Monday, May 3, 2010

पालनहार प्रभु ने मनुष्य की रचना दुख भोगने के लिए नहीं की है।

मनुष्य का मार्ग और धर्म
पालनहार प्रभु ने मनुष्य की रचना दुख भोगने के लिए नहीं की है। दुख तो मनुष्य तब भोगता है जब वह ‘मार्ग’ से विचलित हो जाता है। मार्ग पर चलना ही मनुष्य का कत्र्तव्य और धर्म है। मार्ग से हटना अज्ञान और अधर्म है जो सारे दूखों का मूल है। पालनहार प्रभु ने अपनी दया से मनुष्य की रचना की उसे ‘मार्ग’ दिखाया ताकि वह निरन्तर ज्ञान के द्वारा विकास और आनन्द के सोपान तय करता हुआ उस पद को प्राप्त कर ले जहाँ रोग,शोक, भय और मृत्यु की परछाइयाँ तक उसे न छू सकें। मार्ग सरल है, धर्म स्वाभाविक है। इसके लिए अप्राकृतिक और कष्टदायक साधनाओं को करने की नहीं बल्कि उन्हें छोड़ने की ज़रूरत है।ईश्वर प्राप्ति सरल है ईश्वर सबको सर्वत्र उपलब्ध है। केवल उसके बोध और स्मृति की ज़रूरत है। पवित्र कुरआन इनसान की हर ज़रूरत को पूरा करता है। इसकी शिक्षाएं स्पष्ट,सरल हैं और वर्तमान काल में आसानी से उनका पालन हो सकता है। पवित्र कुरआन की रचना किसी मनुष्य के द्वारा किया जाना संभव नहीं है। इसके विषयों की व्यापकता और प्रामाणिकता देखकर कोई भी व्यक्ति आसानी से यह जान सकता है कि इसका एक-एक शब्द सत्य है। आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के बाद भी पवित्र कुरआन में वर्णित कोई भी तथ्य गलत नहीं पाया गया बल्कि उनकी सत्यता ही प्रमाणित हुई है। कुरआन की शब्द योजना में छिपी गणितीय योजना भी उसकी सत्यता का एक ऐसा अकाट्य प्रमाण है जिसे कोई भी व्यक्ति जाँच परख सकता है।प्राचीन धर्म का सीधा मार्ग ईश्वर का नाम लेने मात्र से ही कोई व्यक्ति दुखों से मुक्ति नहीं पा सकता जब तक कि वह ईश्वर के निश्चित किये हुए मार्ग पर न चले। पवित्र कुरआन किसी नये ईश्वर,नये धर्म और नये मार्ग की शिक्षा नहीं देता। बल्कि प्राचीन ऋषियों के लुप्त हो गए मार्ग की ही शिक्षा देता है और उसी मार्ग पर चलने हेतु प्रार्थना करना सिखाता है।
‘हमें सीधे मार्ग पर चला, उन लोगों का मार्ग जिन पर तूने कृपा की।’ (पवित्र कुरआन 1ः5-6)
ईश्वर की उपासना की सही रीति
मनुष्य दुखों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि वह ईश्वर को अपना मार्गदर्शक स्वीकार करना कब सीखेगा? वह पवित्र कुरआन की सत्यता को कब मानेगा? और सामाजिक कुरीतियों और धर्मिक पाखण्डों का व्यवहारतः उन्मूलन करने वाले अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) को अपना आदर्श मानकर जीवन गुज़ारना कब सीखेगा?सर्मपण से होता है दुखों का अन्त ईश्वर सर्वशक्तिमान है वह आपके दुखों का अन्त करने की शक्ति रखता है। अपने जीवन की बागडोर उसे सौंपकर तो देखिये। पूर्वाग्रह,द्वेष और संकीर्णता के कारण सत्य का इनकार करके कष्ट भोगना उचित नहीं है। उठिये,जागिये और ईश्वर का वरदान पाने के लिए उसकी सुरक्षित वाणी पवित्र कुरआन का स्वागत कीजिए। भारत को शान्त समृद्ध और विश्व गुरू बनाने का उपाय भी यही है।क्या कोई भी आदमी दुःख, पाप और निराशा से मुक्ति के लिये इससे ज़्यादा बेहतर, सरल और ईश्वर की ओर से अवतरित किसी मार्ग या ग्रन्थ के बारे में मानवता को बता सकता है?
