भी कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं और कोई भी गलत क़दम उठा सकते हैं . आप उन्हें सिखाइए  एक प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पित होकर जीना , सही फैसले लेना और सही तरीके से जीना इससे पहले कि वे आवेश में आकर या जज़्बात की रु में बहकर खुद को तबाह कर बैठें हमेशा के लिए . फैसला है आपका क्योंकि जीवन भी है आपका . 


फ़ानूस बनके जिसकी हिफ़ाज़त हवा करे / वो शम्मा क्या बुझे जिसे रौशन ख़ुदा करे Rest is rust , Work is worship.

शम्मा ए हक़ नूरे इलाही को बुझा सकता है कौन
जिसका हामी हो ख़ुदा
उसको मिटा सकता है कौन
फ़ानूस बनके जिसकी हिफ़ाज़त हवा करे
वो शम्मा क्या बुझे जिसे रौशन
ख़ुदा करे

लीजिए साहिबान ! ताज़ा दम होकर हम एक बार फिर आपके मार्गदर्शन के लिए वापस आ चुके हैं।
आपको जीवन में कोई भी मसला परेशान करे तो आप हमसे बेहिचक पूछ सकते हैं और अगर आप खुद हमसे ही परेशानी महसूस करें तो भी हमें आप बता सकते हैं कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं ?
यह अधिकार केवल हमारे समर्थकों को ही नहीं है बल्कि हमारे हरेक प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित ब्लॉगर भाई को है। जो ब्लॉगर हमारे चिर विरोधी हैं, अपनी वापसी से पहले हमने उनसे कहा था कि
आप मेरे नव अवतरण की रूपरेखा बना दें
आपकी पोस्ट को मैंने दोबारा फिर पढ़ा तो मेरी नज़र आपके इस वाक्य पर अटक गई :
आप ऐसे ही करते रहे तो मेरी दुकान बंद हो जाएगी और मैं बहुत सुखी इंसान हो जाऊंगाए क्योंकि मेरा विरोध अनवर जमाल से नही उन बातों से है जिनका विरोध आपने मेरे ब्लॉग पर देखाए मेरी मौत एक सुखद घटना होगी और आपका नव अवतरण उससे भी सुखद।

इसमें कुछ बिन्दु हैं , जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए
1. मेरी दुकान बंद हो जाएगी।
2. मैं सुखी इंसान हो जाऊंगा।
3. मेरा विरोध अनवर जमाल से नहीं है।
4. मेरी मौत एक सुखद घटना होगी।
5. आपका नव अवतरण उससे भी ज़्यादा सुखद होगा।

