Friday, July 23, 2010

Extreme love जो लोग ईमान वाले हैं वे परमेश्वर से अत्यंत प्रेम करते हैं। - Anwer Jamal

हर दुख का मदावा हैं प्यार और हमदर्दी के दो बोल

नया तौलिया टंगा देखा तो मेरे मुंह से बेइख्तियार निकला-‘यह तो मैं अनम के लिये लाया था।‘
उसकी मां ने कहा-‘नहीं, वह दूसरा है।‘
‘अनम की चीज़ें देखकर उसकी याद आती है।‘-मेरी सात वर्षीय बेटी आफ़िया बोली। वह कल भी रोयी और आज भी। खेलती भी है और फिर उदास होकर लेट जाती है और उदासी भरी नींद उसपर छा जाती है। उसकी मां ने उसकी वजह से अनम की चीज़ें छिपा दीं।
वह कहने लगीं कि मैं तो इन बच्चों की वजह से रोने की भी चोर हो गई। इनसे छिपकर रोना पड़ता है।

उससे बड़ा बेटा अनस आने वालों के लिये भागदौड़ कर रहा है। आफ़िया से छोटा बेटा अकमल अपने में मस्त रहने वाला बच्चा है लेकिन वह भी कभी भी पूछ लेता है कि ‘मम्मा अनम कहां चली गई ?‘
अनम की मां रात को सोने के लिये लेटीं तो रोने लगीं। मेरी वालिदा उठकर बैठ गईं। देखा तो बहू को रोते हुए पाया। उन्होंने समझाया, उन्हें दिलासा दिया और दिलासा वाक़ई काम करता है। वह कुछ देर बाद चुप हो गईं।

दिल + आसा =  दिलासा

आदमी आशा के सहारे ही तो ज़िन्दा है।
ब्लाग बिरादरी ने भी मुझे आशा का संबल दिया जिसके लिये मैं उन सभी बुजुर्गों और भाइयों का आभारी हूं। उनके अल्फ़ाज़ ने मेरे हौसले को ताक़त दी है। उनका आना इस बात का सुबूत है कि अहसास और इनसानियत हमारे समाज में अभी तक ज़िन्दा है।
मेरे कुछ लिखने से पहले ही एजाज़ साहब ने अपने ब्लॉग पर अनम की जुदाई की ख़बर दे दी थी।

http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/07/blog-post.html

सलीम भाई ने भी अपने ब्लॉग पर अनम के ज़िक्र को जगह दी है।       http://swachchhsandesh.blogspot.com/2010/07/blog-post_23.html

ब्लाग 4 वार्ता ने भी इज़्हारे हमदर्दी किया है और उसपर कमेंट करने वालों ने भी।

http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/1088-4.html

महक भाई इस ख़बर से अन्जान थे उन्होंने फ़ोन किया तो मैं घर से बाहर था। उन्हें मेरी अहलिया से पता चला। उन्होंने भी ब्लॉग पार्लियामेंट पर अपनी संवेदनाएं ज़ाहिर कीं।

http://blog-parliament.blogspot.com/2010/07/death-of-our-daughter.html

भड़ास परिवार ने भी अनम के लिये अपने नेक जज़्बात ज़ाहिर किये हैं। इस ब्लॉग पर जाना हुआ तो पता चला कि मुनव्वर सुल्ताना साहिबा भी औलाद की जुदाई का दुख सह चुकी हैं। उनके बेटे अब्दुल माजिद की मौत पर मैं भी अल्लाह से उनके लिये अजरे आखि़रत की दुआ करता हूं।

http://bharhaas.blogspot.com/2010/07/blog-post_22.html

ब्लॉग 4 वार्ता पर जनाब गगन शर्मा जी ने एक सवाल उठाया है कि
‘ मासूम बच्चों का क्या गुनाह होता है जिन्हें इतनी जल्दी वापस जाना पड़ता है ? पता नहीं यह कैसा न्याय है ?'
http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/1088-4.html#comment-1836290072174952516

इसी तरह का ऐतराज़ श्री जय कुमार झा जी ने ब्लॉग पार्लियामेंट पर किया है। वे कहते हैं कि
‘भगवान को ऐसा नहीं करना चाहिये था।‘
http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/1088-4.html#comment-1836290072174952516

