Thursday, June 30, 2011

हे भिक्षुक ! सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था भिक्षा मांगने से रोकती है

'देश और विदेशों में कोई हिन्दू नहीं, यह शब्द केवल कागजों तक ही सीमित है।'
यह दावा किया गया है मशहूर हिंदी ब्लॉग ‘लोकसंघर्ष पत्रिका‘ पर।
भिक्षु विमल कीर्ति महास्थविर (मोबाइल नं. 07398935672) कहते हैं कि
‘हिन्दू’ शब्द का सम्बन्ध धर्म से नहीं, इस शब्द का सम्बन्ध ‘सिन्धु नदी’ से है।
‘हिन्दू’ शब्द मध्ययुगीन है। श्री रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में ‘हिन्दू’ शब्द हमारे प्राचीन साहित्य में नही मिलता है। भारत में इसका सबसे पहले उल्लेख ईसा की आठवीं सदी में लिखे गए एक ‘तन्त्र ग्रन्थ’ में मिलता है। जहाँ इस शब्द का प्रयोग धर्मावलम्बी के अर्थ में नहीं किया गया जाकर, एक, ‘गिरोह’ या ‘जाति’ के अर्थ में किया गया है।
गांधी जी भी ‘हिन्दू’ शब्द को विदेशी स्वीकार करते हुए कहते थे- हिन्दू धर्म का यथार्थ नाम, ‘वर्णाश्रमधर्म’ है।
हिन्दू शब्द मुस्लिम आक्रमणकारियों का दिया हुआ एक विदेशी नाम है। ‘हिन्दू’ शब्द फारसी के ‘ग़यासुल्-लुग़ात’ नामक शब्दकोश में मिलता है। जिसका अर्थ- काला, काफिर, नास्तिक सिद्धान्त विहीन, असभ्य, वहशी आदि है और इसी घृणित नाम को बुजदिल लोभी ब्राह्मणों ने अपने धर्म का नाम स्वीकार कर लिया है।
हिंसया यो दूषयति अन्यानां मानांसि जात्यहंकार वृन्तिना सततं सो हिन्दू: से बना है, जो जाति अहंकार के कारण हमेशा अपने पड़ोसी या अन्य धर्म के अनुयायी का, अनादर करता है, वह हिन्दू है। डा0 बाबा साहब अम्बेडकर ने सिद्ध किया है कि ‘हिन्दू’ शब्द देश वाचक नहीं है, वह जाति वाचक है। वह ‘सिन्धु’ शब्द से नहीं बना है। हिंसा से ‘हिं’ और दूषयति से ‘दू’ शब्द को मिलाकर हिन्दू बना है।
अपने आपको कोई ‘हिन्दू’ नहीं कहता है, बल्कि अपनी-अपनी जाति बताते हैं।


इसी के साथ वह दावा करते हैं कि
‘‘भगवान बुद्ध की ‘श्रेष्ठ व्यवस्था’, बौद्ध धर्म के बराबर संसार में कोई दूजी व्यवस्था नहीं है।‘‘
इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने इंसानियत की शिक्षा दी और ऐसे टाइम में दी जबकि ब्राह्मणों का विरोध करना आसान नहीं था। उनका साहस और मानवता के प्रति उनकी करूणा क़ाबिले तारीफ़ है लेकिन यह दावा निःसंदेह अतिश्योक्ति से भरा हुआ है।

भीख मांगना आज जुर्म है और बौद्ध धर्म गुरू का नाम ही भिक्षु है भिक्षा मांगने के कारण। भिक्षा मांगने की व्यवस्था के बारे में तो यह नहीं कहा जा सकता कि इस जैसी व्यवस्था संसार में दूसरी है ही नहीं। दूसरे मतों में भी भिक्षा मांगने की परंपरा रही है।
आज के ज़माने में केवल वही व्यवस्था सर्वश्रेष्ठ कही जा सकती है जिसमें भिक्षा मांगने से रोका गया हो और मेहनत की कमाई खाने की प्रेरणा दी गई हो।।
पता कीजिए कि वह धर्म कौन सा है जो अपने अनुयायियों को भिक्षा और भीख मांगने से रोकता है ?

Saturday, June 25, 2011

डायना बनने की चाह में औरतें बन गईं डायन Vampire

लोगों ने ऐश की ख़ातिर अपना आराम खो दिया है। सुनने में यह बात अटपटी सी लगती है मगर है बिल्कुल सच !
लोगों ने अपना लाइफ़ स्टैंडर्ड बढ़ा लिया तो केवल मर्द की आमदनी से ख़र्चा चलना मुमकिन न रहा और तब औरत को भी पैसा कमाने के लिए बाहर बुला लिया गया लेकिन इससे उसके शरीर और मन पर दो गुने से भी ज़्यादा बोझ लद गया।
औरत आज घर के काम तो करती ही है लेकिन उसे पैसे कमाने के लिए बाहर की दुनिया में काम भी करना पड़ता है। औरत का दिल अपने घर और अपने बच्चों में पड़ा रहता है। बहुत से बच्चे माँ के बाहर रहने के कारण असुरक्षित होते हैं और अप्रिय हादसों के शिकार बन जाते हैं। छोटे छोटे बच्चों का यौन शोषण करने वाले क़रीबी रिश्तेदार और घरेलू नौकर ही होते हैं। जो बच्चे इन सब हादसों से बच भी जाते हैं, वे भी माँ के आँचल से तो महरूम रहते ही हैं और एक मासूम बच्चे के लिए इससे बड़ा हादसा और कुछ भी नहीं होता । माँ रात को लौटती है थकी हुई और उसे सुबह को फिर काम पर जाना है । ऐसे में वह चाह कर भी अपने बच्चों को कुछ ज्यादा दे ही नहीं पाती।
इतिहास के साथ आज के हालात भी गवाह हैं कि जिस सभ्यता में भी औरत को उसके बच्चों से दूर कर दिया गया । उस सभ्यता के नागरिकों का चरित्र कमज़ोर हो गया और जिस सभ्यता के नागरिकों में अच्छे गुणों का अभाव हो जाता है वह बर्बाद हो जाती है ।
औरत का शोषण बंद होना चाहिए ताकि हमारी नस्लें अपनी माँ की मुनासिब देखभाल पा सकें।
जहाँ मजबूरियों के चलते परिवार की सारी ज़िम्मेदारी औरत के कंधों पर आ पड़ी है, वे इस लेख का विषय नहीं हैं । भोग विलास के साधन घर में जमा करने के लिए अपने मासूम बच्चों के अरमानों की बलि देना कैसे उचित है?
यह नई सभ्यता का असर ही तो है कि कहीं तो माँएं अपनी कोख में बच्चों की बलि दे रही है और अगर उन्हें अपना वंश चलाने के पैदा कर भी दिया जाता है तो उनके अरमानों की बलि रोज़ाना चढ़ाई जाती है ।
आधुनिक शिक्षा ने आज माँ को आधुनिक डायन बनाकर रख दिया है।
जो लोग डायन के वुजूद को नकारते हैं, वे चाहें तो अपने आस पास बेशुमार डायनें देख सकते हैं ।

Monday, June 20, 2011

ज्ञान के मोती



हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया है कि
1. जो शख्स जल्दबाज़ी के साथ हरेक बात का जवाब देता है, वह ठीक जवाब बयान नहीं कर सकता।
2. जो शख्स हक़ (सत्य) की मुख़ालिफ़त करता है, हक़ तआला (परमेश्वर) ख़ुद उसका मुक़ाबला करता है।
3. जो शख्स अपने हरेक काम को पसंद करता है, उसकी अक्ल में नक्स (विकार) आ जाता है।
4. बुरे काम पर राज़ी होने वाला मानो उस का करने वाला है।
5. ऐसा बहुत कम होता है कि जल्दबाज़ नुक्सान न उठाए और सब्र करने वाला कामयाब न हो।
6. जिस शख्स के दिल में जितना ज़्यादा (नाजायज़) लालच होता है, उसको अल्लाह तआला पर उतना ही कम यक़ीन होता है।
स्रोत : राष्ट्रीय सहारा उर्दू, पृ. 7 दिनांक 20 जून २०११

Sunday, June 19, 2011

पाताल लोक में कैसे पहुंचेगी हिंदी ब्लॉगिंग ? - Dr. Anwer Jamal

जागरण जंक्शन में सबसे ज़्यादा देखे जाने वाली एक पोस्ट यह भी है। इसमें लेखक ने एक विशेष पहलू उजागर किया है।

महिलायें कहीं खुद सेक्स सिंबल के सहारे तो जमीनी लड़ाई लडऩे के मूड में नहीं है। कारण, महिलायें भी खुद देह का इस्तेमाल औजार, हथियार के तौर पर करते हुये अब इसे खुले बाजार में वाद का हिस्सा बना दिया है। मर्डर-2 के पांच पोस्टर सबके सब अश्लील, बाजार में उतारे गये हैं। लोगों से अपील की गयी है कि मादक पोस्टर को चुनने में निर्माता-निदेशक को मदद करें। ये फिल्में बच्चों के लिये नहीं हैं। इसकी हीरोइन श्रीलंका से आयात की गयी हैं। क्योंकि भारतीय हीराइनें तो कपड़ा उतारने से रहीं सो श्रीलंकाई सुंदरी जैकलीन फर्नांडीज को सेक्स बम के रूप में परोसा गया है जो भारत के इमरान हाशमी सेलिपटेंगी और यहां के मर्द उसकी मादकता को झेलकर किसी अनजान, सड़कों पर गुजर-बसर करने वाली लड़की को हवस का शिकार बनायेंगे। आज समय ने जरूर सोच को बदल दिया है। लड़कियां हर क्षेत्र में अगुआ बन रही हैं लेकिन भोग्या के रूप में उसके चरित्र में कहीं कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा। वह आज भी दैहिक सुख की एक सुखद परिभाषा भर ही है। जमाना बदला है। सोच बदलने के बाद भी लड़कियां कहीं मर्डर-2 में कपड़े उतारती दिखती है तो कहीं ब्रिटनी सर्वश्रेष्ठ समलैगिंक आइकान चुनी जाती हैं। कारोबार चलाने की अचूक हथियार साबित हो रही हैं ऐसी लड़कियां। पान की दुकान पर बैठी महिला की एक मुस्कान को तरसते लोगों को देखकर तो यही लगता है। एक गांव है। वहां के पुल के बगल में एक पानवाली आजकल, इन दिनों, कुछ दिनों से दुकान चला रही हैं। उस दुकान में सिर्फ और सिर्फ कुछ है तो सिर्फ पान और वह पानवाली। कटघरे में वह दुकान एक जीर्ण मंदिर के कोख में है। वहां पहले रूकना क्या, कोई झांकना भी उचित नहीं समझता था। आज हर किसी की न सिर्फ वहां बैठकी होती है बल्कि जो गुजरता है पानवाली की एक झलक देखे बिना आगे नहीं बढ़ता। अगल-बगल के पानदुकानदारों के सामने एक खिल्ली भी बेचना मुश्किल। पता नहीं उस पानवाली की पान में क्या टेस्ट है कि हर शौकीन वहीं जुट रहे हैं, घंटों राजनीति की बाते वहीं उसी पानवाली की दुकान पर। घंटों बतियाते लोग कई बार पान खाते। बार-बार पानवाली को आंखों से टटोलते। देह विमर्श को निहारते और भारी मन से वहां से विदा होते हैं। शहरी संस्कृति में नित नये प्रयोग हो ही रहे हैं। 

http://manoranjanthakur.jagranjunction.com/2011/06/12/%E0%A4%88%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%B2-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87/

जो बात लेखक ने पान वाली के बारे में अनुभव की है। उसी बात को बहुत से लोग कुछ विशेष महिला लेखिकाओं के बारे में कह चुके हैं। बेचारा पुरूष ब्लॉगर अच्छी और सार्थक पोस्ट को बैठा हुआ ख़ुद ही पढ़ता रहेगा और बार बार स्टैट्स चेक करके देखता रहेगा कि मेरे अलावा कितनों ने और पढ़ी है मेरी पोस्ट ?
जबकि दूसरी तरफ़ वैसे ही बस चुहल करने के लिए भी कोई लिख देगी तो उसे पढ़ने के लिए पुरूष ब्लॉगर्स की भीड़ लग जाएगी बिल्कुल ऐसे ही जैसे कि पान वाली की दुकान पर लग जाती है।
जब भी कोई आवाज़ हिंदी ब्लॉग जगत में लगाई गई कि सार्थक लिखो, मार्ग पर चलो और मार्ग दिखाओ तो यह आवाज़ सबसे ज़्यादा नागवार ब्लॉग जगत की इन पान वालियों को और इनके टिप्पणीकारों को ही लगी।
ऐसा क्यों है ?
इस पर विचार किया जाना आवश्यक है।
कहीं ऐसा न हो कि अब स्वर्ग में ब्लॉगिंग तो एक कल्पना ही रहे और हिंदी ब्लॉगिंग को ही ये लोग पाताल में उतार डालें।   