जब इन तथ्यों पर मैं ईमानदारी से सोचता हूं तो मैं खुद चाहता हूं कि आप एक सुखी इंसान हो जाएं लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि आपके ब्लॉग की मौत हो जाए। आप अच्छा लिखते हैं और मैं आपको पढ़ता हूं। आपने मेरी जायज़ बातों का भी विरोध किया, इसलिए मैंने आपकी बात को गंभीरता से नहीं लिया और उसका नतीजा यह हुआ कि जहां आप सही थे, उसे भी मैंने नज़रअंदाज़ कर दिया। यह मेरी ग़लती थी, जिसे कि मैंने आपकी सलाह के मुताबिक़ सुधार लिया है।
आपने मेरे नव अवतरण के प्रति भी अच्छी आशा जताई है और मैं खुद भी यही चाहता हूं कि मेरी वजह से आपमें से किसी को कोई कष्ट न पहुंचे। मेरे नव अवतरण की आउट लाइंस क्या होंगी ?
यह मैं अभी तक तय नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप ही मेरे नव अवतरण की रूपरेखा तैयार कर दीजिए और मैं उसे फ़ॉलो कर लूं।
मेरे नव अवतरण की भूमिका तैयार करना खुद मेरे लिए जिन कारणों से मुश्किल हो रहा है, वे प्रश्न आपको भी परेशान करेंगे लेकिन मुझे उम्मीद है कि आपकी प्रबुद्ध मंडली उनका कुछ न कुछ हल निकालने में ज़रूर कामयाब होगी।
जो चीज़ मुझे इस वर्चुअल दुनिया में लाई है वह है ईश्वर, धर्म और धार्मिक महापुरूषों का मज़ाक़ बना लेना।
मैं इसे पसंद नहीं करता कि कोई भी व्यक्ति ऐसा करे। इनमें से कुछ लोग रंजिशन ऐसा करते हैं और ज़्यादातर नादानी की वजह से। आज भी श्रीरामचंद्र जी , श्रीकृष्ण जी और शिवजी के बारे में ग़लत बातें लिखी जा रही हैं। मुझे कोई एक भी हिंदू कहलाने वाला भाई ऐसा नज़र नहीं आया जो कि उन्हें इन महापुरूषों की सच्ची शान बता सकता। मैंने जब भी बताया तो मुझसे यह कहा गया कि आप एक मुसलमान हैं, आप हमारे मामलों में दख़ल न दें।
1. आप मुझे बताएं कि अगर हिंदू महापुरूषों और ऋषियों का अपमान कोई हिंदू करता है तो क्या मुझे मूकदर्शक बने रहना चाहिए ?
2. कुछ हिंदू भाई ऐसा लिखते रहते हैं कि कुरआन में अज्ञान की बातें हैं, अल्लाह को गणित नहीं आता, मांस खाना राक्षसों का काम है, औरतों के हक़ में इसलाम एक लानत है। इससे भी बढ़कर पैग़म्बर साहब की शान में ऐसी गुस्ताख़ी करते हैं, जिन्हें मैं लिख भी नहीं सकता। दर्जनों ब्लाग और साइटों पर तो मैं खुद अपील कर चुका हूं और ऐसे अड्डे सैकड़ों से ज़्यादा हैं। जब इस तरह की पोस्ट पर मैं हिंदी ब्लाग जगत के ‘मार्गदर्शकों‘ को वाह वाह करते देखता हूं तो पता चलता है कि अज्ञानता और सांप्रदायिकता किस किस के मन में कितनी गहरी बैठी हुई है ?
ऐसी पोस्ट्स पर मेरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए ?

3. मैं अपने देशवासियों में अनुशासनहीनता और पाखंड का आम रिवाज देख रहा हूं। एक आदमी खुद को मुसलमान कहता है और शराब का व्यापारी है। जब इसलाम में शराब हराम है तो कोई मुसलमान शराब का व्यापार कर ही कैसे सकता है ?
कैसे कोई मुसलमान सूद ले सकता है ?
कैसे कोई मुसलमान खुद को ऊंची जाति का घोषित कर सकता है जबकि इसलाम में न सूद है और न ही जातिगत ऊंचनीच ?
ऐसा केवल इसलिए है कि इसलाम उनके जीवन में नहीं है बस केवल आस्था में है। चोरी, व्यभिचार, हत्या, बलवा और बहुत से जुर्म आज मुस्लिम समाज में आम हैं जबकि वे सभी इसलाम में हराम हैं।
यही हाल हिंदू समाज का है कि हिंदू दर्शन सबसे ज़्यादा चोट ‘माया मोह‘ पर करता है और मैं देखता हूं कि हिंदू समाज में धार्मिक जुलूसों में रथों की रास पकड़ने से लेकर चंवर डुलाने तक हरेक पद की नीलामी होती है और पैसे के बल पर ‘माया के मालिक‘ इन पदों पर विराजमान होकर अपनी शान ऊंची करते हैं। दहेज भी ये लोग लेते हैं और कन्या भ्रूण हत्या भी केवल दहेज के डर से ही की जा रही है।
जो सन्यासी इन्हें रोक सकते थे, उनके पास भी आज अरबों खरबों रूपये की संपत्ति जमा है। हिंदू बालाएं फ़ैशन और डांस के नाम पर अश्लीलता परोस रही हैं जबकि काम-वासना और अश्लीलता से उन्हें रूकने के लिए खुद उनका धर्म कहता है।
मैं चाहता हूं कि हरेक नर नारी जिस सिद्धांत को अपनी आत्मा की गहराई से सत्य मानता हो, वह उस पर अवश्य चले वर्ना पाखंड रचाकर समाज में धर्म को बदनाम न करे।
हिंदू हो या मुसलमान जब वे नशा करते हैं, दंगों में एक दूसरे का खून बहाते हैं तो उससे धर्म बदनाम होता है। जो लोग कम अक़्ल रखते हैं और धर्म के आधार पर लोगों को नहीं परखते बल्कि लोगों के कामों को ही धर्म समझते हैं वे धर्म का विरोध करने लगते हैं और दूसरों को भी धर्म के खि़लाफ़ बग़ावत के लिए उकसाते हैं जैसा कि पिछले दिनों एक वकील साहब ने किया।
धर्म को बदनाम करने वाले पाखंडियों को धर्म पर चलने के लिए कहना ग़लत है क्या ?
धर्म का विरोध करने वाले नास्तिकों को ईश्वर और धर्म की खिल्ली उड़ाने से कैसे रोका जाए ?
इसी तरह के कुछ सवाल और भी हैं जो इनसे ही उपजते हैं।
मैंने कभी हिंदू धर्म की निंदा नहीं की और हमेशा हिंदू महापुरूषों का आदर किया और उनका आदर करने की ही शिक्षा दी। मेरी सैकड़ों पोस्ट्स इस बात की गवाह हैं। मैं खुद को भी एक हिंदू ही मानता हूं लेकिन डिफ़रेंट और यूनिक टाइप का हिंदू। बहरहाल, अगर आप मुझे हिंदू नहीं मानते तो न मानें। मैं इस पर बहस नहीं करूंगा लेकिन मैं यह ज़रूर चाहूंगा कि आप उपरोक्त सवालों पर ग़ौर करके मेरे नव अवतरण की रूपरेखा बना दें ताकि मेरे शब्द आपके लिए किसी भी तरह कष्ट का कारण न बनें।
मैं आपका आभारी रहूंगा।
शुक्रिया !
http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com/2011/03/blog-post_19.html?showComment=1300612412366#c5412010183540951113