इस तरह की बातें शायद उनके मुंह से इस मासूम बच्ची के प्यार में ही निकली हैं।
ऐसी ही बातों का जवाब देती हुई टिप्पणी जनाब शरीफ़ ख़ान साहब ने की है। अगर उनके कथन पर विचार किया जाये तो मन की दुनिया में ‘ज्ञान‘ का सूरज चमक सकता है जो हर ऐतराज़ और शंका के अंधेरों को दूर कर देगा।

http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/07/flower-of-jannah-anwer-jamal.html?showComment=1279874790138#c5939136347855156586
अक्सर लोग कुछ मौतों को देखकर कहते हैं कि बहुत बुरा हुआ या ऐसा नहीं होना चाहिए था। आदि आदि ! जबकि हमको यह बात सोचते हुए सन्तोष कर लेना चाहिए कि अल्लाहए जिसने सम्पूर्ण सृष्टि रची हैए का कोई भी कार्य ग़लत नहीं हो सकता।
उदाहरणार्थ ऐसे समझिये कि एक बग़ीचे का माली है। उसे मालूम है कि कौन से पौधे को कब और कहां से उखाड़ना है और किस पौधे को कब और कितना छांटना है। आस पास के पौधे चाहे यह देखकर और सोचकर दुखी हों कि यह तो इस माली ने बहुत बुरा किया परन्तु माली को तो पूरे बग़ीचे के हित को ध्यान में रखते हुए काट छांट करनी होती है जिसे कम से कम उस बग़ीचे के पौधे तो समझ नहीं पाएंगे। इसी प्रकार सृष्टि के रचियता के कार्यों को समझना हमारी समझ से बाहर की बात है .

जिन लोगों ने अपने अल्फ़ाज़ से मेरे दिल को सहारा दिया उनमें मनीषा जी, शाहनवाज़, शिवम मिश्रा जी, शहरोज़, सतीश सक्सेना जी, जनाब उमर कैरानवी साहब, शादाब, महक,तालिब, ज़ीशान ज़ैदी, प्रवीण शाह, डा. अयाज़,अदा, समीर लाल जी, इन्द्र अनिल भट्टाचार्य जी, एजाज़ उल हक़, शरीफ़ ख़ान, सलीम ख़ान, भावेश, दिव्या जी, सत्य गौतम, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद, असद अली, विचार शून्य जी के नाम प्रमुख हैं।
‘सिरातल मुस्तक़ीम‘ पर भी कई भाइयों ने अपने अच्छे जज़्बात का इज़्हार किया,
जिनमें से मास्टर अनवार साहब, साजिद, श्री सुरेश चिपलूनकर और संजय बेंगाणी जी के नाम प्रमुख हैं।
अलग अलग ब्लॉग्स पर कई पोस्ट्स में इतने भाइयों ने अनम को अपना प्यार दिया है कि उन सभी के नाम देना संभव नहीं है और यह सिलसिला अभी जारी है। यह तो वे चन्द पोस्ट्स हैं जो मुझे चिठ्ठाजगत की हॉट लिस्ट में नज़र आ गईं और ज़ाहिर है कि हॉट लिस्ट में सभी शामिल नहीं हो पातीं।
मैं अपने सभी साथियों, भाईयों और बुजुर्गों का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूं।

अनम की मौत ने हम सबको अहसास दिलाया है कि ज़िन्दगी महज़ चंद   रोज़ा है, अस्थायी है । हमें यहां से जाना है।
काश ! हम यहां से वह ‘ज्ञान‘ लेकर जाएं जो हरेक अंधेरे को मिटा दे और हमारे दिलों में मालिक और उसके बंदो की मुहब्बत के चिराग़ जला दे।
आदमी के दिल में मुहब्बत हो तो फिर उसे दुख भी लज़्ज़त देने लगते हैं। जो मुहब्बत करता है वह इस लज़्ज़त को जानता है।
कुरआन मजीद में आस्तिक का एक प्रमुख गुण यही मुहब्बत बताया गया है।
वल्लज़ीना आमनू अशद्दू हुब्बल्-लिल्लाह
जो लोग ईमान वाले हैं वे परमेश्वर से अत्यंत प्रेम करते हैं।

