इसे राजनीति का विद्रूप ही कहा जाएगा कि जिस बीजेपी ने बाबा रामदेव के समर्थन के लिए नौ दिन में ही दिन-रात एक कर दिया था...राजघाट पर ठुमके भी लग गए थे...उसी बीजेपी को स्वामी निगमानंद की व्यथा 115 दिन तक नज़र नहीं आ सकी...उत्तराखंड सरकार के मुखिया रमेश पोखरियाल निशंक बाबा रामदेव के 4 जून की कार्रवाई के बाद पतंजलि योग पीठ पहुंचते ही चरणवंदना करने पहुंच गए थे...लेकिन स्वामी निगमानंद के लिए उनसे पर्याप्त वक्त नहीं निकल सका...आरोप तो ये भी हैं कि गंगा किनारे स्टोन क्रशर के धंधे पर राज्य के ही किसी मंत्री का वरदहस्त था...उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव दूर नहीं है...इसलिए कांग्रेस भी स्वामी निगमानंद के मुद्दे को चुनाव तक जिलाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी...बीजेपी ने स्वामी निगमानंद की सुध नहीं ली तो कांग्रेस ने भी उनके जीते-जी क्या किया...क्यों नहीं उनके समर्थन में बड़ा आंदोलन खड़ा किया...खैर राजनीति तो है ही उस चिड़िया का नाम जिसकी कोई नीति न हो....
कुछ अंश साभार : http://www.deshnama.com/2011/06/blog-post_14.html
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देशनामा पर स्वामी निगमानंद जी की आत्महत्या के बारे में पढ़ा तो बड़ा दुख हुआ। यह सही है कि उन्होंने मुददा सही उठाया था लेकिन अनशन का तरीक़ा सही नहीं कहा जा सकता। इसके नतीजे में मौत आ जाए , जैसे कि आ ही गई तो यह आत्महत्या ही कही जाएगी। जो आदमी संत हो उसे सही मुददे को सही तरीक़े से ही उठाना चाहिए। रही राजनीति के धंधेबाज़ों की बात तो यह भी साफ़ हो गया कि ये लोग साधुओं को केवल अपने नापाक मक़सद के लिए इस्तेमाल करते हैं लेकिन उनकी परवाह बिल्कुल भी नहीं करते। सभी लोग अपने लाभ हानि का गणित देखकर ही कुछ करते हैं।
भाई ख़ुशदीप जी ! ब्लॉगजगत में भी यही सब गंदगी भरी पड़ी है। कोई भी आदमी अकेले इसे साफ़ नहीं कर सकता। स्वामी निगमानंद जी को श्रृद्धांजलि देने के बाद आप हमारी वाणी की आड़ में गंदी राजनीति करने वाले फ़नकारों की हरकतों का भी नोटिस ले लीजिए। गंगा की तरह हमारी वाणी को भी बहुत गंदा किया जा चुका है।
आइये इस गंदगी को मिलकर साफ़ करें।
हमारी वाणी का मार्गदर्शक मंडल महज़ एक दिखावटी मुखौटा है। ख़ुशदीप भाई और आपकी टिप्पणियों से यह बात पूरी तरह सिद्ध हो चुकी है और यही भ्रष्टाचार है।
2 comments:
सच कहा है।
@ जाट देवता जी ! आपकी सहमति के लिए आभार ।
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विशेष सूचना: जो आदमी हमारी वाणी की आड़ में अपनी गंदी राजनीति कर रहा है। आज मैंने उसके ईमेल के जवाब में कहा था कि आज शाम को मैं तुम्हारी हक़ीक़त जगज़ाहिर कर दूंगा एक पोस्ट बनाकर। वह पोस्ट तो मैं बना नहीं पाया क्योंकि मेरी नज़र में आज स्वामी निगमानंद जी की मौत पर लिखना अहम था लेकिन वह आदमी जिसकी दाढ़ी में तिनका है, वह यही समझा कि मैंने इस पोस्ट में उसकी हक़ीक़त खोल दी होगी क्योंकि एक लिंक उसकी हरकतों के संबंध में दे भी रखा है एक पुरानी पोस्ट का। सो उसने हमारी वाणी पर मेरी पोस्ट पर 20 मिनट में ही 77 क्लिक लगा दिए ताकि वह इस हरकत का इल्ज़ाम भी मुझ पर ही धर सके और यह बहाना बनाकर मेरी यह पोस्ट हटा सके। यह हाल है हमारी वाणी एग्रीगेटर के संचालक महोदय का। क्लिक ज़्यादा होने पर एक बार पहले भी वह मेरी पोस्ट हटा चुके हैं। उस पोस्ट में मैंने पुरस्कार वितरण करने वाले के सम्मान पर कटाक्ष करते हुए पूछा था कि
‘यह सम्मान है या उधार की चीनी ?‘
आप लोग भी सोचिए कि इस भ्रष्टाचार से कैसे लड़ा जाए ?
हम तो पहले ही कह चुके हैं कि भाई हमारे सिर में रोज़ रोज़ दर्द मत कीजिए। हमारा अकाउंट आप इस एग्रीगेटर से हटा दीजिए और अपनी दुकान मज़े से चलाइये। जब तक कोई भ्रष्टाचार नहीं करेगा या हम पर हमला नहीं करेगा तो हम भी कुछ नहीं बोलेंगे लेकिन अगर ज़ाकिर ‘वीरू भाई‘ की आई डी से कुछ ऊट पटांग बकेगा तो अक्ल ठीक कर दूंगा।
मेरी पिछली पोस्ट का विषय भी यही था।
दुश्मनी से बुरी ग़ददारी मानी जाती है और यहां दोनों एक साथ चल रही हैं।
चूहे जैसा दिल लेकर शेर को ललकार रहे हैं।
क्या इन्होंने उन लोगों का हश्र नहीं देखा जो हमसे पहले टकरा चुके हैं ?
अफ़सोस ! अपनी इज़्ज़त गंवांने चले हैं जानते बूझते।
लोग बूढ़े हो जाते हैं लेकिन उन्हें अक्ल नहीं आती है।
वे समझते हैं कि पहले तो हमें यह इन्फ़ॉर्मेशन नहीं थी। शायद अब बात बन जाए।
उन्हें नहीं पता कि तुम्हारी जानकारी बदली है अनवर जमाल नहीं बदला।
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