न्याय और सुरक्षा केवल इस्लाम में ही निहित है

http://www.nnilive.com/2010-10-12-09-44-21/5350-nni-natinol-news.html
मंदिरों और मज़ारों पर लोग चढ़ावे चढ़ाते हैं और वहां दौलत के ढेर लग जाते हैं। साधुओं और क़लंदरों को दौलत की ज़रूरत कभी नहीं रही। उनके रूप बनाकर आजकल नक़ली लोग आस्था का व्यापार कर रहे हैं। अगर इन लोगों के पास केवल ज़रूरतें पूरी होने जितना धन छोड़कर बाक़ी को उसी संप्रदाय के ग़रीब लोगों के कल्याण में ख़र्च कर दिया जाए तो दान दाता का मक़सद पूरा हो जाएगा। जो साधू और जो क़लंदर सरकार के इस क़दम का विरोध करे तो समझ लीजिए कि यह दौलत का पुजारी है ईश्वर का पुजारी नहीं है।
इन जगहों पर दौलत का ढेर लगा है और सरकार इनके खि़लाफ़ कोई क़दम नहीं उठाती है। इसके पीछे कारण यह है कि राजनीति करने वालों का इनसे पैक्ट है कि आप तो जनता का ध्यान हमारी तरफ़ मत आने देना और आपके ख़ज़ानों की तरफ़ हम ध्यान नहीं देंगे। पूंजीपतियों ने भी यही संधि राजनेताओं से कर रखी है। इस संधि को नौकरशाह और मीडिया, दोनों ख़ूब जानते हैं लेकिन फिर भी चुप रहते हैं। इसके एवज़ में उनकी ज़िंदगी ऐश से बसर होती है। अपनी ऐश के लिए इन लोगों ने पूरे देश को भूख, ग़रीबी और जुर्म की दलदल में धंसा दिया है। जो भी पत्रकार इनके खि़लाफ़ बोलता है उसे मार दिया जाता है। जो भी साधु इनके खि़लाफ़ बोलता है उसे भी मार दिया जाता है। मिड डे अख़बार के पत्रकार जे डे को मुंबई में और स्वामी निगमानंद को हरिद्वार-देहरादून में मार दिया गया। सब जानते हैं कि इनकी मौत इनके सच बोलने के कारण हुई है। इस तरह ये लोग अंडरवल्र्ड के क़ातिलों को भी अपने मक़सद के लिए इस्तेमाल करते हैं और बदले में उन्हें देश में अपने अवैध धंधे करने की छूट देते हैं। इस समय हमारे समाज की संरचना यह है। 
जो भी आदमी अपना जो भी कारोबार कर रहा है या नेता बन रहा है, वह इसी संरचना के अंदर कर रहा है। इस संरचना को तोड़ सके, ऐसा जीवट फ़िलहाल किसी में नज़र नहीं आता और न ही किसी के पास इस संरचना को ध्वस्त करने का कोई तरीक़ा है और न ही एक आदर्श समाज की व्यवहारिक संरचना का कोई ख़ाका उन लोगों के पास है जो भ्रष्टाचार आदि के खि़लाफ़ आंदोलन चला रहे हैं। 
यह सब कुछ इस्लाम के अलावा कहीं और है ही नहीं और इस्लाम को ये मानते नहीं। अस्ल समस्या यह है कि समस्याओं के समाधान का जो स्रोत वास्तव में है, उसे लोग मानते ही नहीं। जब लोग सीधे रास्ते पर आगे न बढ़ें तो किसी न किसी दलदल में तो वे गिरेंगे ही। उसके बाद जब ये लोग दलदल में धंस जाते हैं और तरह तरह के कष्ट भोगते हैं तो अपने विचार और अपने कर्म को दोष देने के बजाय दोष ईश्वर को देने लगते हैं। कहते हैं कि ‘क्या ईश्वर ने हमें दुख भोगने के लिए पैदा किया है ?‘
‘नहीं, उसने तो तुम्हें अपना हुक्म मानने के लिए पैदा किया है और दुख से रक्षा का उपाय मात्र यही है तुम्हारे लिए।‘
जो भी बच्चा मेले में अपने बाप की उंगली छोड़ देता है, वह भटक जाता है और जो भटक जाता है वह तब तक कष्ट भोगता है जब तक कि वह दोबारा से अपने बाप की उंगली नहीं थाम लेता।
सुख की सामूहिक उपलब्धि के लिए हमें ईश्वर के बताए ‘सीधे मार्ग‘ पर सामूहिक रूप से ही चलना पड़ेगा वर्ना तब तक जे डे और निगमानंद मरते ही रहेंगे और इनके क़ातिलों के साथ साथ इनका ख़ून उन लोगों की गर्दन पर भी होगा जो कि इस्लाम को नहीं मानते। 
न्याय और सुरक्षा केवल इस्लाम में ही निहित है।
जो क़त्ल करेगा, उसका सिर उसके कंधों पर सलामत नहीं छोड़ती है जो व्यवस्था, उसे अपनाने में आनाकानी क्यों ? 

Saturday, June 18, 2011

क्या नास्तिक बंधु इस नई साइंसी खोज को स्वीकार करेंगे ? - Dr. Anwer Jamal


नास्तिक भाई एक ओर तो यह दावा करते हैं कि वे प्रकृति को मानते हैं और यह भी कि वे विज्ञान को मानते हैं लेकिन हक़ीक़त यह है कि उनके मन में नास्तिकता के जो विचार जड़ जमा चुके हैं उनके सामने वे न तो विज्ञान को मानते हैं और न ही प्राकृतिक नियमों को। 
पिछले दिनों आदरणीय दिनेश राय द्विवेदी जी ने हमारी एक पोस्ट पर टिप्पणी की और अपने नास्तिक मत का तज़्करा करते हुए हमसे सवाल किया था। जिसका हमने उचित जवाब दे दिया था। जिसे आप यहां देख सकते हैं

सवाल हल हो चुकने के बावजूद आज उन्होंने फिर वही सवाल दोहरा दिया। अंतर केवल इतना है कि पहले सवाल उन्होंने अपने शब्दों में किया था और इस बार उन्होंने भगत सिंह को उद्धृत किया है
http://islam.amankapaigham.com/2011/06/blog-post_17.html?showComment=1308385296345#c5253925682720558514

भगत सिंह के दिमाग़ में अगर नास्तिकता भरे  सवाल उठे तो उसके पीछे एक बड़ी वजह तो यह रही कि उस समय तक लोगों का ख़याल था कि ईश्वर, आत्मा और धर्म में विश्वास माहौल की देन है लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक रिसर्च के बाद यह हक़ीक़त सामने आई है कि यह इंसान की प्रकृति का अभिन्न अंग है। जो चीज़ इंसान की प्रकृति का अभिन्न अंग है, नास्तिक लोग उससे पलायन कैसे कर सकते हैं और करना ही क्यों चाहते हैं ?
फिर प्रकृति को मानने के दावे का क्या होगा ?
ईश्वर और धर्म के नाम पर पुरोहित वर्ग ने कमज़ोर वर्गों का शोषण किया, इसलिए लोगों को ईश्वर और धर्म से विरक्ति हो गई। अगर इस बात को सही मान लिया जाए तो फिर ईश्वर और आत्मा को न मानने वाले दार्शनिकों के विहारों में भी जमकर अनाचार हुआ और नास्तिक राजाओं ने भी जमकर अत्याचार किया। इससे ज़ाहिर है कि नास्तिकता लोगों के दुखों का हल नहीं है बल्कि यह उनके दुखों को और भी ज़्यादा बढ़ा देती है। अगर ऐसा नहीं है तो किसी एक नास्तिक शासक के राज्य का उदाहरण दीजिए, जहां लोगों की बुनियादी ज़रूरतें किसी धर्म आधारित राज्य से ज़्यादा बेहतर तरीक़े से पूरी हो रही हों ?

हक़ और बातिल की इसी पोस्ट पर प्रिय प्रवीण जी भी अपने हलशुदा सवालों को दोहरा रहे हैं। उन्हें लगता है कि ईश्वर की प्रशंसा करना उसकी ईगो को सहलाने जैसा है। वह कहते हैं :
धर्म अपने पक्ष में सबसे बड़ा तर्क यह देता है कि 'फैसले' के खौफ से ज्यादातर इन्सान नियंत्रण में रहते हैं क्योंकि वो नर्क की आग से डरते हैं और स्वर्ग के सुख भोगना चाहते हैं... इसका एक सीधा मतलब यह भी है कि अधिकाँश Hypocrite= ढोंगी,पाखण्डी अपने मूल स्वभाव को छुपाकर, अपनी अंदरूनी नीचता को काबू कर, नियत तरीके से 'उस' का नियमित Ego Massage करके स्वर्ग में प्रवेश पाने में कामयाब रहेंगे...
और एक बार स्वर्ग पहुंच कर मानवता की यह गंदगी (Scum of Humanity) अपने असली रूप में आ जायेगी... क्योंकि इनकी Free Will (स्वतंत्र इच्छा) पर 'उस' का कोई जोर तो चलता नहीं!
हक़ीक़त यह है कि स्वर्ग-नर्क का कॉन्सेप्ट ख़ुद हिंदू संप्रदायों में भिन्न-भिन्न मिलता है। यह नज़रिया यहूदी मत, ईसाई मत और इस्लाम धर्म में भी एक समान नहीं पाया जाता। इसलिए प्रिय प्रवीण जी के सवाल से यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने स्वर्ग-नर्क के विषय में किस मत या किस धर्म की धारणा को बुनियाद बनाकर सवाल किया है ?
प्रत्येक कर्म का एक परिणाम अनिवार्य है। नेक काम का अंजाम अच्छा हो और बुरे काम का परिणाम कष्ट हो, ऐसा मानव की प्रकृति चाहती है। अगर दुनिया में सामूहिक चेतना परिष्कृत हो जाय तो दुनिया में ऐसा ही होगा लेकिन दुनिया में ऐसा नहीं होता। इसलिए दुनिया के बाद ही सही लेकिन इंसान की प्रकृति की मांग पूरी होनी ही चाहिए। 
दुनिया में न्याय होता नहीं है। यह एक सत्य बात है। अब अगर लोगों को यह आशा है कि मरने के बाद उन्हें न्याय मिल जाएगा तो नास्तिक बंधु लोगों को न्याय से पूरी तरह निराश क्यों कर देना चाहते हैं ?
ऐसा करके वे समाज को कौन सी सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं ?
क्या नास्तिक बंधु इस नई साइंसी खोज को स्वीकार करेंगे ?

Friday, June 17, 2011

इंसान की मौत ही बताती है कि इस दुनिया में एक व्यवस्था काम कर रही है - Dr. Anwer Jamal

आज ज़ाकिर अली ‘रजनीश‘ के ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी जिसमें वह नास्तिकों के किसी ब्लॉग ‘संवाद घर‘ की तारीफ़ कर रहे थे। संवाद घर के मालिक हैं संजय ग्रोवर। वह कहते हैं कि नास्तिकों के साथ ईश्वर में आस्था रखने वाले भी मर जाते हैं। इससे पता चलता है कि ईश्वर है ही नहीं।
बड़ी अजीब बात है कि जो चीज़ इंसान को ईश्वर की पहचान कराती है उसे ही ईश्वर के इन्कार का सामान बना लिया।
इंसान की मौत ही बताती है कि इस दुनिया में एक व्यवस्था काम कर रही है। मौत हरेक इंसान को आती है। इसी तरह इंसान की पैदाइश एक व्यवस्था का पता देती है। उसी व्यवस्था को जानने के बाद आज वैज्ञानिक कृत्रिम प्रजनन आदि में सफल हो पाए हैं। यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि व्यवस्था ख़ुद से कभी नहीं होती बल्कि उसे स्थापित करने वाला और उसे बनाए रखने वाला कोई होता ज़रूर है। प्रकृति की व्यवस्था को देखकर हम आसानी से जान सकते हैं कि यह सुव्यवस्थित सृष्टि किसी सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ हस्ती का काम है, इसी को ईश्वर, अल्लाह और गॉड कहते हैं। जो इसे मानता है और उसके विधान का पालन करता है उसे आस्तिक कहते हैं और जो इस सत्य का इन्कार करता है उसे नास्तिक कहते हैं। सत्य का इन्कार करने वाला कभी अपनी असल मंज़िल को पा नहीं सकता। 
यह बात सभी नास्तिकों को जान लेनी चाहिए। 