Thursday, July 22, 2010

The flower of jannah एक मासूम कली हमारे आंगन में खिली, हमारे घर को महकाया और फिर जन्नत का फूल बन गई। हमारे दिल उसकी यादों के नूर से हमेशा रौशन रहेंगे . - Anwer Jamal

ऐ अल्लाह! इस बच्ची को हमारी नजात व आसाइश के लिये आगे जाने वाला बना और उसकी जुदाई के सदमे को हमारे लिये बाइसे अज्र और ज़ख़ीरा बना और उसको हमारी ऐसी शिफ़ाअत करने वाला बना जो क़ुबूल कर ली जाये।

-आसान फ़िक्ह, हिस्सा अव्वल, लेखक मुहम्मद यूसुफ़ इस्लाही, मक्तबा ज़िकरा, दिल्ली

दुआ का अरबी उच्चारण यूं है-
अल्लाहुम्मजअल्हा-लना फ़रतंव्व-वज्अल्हा लना अज्रंव-व ज़ुख़रंव-वज्अल्हा लना शाफ़िअंव्व-व मुशफ़्फ़िअः ।
रिश्तेदार और दोस्त आ रहे थे और कुछ आ भी चुके थे। उनके दरम्यान मैं ‘आसान फ़िक्ह‘ खोलकर यह दुआ देख और समझ रहा था। इस दुआ में अनमोल मारिफ़त के ख़ज़ाने और दुखी दिल की तसल्ली का पूरा सामान मौजूद है।
यह दुआ हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पवित्र वचनों में से एक है। इस दुआ को नाबालिग़ बच्ची की मौत के बाद उसकी नमाज़ ए जनाज़ः में पढ़ा जाता है।
मेरी बेटी अनम भी बालिग़ होने से पहले ही चल बसी। वह राम 4 बजे तक ठीक थी, अपनी मां का उसने दूध पिया। रोज़ की तरह आज सुबह भी उसकी मां ने जल्दी जल्दी बच्चों को तैयार किया, उन्हें स्कूल भेजा और उसके बाद उन्होंने अनम को उसके झूले से निकालकर गोद में लिया। गोद में लेते ही उन्होंने देखा कि उसकी आंखे खुली हुई हैं, बदन ठंडा है और गर्दन अकड़ी हुई है। उन्होंने रूआंसा होकर टॉयलेट का दरवाज़ा खटखटाकर मुझे यह इत्तिला दी। मैंने आकर देखा तो नब्ज़, सांस और ताप वहां कुछ भी न था।
मैं अपनी बेटी को लेकर डा. अवतार सिंह गौतम के पास गया। उन्होंने मुआयना करके मेरे फ़ैसले की तस्दीक़ कर दी।
शरीफ साहब , शफ़ीक़ और तनवीर भाई ने क़ब्रिस्तान में उसके लिये छोटी सी क़ब्र खुदवाई, उसके लिये छोटा सा कफ़न लाये।

अनम को नहलाने में शफ़ीक़ भाई और तनवीर भाई ने मेरी मदद की। और लोगों के अलावा मैंने अपने बड़े बेटे अनस को भी कार में अपने साथ ले लिया ताकि वह जीवन के सबसे बड़े सच से रू ब रू हो सके।

पौन बजे उसकी नमाज़ ए जनाज़ा में बक़दर तीन सफ़ आदमी हो गये थे। उसके लिये दुआ की और खुद अपने लिये भी। वापस आया तो हापुड़ से मास्टर अनवार साहब आ गये और अब भी लोगों के आने का सिलसिला लगा हुआ है। जिसे पता चल रहा है वह आ रहा है या फिर उसका फ़ोन आ रहा है। जिन ब्लॉगर्स को अपना क़रीबी समझा उन्हें भी एसएमएस कर दिया। तीन बार की कोशिश में एक बार एसएमएस सैंड हो पाया, सैन्ट करने ही वाला होता था कि किसी न किसी का फ़ोन आ जाता था। फिर कुछ को चाहकर भी न भेज सका।
एक मासूम कली हमारे आंगन में खिली, हमारे घर को महकाया और फिर जन्नत का फूल बन गई। हमारे दिल उसकी यादों के नूर से हमेशा रौशन रहेंगे यहां तक कि हम फिर से उससे जा मिलें।