अपनी वापसी के पहले ही दिन हम विचारवान विरोधियों और समर्थकों से सभी से सलाह आमंत्रित करते हैं।
हम संत टाइप आदमी हैं सो निंदक को नियर रखते हैं। उनकी पहली ख़ासियत तो यह होती है कि वे चापलूस नहीं होते और सौजन्यतावश टिप्पणी नहीं करते और दूसरी बात यह है कि प्रेम करने वालों से तो प्रेम दुनिया करती है। हम उनसे प्रेम करते हैं जो हमसे नफ़रत करते हैं। इंसान नफ़रत के लिए बना ही नहीं है, सो वह देर तक नफ़रत कर भी नहीं सकता। इंसान प्रेम से पैदा होता है। एक नर और एक नारी आपस में प्रेम करते हैं तभी एक और इंसान जन्म लेता है। इसीलिए प्रेम इंसान का स्वभाव है और अपने स्वभाव पर  हरेक इंसान हमेशा रह सकता है। प्रेम मनुष्य का स्वाभाविक धर्म है। इसलाम प्रेम करना ही सिखाता है। दूसरे लोग अपनी किताब खोलकर देखेंगे तो उन्हें भी वहां प्रेम का उपदेश ही लिखा मिलेगा। अब समय आ चुका है कि उपदेश के अनुसार आचरण भी किया जाए।