Wednesday, June 15, 2011

हमारी वाणी के दो मालिकों से चार बातें


किसी भी संस्था को चलाने के लिए ज़रूरी है कि उसके मालिक उसके प्रति ज़िम्मेदारी महसूस करते हों और जो कुछ ज़रूरतें हों उन्हें वे समय रहते पूरी भी करते हों। इसी के साथ संस्था की कामयाबी इस बात पर भी निर्भर करती है कि संस्था के कर्मचारी संस्था के प्रति कितने ईमानदार हैं ?, वे उसके प्रति कितने वफ़ादार हैं ?
कर्मचारियों की वफ़ादारी का पता उनके इस अमल से चलेगा कि वे संस्था के राज़ को कितना राज़ रख पाते हैं ?
हमारी वाणी भी एक संस्था है और उसकी कामयाबी भी मालिकों की ज़िम्मेदारी और कर्मचारियों की वफ़ादारी पर ही टिकी हुई है।
हमें हमारी वाणी के मालिकों से कोई शिकायत नहीं है। हम देख रहे हैं कि हमारी वाणी को जितना रूपया और जो कुछ साधन आवश्यक था, वह सब उन्होंने उपलब्ध कराया और हिंदी ब्लॉगर्स को निःशुल्क सेवा प्रदान की। उनकी सेवा क़ाबिले तारीफ़ है। हम मालिक से उनकी कामयाबी की दुआ करते हैं।
इसके बावजूद भी हमें जब-तब हमारी वाणी के खि़लाफ़ आवाज़ उठाने पर मजबूर होना पड़ा।
ऐसा क्यों हुआ ?
यह समझना ज़रूरी है।
हमारा वाणी का एक इतिहास है और उसका यह सारा इतिहास हमारी नज़र के सामने है। इसीलिए हम जानते हैं कि कौन इसके मालिक कौन लोग हैं ?
ज़ाहिर है कि मालिक हर समय वेबसाइट पर बैठा नहीं रहेगा और यह भी पक्का है कि एक एग्रीगेटर को चलाने के लिए कम से कम एक टेक्नीशियन ज़रूर चाहिए।
हमारी वाणी के लिए यह काम शाहनवाज़ भाई कर रहे हैं।
शाहनवाज़ भाई की हमसे शुरू से ही बहुत पटती थी। ब्लॉग वाणी के दिनों में तो वह मेरे फ़ैन थे। उन दिनों उन्होंने मेरे लिए बहुत कुछ किया।
क्या किया ?, यह भी किसी दिन बताऊंगा लेकिन आज चर्चा है हमारी वाणी की। सो जब उन्होंने हमारी वाणी को अपनी सेवाएं देनी शुरू कीं और यह ख़ुशदीप भाई वग़ैरह के हमारी वाणी से जुड़ने के बाद की बात है, तब वह हमें हमारी वाणी की हरेक राज़ की बात बता दिया करते थे। हमें इंटरनेट के तकनीकी पक्ष की जानकारी आज जो कुछ है उसमें एक योगदान शाहनवाज़ भाई का भी है। इन्हीं जानकारियों में एक दिन उन्होंने बताया कि आप लोग जब चाहो अपनी पोस्ट हमारी वाणी की हॉट लिस्ट में ला सकते हो।
हमें यह जानकारी बिल्कुल अद्भुत लगी। फिर हमने इस ‘ज्ञान‘ को चेक किया तो वह सोलह आने काम कर रहा था। तब हॉट लिस्ट में वह पोस्ट भी आ जाया करती थी जिसे मात्र 3 आदमी ही देखा करते थे। 3 से ज़्यादा तो हमारे विरोधी ही थे। इससे ज़्यादा हिट तो हमारी पोस्ट को देने के लिए हमारे विरोधी ही काफ़ी थे। सो हमें यह तकनीक इस्तेमाल करने की ज़रूरत कभी आई ही नहीं। आज भी नहीं आती। आज भी चार-पांच समर्थक और दो-चार विरोधी हमारी पोस्ट पर क्लिक कर ही देते हैं और हमारी पोस्ट हॉट में चढ़ जाती है। ब्लॉगवाणी की तरह यहां वोट की ज़रूरत ही नहीं है। हालांकि ब्लॉगवाणी में अपने वोट फ़र्ज़ी तरीक़े से कैसे बढ़ाए जाते हैं ?, यह बात भी बहुत पहले हमें शाहनवाज़ भाई ने ही बताई थी। हमने कभी फ़र्ज़ी वोट नहीं डाला। उसकी दो वजहें थीं। एक तो हमारे उस्ताद जनाब उमर कैरानवी साहब ने ऐसा करने से मना कर दिया था और दूसरा कारण यह था कि ज़रूरत ही नहीं थी।
ज़रूरत क्यों नहीं थी। यह भी एक राज़ की बात है जिसे आइंदा कभी बताया जाएगा। यहां हमारी वाणी की चर्चा चल रही है और यह ज़िक्र इसलिए करना पड़ रहा है कि हम जानते हैं कि अपनी पोस्ट पर एक ही सिस्टम से क्लिक करके अपनी पोस्ट को ऊपर चढ़ाया जा सकता है और यह भी सही है कि हम ऐसा करते नहीं और यह भी सही है कि शाहनवाज़ भाई के अलावा हमारी वाणी का यह राज़ किसी और को पता नहीं है।
अब इन सब बातों को सामने रखकर देखिए और सोचिए कि आजकल जैसे ही हम अपनी पोस्ट पब्लिश करते हैं तो तुरंत ही हमारी पोस्ट पर दस मिनट के अंदर ही 100 हिट पड़ जाते हैं।
इस समय भी हमारी वाणी के टॉप पर हमारी दो पोस्ट नज़र आ रही हैं
1- एक ग़ददार की विदाई पर क्या उद्गार मन में आया करते हैं ? (129)
2- आओ जीवन की ओर (123)
पहली पोस्ट पर 129 हिट्स हैं और दूसरी पर 123 हिट्स हैं।
सवाल यह है कि जब दूसरी पोस्ट हमने अभी दो घंटे पहले डाली है तो इस पर इतने हिट्स कहां से आ गए ?
ज़ाहिर है कि ये हिट्स फ़र्ज़ी हैं। जब हमने ये फ़र्ज़ी हिट्स नहीं लगाए तो फिर किसने लगाए ?
हमारी वाणी का यह राज़ तो सिर्फ़ शाहनवाज़ भाई ही जानते हैं।
यह फ़र्ज़ी हिट्स केवल हमारी पोस्ट पर ही लगाई जाती हैं ताकि यह दिखाया जाए कि देखिए अनवर जमाल फ़र्ज़ीवाड़ा कर रहा है।
ब्लॉग जगत में अनवर जमाल की छवि एक सच्चे और ईमानदार आदमी की है, उस छवि को धूमिल करने की कोशिश के तहत यह सब हो रहा है।
हम यह भी मान लेते कि यह सब शाहनवाज़ भाई के इशारे पर नहीं हो रहा है लेकिन हम यह भी देख रहे हैं कि जब भी हमने हिंदी ब्लॉगिंग को पतन के रास्ते पर धकेलने वाले लोगों के खि़लाफ़ कोई पोस्ट लिखी तो उसे तुरंत ही या कुछ देर बाद हटा दिया गया। इस क्रम में हमारी ऐसी पोस्ट को बलि चढ़ा दिया गया जिसमें उन लोगों की तरफ़ मात्र इशारा ही किया गया था।
बड़ा ब्लॉगर कैसे बनें ?‘ पर हमने यह पोस्ट पब्लिश की थी। यह पोस्ट ब्लॉग फ़िक्सिंग करके ईनाम घोटाला करने वालों के विरूद्ध थी। इसे भी हटा दिया गया।
http://tobeabigblogger.blogspot.com/2011/04/self-realization-in-toilet.html

इसे एग्रीगेटर की नीति नहीं कहा जा सकता। यह ख़ालिस पक्षपात की बात है। फिर ऐसा एक बार नहीं बल्कि बार-बार किया गया। यहां तक कि एक व्यक्ति विशेष के खि़लाफ़ लिखने के जुर्म में मेरे तीन ब्लॉग ही उड़ा दिए गए। हमारे ब्लॉग और हमारी पोस्ट ही नही उड़ाई गईं बल्कि जो निजी बातें हमने हमने शाहनवाज़ भाई को अपना समझकर बताई थीं। वे बातें विरोधी ख़ेमे वाले भी जान गए क्योंकि उनके ब्लॉग की सजावट आदि का काम भी यही साहब देख रहे हैं। उस जानने की चिंता हमें नहीं है बल्कि ख़ुशी है कि हमें पता चल गया कि हमारी पोस्ट इसी ख़ास वर्ग को ख़ुश करने के लिए हटाई जाती हैं।
हमें इसकी भी कोई शिकायत नहीं है। हम तो बस यह चाहते हैं कि हमारी पोस्ट हटाना और फिर लगा देना या हमारी पोस्ट पर किसी से कहकर 100 हिट लगाकर शाहनवाज़ भाई हमारी छवि ख़राब नहीं कर रहे हैं बल्कि अपनी छवि ख़राब कर रहे हैं। आज हमें मजबूर होकर बताना पड़ा कि हमारी वाणी का टेक्नीशियन हमारे खि़लाफ़ टुच्चे स्तर की साज़िशें कर रहा है।
इससे वह क्या लाभ उठाना चाहता है ?, यह तो वही जाने लेकिन उसके ऐसा करने से हमें परेशानी होती है और हमारी वाणी की साख भी ख़राब होती है।
शाहनवाज़ भाई ने हमारी वाणी के राज़ हमें बताए हैं तो दूसरे लोगों को भी ज़रूर बताए होंगे।
जिस आदमी पर हमारी वाणी ने भरोसा किया, वही आदमी हमारी वाणी के राज़ दुनिया भर में बताता फिर रहा है। ऐसे आदमी को अगर दुनिया ग़द्दार का नाम न दे तो आखि़र भला क्या नाम दे ?
अगर मालिकों में से किसी को शक हो तो हम अगली पोस्ट में वह तरीक़ा भी लिख देंगे जिसके ज़रिए हमारी पोस्ट के साथ रोज़ाना ही यह खिलवाड़ किया जा रहा है।
अगर हमारे रहने से कोई दिक्क़त है तो हम कह चुके हैं कि हमारा अकाउंट निकाल दिया जाए और 13 जून 2011 को टीम हमारी वाणी की आई डी से शाहनवाज़ कह चुके हैं कि आपकी इच्छानुसार आपके सारे ब्लाग हटा दिए जाएंगे लेकिन अब उन्हें हटाया नहीं गया है और मेरी पोस्ट्स के साथ खिलवाड़ बदस्तूर जारी है।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/06/dr-anwer-jamal_13.html?showComment=1308024921091#c7879847851555100552

मैंने अपनी शिकायत हमारी वाणी द्वारा सुझाए गए लिंक पर की और उसका जवाब भी मुझे मिला लेकिन खुशदीप भाई और मासूम साहब की टिप्पणियों से पता चला कि मेरी शिकायत को मार्गदर्शक मंडल के सामने न तो रखा गया और न ही उनसे कोई सलाह मशविरा किया गया। जबकि कहा यह जाता है कि शिकायत को मार्गदर्शक मंडल के सामने रखा जाता है।
हमारी वाणी की ईमेल शाहनवाज़ ही चेक करते हैं। यह भी उन्होंने ही मुझे बताया था। उन्होंने मेरी शिकायत किसी के भी सामने नहीं रखी और अपने अकेले के दम पर ही टीम हमारी वाणी बनकर मेरी पोस्ट पर भी टिप्पणी कर दी और वही ईमेल से भी मुझे भेज दिया।
इस तरह अकेले शाहनवाज़ ने न सिर्फ़ पूरे मार्गदर्शक मंडल को मेरी शिकायत के बारे में अन्जान रखा है बल्कि हिंदी ब्लॉग जगत के विश्वास को भी ठेस पहुंचाई है। सबसे कहा गया कि फ़ैसले कोई एक व्यक्ति नहीं लेता बल्कि ज़िम्मेदार हिंदी ब्लॉगर्स का एक मंडल लेता है लेकिन हक़ीक़त यह है अक्सर फ़ैसले शाहनवाज़ भाई अकेले ही ले रहे हैं।
हमारी वाणी के मालिको ! आप अपने काम में मसरूफ़ हैं। आप से मुझे कोई शिकायत नहीं है लेकिन मैं आपको यह बता देना चाहता हूं कि हमारी वाणी के टेक्नीशियन पद पर एक ग़द्दार आदमी बैठा है। यह मैं जान गया हूं। अतः आपको सूचित करना मैं अपना फ़र्ज़ मानता हूं ताकि हमारी वाणी को समय रहते बचाया जा सके हालांकि आप अति आत्मविश्वास और मोह के कारण मेरी बात नहीं सुनेंगे। यह भी मैं जानता हूं लेकिन समय आएगा जब आप याद करेंगे।
आप चाहें तो अपनी आस्तीन में सांप पाले रखिए लेकिन मुझे हमारी वाणी पर बने रहने में अब कोई दिलचस्पी नहीं है और आपसे विनती करता हूं कि मेरा अकाउंट अपने सम्मानित एग्रीगेटर से तुरंत हटाया जाए ताकि इस ग़द्दार की चालबाज़ियों के कारण मेरी छवि धूमिल न हो।
धन्यवाद !

आओ जीवन की ओर Hadith


ईश्वर अपने भक्तों का कल्याण करता है और अपने भक्तों के कल्याण के लिए ही वह ‘ज्ञान‘ का अवतरण करता है। यह ज्ञान की ज्योति वह एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में देता है जो सच्चा और अमानतदार होता है। पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब स. एक ऐसे ही मार्गदर्शक थे। ईश्वर की वाणी को क़ुरआन के नाम से जाना जाता है। ईश्वरीय प्रेरणा से जो वचन हज़रत मुहम्मद साहब स. ने कहे, उन्हें हदीस कहा जाता है। बु़ख़ारी, मुस्लिम, मौत्ता इमाम मालिक और तिरमिज़ी वग़ैरह हदीस ग्रंथ हैं। इन कथनों की ख़ासियत यह है कि ये सभी नैतिकता की उच्च कोटि और उच्च चोटी तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं। इनकी दूसरी ख़ासियत यह है कि यह केवल आदर्श वाक्य मात्र नहीं हैं बल्कि पैग़ंबर साहब स. ने इनके अनुसार व्यवहार करके भी दिखाया और आज हमारे पास जितने भी आदर्श कहे जाने वाले लोगों के चरित्र सुरक्षित हैं उनमें से किसी एक में भी ये दोनों ख़ासियतें दुनिया के किसी भी आदर्श में देखने में नहीं आतीं। आज पूरे मुल्क की हुकूमत और सारे नेता और महात्मा मिलकर भी कन्या भ्रूण हत्या नहीं रोक पा रहे हैं लेकिन अकेले पैग़ंबर साहब ने न जाने कितनी ही कुप्रथाओं को समाप्त कर डाला। लड़कियों को ज़िंदा दफ़न करना तब आम था। पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब स. के हुक्म के बाद अरबों ने यह कुप्रथा छोड़ दी। उन्हीं के कहने पर शराब, जुआ, सूद और ख़ून-ख़राबा आदि हरेक ज़ुल्म-ज़्यादती से लोगों ने तौबा कर ली। मानवता के पास आज एकमात्र उपाय यही है कि वह उनके आदर्श का अनुसरण करे। उनकी कुछ शिक्षाओं को आज यहां पेश किया जाता है। इनके पालन में मानव और मानव जाति का कल्याण निहित है। यह बात आप तुरंत जान लेंगे। यही इन शिक्षाओं की सच्चाई का सुबूत है।
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च्छा मनुष्य, अच्छा ख़ानदान, अच्छा समाज और अच्छी व्यवस्था-यह ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें हमेशा से, हर इन्सान पसन्द करता आया है क्योंकि अच्छाई को पसन्द करना मानव-प्रकृति की शाश्वत विशेषता है।

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) ने इन्सान, ख़ानदान, समाज और व्यवस्था को अच्छा और उत्तम बनाने के लिए जीवन भर घोर यत्न भी किए और इस काम में बाधा डालने वाले कारकों व तत्वों से संघर्ष भी। इस यत्न में उन शिक्षाओं का बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका और स्थान है जो आपने अपने समय के इन्सानों को, अपने साथियों व अनुयायियों को तथा उनके माध्यम से भविष्य के इन्सानों को दीं। ये शिक्षाएं जीवन के हर पहलू, हर क्षेत्र, अर अंग से संबंधित हैं। ये हज़ारों की संख्या में हैं जिन्हें बहुत ही तवज्जोह, निपुणता, और सत्यनिष्ठा के साथ एकत्रित, संकलित व संग्रहित करके ‘हदीसशास्त्र’ के रूप में मानवजाति के उपलब्ध करा दिया गया है। इनमें से कुछ शिक्षाएं (सार/भावार्थ) यहां प्रस्तुत की जा रही हैं:  