Wednesday, July 21, 2010

The right view about God विष्णु अर्थात पालनहार तो सदा से जाग रहा है लेकिन लोगों के ज्ञान चक्षु कब खुलेंगे ? - Anwer Jamal

लोग कह रहे हैं कि विष्णु जी सो गये, अख़बार लिख रहे कि दुनिया को पालने वाला पाताल लोक के राजा के महल के गेट पर जाकर चार माह के लिये सो गया। जबकि मैं देख रहा हूं कि दुनिया ठीक ठाक चल रही है। हवा भी चल रही है और बादल भी बरस रहे हैं। सूरज भी अपना ताप दे रहा है और पौधे भी लहलहा रहे हैं बल्कि पहले से बेहतर लहलहा रहे हैं।

क्या एअर ट्रैफ़िक कंट्रोलर अपनी सीट पर सो जाए तो प्लेन आकाश में उड़ पाएंगे या ज़मीन पर सुरक्षित उतर पाएंगे ?
हम सुरक्षित हैं , बच्चे जन्म ले रहे हैं मांओं की छातियों से अमृत मासूमों के बदन को तृप्त कर रहा है। मौसम युवाओं को हिला मिलाकर उनके दायित्व की तरफ़ खींच रहा है। धरती धुल रही है, प्रकृति निखर रही है, सुहागिनों के चेहरों की ताज़गी बढ़ती जा रही है। अच्छी फ़सल की उम्मीदें जाग रही हैं। सभी काम अपने ढर्रे पर बिल्कुल पहले की तरह चल रहे हैं।
इसका मतलब यह है कि जो मालिक सृष्टि को चला रहा है जैसा वह पहले था वैसा ही आज भी है। उसे थकान ही नहीं होती तो उसे नींद की क्या ज़रूरत और वह भी पाताल लोक में जाकर ?
पाताल लोक को वैदिक विद्वान अमरीका भी कहते हैं।
जिस जाति ने कभी दुनिया को अजन्मे और अविनाशी ईश्वर के बारे में बताया जगाया था वह आज इस दशा को पहुंच गई है कि वह कह रही है कि विष्णु जी सो गये।
विष्णु अर्थात पालनहार तो सदा से जाग रहा है लेकिन लोगों के ज्ञान चक्षु कब खुलेंगे ?
सत्य को कब पहचानेंगे और अंधविश्वास से मुक्त होकर सत्य पर कब विश्वास करेंगे ?

Monday, July 19, 2010

Dua अल्लाह तआला शाहनवाज़ की मग़फ़िरत फ़रमाये और उसे अपने क़ुर्ब में आला मक़ाम अता फ़रमाये। - Anwer Jamal

मौत एक अटल सच्चाई है।
डा. अयाज़ साहब का छोटा भाई महज़ 20 साल की उम्र में ही चल बसा। आज 19 जुलाई 2010 है। आज से एक साल पहले ठीक इसी समय डा. साहब जंगल और पानी में उसे ढूंढ रहे थे। उनके साथ कई दर्जन आदमी भी थे। वे देर रात गये लौट आये और सुबह होते ही उन्होंने अपनी तलाश फिर शुरू कर दी।

19 जुलाई को क्लीनिक से लौटने के बाद शाहनवाज़ के पास थोड़ा सा समय होता था अपने मन का कुछ करने के लिए। उस दिन वह अपने रिश्तेदार लड़कों के साथ साखन नहर पर नहाने के लिए चला गया जो कि देवबंद से मात्र 5 किमी. दूर है। जब वह नहा रहा था ठीक उसी समय डा. अयाज़ साहब उसी नहर के पुल से गुज़र कर सहारनपुर गये थे। वे बस में थे।
शाहनवाज़ कैसे डूबा यह तो आज भी एक राज़ है लेकिन वह डूबा दोपहर में और उसके साथ जाने वालों ने उसके बारे में कोई इत्तिला घर पर नहीं दी। जब वह नहीं लौटा तो उसकी तलाश अयाज़ साहब के दोस्तों ने आरम्भ की जिनमें से हकीम सउद अनवर ख़ान साहब भी थे। अयाज़ साहब लौटे तो रात हो चुकी थी। मैं देवबंद से बाहर था। मुझे मेरे घरवालों ने फ़ोन पर इत्तिला दी। मैं दम ब खुद रह गया।