Monday, March 14, 2011

खुदा हाफिज़ , ॐ शांति Peace be upon all of you

मैंने हिंदी ब्लॉग जगत को अपनी ज़िन्दगी का बेहतरीन एक साल दिया. इसे कुछ नए ब्लॉग ऐसे दिए जो उन विषयों पर पहले नहीं थे . लोगों ने भी मुझे अपना भरपूर प्यार दिया और यह प्यार उन्होंने मुझे उस हाल में दिया जबकि मैंने उनकी मान्यताओं की धज्जियाँ उड़कर रख दीं . यह ठीक है कि मैंने ऐसा इसलिए किया की मैं उन्हें ग़लत मानता हूँ लेकिन ऐसा मेरा मानना है, न कि हरेक का. इस सब के बीच मुझे सभी ब्लॉगर्स ने अपने दिल में बिठाया . जो लोग मुझसे नफरत करते हैं , वास्तव में वे भी मुझे अपने दिल में जगह दिए हुए हैं . मैं उनकी भी क़द्र करता हूँ और उनसे भी प्यार ही करता हूँ . मैं एक जज़्बाती आदमी हूँ . ईश्वर और धर्म मेरे लिए पराये नहीं हैं. मैं धर्ममय हूँ , ईश्वरमय हूँ. जो इन्हें बुरा कहता है , वह मुझे बुरा कहता है . इसीलिये मुझसे बर्दाश्त नहीं होता . मैं अपनी हद तक विरोध करता हूँ .
लगातार बहुत सा वक़्त नेट पर देने की वजह से बच्चे मैथ में कम नंबर लेन लगे जबकि वे ९९ प्रतिशत लाया करते थे . मेरी आँखों में से भी पानी बहने लगा है . मैंने BIGPOND की जो नई डिवाइस ली है नेट के लिए उसकी सेटिंग में भी कुछ मुश्किल आ रही है. इस मुद्दत के दरमियान मेरे रूहानी मुराक़बों (सूफी साधना) में कमी आई है . मेरे पीर साहब का इन्तेक़ाल कुछ साल पहले हो चुका है और मैं अपने एक गुरुभाई की निगरानी में साधना कर रहा था कि नेट कि दुनिया में दाखिल हो गया और मेरी साधना को विराम लग गया . अब मैं कुछ समय जैतून के तेल में अंडे तलकर खाना चाहता हूँ , लेकिन सॉरी ताली हुई चीज़ें मैं खाता नहीं. खैर ताक़त के लिए आंवला और शहद जैसी चीज़ें भी काम देंगी . इस दरमियान मैं अपने आमाल का जायज़ा लूँगा कि कहीं खुदा की नज़र में मैं खुद ही तो मुजरिम नहीं ?

japan tsunami 2011
जो लोग मेरी मौजूदगी की वजह से कुछ परेशान थे उन्हें भी राहत मिलेगी और मिलनी भी चाहिए . चाहता तो मैं यही हूँ कि कुछ दिन नेट से पूरी तरह छुट्टी लेकर मुकम्मल आराम करूं लेकिन जो साझा ब्लॉग मैंने बनाये हैं उनसे जुड़े लोगों की सुविधा की ख़ातिर मैं पूरी तरह से चाहकर भी हट नहीं सकता. लेकिन इसके बावजूद ज़िन्दगी के जिन पहलुओं पर मेरा ध्यान कम हो गया है उन्हें मैं भरपूर तवज्जो देना मेरे लिए निहायत ज़रूरी है . सभी भाईयों और बहनों से मैं माफ़ी की दरख्वास्त करता हूँ और यह विनती भी कि   सभी भाई-बहन यह ज़रूर सोचें कि क्या वे वही काम कर रहे हैं जो कि करने के लिए उन्हें मालिक ने इस प्यारी धरती  पर पैदा किया है ?

एक दिन वह इसका हिस्साब ज़रूर लेगा , इसका ध्यान रहे . हर समय उस मालिक को आप अपना साक्षी समझें क्योंकि वास्तव में वह हर समय आपके कर्मों को देख रहा है और अंत में वह आपको दंड या पुरस्कार अवश्य देगा . जापान का ज़लज़ला इसकी मिसाल है .

जाते जाते मैंने अपनी एक ताज़ा पोस्ट
http://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html
पर नज़र डाली तो बहन सोनल रस्तौगी जी के कमेन्ट पर नज़र पड़ी जोकि ईमानदारी  से भरा हुआ है . नेट जगत में ज़्यादातर  बहनें  गुटबंदी और नफरत से बहुत दूर हैं . मैं बहनों का शुक्रगुज़ार   ख़ास तौर पर हूँ . जब कभी इंसानी शराफत से मेरा यकीन हिला तो उसे बहनों के सच्चे कमेंट्स ने ही बहाल किया है . मैं कुछ काम अधूरे छोड़े जा रहा हूँ जिनमें से एक यह नज़्म भी है :
'माँ' The mother
मैं इसे पूरा ज़रूर करूँगा , इंशा अल्लाह .
और इसे भी ...
औरत की हक़ीक़त
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Tuesday, March 1, 2011