● जो व्यक्ति अपने छोटे-छोटे बच्चों के भरण-पोषण के लिए जायज़ कमाई के लिए दौड़-धूप करता है वह ‘अल्लाह की राह में’ दौड़-धूप करने वाला माना जाएगा।
● घूस लेने और देने वाले पर लानत है...कोई क़ौम ऐसी नहीं जिसमें घूस का प्रचलन हो और उसे भय व आशंकाए घेर न लें।
● सबसे बुरा भोज (बुरी दअ़वत) वह है जिसमें धनवानों को बुलाया जाए और निर्धनों को छोड़ दिया जाए।
● सबसे बुरा व्यक्ति वह है जो अपनी पत्नी के साथ किए गए गुप्त व्यवहारों (यौन क्रियाओं) को लोगों से कहता, राज़ में रखी जाने वाली बातों को खोलता है।
● यदि तुमने मां-बाप की सेवा की, उन्हें ख़ुश रखा, उनका आज्ञापालन किया तो स्वर्ग (जन्नत) में जाओगे। उन्हें दुख पहुंचाया, उनका दिल दुखाया, उन्हें छोड़ दिया तो नरक (जहन्नम) के पात्र बनोगे।
● ईश्वर की नाफ़रमानी (अवज्ञा) की बातों में किसी भी व्यक्ति (चाहे माता-पिता ही हों) का आज्ञापालन निषेध, हराम, वर्जित है।
● बाप जन्नत का दरवाज़ा है और मां के पैरों तले जन्नत है (अर्थात् मां की सेवा जन्नत-प्राप्ति का साधन बनेगी)।
● तुम लोग अपनी सन्तान के साथ दया व प्रेम और सद्व्यवहार से पेश आओ और उन्हें अच्छी (नैतिक) शिक्षा-दीक्षा दो।
● सन्तान के लिए माता-पिता का श्रेष्ठतम उपहार (तोहफ़ा, Gift) है उन्हें अच्छी शिक्षा-दीक्षा देना, उच्च शिष्टाचार सिखाना।
● तुममें सबसे अच्छा इन्सान वह है जो अपनी औरतों के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करे।
● पत्नी के साथ दया व करुणा से पेश आओ तो अच्छा जीवन बीतेगा।
● अल्लाह की अवज्ञा (Disobedience) से बचो। रोज़ी कमाने का ग़लत तरीक़ा, ग़लत साधन, ग़लत रास्ता न अपनाओ, क्योंकि कोई व्यक्ति उस वक्त तक मर नहीं सकता जब तक (उसके भाग्य में लिखी) पूरी रोज़ी उसको मिल न जाए। हां, उसके मिलने में कुछ देरी या कठिनाई हो सकती है। (तब धैर्य रखो, बुरे तरीके़ मत अपनाओ) अल्लाह से डरते हुए, उसकी नाफ़रमानी से बचते हुए सही, जायज़, हलाल तरीके़ इख़्तियार करना और हराम रोज़ी के क़रीब भी मत जाना।
● वस्त्रहीन (नंगे) होकर मत नहाओ। अल्लाह हया वाला है और अल्लाह के (अदृश्य) फ़रिश्ते भी (जो हर समय तुम्हारे आसपास रहते हैं) हया करते हैं।
● पति-पत्नी, यौन-संभोग के समय पशुओं के समान नंगे न हो जाएं।
● अत्याचारी, क्रूर और ज़ालिम शासक के सामने हक़ (सच्ची, खरी, न्यायनिष्ठ) बात कहना (सच्चाई की आवाज़ उठाना) सबसे बड़ा जिहाद है।
● धन हो तो ज़रूरतमन्दों को क़र्ज़ दो। वापसी के लिए इतनी मोहलत (समय) दो कि कर्ज़दार व्यक्ति उसे आसानी से लौटा सके। किसी वास्तविक व अवश्यंभावी मजबूरी से, समय पर न लौटा सके तो उस पर सख़्ती तथा उसका अपमान मत करो, उसे और समय दो।
● क़र्ज़ (ऋण) पर ब्याज न लो (ब्याज इस्लाम में हराम है)।
● सामर्थ्य हो जाए, आर्थिक स्थिति अनुकूल हो जाए फिर भी क़र्ज़ वापस लौटाया न जाए तो यह महापाप है (जिसका दंड परलोक में नरक की यातना व प्रकोप के रूप में भुगतना पड़ेगा)।
● ईश्वर चाहे तो इन्सान के गुनाह माफ़ कर दे। लेकिन उस व्यक्ति को माफ़ नहीं करेगा, चाहे वह शहीद (ईश मार्ग में जान भी दे देने वाला) ही क्यों न हो जो क़र्ज़ वापस लौटाने का सामर्थ्य होते हुए भी क़र्ज़दार होकर मरा।
● जो व्यक्ति क़र्ज़ वापस किए बिना (इस कारण कि वह इसका सामर्थ्य नहीं रखता था) मर गया तो उसकी अदायगी की ज़िम्मेदारी इस्लामी कल्याणकारी राज्य (उसके शासक) पर है।
● क़र्ज़ देकर एक व्यक्ति किसी ज़रूरतमंद आदमी को चोरी, ब्याज और भीख मांगने से बचा लेता है।
● मांगने के लिए हाथ मत फैलाओ, यह चेहरे को यशहीन कर देता (और आत्म-सम्मान के लिए घातक होता) है। मेहनत-मशक्क़त करो और परिश्रम से रोज़ी कमाओ। नीचे वाला (भीख लेने वाला) हाथ, ऊपर वाले (भीख देने वाले) हाथ से तुच्छ, हीन होता है।
 मज़दूर की मज़दूरी उसके शरीर का पसीना सूखने से पहले दे दो (अर्थात् टाल-मटोल, बहाना आदि करके, उसे उसका परिश्रमिक देने में अनुचित देरी मत करो)।
● सरकारी कर्मचारियों को भेंट-उपहार देना घूस (रिश्वत) है।
● मज़दूर की मज़दूरी तय किए बिना उससे काम न लो।
● अल्लाह कहता है कि परलोक में मैं तीन आदमियों का दुश्मन हूंगा। एक: जिसने मेरा नाम लेकर (जैसे-‘अल्लाह की क़सम’ खाकर)  किसी से कोई वादा किया, फिर उससे मुकर गया, दो: जिसने किसी आज़ाद आदमी को बेचकर उसकी क़ीमत खाई; तीन: जिसने मज़दूर से पूरी मेहनत ली और फिर उसे पूरी मज़दूरी न दी।
● पत्नी के मुंह में हलाल कमाई का कौर (लुक़मा) डालना इबादत है।
● रास्ते में पड़ी कष्टदायक चीज़ें (कांटा, पत्थर, केले का छिलका आदि) हटा देना (ताकि राहगीरों को तकलीफ़ से बचाया जाए) इबादत है।
● कोई व्यक्ति (मृत्यु-पश्चात) माल छोड़ जाए तो वह माल उसके घर वालों के लिए है। और किसी (कम उम्र सन्तान, पत्नी, आश्रित माता-पिता आदि) को बेसहारा छोड़ (कर मर) जाए तो उसकी ज़िम्मेदारी मुझ (इस्लामी सरकार) पर है।
● जिसका भरण-पोषण करने वाला कोई नहीं उस (असहाय, Destitute) के भरण-पोषण का ज़िम्मेदार राज्य है।
● जिस व्यक्ति ने बाज़ार में कृत्रिम अभाव (Artificial Scarecity) पैदा करने की नीयत से चालीस दिन अनाज को भाव चढ़ाने के लिए रोके रखा (जमाख़ोरी Hoarding की) तो ईश्वर का उससे कोई संबंध नहीं, फिर अगर वह उस अनाज को ख़ैरात (दान) भी कर दे तो ईश्वर उसे क्षमा नहीं करेगा। उसकी चालीस वर्ष की नमाज़ें भी ईश्वर के निकट अस्वीकार्य (Unacceptable) हो जाएंगी।
● मुसलमानों में मुफ़लिस (दरिद्र) वास्तव में वह है जो दुनिया से जाने के बाद (मरणोपरांत) इस अवस्था में, परलोक में ईश्वर की अदालत में पहुंचा कि उसके पास नमाज़, रोज़ा, हज आदि उपासनाओं के सवाब (पुण्य) का ढेर था। लेकिन साथ ही वह सांसारिक जीवन में किसी पर लांछन लगाकर, किसी का माल अवैध रूप से खाकर किसी को अनुचित मारपीट कर, किसी का चरित्रहनन करके, किसी की हत्या करके आया था। फिर अल्लाह उसकी एक-एक नेकी (पुण्य कार्य का सवाब) प्रभावित लोगों में बांटता जाएगा, यहां तक उसके पास कुछ सवाब बचा न रह गया, और इन्साफ़ अभी भी पूरा न हुआ तो प्रभावित लोगों के गुनाह उस पर डाले जाएंगे। यहां तक कि बिल्कुल ख़ाली-हाथ (दरिद्र) होकर नरक (जहन्नम) में डाल दिया जाएगा।
● अल्लाह फ़रमाता है कि बीमार की सेवा करो, भूखे को खाना खिलाओ, वस्त्रहीन को वस्त्र दो, प्यासे को पानी पिलाओ। ऐसा नहीं करोगे तो मानो मेरा हाल न पूछा, जबकि मानों मैं स्वयं बीमार था; मानो मुझे कपड़ा नहीं पहनाया, मानो मैं वस्त्रहीन था, मानो मुझे खाना-पानी नहीं दिया जैसे कि स्वयं मैं भूखा-प्यासा था।
● किसी परायी स्त्री को (व्यर्थ, अनावश्यक रूप से) मत देखो, सिवाय इसके कि अनचाहे नज़र पड़ जाए। नज़र हटा लो। पहली निगाह तो तुम्हारी अपनी थी; इसके बाद की हर निगाह शैतान की निगाह होगी। (अर्थात् शैतान उन बाद वाली निगाहों के ज़रिए बड़े-बड़े नैतिक व चारित्रिक दोष, बड़ी-बड़ी बुराइयां उत्पन्न कर देगा।)
● वह औरत (स्वर्ग में जाना तो दूर रहा) स्वर्ग की ख़ुशबू भी नहीं पा सकती जो लिबास पहनकर भी नंगी रहती है (अर्थात् बहुत चुस्त, पारदर्शी, तंग या कम व अपर्याप्त (Scanty) लिबास पहनकर, देह प्रदर्शन करती और समाज में नैतिक मूल्यों के हनन, ह्रास, विघटन तथा अनाचार का साधन व माध्यम बनती है)।
● दो पराए (ना-महरम) स्त्री-पुरुष जब एकांत में होते हैं तो सिर्फ़ वही दो नहीं होते बल्कि उनके बीच एक तीसरा भी अवश्य होता है और वह है ‘‘शैतान’’। (अर्थात् शैतान के द्वारा दोनों के बीच अनैतिक संबंध स्थापित होने की शंका व संभावना बहुत होती है।)
● तुम (ईमान वालों, अर्थात् मुस्लिमों) में सबसे अच्छा व्यक्ति वह है जिसके स्वभाव (अख़लाक़) सबसे अच्छे हैं।
● वह व्यक्ति (यथार्थ रूप में) मोमिन (अर्थात् ईमान वाला, मुस्लिम) नहीं है जिसका (कोई ग़रीब पड़ोसी भूखा सो जाए, और इस व्यक्ति को उसकी कोई चिंता न हो और यह पेट भर खाना खाकर सोए।
● वह व्यक्ति (सच्चा, पूरा, पक्का) मोमिन मुस्लिम नहीं है जिसके उत्पात और जिसकी शरारतों से उसका पड़ोसी सुरक्षित न हो।
● फल खाकर छिलके मकान के बाहर न डाला करो। हो सकता है आसपास (पड़ोसियों) के ग़रीब घरों के बच्चे उसे देखकर महरूमी, ग्लानि और अपनी ग़रीबी के एहसास से दुखी हो उठें।
● अपने अधीनों (मातहतों, Subordinates) से, उनको क्षमता, शक्ति से अधिक काम न लो।
● पानी में मलमूत्र मत करो (जल-प्रदूषण उत्पन्न न करो) ज़मीन पर किसी बिल (सूराख़) में मूत्र मत करो। (इससे कोई हानिकारक कीड़ा, सांप-बिच्छू आदि, निकल कर तुम्हें हानि पहुंचा सकता है और इससे पर्यावर्णीय संतुलन भी प्रभावित होगा।)
● अगर तुम कोई पौधा लगा रहे हो और प्रलय (इस संसार की और धर्ती की समाप्ति का समय) आ जाए तब भी पौधे को लगा दो। (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से वातावर्णीय हित के लिए वृक्षारोपण का महत्व बताया गया है।)
● पानी का इस्तेमाल एहतियात से करो चाहे जलाशय से ही पानी क्यों न लिया हो और उसके किनारे बैठे पानी इस्तेमाल कर रहे हो। ज़रूरत से ज़्यादा पानी व्यय (प्राकृतिक संसाधन का अपव्यय) मत करो (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से जल-संसाधन अनुरक्षण (Water resource conservation) के महत्व का भाव निहित है)।
● भोजन के बर्तन में कुछ भी छोड़ो मत। एक-एक दाने में बरकत है। बर्तन को पूरी तरह साफ़ कर लिया करो। खाद्यान्न/खाद्यपदार्थ का अपव्यय मत करो। (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से खाद्य-संसाधन-अनुरक्षण (Food resource conservation) का भाव निहित है।
● किसी पक्षी को (पिजड़े आदि में) क़ैद करके न रखो। (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से हर जीवधारी के ‘स्वतंत्र रहने’ के मौलिक अधिकार का महत्व निहित है।)
● किसी पालतू जानवर-विशेषतः जिससे तुम अपना काम लेते हो, जैसे बैल, ऊंट, गधा, घोड़ा आदि–को भूखा-प्यासा मत रखो, उससे उसकी ताक़त से ज़्यादा काम मत लो; उसको निर्दयता के साथ मारो मत। याद रखो, आज जितनी शक्ति तुम्हें उस पर हासिल है, परलोक में (ईश्वरीय अदालत लगने के समय) ईश्वर को तुम पर उससे अधिक शक्ति होगी।
● दान दो (विशेषतः किसी व्यक्ति को) तो इस तरह दो कि तुम्हारा दायां हाथ दे तो बाएं हाथ को मालूम न हो। (अर्थात् दान देने में, दिखावा मत करो कि लोगों में दानी-परोपकारी व्यक्ति के तौर पर अपनी शोहरत के अभिलाशी रहो। दान मात्र ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए, परलोक में अल्लाह ही से पारितोषिक पाने के लिए दो।)
● जिसे दान दो उस पर एहसान, उपकार मत जताओ, उसे मानसिक दुःख मत पहुंचाओ।
● जिसने किसी ज़िम्मी (इस्लामी शासन में ग़ैर-मुस्लिम बाशिन्दे) की हत्या की उसके ख़िलाफ़ अल्लाह की अदालत में (परलोक में) ख़ुद मैं मुक़दमा दायर करूंगा। (विदित हो कि ‘ज़िम्मी’ का अर्थ है वह ग़ैर-मुस्लिम व्यक्ति जिसके जान-माल की हिफ़ाज़त का ज़िम्मा, उस के मुस्लिम राज्य में रहते हुए, शासन व इस्लामी शासक पर होता है, ज़िम्मी की हत्या करने वाला मुसलमान, सज़ा के तौर पर क़त्ल किया जाएगा और अगर, गवाह-सबूत न होने या किसी और कारण से वह क़त्ल होने से बच भी गया तो हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) परलोक में स्वयं उसके ख़िलाफ़ ईश्वरीय अदालत में दंड के और ज़िम्मी के हक़ में इन्साफ़ के याचक होंगे।)
● पराई स्त्रियों को दुर्भावना-दृष्टि से मत देखो। आंखों का भी व्यभिचार होता है और ऐसी दुर्भावनापूर्ण दृष्टि डालनी, आंखों का व्यभिचार (ज़िना) है। (और यही दृष्टि शारीरिक व्यभिचार/बलात्कार का आरंभ बिन्दु है)।
● जो तुम पर एहसान करे तो उसका एहसान हमेशा याद रखो। किसी पर एहसान करो तो इसे भूल जाओ (अर्थात उस पर एहसान न जताओ)।
● कोई व्यक्ति कोई सौदा कर रहा हो तो उसके ऊपर तुम सौदा करने मत लग जाओ (अगर उस व्यक्ति का सौदा तय नहीं हुआ तब तुम सौदा करो)।
● नमूना (बानगी, Sample) कुछ दिखाकर, माल किसी और क्वालिटी का मत बेचो।
● ऐसी किसी भी चीज़ को किसी के हाथ बेचने का सौदा मत करो जिसे ख़रीदकर तुम अपनी मिल्कियत में न ले चुके हो।
● रुपये से रुपया मत कमाओ। (यह अवैध है क्योंकि ब्याज है।) रुपये से तिजारत, कारोबार (Business, Trading) करके रुपया कमाओ। यह ‘मुनाफ़ा’ (Profit, लाभ) है, और वैध व पसन्दीदा है।
● सूद लेना इतना घोर पाप है जैसे कोई अपनी मां के साथ व्यभिचार करे।
● कोई व्यक्ति पाप करता है तो उसके दिल में एक काला धब्बा पड़ जाता है। यदि वह पछताकर, पश्चाताप करते हुए तौबा कर लेता और अल्लाह से माफ़ी मांग लेता है और संकल्प कर लेता है कि अब उस पाप कर्म को नहीं करेगा, तो वह धब्बा मिट जाता है। यदि वह ऐसा नहीं करता तो वह बार-बार पाप करेगा और हर बार दिल के अन्दर का धब्बा फैल कर बड़ा होता जाएगा। अंततः उसका पूरा हृदय सियाह (काला) हो जाएगा (और पापाचार उसके जीवन का अभाज्य अंग बन जाएगा)।
● झूठी गवाही देना उतना ही बड़ा पाप है जितना शिर्क (अर्थात् ईश्वर के साथ किसी और को भी शरीक-साझी बना लेने का महा-महापाप)।
पहलवान वह नहीं है जो कुश्ती में किसी को पछाड़ दे, बल्कि अस्ल पहलवान वह है जो गु़स्सा आ जाने पर, अपने क्रोध को पछाड़ दे (अर्थात् उस पर क़ाबू पा ले)।
● सच्चा मुजाहिद (ईश मार्ग का सेनानी) वह है जो (ईशाज्ञापालन में अवरोध डालने वाली) अपने मन (की प्रेरणाओं व उकसाहटों) से लड़ता है।
● तुम छः बातों की ज़मानत दो तो मैं तुम्हें ईशप्रदत्त स्वर्ग की ज़मानत देता हूं। (1) बोलो तो सच बोलो, (2) वादा करो तो पूरा करो, (3) अमानत में पूरे उतरो, (4) व्यभिचार से बचो, (5) बुरी नज़र मत डालो, (6) जु़ल्म करने से हाथ रोके रखो।
● जिस व्यक्ति ने कोई त्रुटिपूर्ण (Defective) चीज़ इस तरह बेच दी कि ग्राहक को उस त्रुटि से बाख़बर न किया उस पर अल्लाह क्रुद्ध होता है और अल्लाह के फ़रिश्ते उस पर लानत (धिक्कार) करते हैं।
● अपने अधीनस्थ लोगों से कठोरता का व्यवहार करने वाला व्यक्ति स्वर्ग में नहीं जा सकेगा।
● नमाज़, रोज़ा, दानपुण्य से भी बढ़कर यह काम है कि दो व्यक्तियों या गिराहों में बिगाड़ व वैमनस्य पैदा हो जाए तो उनके बीच सुलह करा दी जाए।
● लोगों में बिगाड़, विद्वेष, वैमनस्य, शत्रुता पैदा करना वह काम है जो ऐसा करने वाले व्यक्ति की सारी नेकियों, अच्छाइयों, सद्गुणों पर पानी फेर देता है।
● लोगों के व्यक्तिगत जीवन और निजी, दाम्पत्य व पारिवारिक मामलों की टोह में मत रहा करो।
● दूसरों के घर में बिना इजाज़त न दाख़िल हो, न ताक-झांक करो, न उनकी गोपनीयता (Privacy) को भंग करो।
● किसी से बदला लो तो बस उसी मात्रा में जितना तुम पर उसने अत्याचार किया है और क्षमा कर दो तो यह उत्तम है।
● दूसरों के प्रति अपने व्यवहार वैसे ही रखो, जैसे व्यवहार तुम अपने प्रति उनसे चाहते हो।
● तुम्हारे अपने व्यक्तित्व और शरीर का तुम पर हक़ है अतः अत्यधिक उपासना करके अपने शरीर को बहुत अधिक कष्ट में मत डालो। (अर्थात् जीवन के आध्यात्मिक तथा भौतिक पहलुओं में संतुलन रखो।)
● वह औरत बहुत अच्छी और गुणवान है जो अपने पति की ओर देखे तो पति प्रसन्न चित्त हो जाए। (इससे, दूसरी स्त्रियों की ओर पति के आकर्षित होने तथा दाम्पत्य जीवन व परिवार में खिन्नता व बुराई आने का रास्ता रुकता है।)