रात में नाकाम तलाश के बाद जब सुबह को ग़ोताख़ोरों ने नहर में खोज आरम्भ की तो एक जगह से नौजवान शाहनवाज का जिस्म तो मिल गया लेकिन अब उसमें कोई जान बाक़ी न थी।
नौजवान भाई की लाश देखकर अयाज़ साहब तो ढह से गये। हकीम साहब ने उन्हें संभाला। लाश घर आयी तो उनकी मां ने अल्लाह का शुक्र अदा किया।
वे बोलीं-‘अल्लाह का शुक्र है कि अभी हमारे पास एक बेटा तो है।‘
इस बात को मेरी वालिदा ने खुद सुना। उनके इस जुमले ने बता दिया कि एक मोमिन औरत की सोच और अमल क्या होता है ?
यही बात अयाज़ साहब के वालिद साहब ने कही। उन्होंने उन साथ जाने वाले लड़कों के वालिदैन से शिकवा तक भी न किया बल्कि साफ़ दिखने के लिए उनकी मांएं ही लड़ाई पर आमादा थीं। पूरे देवबंद में बेहद सदमा था और उसकी नमाज़ ए जनाज़ा में भी बहुत भीड़ थी।
आज उस वाक़ये को एक साल बीत चुका है लेकिन ऐसा लगता है जैसे कि अभी कल ही की बात हो। आज भी जब मैं डाक्टर साहब के घर जाता हूं तो ऐसा लगता है कि मानों किसी कोने से शाहनवाज निकलकर स्वागत करेगा और कहेगा कि आप बैठिए मैं भाई साहब को अभी बताता हूं।
शाहनवाज़ भाई तो डाक्टर साहब का था लेकिन वह हमारा भी बाज़ू था। बाला सुंदरी के मेले में इस्लामी साहित्य का स्टाल हम उसी के सहारे लगाया करते थे। इस साल वह नहीं था सो स्टाल भी नहीं लगा। वह गोरे रंग का पतला दुबला और बहुत कम बोलने वाला और सदा अपने बड़े भाई और वालिदैन की बात मानने वाला एक नौजवान लड़का था। हमें उसके जाने के बाद उसकी खूबियों का अहसास ज़्यादा हुआ और हो रहा है।
ज़िंदगी मिलती भी है और गुज़र भी जाती है। आज हम ज़िंदा हैं लेकिन क्या वाक़ई हम अपनी ज़िंदगी की क़द्र कर रहे हैं ?
हमारे भाई बहन मां बाप और रिश्तेदार जो ज़िंदा हैं उनके साथ हम कितना समय बिताते हैं ?
काश! हम ज़िंदगी की क़द्र करना सीख जाएं और इसे इस तरह गुज़ारें कि हम मालिक के मुजरिम बनकर उसके पास न पहुंचें।
काश! हम सब्र और शुक्र को अपना लें जिसकी मिसाल शाहनवाज़ के वालिदैन की ज़िंदगी में देखी जा सकती है।
अल्लाह तआला शाहनवाज़ की मग़फ़िरत फ़रमाये और उसे अपने क़ुर्ब में आला मक़ाम अता फ़रमाये।   आमीन ।
जो लोग कर सकते हैं वे उसे ईसाले सवाब ज़रूर करें।

Sunday, July 18, 2010

Orphans जो कोई किसी अनाथ के सिर पर प्यार से हाथ फेरता है तो अल्लाह उसके आमालनामे ने उसके सिर के बालों के बक़दर ही नेकियां लिखवा देता है।-Anwer Jamal

आज अख़बार देखा तो ‘हिन्दुस्तान‘ के आख़री पेज पर ‘वैशाली में बसते हैं फ़ादर टेरेसा‘ शीर्षक पर नज़रें ठिठक गईं। इसमें बताया गया है कि प्रद्युम्न कुमार 1972 में पटना गये थे तो उन्हें सड़क पर एक अनाथ बच्चा बीमारी में तड़पता हुआ मिला। उसे अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। इस वाक़ये से उन्होंने अनाथ बच्चों की देखभाल करने की ठान ली। घरवाले अब तो उनके साथ हैं लेकिन शुरू में उन्होंने भी उन्हें ताने दिये। प्रद्युम्न कुमार के पास आरम्भ में 11 अनाथ बच्चे थे । अनाथ बच्चों की देखभाल वे बिना किसी सरकारी सहायता के करते हैं। इसके लिये उन्हें रेलगाड़ियों और बस अड्डों में भीख तक मांगी। वे बच्चों को सातवीं कक्षा तक अपने आश्रम , लोक सेवा आश्रम, जनकल्याण समिति केन्द्र में शिक्षा देने के बाद आगे की पढ़ाई के लिये दूसरे स्कूलों में दाखि़ल करवा देते हैं और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद करते हैं।