'ऋषियों को नाहक़ इल्ज़ाम न दो' Part 3 ; Shiva : The Innocent Father

शिव जी से मेरा ख़ास ताल्लुक़ है। शिव जी का एक नाम भोले भी है। ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि शिव जी ने न कभी भाँग पी और न ही कभी ज़हर पिया। शिव जी सारी मनुष्य जाति के आदि पिता हैं , यह बात भी कम लोग जानते हैं । प्राचीन काल में भारत में शैव , वैष्णव और शाक्त आदि बहुत से मत बने और सभी ने अपने अपने हिसाब से अपने महापुरुषों की महिमा को बढ़ा चढ़ाकर बयान किया और दूसरे मतों के महापुरुषों में दोष सिद्ध करने के लिए काल्पनिक कहानियाँ रचीं । इसके चलते आज हमें अपने पूर्वजों के बारे में बहुत सी ऐसी बातें पढ़ने के लिए मिलती हैं जो कि किसी भी ज्ञानी और सत्पुरूष के चरित्र में होना संभव ही नहीं है ।
आज महाशिव रात्रि है । लोगों में अपने पूर्वजों के प्रति उत्साह और आस्था का एक अद्भुत जोश है जो कि एक बहुत अच्छी बात है लेकिन इस अवसर पर हमें अपने पूर्वजों की भाँति ज्ञान से भी युक्त होना चाहिए और सोचना चाहिए कि जो बातें हम अपने माता-पिता के बारे में नहीं कह सकते उससे भी ज्यादा बुरी बातें हम अपने आदि पिता शिव जी और आदि माता पार्वती जी के बारे में कैसे कह सकते हैं ?
हम कैसे मान सकते हैं कि वे कभी किसी राक्षस भस्मासुर से डर कर भाग सकते हैं ?
न तो श्रीलंका में आज किसी को राक्षस मिले , न ही पाताल लोक अर्थात अमेरिका में कोई वासुक़ि जैसे साइज़ का साँप मिला और न ही पूरी ज़मीन पर कोई दूध का सागर ही मिला । इसलिए न कभी समुद्र मंथन हुआ और न कोई ज़हर ही निकला , जिसे शिव जी को पीकर मौत के डर से उसे अपने गले में रोकना पड़ा हो।
इस तरह की बातें बुद्धिजीवियों को सच्चाई से दूर लगती हैं और फिर वे यह समझने लगते हैं कि जैसे यह कहानी काल्पनिक है ऐसे ही शिव जी भी काल्पनिक होंगे और फिर वे कहते हैं कि ईश्वर मनुष्य के मन की कल्पना मात्र है। इस प्रकार काल्पनिक कथाएँ लोगों को अपने पूर्वजों से भी दूर करती हैं और उन्हें नास्तिक भी बनाती हैं ।
हमें सोचना चाहिए कि अगर आज हम यहाँ हैं तो कभी हमारे पूर्वज भी ज़रूर ही रहे होंगे और जब हम इस गए गुज़री हालत में भी नैतिक नियमों के पालन की कोशिश करते हैं तो निश्चय ही हमारे पूर्वजों ने इनका पालन हमसे बढ़कर किया होगा क्योंकि ये नैतिक नियम हमने नहीं बनाए हैं बल्कि ये हमें पहले से चलते हुए और समाज में स्थापित मिले हैं।
विज्ञान की बड़ी से बड़ी खोज से भी बड़ी खोज है 'नैतिक नियमों की खोज' और यह खोज किसी आधुनिक वैज्ञानिक या समाज शास्त्री ने नहीं की बल्कि इनकी खोज करने वाले थे हमारे पूर्वज । इन्हीं नैतिक नियमों की वजह से जानवर और इंसान में फर्क पैदा होता है । जानवर माँ और पत्नी के दरमियान अंतर नहीं कर सकते लेकिन इंसान कर सकता है । हमारे पूर्वजों ने हमें जानवर से इंसान बनने का मार्ग दिखाया । उन्होंने ही हमें रिश्तों का ज्ञान और उनसे मुहब्बत की दौलत दी है और यह रुपए-पैसों से बड़ी दौलत है । जिन पूर्वजों ने हमें इतना कुछ दिया है , हमने उन्हें क्या दिया ?
क्या हम ढंग से उनकी तारीफ़ भी नहीं कर सकते ?
महाशिव रात्रि के अवसर पर जब मैं डेक पर बजते हुए ऐसे गाने सुनता हूँ जो कि शिव जी की स्तुति नहीं बल्कि निंदा मात्र हैं तो मेरे मन में यह अहसास पैदा होता है क्योंकि शिव जी से मेरा ख़ास ताल्लुक़ है।
आप क्या महसूस करते हैं, ज़रा उपरोक्त तथ्यों की रौशनी में सोचकर बताएँ ?