साभार: इस्लाम धर्म

एक ग़ददार की विदाई पर क्या उद्गार मन में आया करते हैं ?

झूठ के पाँव नहीं होते अर्थात झूठ चल नहीं पाता । एक झूठ ही क्या कोई भी ग़लत बात नहीं चल पाती।
गुटबाज़ी और पक्षपात भी एक ग़लत बात है । यह भी ज़्यादा दिन चल नहीं पाती और एक दिन ज़लील भी होना पड़ता है और पीठ दिखाकर मैदान से भी भागना पड़ता है । कोई इस पलायन को ज़मीनी स्तर पर काम करना कहता है और कोई ब्लॉग जगत से रिटायरमेंट । इन नशेड़ियों को ब्लॉगिंग का चस्का इतना ज़्यादा लग चुका होता है कि फिर ये दूसरी आईडी से ब्लॉगिंग करते रहते हैं लेकिन शोहरत के इन भुक्खों को लगता है कि अब तो हमें न कोई रेडियो बुलाएगा और न ही टी. वी. चैनल बल्कि कहीं ईनाम की रेवड़ियाँ किसी अंधे ने बाँटीं तो फिर वह भी नहीं मिलेगी । सो वह फिर से ब्लॉग लिखना शुरू कर देता है और सारा विराम रखा रह जाता है ।
जिसके साथ उसने छल कपट किया होता है या कोई ग़ददारी की होती है । वह उसे कभी नहीं भूलता ।
ऐसे आदमी के साथ ग़ददारी करने का मतलब अपना कैरियर ख़त्म कर लेना होता है । उसकी बात चलती है क्योंकि वह सच लिखता है और सच के अपने पाँव होते हैं ।
अब वह चला जाए या फिर से आ जाए या कोई और मक्कारी और ग़ददारी करे लेकिन उसकी छवि सदा के ख़त्म हो जाती है ।
जो आपकी छवि ख़राब करे , आप उसकी हक़ीक़त दुनिया को बता दीजिए कि सज्जन नज़र आने वाला यह आदमी कितना बड़ा ग़ददार है ?
एक ग़ददार की विदाई पर ये उद्गार मन में आया करते हैं ।
क्या आप सहमत हैं ।
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Tuesday, June 14, 2011

एक विडंबना : बाबा रामदेव हैल्दी होकर लौटे भी तो निगमानंद की मौत के मौक़े पर



स्वामी निगमानंद जी ने अनशन किया और मर गए। लोग कह रहे हैं कि निगमानंद शहीद हो गए हैं।
ये वे लोग हैं जिन्हें यह भी नहीं पता है कि शहीद का अर्थ होता क्या है ?
किसी को पता हो तो बताए कि ‘शहीद‘ किस भाषा का शब्द है और इसका अर्थ क्या है और यह किन लोगों के लिए बोला जाता है ?
पता कुछ है नहीं और मुंह उठाकर किसी के बारे में भी बोल देंगे कि यह तो शहीद हो गया।
बाबा का मुददा अच्छा था, उनकी भावना अच्छी थी लेकिन जैसे कि उन्हें गृहस्थ नहीं कहा जा सकता ऐसे ही उन्हें शहीद भी नहीं कहा जा सकता।

उधर, बाबा रामदेव जी अस्पताल से स्वस्थ होकर अपने आश्रम लौट आए हैं।
‘लौट के बुद्धू घर को आए‘ भी इस घटना पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि एक तो अपने रास्ते से हटने वाला बुद्धू होता है और दूसरी बात यह है कि वह लौटकर अपने घर आता है आश्रम में नहीं। बाबा बुद्धू होते तो अपने घर लौटते लेकिन वह तो अपने आश्रम में आए हैं लिहाज़ा साबित हो गया कि वह बुद्धू नहीं हैं।
घर से बुद्धू को कोई आमदनी नहीं होती है जबकि आश्रम से अरबों रूपये की आमदनी होती है। दरअस्ल यह उनकी दुकान है। उन्होंने फ़्री में मिलने वाले योग को अब पैसे में बिकने वाली चीज़ बना डाला। यही बाबा की सबसे बड़ी सेवा है। उनके भाई वग़ैरह की भी पांचों उंगलियां इतनी ज़्यादा तर हैं कि इतना माल तो कोई गृहस्थ भी अपने भाई को न दे पाए।
अब स्वस्थ होकर बाबा फिर आ गए हैं अमीर लोगों को योग बेचने के लिए। दिग्गी बाबू कह रहे हैं कि बाबा रामदेव जी ठग हैं। यह ठीक बात नहीं है। उन्होंने योग को बेचा और सन्यासी होकर बेचा तो इसे एक सन्यासी का भ्रष्टाचार तो कहा जा सकता है लेकिन ठगी नहीं। वह भले ही आगे की पंक्ति वालों से 50,000 रूपये लेते हैं लेकिन बदले में वह उन्हें एक्सरसाईज़ तो कराते हैं।
कोई ठग कभी किसी को कोई सेवा देता है क्या ?
निगमानंद को कुछ बेचना नहीं था, सो वह मर गए। वह शहीद हों या न हों लेकिन एक परोपकारी सन्यासी ज़रूर थे। जैसी भावना उनकी थी उस तक पहुंचना आसान नहीं है और बाबा रामदेव के लिए तो बिल्कुल भी आसान नहीं है।
स्वामी निगमानंद की मौत के अवसर पर बाबा रामदेव का स्वस्थ होकर घर सॉरी अपने आश्रम लौटना एक बड़ी विडंबना है। दोनों के चरित्र को देश की जनता एक साथ देख रही है। दोनों की तुलना करके स्वामी निगमानंद जी को अपेक्षाकृत महान कहने के लिए आज हरेक बुद्धिजीवी मजबूर है।

ब्लॉगजगत में गंदी राजनीति करने वाले फ़नकारों की हरकतों का भी नोटिस ले लीजिए

इसे राजनीति का विद्रूप ही कहा जाएगा कि जिस बीजेपी ने बाबा रामदेव के समर्थन के लिए नौ दिन में ही दिन-रात एक कर दिया था...राजघाट पर ठुमके भी लग गए थे...उसी बीजेपी को स्वामी निगमानंद की व्यथा 115 दिन तक नज़र नहीं आ सकी...उत्तराखंड सरकार के मुखिया रमेश पोखरियाल निशंक बाबा रामदेव के 4 जून की कार्रवाई के बाद पतंजलि योग पीठ पहुंचते ही चरणवंदना करने पहुंच गए थे...लेकिन स्वामी निगमानंद के लिए उनसे पर्याप्त वक्त नहीं निकल सका...आरोप तो ये भी हैं कि गंगा किनारे स्टोन क्रशर के धंधे पर राज्य के ही किसी मंत्री का वरदहस्त था...उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव दूर नहीं है...इसलिए कांग्रेस भी स्वामी निगमानंद के मुद्दे को चुनाव तक जिलाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी...बीजेपी ने स्वामी निगमानंद की सुध नहीं ली तो कांग्रेस ने भी उनके जीते-जी क्या किया...क्यों नहीं उनके समर्थन में बड़ा आंदोलन खड़ा किया...खैर राजनीति तो है ही उस चिड़िया का नाम जिसकी कोई नीति न हो....
कुछ अंश साभार : http://www.deshnama.com/2011/06/blog-post_14.html
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देशनामा पर स्वामी निगमानंद जी की आत्महत्या के बारे में पढ़ा तो बड़ा दुख हुआ। यह सही है कि उन्होंने मुददा सही उठाया था लेकिन अनशन का तरीक़ा सही नहीं कहा जा सकता। इसके नतीजे में मौत आ जाए , जैसे कि आ ही गई तो यह आत्महत्या ही कही जाएगी। जो आदमी संत हो उसे सही मुददे को सही तरीक़े से ही उठाना चाहिए। रही राजनीति के धंधेबाज़ों की बात तो यह भी साफ़ हो गया कि ये लोग साधुओं को केवल अपने नापाक मक़सद के लिए इस्तेमाल करते हैं लेकिन उनकी परवाह बिल्कुल भी नहीं करते। सभी लोग अपने लाभ हानि का गणित देखकर ही कुछ करते हैं।
भाई ख़ुशदीप जी ! ब्लॉगजगत में भी यही सब गंदगी भरी पड़ी है। कोई भी आदमी अकेले इसे साफ़ नहीं कर सकता। स्वामी निगमानंद जी को श्रृद्धांजलि देने के बाद  आप हमारी वाणी की आड़ में गंदी राजनीति करने वाले फ़नकारों की हरकतों का भी नोटिस ले लीजिए। गंगा की तरह हमारी वाणी को भी बहुत गंदा किया जा चुका है।
आइये इस गंदगी को मिलकर साफ़ करें।
हमारी वाणी का मार्गदर्शक मंडल महज़ एक दिखावटी मुखौटा है। ख़ुशदीप भाई और आपकी टिप्पणियों से यह बात पूरी तरह सिद्ध हो चुकी है और यही भ्रष्टाचार है।

ग़ददार की मूल पहचान क्या है ?