यह ख़बर एक रचनात्मक ख़बर है। इसे पढ़कर दूसरी ख़बरों से उपजा क्षोभ काफ़ी कम हो गया।

जैसे कि फ़्रंट पेज पर ख़बरें थीं कि ‘जवान ने 7 साथियों को गोलियों से भूना‘ और ‘एसडीएम ने की ख़ुदकुशी की कोशिश‘ वग़ैरह वग़ैरह।

जो लोग महत्वाकांक्षी होते हैं और केवल अपने ही लिए जीते हैं वे अपने सपनों को ढेर होते देखकर निराश हो जाते हैं और उस रास्ते पर चल पड़ते हैं जिसपर चलने की सलाह वे अपने बच्चों को कभी नहीं दे सकते।

नाश्ता कर ही रहा था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। सामने एक टीन एजर खड़ा था। उसने बताया कि वह नेत्रहीनों के लिए काम करने वाली किसी संस्था की तरफ़ से आया है। मैंने उससे पूछा कि क्या वह अकेला है या उसके साथ कुछ और भी लड़के हैं?

उसने कहा कि उसके साथ दो लड़के और हैं।

मैंने कहा कि क्या आप चाय पीयेंगे ?

उसने निस्संकोच मेरा प्रस्ताव कुबूल कर लिया और अपने साथियों को लेने चला गया। जब तक वह लौट कर आया तब तक चाय और वाय तैयार हो चुकी थी।

मेहमान नवाज़ी भी अदा हो जाए और हिफ़ाज़त के आदाब भी पूरे हो जाएं लिहाज़ा चाय घर से बाहर और बाउंड्री के भीतर ही पिलाई गई। इस दरम्यान मैं उनसे उनके और उनकी संस्था के बारे में बातें करता रहा। उनमें से एक लड़का राजेश पहले भी कई बार मेरे पास आ चुका था। उसके एक पैर में लंगड़ाहट भी है। वह 10 वीं कक्षा में पढ़ रहा है और किसी साहब ने उसकी कम्प्यूटर के कोर्स की फ़ीस देने का वायदा किया है। मैंने उसमें तालीम के लिये लगन पाई।

दूसरे लड़के ने अपना नाम मोहित शर्मा बताया और कहा कि वह टेलरिंग का काम सीख रहा है।

मैंने मोहित से कहा कि जब आपको ही बचपन से अपने मां-बाप का पता नहीं है तो आपको कैसे पता कि आप शर्मा हैं ?

वह बोला कि बस हम तो खुद ही कहते हैं ?

मैंने तालीम का पता किया तो वह बोला कि पढ़ाई तो सातवीं के बाद ही छोड़ दी थी।

मैंने कहा-‘ शर्मा कहते हैं पंडित को और पंडित कहते हैं ज्ञानी को । जब आप खुद को शर्मा कहते हैं तो आपको अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिये। वक्त बहुत जल्दी बीत जाएगा। आप दिल्ली में रहते हैं, वहां मौक़ों की कमी नहीं है लेकिन मौक़े से फ़ायदा आप तभी उठा पाएंगे जबकि आप तालीमयाफ़्ता होंगे।‘

मैंने देखा कि उसे मेरी बात में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है। दरअस्ल आदमी वही करता है जो उसे आसान लगता है और उसके मन को भाता है। तब मैंने उसे लेडीज़ टेलर बनने की सलाह दी। दरअस्ल औरतों के सामान से जुड़ी हुई किसी भी चीज़ का व्यापार या कारीगरी करने वाले को कभी काम का टोटा नहीं रहता। अपने शौहरों की आमदनी को ये बीवियां ही ठिकाने लगाती हैं। मर्दों की ख़रीदारी भी ये औरतें ही करती हैं।