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भारत में दुनिया के कुल अंधों की एक तिहाई आबादी रहती है जो कि लगभग 120 लाख है। ब्वसवनत इसपदक लोग भी होते हैं जो चीज़ों के कुछ रंगों में भेद नहीं कर पाते। अंधों की एक क़िस्म और होती है जो आँख के नहीं बल्कि अक़्ल के अंधे होते हंै। इन्हें ज्तनजी इसपदक भी कहा जा सकता है। तमाम पढ़ाई लिखाई के बावजूद इनकी अक़्ल उस कुदरती सच्चाई को नहीं देख पाती जिसे हरेक देश का अनपढ़ आदमी भी जानता है बल्कि जिसे मछलियांं, जानवर, परिन्दे और पेड़-पौधे तक जानते हैं। अक़्ल के अंधों की बहुत सी जमातें हंै जो अलग-अलग रास्तांे पर ठोकरें खाती फिर रही हैं। समलैंगिकता के राहियों और उनके हामियोंे का शुमार इन्हीं लोगों में होता है। अगर इनके माँ बाप भी इनके जैसी ही सोच वाले होते तो आज इनका वजूद ही इस ज़मीन पर न होता। जिस व्यवस्था से आदमी फ़ायदा उठाता है उसे बनाये रखने की ज़िम्मेदारी भी उस आदमी पर खुद-ब-खुद आयद हो जाती है और जो आदमी अपनी ख़ुदग़र्ज़ी या बीमार मानसिकता के चलते उस व्यवस्था की जड़ काटने पर तुल जाये और समझाने से भी न समझे तो फिर उसे मुनासिब सज़ा दिया जाना ज़रूरी है। यह ख़ुशी की बात है कि इस गन्दी सोच के खि़लाफ मुस्लिम, ईसाई, हिन्दू और दीगर धर्मगुरूआंे ने एक स्वर में आवाज़ बुलन्द की है लेकिन काम सिर्फ विरोध करने से ही बनने वाला नहीं है। यह सोचना भी ज़रूरी है कि किन कारणों से भारतीय युवा वर्ग विकृतियों का शिकार हो रहा है और किस तरीके़ से उन्हें तबाही की दलदल से निकाला जा सकता है? हकी़क़त यह है कि इनसान को अगर ज़िन्दगी का अस्ल मक़सद ही पता न चले तो फिर वह भटक कर किसी भी रास्ते पर निकल सकता है। इनसान अनाथ नहीं है न ही उसकी ज़िन्दगी बेमक़सद है। इनसान के जीवन का एक पाक मक़सद है जिसे नेकी के रास्ते से ही पाया जा सकता है। इनसान के लिए ईश्वर की योजना क्या है? उसकी नाकामी किस चीज़ में है और उसकी कामयाबी किस बात में है? इसलाम हर बात को खोलकर समझाता है। इसलाम के मानने वालों ने दुनिया को इसलाम का पवित्र संदेश दिया लेकिन पिछले कुछ अर्से से इस सिलसिले में सुस्ती और ग़फ़लत देखी जा रही है। खेत में अगर फ़सल को खरपतवार दबा दे तो इसकी ज़िम्मेदारी किसान की होती है। इसी तरह अगर दुनिया में बुराई फैलती है तो इसकी ज़िम्मेदारी मुसलमानों पर आयद होती है क्योंकि उस पैदा करने वाले ने मुसलमानों की दीनीे ज़िम्मेदारी ही लोगों की खै़रख़्वाही, खि़दमत और उन्हेंं नेकी और कामयाबी के रास्ते की तरफ रहनुमाई करना मुक़र्रर की है। पश्चिमी सभ्यता को जिस घुन ने चाट कर खोखला कर दिया है, वही घुन अब भारतीय समाज को खाये जा रहा है। भारतीय समाज को तबाही से बचाना मुसलमानों की दीेनीें ज़िम्मेदारी है। भारतीय समाज को न सिर्फ बचाना है बल्कि इसे नेकी और सच्चरित्रता की उस बुलंदी पर पहुंचाना है, जहां पहुंचकर यह स्वाभाविक रूप से विश्व समाज का मार्गदर्शन कर सके। एक अजन्मे अविनाशी ईश्वर की वन्दना से ही शुभ गुणों की प्राप्ति संभव है इसलिये लोगों को ईश वन्दना के स्वरूप, उसके तक़ाज़ों और उसके नतीजों के प्रति शिक्षित करके अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए सभी वर्गों को मिलकर प्रयास करना ज़रूरी है। आज़ादी के लिए बलिदान देने वालों ने स्वर्णिम भारत का जो सपना देखा था उसे साकार करने का उपाय भी यही है। मानवधर्म : पैग़म्बर की वाणी