हमने पिछले लेख में बताया था कि हमने कश्मीर में मुसलमान समझ कर उस पर ऐतबार किया और उसने धोखा किया और फिर उस एक आदमी ने मुझ एक आदमी के साथ ही यह सब नहीं किया बल्कि उस पूरे बाजार के दुकानदारों ने हमारे पूरे ग्रुप के साथ यही धोखाधड़ी की ।
धार्मिक-सामाजिक आंदोलन लेकर चलते वालों में भी यही मिज़ाज देखने में आता है ।
बात क्योंकि मुसलमानों की चल रही है तो यहाँ बाबरी मस्जिद के इश्यू पर भड़काने वाले मुस्लिम नेता सहज ही याद हो आते हैं । लोग मर गए औय ये ज़िंदा हैं । मुसलमान बर्बाद हो गए और ये मंत्री बन गए। अभी भी ये नेता मरे नहीं हैं। फिर से यूनाइट होकर ये मुसलमानों को बहका रहे हैं । जिन मुसलमानों को ग़ददारों की पहचान नहीं होती वे इन नेताओं के हाथों भी ठगे जाते हैं और अपने दोस्तों के हाथों भी ।
ग़ददार की ख़ास पहचान यह है कि वह एक साथ दो नाव की सवारी करता है । एक तरफ़ तो वह मुसलमानों से इस्लामिक कॉज़ के लिए काम करने की बात कहता है और दूसरी तरफ़ इस्लाम को झूठा और ईश्वर अल्लाह को मन का वहम बताने वालों का भी दोस्त बना रहता है । ऐसा वह इसलिए करता है ताकि उस पर कोई मुसीबत किसी की तरफ से भी न आए और वह लाभ दोनों वर्गों से उठाता रहे । यह दोनों वर्गों के सामूहिक हितों के लिए काम नहीं करता बल्कि दोनों वर्गों के लोगों को अपनी ज़ाती ग़र्ज़ के लिए इस्तेमाल करता है । यह ग़र्ज़ पैसा , पद या पुरस्कार कुछ भी हो सकता है ।
ग़ददार की यह मूल पहचान है ।

Monday, June 13, 2011

ग़ददारों की जमात : एक ज्वलंत समस्या

इंसान लावारिस नहीं है । वह अपने पैदा करने वाले का पाबंद है । वह अपनी मनमर्ज़ी करने के लिए आज़ाद नहीं है । उसे अपने हर अमल का जवाब उस मालिक को देना है जो हरेक बात का गवाह ख़ुद है । जो उसका हुक्म मानता है वह अच्छा , सच्चा और अमानतदार होगा और जो ऐसा नहीं होगा वह ग़ददार होगा । ऐसा आदमी अपनी जान को आफ़त से बचाने के लिए दूसरों की बलि देने से भी नहीं हिचकता । ऐसे आदमी हरेक क़ौम में पाए जाते हैं । मुसलमानों में भी ऐसे आदमी पाए जाते हैं । अंग्रेज़ों के लिए बहादुर शाह ज़फ़र के क़िले का दरवाज़ा खोलने वाला कोई हिंदू नहीं था बल्कि एक मुसलमान ही था । ऐसे ग़ददार दरअसल मुसलमान होते ही नहीं ।
साफ़ बात यह है कि मुसलमान कभी ग़ददार नहीं होगा और जो ग़ददार होगा वह इसलाम के दायरे से ख़ारिज होगा ।
अल्लाह ने मुसलमानों को पूरे हिंदुस्तान में बिखेर दिया और हिंदुस्तान के सिर पर भी बिठा दिया । कश्मीर जो कि जन्नत कहलाता है , वहाँ मुसलमान ही मुसलमान हैं । वहाँ एक क़स्बा है क़ाज़ीगुंड । वहाँ के बाज़ार में मुसलमानों की ही दुकानें हैं। एक दुकानदार से मैंने 5 किलो बादाम ख़रीदे । खुली हुई बोरी से क़ाग़ज़ी बादाम खिलाकर वह हमें बंद पैकेट देने लगा। मुझे उसकी हरकत पर शक हुआ । मैंने उसे चेक किया तो वह बादाम पत्थर से फ़ोड़ने वाला निकला और उसका चेहरा देखो तो उस पर दाढ़ी , उम्र भी लगभग 55 साल । मेरी टीम में 325 आदमी थे दो चार को छोड़ कर सभी मुसलमान थे। उनमें से जितने लोगों ने अख़रोट बादाम ख़रीदे सभी के साथ उस बाज़ार में यही धोखाधड़ी और लूट खसोट की गई।
हदीस ए पाक में साफ़ आया है कि पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद स. ने फ़रमाया- 'जो धोखा दे , वह हम में से नहीं है।'
जम्मू और कटरा के बाज़ारों में मैंने देखा है कि वहाँ आने वाले हिंदू श्रृद्धालुओं को हिंदू दुकानदार किस तरह लूटते हैं लेकिन आज का विषय मुसलमानों में शामिल ग़ददार हैं । हिंदुओं के दुखों के पीछे हिंदुओं में छिपे ग़ददार हैं और मुसलमानों की तबाही के पीछे मुसलमानों में छिपे ग़ददार हैं ।
सच्चे हिंदू और सच्चे मुसलमान सच का साथ देते हैं जबकि ये ग़ददार केवल वह काम करते हैं जिसमें इन्हें माल और इज़्ज़त मिलती हुई नज़र आती है । सच के लिए तो जान तक देनी पड़ती है और ग़ददार सच के लिए अपनी उंगली तक कभी न कटाए ।
हाँ , मुख़बिरी करके सच्चों की गर्दन ज़रूर कटवाते आए हैं ये ग़ददार ।
आज ये ग़ददार हमारे चारों तरफ़ फैले हुए हैं । छोटे बड़े ओहदों पर भी इन्हें देखा जा सकता है बल्कि आप इन्हें मुस्लिम क़ौम के नेताओं में ढूँढेंगे तो ये आपको वहाँ भी मिलेंगे और ये दोस्तों में तो ये ज़रूर छिपे होते हैं ।
क्या आप जानते हैं कि इन ग़ददारों को कैसे पहचाना जा सकता है ?
मुसलमान का काम है कि वह हक़ अदा करे , लोगों के हक़ भी और मालिक के हक़ भी । मुसलमान का काम यह है कि अमन के रास्ते पर खुद भी चले और दूसरों को भी इसी रास्ते पर चलने की शिक्षा दे । जो मुसलमान यह काम नहीं करता , वास्तव में वह मुसलमान होने की बुनियादी शर्त से भी कोरा है ।
मालिक ने मुसलमानों को थोड़ा थोड़ा हर जगह रखा है ताकि वे हर इलाक़े के लोगों को मालिक की वफ़ादारी करके दिखाएं और उन्हें अमन के साथ जिंदगी बसर करना सिखाएँ लेकिन देखने में यह आ रहा है कि एक आदमी मुसलमान होने का दावा भी कर रहा है और दग़ा भी कर रहा है । माँ-बाप , भाई-बहन , बीवी-माशूक़ा , दोस्त और पड़ोसी इनमें आज हरेक या तो दग़ा दे रहा है या फिर दग़ा खा रहा है ।
किसी को आप उसकी ज़रूरत में कुछ रूपये उधार दे दीजिए । उसके हालात सुधर जाएं तब भी वह उस रक़म को लौटाने वाला नहीं है ।
ऐसे ही आप किसी को अपना राज़दार बनाकर देख लीजिए । कुछ ही दिन बाद आप देखेंगे कि आपका दोस्त ईमान का दावा ठोंकने के बावजूद बदफ़हम लोगों के साथ ठठ्ठे मार रहा होगा और आपकी खबरें भी उन्हें दे चुका होगा ।
मर्डर के कितने ही केस ऐसे हैं जिनमें घर से दोस्त बुलाकर ले गए और फिर दुश्मनों ने घेर मार डाला।
दुश्मन की औक़ात तो कुछ करने लायक़ न कल थी और न ही आज है , अल्हम्दुलिल्लाह !
इनकी बचकाना बातें दुख भी नहीं देतीं लेकिन मुसलमान होकर आदमी ग़ददारों जैसे करे , यह बात दुख देती है ।
बड़े शहरों यह छल , फ़रेब और डबल क्रॉस हुनर माना जाता है लेकिन हमारी किताब में इसे आज भी गुनाह माना जाता है ।
आप देखिए कि कहीं आप किसी के साथ ग़ददारी तो नहीं कर रहे हैं ?
अगर आप नहीं कर रहे हैं तो कोई न कोई आपके साथ ज़रूर ग़ददारी कर रहा है ।
देखिए , चेक कीजिए कि आपके साथ कौन ग़ददारी कर रहा है ?

हिंदी ब्लॉगिंग का स्तर गिरा रही है हमारी वाणी , हम तो चले और अब जो जी में आए करो बाबा !!! - Dr. Anwer Jamal

हमारी वाणी पत्रिका को टॉप पर ऐसे दिखाया जाता है कि उस पर नज़र ज़रूर पड़ती है । वह मालिक है अपनी साइट की , वह दिखा सकती है लेकिन क्या घटिया घटनाएं भी वह दिखाएगी ?
आज नज़र पड़ी तो वहाँ एक ऐसे ब्लॉगर का अपने दोस्तों की मंडली में अभिनंदन होते पाया जो 51 ब्लॉगर्स को छोड़कर बाक़ी सभी ब्लॉगर्स को सम्मान से वंचित करने का इतिहास रखता है । इसी आदमी के कारण भाई ख़ुशदीप जी को शर्मिन्दगी उठानी पड़ी । भाई ख़ुशदीप जी हमारी वाणी के एक पिलर हैं । उनके ही सिर पर ऐसे आदमी बिठाना निहायत घटिया हरकत है । इसके पीछे सिवाय ईनाम पाने की ख़्वाहिश के या चापलूसी के और कुछ भी नहीं है वर्ना अभिनंदन तो और ब्लॉगर्स के भी हुए हैं ।
क्या अब हमारी वाणी का स्तर इतना गिर चुका है कि वह 15-20 लोगों के हाथों मिलने वाली इज़्ज़त-ज़िल्लत की ख़बरें भी छापा करेगी और हिंदी ब्लॉगर्स को उन्हें पढ़ने के लिए मजबूर भी करेगी ?
ऐसी हरकतों के कारण ही लोगों का हिंदी ब्लॉगिंग से मोह भंग हो रहा है ।
हिंदी ब्लॉगिंग अभी अपनी शैशवावस्था में है । इसे व्यस्क होने से रोकने वाले यही अभिनंदनबाज़ हैं और इनके कुकर्म को हिंदी ब्लॉगिंग की सेवा बताने वाले हमारी वाणी जैसे चापलूस एग्रीगेटर भी इस जुर्म में बराबर के शरीक हैं।
हम हिंदी ब्लॉगिंग का स्तर घटिया बनाने का विरोध करते हैं और अपनी सदस्ता कैंसिल करते हैं ।
हमारी वाणी , कृप्या हमारे सभी ब्लॉग हटा दीजिए !
ताकि आपको याद रहे कि हमारे बीच सच कहने वाला एक ब्लॉगर अभी ज़िंदा हैं । अगर कोई और भी है तो वह भी विरोध करे और आए हमारे साथ ।

Sunday, June 12, 2011

भारतीय आयुर्वेदाचार्यों ने आहार संबंध में बेहतरीन उसूल दिए हैं

भाइयो, बुजुर्गो और दोस्तों ! अगर आप चिकन-मटन को लौकी के साथ पकाकर खाएंगे तो न तो आप बुज़दिली के शिकार होंगे और न ही आपके स्वभाव में हिंसा की प्रधानता होने पाएगी। मांस के नकारात्मक पक्ष हिंसा का निराकरण लौकी करेगी और लौकी के नकारात्मक पक्ष बुज़दिली का निराकरण चिकन-मटन कर देगा। आपके स्वभाव में नकारात्मक पक्ष किसी का भी न आएगा जबकि सकारात्मक पक्ष दोनों के ही आ जाएंगे।
यह हक़ीक़त है कि आज हर तरफ़ बीमारियों का बोलबाला है। दूसरी वजहों के साथ इसकी एक वजह यह भी है आज आदमी लगातार गेहूं, घी-तेल, मसाले, नमक, चीनी और चंद गिनी चुनी सब्ज़ियां ही खा रहा है। जब से वह खाना चबाना सीखता है तब से वह यही सब खा रहा है और आप जानते हैं कि अगर होम्योपैथिक तरीक़े से किसी दवा को उसके कच्चे रूप में केवल 3 माह तक लिया जाता है तो वह दवा इंसान के शरीर और मन पर अपने लक्षण प्रकट कर देती है। अब आप सोचिए कि जब 40 साल तक आदमी एक सी ही बल्कि एक ही चीज़ें लगातार खाता रहेगा तो क्या वे चीज़ें इंसान के शरीर और मन पर अपने गहरे असर न दिखाएंगी ?
लंबी लाइलाज बीमारियों के शिकार मरीज़ अगर वाक़ई तंदुरूस्त होना चाहते तो वे सबसे पहले ये सारी चीज़ें खाना छोड़ दें और उसके बाद वे ऐसी चीज़ें खाएं जो कि उन्होंने जीवन में बहुत कम खाई हों और जल्दी हज़्म हो जाती हों। इसके बाद अगर वे शहद और त्रिफला भी खाते रहें तो 3 महीने में ही उनकी पुरानी बीमारियां भी काफ़ी हद तक जाती रहेंगी।
आज आदमी बीमार नहीं है र्बिल्क ‘फ़ूड प्रूविंग‘ का शिकार है। यह मेरा अनुसंधान है। मैं इस सब्जेक्ट पर एक किताब भी लिखने वाला था लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग में आ फंसा।
मालिक ने बंदों को सेहतमंद रखने के लिए ही उसे मेहनत करने का हुक्म दिया और इसीलिए उसने अलग अलग मौसम में अलग अलग फ़सलें बनाईं। हरेक मौसम में इंसान की ज़रूरत उसी मौसम के फल सब्ज़ी आदि के ज़रिए पूरी होती हैं। हमारा आहार ही हमारे लिए बेहतरीन औषधि है लेकिन हमने अपनी नादानी की वजह से अपने आहार को आज अपने लिए ज़हर बना लिया है। 
यह ज़हर इतना है कि इसे लैब में भी टेस्ट कराया जा सकता है। सब्ज़ी, दूध-पानी, मिट्टी और हवा हर चीज़ को ज़हरीला बनाने वाले हम ख़ुद ही हैं और फिर मौसम चक्र का उल्लंघन करके मनमर्ज़ी भोजन करने वाले नादान भी हम ही हैं। अगर हम अपनी ग़लती महसूस करें और तौबा करके अपने खान-पान को मौसम के अनुसार कर लें तो हम अपनी बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं।
भारतीय आयुर्वेदाचार्यों ने इस संबंध में बेहतरीन उसूल दिए हैं:
मिसाल के तौर पर उन्होंने कहा है कि 
1. हितभुक  2. मितभुक  3. ऋतभुक
अर्थात हितकारी खाओ, कम खाओ और ऋतु के अनुकूल खाओ।
हमें अपने महान पूर्वजों की ज्ञान संपदा से लाभ उठाना चाहिए।
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साथ में देखिये