तीसरे लड़के ने अपना नाम अमित बताया। वह केन्द्र के लिए अपनी सेवाएं दे रहा है। पहले दोनों लड़के ‘नेशनल ब्लाइंड एडल्ट एजुकेशन एंड वोकेशनल ट्रेनिंग सेन्टर‘ में आने से पहले मथुरा और हरिद्वार की संस्थाओं में रह चुके हैं और अमित आरम्भ से ही दिल्ली में रहता है। यह संस्था पिछले डेढ़ साल से काम कर रही है।

इन लड़कों ने मुझे अपनी संस्था का एक कार्ड दिया जिस पर ‘तजराम शर्मा‘ को आर्गेनाइज़र लिखा है। पता है- पूठ कलां, पाकेट 16, निकट मदर डेयरी, सेक्टर 20, रोहिणी, नई दिल्ली-110086, मोबाइल नं.-09350883344, फ़ोन नं.-32625061

मैंने एक हस्बे रिवायत उन्हें एक छोटी सी भेंट दी और उनकी इजाज़त लेकर उनका फ़ोटो खींचा और उन्हें बताया कि मैं उनका ज़िक्र इंटरनेट पर करूंगा। शायद कोई दानदाता उसे पढ़कर उनकी संस्था तक पहुंच जाए।

इस सब वाक़ये से मुझे एक बात कहनी है कि एक अनाथ महज़ आपके चंद रूपयों का ही तलबगार नहीं होता बल्कि उसे आपकी मुहब्बत और आपकी अपनाइय्यत की भी ज़रूरत होती है। अगर आप अपने अमीर दोस्तों के लिए चाय नाश्ते का इंतेज़ाम ज़रूर करते हैं तो ये अनाथ उनसे कहीं ज़्यादा इस बात के मुस्तहिक़ हैं।

याद रखिये कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. भी एक अनाथ ही थे। उनका कथन (मफ़हूमन) है कि जो कोई किसी अनाथ के सिर पर प्यार से हाथ फेरता है तो अल्लाह उसके आमालनामे ने उसके सिर के बालों के बक़दर ही नेकियां लिखवा देता है।

अल्लाह की राह में देने से माल घटता नहीं बल्कि बढ़ता है, यह सच है, पवित्र कुरआन में यह बात अल्लाह ने खुद बताई है। जो अनाथ को धक्के देता है उसका न कोई दीन है और न कोई ईमान है।

और भय्या गिरी जी यह लीजिये आप अपना फ़ोटो जनाब मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब के साथ। आज मौक़ा मिल पाया, सो आज मैंने अपना वादा पूरा किया।

Thursday, July 15, 2010

Butterfly किसी मुफ़्ती के फ़तवे की वजह आज तक नाहक़ इतनी जानें न गई होंगी जितनी कि इस देश में डाक्टरों के क्लिनिक में रोज़ाना ले ली जाती हैं और कहीं चर्चा तक नहीं होता। -Anwer Jamal

श्रीपाल तेवतिया जी आज मेरे घर आये। वे नोएडा के पास एक क़स्बे के रहने वाले हैं। एन. एस. डी. और लखनउ के ड्रामा स्कूल के विद्यार्थी रह चुके हैं। मशहूर सीरियल ‘कबीर‘ बनाते समय निर्माता निर्देशक श्री अनिल चैधरी के चीफ़ असिस्टेंट ही नहीं रहे बल्कि सारा प्रोडक्शन भी उनके ही हाथ में था। वे इसी लाइन में और तरक्क़ी करते लेकिन एक फ़ैसले ने उनकी आगे की सारी ज़िंदगी बदलकर रख दी और वह फ़ैसला था उनका दिल्ली आने का फ़ैसला।

