कुछ लोग हालात के तहत मुजरिम बन जाते हैं जबकि कुछ शौक़िया जुर्म करते हैं । कुछ मजरिम एक दो क्राइम करके रूक जाते हैं जबकि कुछ आदी मुजरिम होते हैं । ऐसे ही माँगने वाले भी होते हैं । कोई ज़रूरत में माँगता है और कुछ भिखारी पेशेवर होते हैं । औरतें भी कभी कभार पड़ोसन से चीनी आदि माँग लेती हैं और बाज़ार से आने पर लौटा भी देती हैं ।
ऐसे ही आजकल एक चोचला चल रहा है सम्मान पाने का । ब्लॉग जगत में सम्मान लेना देना आजकल बाक़ायदा एक पेशे की शक्ल बनता जा रहा है । आज फिर कमल 'सवेरा' जी कहीं सम्मानित होते हुए नज़र आ गए । जैसे आदमी खाना खाने के बाद भी एक आध पान वान चबा लेता है ज़ायक़ा संवारने के लिए। ऐसे ही अभी वह दिल्ली में सम्मानित होकर लौटे हैं लेकिन एक छोटा सा सम्मान कल यू. पी. में चटख़ा डाला और ऐसे ही नहीं बाक़ायदा गले में फूल मालाएं भी टंगा रखी थीं ।
सच है जिसे सम्मानित होने की लत पड़ जाए , उसे फिर इस बात की भी परवाह नहीं रहती कि उसे इस हाल में देख कर लोग कितना हंसेगे ?
अब ये साहब इस उधार के सम्मान के बदले पत्रिका वाले को सम्मानित कर डालेंगे । आज पोस्ट 'मिस्टर नाइस' ने लगाई है और तब ये अपनी डॉट कॉम पर चिपका देंगे ।
बिल्कुल उधार की चीनी की तरह !
7 comments:
दो दोस्तों ने फलों के कारोबार का फैसला किया...एक संतरे का टोकरा लेकर बैठ गया...एक केले का...दोनों ने फैसला किया सिर्फ कैश बिक्री करेंगे, उधार का कोई काम नहीं...थोड़ी देर बाद संतरे वाले को भूख लगी, उसने दो का सिक्का केले वाले को देकर केला लेकर खा लिया...केले वाले ने कहा, चलो बोहणी तो हुई...शाम तक दोनों के टोकरे खाली हो गए...पास ही संतरे और केले के छिलके के ढेर लग गए थे...दोनों ने कहा, चलो बिक्री तो बहुत बढ़िया हुई...अब कैश गिन लिया जाए...लेकिन ये क्या दोनों के पास कुल मिलाकर वो दो का सिक्का ही निकला...पूरा दिन वो एक दूसरे से कैश ले लेकर खुद ही सारे संतरे और केले चट कर गए थे....
जय हिंद...
Khusdeep ji ke kya kahne
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... ;)
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खुशदीप साहब यही हाल जल्द ही इस उधार के सम्मान लेने देने वालों का भी होने वाला है.केवल २ का सिक्का ही पास मैं बचेगा. अनवर साहब उधार कि चीनी आज लोग ले तो लेते हैं देने मैं आनाकानी करते हैं और यही वजह होगी ऐसे उधारी इनाम बाँटने वालों कि आपसी मनमुटाव कि. इंतज़ार करें.
yae purani khabar haen ek post par pehlae aa chuki haen shayad kisi manoj ki thee aur maene wahaa takreeban yahi kament me kehaa bhi thaa
any ways who cares
had people some care about social issues they would have use blog as medium to join hands but here we just want to make groups to appreciate
@ भाई ख़ुशदीप जी ! आपकी टिप्पणी ने तो सुहागे पे सोने का काम कर दिया। आप पोस्ट अच्छी लिखते हैं, यह तो मैं जानता था लेकिन आप एक उम्दा टिप्पणीकार भी हैं। यह मुझे आज ही पता चला।
आप अभी हाल में ही अपनी पोस्ट के माध्यम से पूछ रहे थे कि ‘मैं क्या लिखूं ?‘
अगर आप नसीहत देने वाली ये छोटी छोटी प्रतीक कथाएं भी लिखा करें तो अच्छा रहेगा और हो सकता है कि आपने पहले भी लिखी हों लेकिन मेरी नज़र में न आई हों। बहरहाल आपके इस मजलिस में चले आने से चार चांद भी लग गए और पोस्ट की सार्थकता जितनी बढ़ी है उसे भी सभी जानते हैं।
शुक्रिया !
@ जनाब मासूम साहब ! दो टके तो उन टोकरी वालों के पास बचे थे क्योंकि वे ब्लॉगर न थे। ब्लॉगर होते तो ख़ुद ही दो टके के होकर रह जाते जैसा कि इन दो टके के मनमौज ब्लॉगर ने हिंदी ब्लॉगिंग को दो टके के घाट उतार कर छोड़ा है और ख़ुद दो टके के भी न रहे। जो आदमी वर्चुअल कम्युनलिज़्म का शिकार हो वह तो इंसानियत के दायरे से ही ख़ारिज है और बातें करता है लोकतंत्र बचाने की। दूर दराज़ के सियार उसकी हू हू में अपनी हू हू मिलाते हैं और उसे बड़े होने का अहसास कराते हैं और इस तरह उसे ‘कुछ होने‘ का फ़र्ज़ी अहसास कराके उसके सुधार का द्वार ही बंद कर देते हैं।
http://tobeabigblogger.blogspot.com/2011/06/blog-post_12.html
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