क्या बुज़दिल बना देता है लौकी का जूस ? , होम्योपैथी में विश्वास रखने वाले ब्लॉगर्स भाइयों से एक विशेष चर्चा -Dr. Anwer Jmal

'बाबा का माददा कैसे बढ़े ?' अब असल मुददा यह होना चाहिए

'करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' के तहत बाबा रामदेव जी के पास अनुभव भी आ ही जाएगा । अस्ल बात मुददे और माददे की है।
मुददा उनका ठीक है और माददा भी उचित खान पान के ज़रिए उनमें बढ़ ही जाएगा।
अब जब कि बाबा ने खाना पीना शुरू कर ही दिया है और एक क्षत्रिय की तरह उन्होंने अंतिम साँस तक लड़ने का ऐलान भी कर दिया है तो हालात का तक़ाज़ा है कि या तो वे पी. टी. ऊषा को अपना कोच बना लें या फिर प्राचीन आर्य क्षत्रियों की तरह वीरोचित भोजन ग्रहण करना शुरू कर दें । इसके लिए उन्हें अपने आहार में विशेष सुधार करना पड़ेगा।

इस संबंध में देखिए मेरा एक लेख आर्य भोजन पर :
http://aryabhojan.blogspot.com
क्या आदमी को बुज़दिल बना देता है लौकी का जूस ?

Saturday, June 11, 2011

यह सम्मान है या उधार की चीनी ? - Dr. Anwer Jamal

कुछ लोग हालात के तहत मुजरिम बन जाते हैं जबकि कुछ शौक़िया जुर्म करते हैं । कुछ मजरिम एक दो क्राइम करके रूक जाते हैं जबकि कुछ आदी मुजरिम होते हैं । ऐसे ही माँगने वाले भी होते हैं । कोई ज़रूरत में माँगता है और कुछ भिखारी पेशेवर होते हैं । औरतें भी कभी कभार पड़ोसन से चीनी आदि माँग लेती हैं और बाज़ार से आने पर लौटा भी देती हैं ।
ऐसे ही आजकल एक चोचला चल रहा है सम्मान पाने का । ब्लॉग जगत में सम्मान लेना देना आजकल बाक़ायदा एक पेशे की शक्ल बनता जा रहा है । आज फिर कमल 'सवेरा' जी कहीं सम्मानित होते हुए नज़र आ गए । जैसे आदमी खाना खाने के बाद भी एक आध पान वान चबा लेता है ज़ायक़ा संवारने के लिए। ऐसे ही अभी वह दिल्ली में सम्मानित होकर लौटे हैं लेकिन एक छोटा सा सम्मान कल यू. पी. में चटख़ा डाला और ऐसे ही नहीं बाक़ायदा गले में फूल मालाएं भी टंगा रखी थीं ।
सच है जिसे सम्मानित होने की लत पड़ जाए , उसे फिर इस बात की भी परवाह नहीं रहती कि उसे इस हाल में देख कर लोग कितना हंसेगे ?
अब ये साहब इस उधार के सम्मान के बदले पत्रिका वाले को सम्मानित कर डालेंगे । आज पोस्ट 'मिस्टर नाइस' ने लगाई है और तब ये अपनी डॉट कॉम पर चिपका देंगे ।
बिल्कुल उधार की चीनी की तरह !

Thursday, June 9, 2011

... ताकि ‘न्याय की आशा‘ समाप्त न होने पाए - Dr. Anwer Jamal


मेरा मिशन आशा और अनुशासन का मिशन है। लोग बेहतरी की आशा में ही अनुशासन भंग करते हैं और जो लोग अनुशासन भंग करने से बचते हैं, वे भी बेहतरी की आशा में ही ऐसा करते हैं। समाज में चोर, कंजूस, कालाबाज़ारी और ड्रग्स का धंधा करने वाले भी पाए जाते हैं और इसी समाज में सच्चे सिपाही, दानी और निःस्वार्थ सेवा करने वाले भी रहते हैं। हरेक अपने काम से उन्नति की आशा करता है। जो ज़ुल्म कर रहा है वह भी अपनी बेहतरी के लिए ही ऐसा कर रहा है और जो ज़ुल्म का विरोध कर रहा है वह भी अपनी और सबकी बेहतरी के लिए ही ऐसा कर रहा है।
ऐसा क्यों है ?
ऐसा इसलिए है कि मनुष्य सोचने और करने के लिए प्राकृतिक रूप से आज़ाद है। वह कुछ भी सोच सकता है और वह कुछ भी कर सकता है। दुनिया में किसी को भी उसके अच्छे-बुरे कामों का पूरा बदला मिलता नहीं है। क़ानून सभी मुजरिमों को उचित सज़ा दे नहीं पाता बल्कि कई बार तो बेक़ुसूर भी सज़ा पा जाते हैं। ये चीज़ें हमारे सामने हैं। हमारे मन में न्याय की आशा भी है और यह सबके मन में है लेकिन यह न्याय मिलेगा कब और देगा कौन और कहां ?
न्याय हमारे स्वभाव की मांग है। इसे पूरा होना ही चाहिए। अगर यह नज़र आने वाली दुनिया में नहीं मिल रहा है तो फिर इसे नज़र से परे कहीं और मिलना ही चाहिए। यह एक तार्किक बात है।
दुनिया में हरेक घटना का भौतिक परिणाम निकलता है लेकिन नैतिक परिणाम नहीं निकलता। अगर एक आदमी आग में हाथ डालता है तो उसका हाथ जल जाता है। यह इस घटना का भौतिक परिणाम है लेकिन अगर एक दबंग समुदाय किसी कमज़ोर समुदाय के लोगों को ज़िंदा जला देता है तो उसका कोई नैतिक परिणाम यहां नहीं निकलता। विजयी देश को कोई भी युद्ध अपराधी घोषित नहीं कर पाता। जिस घर में कोई बहू दहेज के लिए जला दी जाती है। उसी घर में मृतका की छोटी बहन को उसी युवक से फिर ब्याह दिया जाता है। ऐसी घटनाएं आम हैं। इन सभी घटनाओं को हम सभी देखते हैं और अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार निष्कर्ष भी निकालते हैं। इन घटनाओं के आधार पर हम अपने निष्कर्षों में अलग अलग हो जाते हैं। एक वर्ग यह मानता है कि बस यही दुनिया सब कुछ है। इससे परे जीवन होता ही नहीं है। ऐसी दशा में न्याय की आशा संभव नहीं रहती।
जबकि दूसरा वर्ग यह निष्कर्ष निकालता है कि यह दुनिया कर्म करने की जगह है और मरने के बाद आदमी वहां चला गया है जहां उसे अपने कर्मों का अंजाम भुगतना है। इस दशा में न्याय की आशा ज्यों की त्यों बनी रहती है।
हमें वह काम करना चाहिए जिससे समाज में  ‘न्याय की आशा‘ समाप्त न होने पाए। ऐसी मेरी विनम्र विनती है विशेषकर आप जैसे विद्वानों से।
बौद्ध और जैन क्रांतियां स्वाभाविक थीं। 
धर्म एक लोकहितकारी व्यवस्था है। बाद में इसे बिगाड़ दिया गया और इसकी सारी व्यवस्था का लाभ एक वर्ग विशेष लेने लगा। राजनैतिक और सामाजिक हालात ख़राब से ख़राबतर हो गए तो समाज के बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक था। बहुत से अन्य विद्वानों के साथ महावीर जी और सिद्धार्थ गौतम जी ने भी अपना विरोध दर्ज कराया। अन्य पंथ समय के साथ मिट गए और ये दोनों बचे रह गए। दोनों की ही मान्यताएं अलग-अलग हैं। यह बात भी यही प्रमाणित करती है कि एक ही माहौल में रहने के बावजूद अलग-अलग बुद्धि वाले लोग अलग अलग निष्कर्ष निकालते हैं। महावीर जी आत्मा को मानते हैं लेकिन तथागत आत्मा को नहीं मानते। 
मान्यताएं कितनी भी अलग क्यों न हों ?
हमें समाज पर पड़ने वाले उनके प्रभावों का आकलन ज़रूर करना चाहिए और देखना चाहिए कि यह मान्यता समाज में आशा और अनुशासन , शांति और संतुलन लाने में कितनी सहायक है ?
इसे अपनाने के बाद हमारे देश और हमारे विश्व के लोगों का जीना आसान होगा या कि दुष्कर ?
इसके बावजूद भी मत-भिन्नता रहे तो भी हमें अपने-अपने निष्कर्ष के अनुसार समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए यथासंभव कोशिश करनी चाहिए और इस काम में दूसरों से आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।

निम्न लेख भी विषय से संबंधित है और आपकी तवज्जो का तलबगार है :

धार्मिकता की सच्ची कसौटी - Dr. Anwer Jamal

इंसान अपने वर्तमान और भविष्य के बारे में सोचे बिना नहीं रह सकता। आप भी सोचते होंगे और हम भी सोचते हैं। हमने तो अपनी ज़िंदगी फिर भी बहुत अच्छी गुज़ार ली है, हम ऐसा समझते हैं लेकिन आने वाले समय के बारे में सोचते हैं तो हमारे शरीर में पहले तो झुरझुरियां सी दौड़ने लगती हैं।
मारकाट में हम विश्वास नहीं रखते और क्रांति टाइप कोई परिवर्तन भी हम नहीं  चाहते नहीं क्योंकि इन सबका नुक्सान भी घूम फिर कर जनता को ही उठाना पड़ता है। जो भी नई व्यवस्था बनेगी। उसमें नेता और पूंजीपति फिर से ऐश मारना शुरू कर देंगे। क़ुर्बानी देते हैं चंद सिरफिरे दीवाने और जनता लेकिन ऐश करने के लिए वे लोग आ जाते हैं, जो ख़ुदग़र्ज़ और बुज़दिल होते हैं। इतिहास के जितने भी उलट-फेर आप देखेंगे तो आपका मन कभी नहीं चाहेगा कि कोई क्रांति यहां हो।
आज नेता निश्चिंत हैं और अदालतें सुस्त हैं। नौकरशाह मज़े कर रहे हैं और मोटा माल कमाकर अपने बच्चों को आला तालीम दिला रहे हैं। पढ़-लिखकर वे भी मोटा माल कमाएंगे। पूंजीपति राजाओं की तरह बसर कर ही रहे हैं। आम जनता की रोज़ी-रोटी, शिक्षा और सुरक्षा सब कुछ अनिश्चित है।
साल भर हो चुका है। 8 मई आई और गुज़र गई किसी ने याद नहीं किया कि  8 मई 2010 सोमालिया के लुटेरों ने देश के 22 नौजवानों को पकड़ लिया था। आज तक उन्होंने छोड़ा नहीं और हमारे पक्षी-विपक्षी नेताओं ने उन्हें छुड़वाया नहीं। यहां गाना बजा रहे हैं ‘यह देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का‘ और मलाई चाटने वाले नाच रहे हैं। उनके समर्थक कह रहे हैं कि यह राष्ट्रवाद है।
कभी इस देश का हाल यह था कि रानी लक्ष्मीबाई ने ज़नाना लिबास उतार कर मर्दाना लिबास पहन लिया और घोड़े पर बैठकर दुश्मन की तरफ़ हमला करने भागीं और आज यह आलम है कि जो लड़ने निकला था भ्रष्टाचारियों से वह मर्दाना लिबास उतार ज़नाना लिबास में लड़ाई के मैदान से ही भाग निकला और फिर औरतों की ही तरह वह रोया भी।
आज जिसके पास चार पैसे या चार आदमियों का जुगाड़ हो गया। वह एमपी और पीएम बनने के सपने देख रहा है। पहले तो केवल भ्रष्टाचारी और ग़ुंडे-बदमाश ही नेतागिरी कर रहे थे और फिर हिजड़े और तवायफ़ें भी नेता बन गए। उसके बाद अब समलैंगिक भी नेता बनकर खड़े हो रहे हैं कि देश को रास्ता हम दिखाएंगे।
आप एक बार देश के सभी नेताओं पर नज़र डाल लीजिए। उनमें सही लोगों के साथ-साथ ये सभी तत्व आपको नज़र आ जाएंगे।
जनता इन सबसे आजिज़ आ चुकी है। जिस पर भी वह विश्वास करती है, वही निकम्मा निकल जाता है। लोगों में निराशा घर कर रही है। जिसकी वजह से जगह-जगह आक्रोश में आकर लोग हत्या-आत्महत्या कर रहे हैं। हम सब एक भयानक भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में सांप्रदायिक राष्ट्रवाद कोढ़ में खाज की तरह समस्या को और ज़्यादा बढ़ा रहा है।
ये हालात हैं जिन्हें हम एक दम तो नहीं बदल सकते लेकिन फिर भी लोगों के दिलों में आशा का दीपक ज़रूर जला सकते हैं। आप कुछ करें या न करें लेकिन लोगों की आशा और उनके सपनों को हरगिज़ मरने न दें। आदमी रोटी-पानी और हवा से नहीं जीता बल्कि वह एक आशा के सहारे जीता है। उसे यह आशा बनी रहती है कि एक समय आएगा, जब सब ठीक हो जाएगा।
वह समय कब आएगा ?
इसे न तो हम जानते हैं और न ही आप लेकिन फिर भी यह आशा तो हम सबके मन में है ही। हमारी कोशिश यही है कि हम लोगों में यह आशा ज़्यादा से ज़्यादा जगाएं कि हर रात के बाद एक सुबह होती ही है और यह लोगों के प्रयास से नहीं होती बल्कि यह मालिक की दया से होती है। जब मालिक का नाम आता है तो मन में दम तोड़ती हुई आस भी ज़िंदा हो जाती है। यही आस लोगों को हिंसा और अनुशासनहीनता से दूर रहने के लिए प्रेरित करती है। निराशा से बचाने वाली चीज़ बुद्धि और नास्तिकता नहीं बल्कि आस्था है। मनुष्य अपने स्वभाव से ही आस्थावान और आशावादी है।
हम सब एक ही तरह के मनुष्य हैं। जिसका भी लहू बहेगा वह भी हमारी तरह का ही एक इंसान होगा। वह किसी का बेटा और किसी का भाई होगा। वह खुदा को मानता हो या चाहे न मानता हो लेकिन फिर भी वह बंदा एक ही खुदा का होगा। ईश्वर-अल्लाह हमारी धार्मिकता को इसी कसौटी पर परखता है कि हम समाज में शांति लाने और उसे बनाए रखने के लिए कितना प्रयास करते हैं ?
यह देश धर्म-अध्यात्म प्रधान देश है तो यहां सबसे बढ़कर शांति होनी चाहिए।
अगर हम विभिन्न मत और संप्रदायों में भी बंट गए हैं और अपने अपने मत और संप्रदाय को सत्य और श्रेष्ठ मानते हैं तो हमें एक ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित रहते हुए शांति और परोपकार के प्रयासों में एक दूसरे से बढ़ निकलने के लिए भरपूर कम्प्टीशन करना चाहिए।
अपने देश और अपने समाज को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को बचाने का तरीक़ा आज इसके सिवा कोई दूसरा है नहीं। मैं इसी तरीक़े पर चलता हूं और आपको भी इसी तरीक़े पर चलने की सलाह देता हूं।
आप अपने दीपक ख़ुद बन जाइये, मार्ग आपके सामने ख़ुद प्रकट हो जाएगा। तब आप चलेंगे तो मंज़िल तक ज़रूर पहुंचेंगे और कोई भी राह से भटकाने वाला आपको भटका नहीं पाएगा। आपकी मुक्ति, आपके ज्ञान और आपके पुरूषार्थ पर ही टिकी है। किसी और को इससे बेहतर बात पता हो तो वह हमें बताए !