1. हजरत अबू हुरैरह रज़ि0 से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने कहा कि अल्लाह तआला क़ियामत के दिन (किसी बन्दे से) कहेगाः ”हे आदम के बेटे! मैं बीमार हुआ तूने मेरी बीमारपुर्सी नहीं की।“ वह बन्दा कहेगा कि हे रब! मैं तेरी बीमारपुर्सी कैसे करता तू तो सारे जगत का रब है? वह कहेगाः ”क्या तू नहीं जानता था कि मेरा अमुक बन्दा बीमार है तूने उसकी बीमारपुर्सी नहीं की? क्या तू नहीं जानता था कि अगर तू उसकी बीमारपुर्सी करता, तो अवश्य ही तू मुझे उसके पास पाता। हे आदम के बेटे! मैंने तुझसे खाना मांगा लेकिन तूने मुझे खाना नहीं खिलाया।” बन्दा कहेगा-हे रब! मैं तुझे खाना कैसे खिलाता तू तो जगत का रब है। वह कहेगाः ”क्या तुझे नहीं मालूम कि मेरे अमुक बन्दे ने तुझसे खाना मांगा लेकिन तूने उसे खाना नहीं खिलाया। क्या तूने बात न जानी कि अगर तूने उसे खिलाया होता, तो उस (के सवाब) को मेरे पास पाता। हे आदम के बेटे! मैंने तुझसे पानी मांगा लेकिन तूने मुझे पानी न पिलाया।“ बन्दा कहेगा- हे रब, मैं तुझे कैसे पानी पिलाता तू तो सारे जगत का रब है। वह कहेगाः ‘‘मेरे अमुक बन्दे ने तुझसे पानी मांगा लेकिन तूने उसे न पिलाया अगर तू उसे पानी पिलाता तो उस (के सवाब) को मेरे पास पाता।“ - मुस्लिम 2. हज़रत अबू हुरैरह रज़ि0 से रिवायत है कि नबी सल्ल0 ने कहा कि जब कोई मुसलमान अपने किसी बीमार भाई की बीमारपुर्सी करता है या उससे मुलाक़ात करता है तो अल्लाह तआला कहता हैः ‘‘तुझे मुबारक हो और तेरा यह चलना मुबारक है। तूने अपना घर जन्नत में बना लिया।“ -तिरमिज़ी
रब का मिज़ाज रहमत वाला है। उसका सच्चा बन्दा भी वही है जिसका मिज़ाज रहमत वाला है।
इनसान अपने रब की कुदरत का भी निशान है और उसकी रहमत और मुहब्बत का भी। उसने इनसान से ऐसी और इतनी मुहब्बत की है जिसे इनसान पूरे तौर पर कभी समझ नहीं पायेगा। खुदा इनसानों से भी यही चाहता है कि वो भी आपस में प्यार-मुहब्बत का बर्ताव करें। उसने ज़मीनो-आसमान की हर चीज़ को इनसान को नफ़ा पहुंचाने में लगा दिया है। बहुत सी चीज़ों के भण्डार उसने खुद इनसानों के ही हवाले कर दिये हैं जिन्हें बरतने के लिए बांटने की ज़िम्मेदारी भी उसने इनसानों पर ही डाल दी है। ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी बुनियादी चीज़ों के ग़लत बंटवारे की वजह से कुछ लोगों पर तो बहुत कुछ हो जाता है जबकि बहुत से लोगों के पास कुछ भी नहीं होता। कभी-कभी अपनी ग़लत आदतों या ग़लत फैसलों के नतीजे में भी इनसान बदहाली का शिकार हो जाता है। और कभी यही बदहाली हालात के उतार-चढ़ाव के नतीजे में इनसान को घेर लेती है। वजह कुछ भी हो लेकिन बुरे हाल से गुज़रने वाला शख़्स अगर आपसे मदद मांगता है तो हैसियत के मुताबिक़ उसकी मदद करना अपकी ज़िम्मेदारी है चाहे उसका मत, प्रदेश, जाति और भाषा कुछ भी क्यों न हो? जैसे नज़र आने वाले शख़्स के पीछे आंख से नज़र न आने वाला मालिक मौजूद है ऐसे ही इस नज़र आने वाली दुनिया के पीछे आंख से दिखाई न देने वाली आखि़रत (परलोक) भी पोशीदा है। जो कुछ आप आज कर रहे हैं, वह कल आपके ही काम आने वाला है। कल जब क़ियामत के रोज़ आप अपने रब के दरबार में पेश किये जाएंगे तो वहाँ तिलावते-कुरआन, नमाज़, रोजा, हज और ज़िक्र व तस्बीह को भी जांचा परखा और तौला जाएगा और यह भी देखा जाएगा कि सच्चे मालिक का इतना नाम लेने वाले ने अपने मालिक के मिज़ाज और उसकी मन्शा को कितना पहचाना है और वह मालिक के रंग में खुद को कितना रंग पाया है? रब का मिज़ाज रहमत वाला है। उसका सच्चा बन्दा भी वही है जिसका मिज़ाज रहमत वाला है। जहां लोगों केे मिज़ाज में रहमत और हमदर्दी होगी वहां ज़ुल्म-ज़्यादती, ग़रीबी, दुख और जुर्म बाकी नहीं रह सकते। दुखी लोगों के दरम्यान रहते हुए भी उनके दुख की तरफ़ से आँखे बंद करके ध्यान में लीन रहने वाला भक्त अपने पालनहार के स्वभाव से अपरिचित है, चाहे उसके कितने ही चक्र जाग्रत हों और कितने ही लोग उसे गुरू क्यों न मानते हों? न तो आज वो अपने लिए कुछ भेज रहा है और न ही कल उसे कुछ मिलने वाला है।

देश में हर साल स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाता है और प्रधानमंत्री ऐतिहासिक लालक़िले से तिरंगा फहराकर देशवासियों को सम्बोधित करते हैंं अक्सर इस संबोधन में देश की समस्याओं की चर्चा होती है और कभी कुछ राहत घोषणाएँ भी की जाती हैं। यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि पिछले कई वर्षो से यह कार्यक्रम रस्मी सा हो गया है। इसकी कोई अहमियत नहीं रहती कि क्या घोषणाएँ की हुईं अथवा क्या आश्वासन दिये गये,क्योंकि कथनी और करनी में आयी दरार से जनता को राहत नहीं मिल पाती। वास्तव मंें यह कार्यक्रम देशवासियों में स्वतन्त्रता का भाव संचारित करने के लिए आयोजित किया जाता है और देश की आज़ादी के सम्बन्ध में इस बहाने से कुछ बातें आ जाती हैं। उल्लेखनीय है कि 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की परतंत्रता से मुक्त हुआ था। इस मौक़े पर यह संकल्प लिया गया था कि अब हम अपने सपनों का भारत बनायेंगे। अशिक्षा, असुरक्षा, दासता, निर्धनता आदि समस्याओं के हल के लिए ज़ोरदार प्रयास करेंगे और ऐसे समाज का निर्माण करेंगे, जहाँ देश के सभी नागरिकों को अपनी उन्नति व तरक़्क़ी करने का समुचित अवसर प्राप्त रहेगा। लोगों को उनके मूलभूत अधिकार प्रदान किये जायेंगे और किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा और सभी लोग क़ानून के सामने बराबर के भागीदार होंगे। नागरिकों के धर्म,उनकी भाषा और संस्कृति आदि की रक्षा की जायेगी, किसी पर बलात् कोई सोच नहीं थोपी जायेगी। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारतीय संविधान में भी ये चीज़ें सम्मिलित की गयीं और यह आभास दिलाया गया कि आज़ाद भारत में नागरिकों की उन्नति में बाधक बने तत्वों व कारकों को हटा दिया जायेगा। इस प्रकार हर नागरिक आज़ादी की खुली हवा मेें साँस ले सकेगा। सवाल यह है कि क्या हम सचमुच आज़ाद हो गये हैं और हमारी उन्नति में बाधक सभी तत्वों व कारकों को हटा दिया गया है ?उसका नन्हा मुन्ना वजूद जब दुनिया में आयाउसने देखीं माँ की ख़ाली-ख़ाली नज़रेंउसने देखीं वालिद के माथे की बढ़ती लकीरेंऔर सुनीं रिश्तेदारों की ठण्डी-ठण्डी आहेंवक़्त का तूफान आगे बढ़ावो इक नन्हीं सी जानसबको एक बड़ा बोझ लगती थीक्योंकि उसके वजूद केसाथ जुड़ी थीदहेज की एक भारी बेड़ीउसने सब कुछ देखासुना और महसूस कियाऔर धीरे-धीरेअपना वजूद उसको खुद बोझ लगने लगाऔर उसने अपने वजूद को समेटकरएक ख़ोल में क़ैद कर लियाऔर वक़्त यूँ ही गुज़रता गयामाँ बाप की फिक्रें बढ़ती गईंऔर अभी वो नन्हा पौधापूरी तरह परवान भी न चढ़ा थाकि एक नया सिलसिला शुरू हो गयाकुछ अजनबी लोग घर आते रहेउसको हर तरफ से परखा गयाकुछ लोगों ने जवाब कल पर टालाऔर कुछ ने पैसे परकिसी ने स्कूटर की माँग कीकिसी ने मोटरसाईकिल कीकिसी ने ज़ेवर की माँग कीकिसी ने कैश कीवक़्त निकलता जा रहा थामाँ बाप कुछ नहीं कर पा रहे थेआखि़रकार एक सौदा मंज़ूर हुआकुछ सामान आजऔर कुछ कल देने का वादा कियावो लाल गठरी बनीएक घर से दूसरे घर आ गईऔर फिर शुरू हो गईं माँगेंजो शादी के वक़्त पूरी न हो सकी थींमाँ बाप परेशान न हों, यह सोचकरसारे दुख अकेले झेलेऔर झेली फिर वो आग जिसमेंउसके वजूद को बड़ी बेहरमी से जला दिया गया लेकिन अभी कहानी खत्म नहीं हुईअब दूसरी की बारी हैवो लालची किसी और को देखने जायेंगेअपनी लम्बी लिस्ट के साथउन चीज़ों की लिस्टजिनको ख़रीदने के बारे मेंवो ख़ुद कभी सोच भी नहीं सकतेमाँ बाप कल फिर देने का वादा करेंगेऔर यह कहानी जारी रहेगीन जाने कब तकक्या वह दिन कभी आयेगाजब माँ बाप उस नन्हे वजूद कोदुनिया में आने पर ख़ुश आमदीद कहेंगेजब उसको बोझ नहीं समझा जायेगाजब उसके वजूद पर उतना ही ध्यान दिया जायेगाजितना कि उसके भाईयों परकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकेजब उसको अपनी ज़िन्दगी का रास्ता ख़ुद चुनने दिया जायेगाजब उसको बताया जायेगा कि शादी ही ज़िन्दगी का इकलौता मक़सद नहीं हैजब तक रिश्तों की यह सौदेबाज़ी ख़त्म न होगीजब माँ बाप लालची भेड़ियों के आगे घुटने न टेकेंगेमगर यह सब तब होगाजब लड़कियां ख़ुद को पहचानेंगीजब वो दूसरों के जुल्मो-सितम तक़दीर समझकर सहेंगी नहींबल्कि वो उसके खि़लाफ़ आवाज़ उठायेंगीजब तक वो अपने पैरों पर खड़ी न होंगीजब वो माँ बाप का बोझ नहीं बल्कि सहारा बनेंगीजब माँ बाप लड़कियों को बोझ समझकरअपना बोझ उतारने के लिएलड़कियों के सिर पर मनों बोझ नहीं रखेंगेबोझ बेइज़्ज़ती और नाक़द्री काबोझ एक खाना बनाने वाली औरबच्चे पैदा करने वाली मशीन बनकर रह जाने काकाफ़ी दहेज न लाने का बोझऔर फिर उस आग का बोझजिसमें उनको जला दिया जाता है ज़िन्दा