बहरहाल वे मुझसे जनवरी में मिले थे और कांवड़ियों को सामने रखते हुए उन्होंने जो अलबम बनाया था उसे मुझे भेंट करने आये थे। मैंने उसे देखा भी था और अपने विचारों से उन्हें अवगत भी कराया था। आज मैंने इत्तेफ़ाक़न फ़ोन किया और पूछा कि भाई आखि़र आप हो कहां ?
श्रीपाल जी बोले - रास्ते में हूं और थोड़ी ही देर में आपके घर पहुंचने वाला हूं। वे 15 मिनट से भी कम वक्त में आ भी गये। उनके साथ में एक युवा निर्माता विकास जी भी थे।
श्रीपाल जी ने मुझे अपना नया अलबम दिया। अलबम का नाम ‘तितली‘ है और उसपर दोचार तितली टाइप लड़कियों की तस्वीरें भी हैं।
मैंने एक नज़र सी.डी. पर डाली और कहा कि इसका ज़िक्र मैं अपने ब्लॉग पर करूंगा। वे फ़ौरन बोले - भाई इसके खि़लाफ़ ही लिखोगे आप तो ?
मैंने कहा - हां, और आप तो जानते ही हैं कि आपको तो मुख़ालिफ़त से भी लाभ ही होता है। आपका प्रचार तो मुख़ालिफ़तसे ज़्यादा होता है।
वे हंस पड़े। श्रीपाल जी मेरे मिज़ाज को जानते हैं लेकिन फिर भी मुझे मानते हैं क्योंकि मैं उनसे प्यार करता हूं और वे मुझसे। उनकी पत्नी मुझे भाई कहती हैं और उनका बेटा मेरे पैर छूता है।
उनके बेटे वरूण को पहला ब्रेक मैंने ही अपने एक प्रोजेक्ट में दिया था। उसमें उसने गुर्दे बेचने वाले गैंग के चीफ़ के बेटे का रोल किया था। ‘तितली‘ का संपादन और निर्देशन उसी बेटे ने किया है नाम है ‘वरूण चैधरी‘।
श्रीपाल जी ने बताया कि वरूण आजकल साउथ दिल्ली में ‘फ़्रेमबॉक्स‘ में मल्टीमीडिया का कोर्स कर रहा है। उनके प्रेम और उत्साह को ध्यान में रखते हुए मैंने उन्हें मुबारकबाद इन अल्फ़ाज़ में दी -‘‘ इसके जो भी अच्छे पहलू हों, बुरे नहीं, वे आपको मुबारक हों‘‘

वे फिर हंसे और सहमत हुए।
उन्होंने अपनी ख़ैरियत और चल रहे प्रोजेक्ट के बारे में बताने के बाद पूछा कि आप कैसे हैं ?
मैंने पूछा - आपको कैसा लग रहा हूं ?
वे बोले - चेहरे से तो आप एकदम ताज़ा लग रहे हो ?
तब मैंने उन्हें झूले में लेटी हुई अपनी बेटी ‘अनम‘ का चेहरा दिखाया और उसकी बीमारी के बारे में मुख्तसर तौर पर बताया और बताया कि अनम खुदा का इनाम है जब तक भी हमारे पास है खुदा की ही अमानत है और इसी बात ने हमें हरेक ग़म से बचा रखा है।
हमारे दरम्यान लंबी बातें हुईं और हरेक दोस्त से दिल की बातें होती ही हैं। मैं चाहता हूं कि आपके साथ भी उन्हें बांटा जाए । इसीलिए इस ब्लॉग को आज मन्ज़र ए आम पर लाया गया है। आपके ख़यालात मेरी रहनुमाई करते रहे हैं और उम्मीद है कि इस ब्लॉग पर भी करते रहेंगे।
अनम का टेम्प्रेचर अब नियंत्रित है , ज़ख्म लगातार हील हो रहा है। उसकी ड्रेसिंग सुबह सायं मैं खुद ही करता हूं। उसकी भूख और नींद सेहतमंद बच्चों की ही तरह है। अब उसका वज़्न भी कुछ मामूली सा बेहतर हुआ है। मैं चाहता हूं कि वह जिये और जो लोग खुद को वक्त का खुदा मान बैठे हैं उनकी खुदाई को ढहा दे।
किसी मुफ़्ती के फ़तवे की वजह आज तक नाहक़ इतनी जानें न गई होंगी जितनी कि इस देश में डाक्टरों के क्लिनिक में रोज़ाना ले ली जाती हैं और कहीं चर्चा तक नहीं होता। क्या विकृतियों के कारण शिशु को मां के गर्भ में ही मार देना दुरूस्त है ?
मैंने श्रीपाल जी से भी पूछा तो उन्होंने भी मेरे ही विचार से सहमति जताई।