Wednesday, June 8, 2011

अपने पीछे भीड़ जुटाने मात्र से ही कोई भी आदमी नेता नहीं बन जाता जब तक कि वह अपने अंदर नेतृत्व के गुण विकसित न करे और किसी अनुभवी नेता से राजनीति और कूटनीति का व्यवहारिक ज्ञान हासिल न कर ले - Dr. Anwer Jamal


डा. अनवर जमाल अपने योग गुरु पं. अयोध्या प्रसाद मिश्र जी के साथ 
बाबा रामदेव जी ने भ्रष्टाचार के खि़लाफ़ ऐतिहासिक सत्याग्रह किया। उनकी नीयत कितनी भी नेक क्यों न हो लेकिन उनका तरीक़ा ग़लत रहा है। यह एक खुली हुई सच्चाई है। हम बिल्कुल नहीं चाहते कि किसी भी सत्याग्रही को सताया जाए लेकिन हम यह भी नहीं चाहते कि सत्याग्रही पुलिस के जवानों पर गमले आदि फेकें। पुलिस के जवान भी हमारे ही हैं और वे वही करते हैं जिसका उन्हें आदेश मिलता है। जो नेता आदेश देते हैं वे भी हमारे द्वारा ही चुने हुए होते हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया है। इन्हीं नेताओं में से कुछ का रूपया विदेशी बैंकों में जमा है। ये लोग आसानी से यह पैसा देश में लाने वाले नहीं हैं। यह बात हमें पता है तो बाबा रामदेव जी को भी पता होनी चाहिए थी। उन्होंने यह कैसे समझ लिया था कि जैसे ही चार्टर्ड प्लेन से उतर कर मैं अनशन करूंगा, वैसे ही सरकार विदेश से काला धन वापस लाने पर आमादा हो जाएगी ?
यह बाबा का  भोलापन ही था और यह इस वजह से था कि वह इस गंदी राजनीति के हथकंडों को नहीं जानते थे। बाबा ने उस क्षेत्र में क़दम रखा जिस क्षेत्र की क ख ग भी वे नहीं जानते थे और इसी वजह से उन्हें मंच से छलांग लगाकर औरतों बीच छिपना पड़ा। उन्हें लगा कि पुलिस उन्हें मारने के लिए आई है। जबकि ऐसा नहीं होता। कांग्रेस को सबसे ज़्यादा डर बीजेपी के सत्ता में आने से लगता है। बीजेपी के नेता आए दिन अनशन करते रहते हैं और कांग्रेस की भेजी हुई पुलिस उन्हें गिरफ़्तार करती रहती है और फिर छोड़ देती है। अपने शासन काल में बीजेपी ने यही कांग्रेस के साथ किया। यह एक रूटीन का काम है। आप बताइये कि कांग्रेस ने बीजेपी के और बीजेपी ने कांग्रेस के कितने नेता आज तक मारे हैं ?
एक भी नहीं !
बाबा ने सदा स्वागत सत्कार और जय जयकार ही देखा था। बड़े बड़े आई जी और डीजीपी को अपने चरण छूते ही देखा था।
पुलिस का असली रूप क्या होता है ?
इसे वह जानते ही न थे। इसीलिए उन्होंने हालात का ग़लत अंदाज़ा लगाया और फिर ग़लत ही फ़ैसला लिया और अपनी सारी प्रतिष्ठा धूल में मिला बैठे।
बाबा को जानना चाहिए कि राजनीति में कोई सांपनाथ है तो कोई नागनाथ। कम यहां कोई भी नहीं है। बाबा राजनीति को इन सांपों और नागों से मुक्त कराना चाहते हैं तो बेशक कराएं लेकिन पहले उन्हें सांप और नाग का फन कुचलने का हुनर सीखना होगा। उसके बिना वह यह काम न कर पाएंगे। हमें बाबा के मक़सद से विरोध नहीं है लेकिन उनके तरीक़े से ज़रूर असहमति है।
अगर कल को कपिल सिब्बल बिना जाने ही लोगों को योगासन कराने लग जाएं तो वे लोगों की जान से खेलने वाले माने जाएंगे। ठीक यही बात बाबा रामदेव जी के बारे में कही जाएगी कि अपने पीछे भीड़ जुटाने मात्र से ही कोई भी आदमी नेता नहीं बन जाता जब तक कि वह अपने अंदर नेतृत्व के गुण विकसित न करे और किसी अनुभवी नेता से राजनीति और कूटनीति का व्यवहारिक ज्ञान हासिल न कर ले। ऐसा किए बिना भीड़ जुटाने वाला आदमी लोगों की जान से खेलने वाला माना जाएगा। इस तरह के काम करने से हालात सुधरने के बजाय और ज़्यादा बिगड़ जाएंगे। हमें अपने देश और समाज में सुधार लाना है न कि दुनिया को अपने ऊपर हंसने का मौक़ा देना है। 4 जून के बाद से लेकर आज तक बाबा ने जो भी किया है उससे सन्यास आश्रम की गरिमा को भी ठेस लगी है और देश की छवि भी ख़राब हुई है।
पुरी के शंकराचार्य जी ने भी बाबा रामदेव को ही इस गड़बड़ी के लिए ज़िम्मेदार माना है।
पुरी के शंकराचार्य बोले, रामदेव हैं ‘कायर’!नई दिल्ली। पुरी के शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद तीर्थ ने योगगुरु रामदेव पर कायराना हरकत करने का आरोप लगाते हुए उनकी निंदा की है और कहा कि उन्हें देशवासियों से अपने कृत्य के लिये माफी मांगनी चाहिए।
“रामदेव एक भटके हुए धोखेबाज संन्यासी हैं!” 

शंकराचार्य ने आज यहां बातचीत में कहा कि रामदेव ने जिस तरह अपने अनुयायियों से सरकार से की गई डील को छिपाया और फिर गिरफ्तारी से बचने के लिए महिलाओं के बीच छिपकर तथा उनके वस्त्र पहनकर जो कायराना हरकत की उसके बाद उन्हें भगवा वस्त्र पहनने और क्रान्तिकारियों का नाम लेने का कोई हक नहीं रह जाता।

स्वामी अधोक्षजानंद ने कहा कि रामदेव अब अपने कृत्यों से बेनकाब हो गए हैं तथा अब उन्हें भगवा वस्त्र पुन धारण नहीं करना चाहिए।
उनकी इस हरकत से भगवाधारी साधु-संतों की छवि धूमिल हुई है।

उन्होंने केन्द्र सरकार से देश भर के आश्रमों की तलाशी लेकर उनमें छिपे देशी-विदेशी गुनहगारों को बाहर निकालने तथा रामदेव के साथी बालकृष्ण पर अविलम्ब सख्त कार्रवाई करने की मांग की।
उपरोक्त ख़बर इस वेबाईट से साभार : http://josh18.in.com/showstory.php?id=1072952
समय ने साबित कर दिया है कि शाहरूख़ ख़ान ने बाबा रामदेव जी को जो सलाह दी थी वह ठीक थी कि आदमी वही काम करे जिसे करना वह जानता है।  
इस विषय में हमारे अलावा अन्य ब्लॉगर्स की राय भी यही है। नीचे दिए गए लिंक पर जाकर आप भी देख सकते हैं 

Tuesday, June 7, 2011

पाकिस्तान और कश्मीर समस्या के बारे में क्या सोचते हैं ‘इल्मी मुसलमान‘ ? - Dr. Anwer Jamal

फ़ोटो में प्रेमपूर्ण मुद्रा में साथ खड़े हुए भाई तारकेश्वर गिरी जी

यह लम्हा वाक़ई एक यादगार लम्हा था। यह एक फ़ोटो मात्र नहीं है बल्कि यह भारतीय समाज का आईना भी है। यह फ़ोटो आज का नहीं है बल्कि यह उन दिनों का जब भाई गिरी जी हमारा विरोध करते-करते टॉप पर स्थान ले चुके थे। टिप्पणियां भी उन्हें इतनी मिला करती थीं कि उनकी पोस्ट का पेज छोटा पड़ जाया करता था। बहरहाल वे एक साफ़ सुथरे और प्यार करने वाले आदमी हैं। अपने विरोधियों में मैं उन्हें एक ऐसा विरोधी मानता हूं जिनसे कि मेरे विरोधी बहुत कुछ सीख सकते हैं। 
आज एक पोस्ट पर नज़र पड़ी तो याद आया कि यह आदमी ख़ुद को ब्राह्मण भी समझता है और जाने कैसे प्रोफ़ेसरी का जुगाड़ भी कर लिया है लेकिन भाषा-संवाद और व्यवहार में यह भाई तारकेश्वर गिरी जी से भी गिरा हुआ है। 
कितना गिरा हुआ है ?
इतना गिरा हुआ है कि जिस आदमी के विरोध में यह पोस्ट लिखेगा उसे अपनी पोस्ट पर टिप्पणी भी न करने देगा और अगर कर दी तो डिलीट कर देगा। 
यह ब्लॉगिंग का कौन सा रूप है भाई ?
गिरी जी हरगिज़ ऐसा नहीं करते। वह भले ही किसी आदमी से सहमत न हों और उसी आदमी के विरोध में उन्होंने ग़ुस्से में आकर चाहे दर्जनों पोस्ट लिख दी हों लेकिन तब भी वह उसकी टिप्पणी का भी सदा स्वागत करते हैं। 
प्रोफ़ेसर जैसे संकीर्ण मानसिकता के लोग यहां बुद्धिजीवियों के बीच बैठकर ‘कछुआ कफ़न‘ सी रहे हैं और ‘कफ़न चोरों‘ को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने के लिए जनमन भी बना रहे हैं। इनकी पोस्ट पर ऐसे-ऐसे लोग आकर सहमत हो रहे हैं जिन्हें भविष्य में ‘जयचंद‘ के नाम से भी कोई याद न रखेगा, यह सब देखकर दुख होता है। 
याद रहे कि जयचंद एक अच्छा पिता और एक बहादुर राजा था। उसे नाहक़ बदनाम किया गया है। जिसकी बेटी को कोई उसका विश्वास छलकर भगा ले जाएगा और किसी नैतिकता की परवाह हरगिज़ न करेगा तो वह फिर किसी नैतिकता की पाबंदी भला क्यों करेगा ?
जयचंद को गालियां देने से पहले सोचना चाहिए कि जयचंद को आखि़र किसने जयचंद बनने के लिए मजबूर किया ?
जब एक जयचंद ने ही देश को विदेशियों के हाथ सौंप दिया तो फिर आज एक पूरी क़ौम को जयचंद का इल्ज़ाम देकर उसे सचमुच ही जयचंद बनाने पर क्यों तुले हुए हैं कफ़नचोर ?
सिर्फ़ इसलिए ताकि ख़ुद इनकी ग़द्दारी का पर्दाफ़ाश न होने पाए।
बहरहाल, अगर आप फ़ोटो के संबंध में पूरी पोस्ट पढ़ना चाहते हैं आप नीचे दिए गए लिंक पर जाएं