Wednesday, December 28, 2011

इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में ग़ैर इस्लामी गतिविधियां क्यों होती हैं ?

हमने पिछले साल भी अपने ब्लॉग ‘अहसास की परतें‘ पर ऐतराज़ जताया था कि इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में ग़ैर इस्लामी गतिविधियां क्यों होती हैं ?
हुस्नो-इश्क़ और मयकशी पर शायरी का ताल्लुक़ फ़न ए शायरी से है न कि इस्लाम से।
इस सेंटर में पिछले साल की तरह इस साल भी ग़ालिब की याद में एक मुशायरा संपन्न हुआ और इसमें कुछ काम ऐसे भी हुए जो कि सरासर ग़ैर इस्लामी हैं। इस्लाम के ज़िम्मेदार जो कि दिल्ली में रहते हैं उन्हें इस तरफ़ ध्यान देना चाहिए।
आज दिनांक 28 दिसंबर 2011 के उर्दू अख़बार राष्ट्रीय सहारा में छपी ख़बर भी साथ में मौजूद है।

Thursday, December 22, 2011

स्कूल की ड्राइंग





यह पेंटिंग हमारे साहबज़ादे ने बनाई है . दरअसल यह उनके  स्कूल की ड्राइंग थी. उसमें कंप्यूटर के ज़रिये थोड़ी सी तब्दीली की है .
स्कूल की ड्राइंग यह है :


Tuesday, December 20, 2011

श्री कृष्ण जी को इल्ज़ाम न दो

आजकल गीता पर चर्चा ज़ोरों पर चल रही है क्योंकि रूस में गीता पर पाबंदी लगाने की कोशिश की जा रही है। ज़्यादातर लोग तो गीता के पक्ष में बोल रहे हैं लेकिन कुछ स्वर गीता के विरोध में भी उठ रहे हैं। ऐसे ही एक ब्लॉग को हमने पढ़ा तो उसमें लेखक ने भारत की बर्बादी का इल्ज़ाम श्री कृष्ण जी पर ही डाल दिया और उसने आधार बनाया उस साहित्य को जो कि श्री कृष्ण जी के हज़ारों वर्ष बाद लिखा गया।
गीता महाभारत का एक अंश है। महाभारत के आदि पर्व 1, 117 से पता चलता है कि इसका नाम वास्तव में ‘जय‘ था और उसमें मात्र 8, 800 श्लोक थे और कृष्ण द्वैपायन व्यास ने सबसे पहले इसका संपादन किया था। इसके बाद वैशंपायन ने इसका संपादन किया और श्लोक 24, 000 हो गए। अब इसका नाम भारत हो गया। इसके बाद उग्रश्रवा सौति ने इसमें 96, 244 श्लोक बना दिए और फिर नाम बदलकर महाभारत हो गया। अब यह नहीं कहा जा सकता कि ‘जय‘ के नाम से प्रसिद्ध ग्रंथ के कितने श्लोक इस ग्रंथ में हैं और वे कौन कौन से हैं ?
इस बढ़ोतरी के बाद के अब यह कहना बहुत मुश्किल है कि मूल 8, 800 श्लोक कौन से हैं ?
अगर मूल कथा आज हमारे सामने होती तो शायद बहुत से प्रश्न खड़े ही नहीं होते।
महापुरूषों के चरित्र के बारे में भी बहुत से प्रश्न तब खड़े न होते।
कथा को रोचक बनाने के लिए कवियों ने जो प्रसंग अपनी ओर से बढ़ा दिए हैं, उनकी वजह से लोग श्री कृष्ण जी के बारे में अपमानजनक बातें कर रहे हैं।
यह सरासर ग़लत है।
प्रेरणा लेने से पहले ज्ञान की शुद्धता की जांच ज़रूर कर लेनी चाहिए।

भारत की पवित्र भूमि पर सदाचारी मार्गदर्शकों का अपमान हमारे नैतिक पतन का प्रमाण है।
इस आशय का कमेंट हमने इस पोस्ट पर दिया है। इसे आप भी देखें और हमें अपने विचारों से अवगत करायें:
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/ORISON/entry/%E0%A4%97-%E0%A4%A4-%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%AC-%E0%A4%A6-%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%AD-%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95
ओरिसन लिखता है :
गीता ने बर्बाद किया भारत को 
गीता ने बरबाद किया भारत को, भारत में भावनाओं के अथाह समंदर को गीता ने बरबाद कर दिया, लोग ने लोगों पर विश्वास करना छोड़ दिया, और लोग आपस में नातें-रिश्ते भूलकर, जमीन-जायदाद और धन के लिए अपने ही अपनों के गले काटने लगे, क्यूंकि गीता में ऐसा लिखा है, जिसमे इंसानी भावनाओं से ऊपर जमीन-जायदाद और धन-संम्पत्ति को बड़ा माना गया, और उसके पीछे यह मिसाल दी गयी की जो अपना है, वह अगर किसी के पास भी है तो छीन लो, भले ही वह भाई-हो, नातेदार हो, रिश्तेदार हो, उस भावना को दबा दो, और जमीन और धन के लिए अपने से बड़ों से भी लड़ पड़ो, यह गीता ने सिखाया, जिससे भारत बरबाद हो गया, और भारत में जमीन-जायदाद और धन संम्पति को ज्यादा महत्त्व दिया गया, जबकि भावनाओं और हृदय की बातों को कमजोरी समझा गया, और इसका फायदा उठाया गया, तो इस तरह तो गीता ने एक तरफ कहाँ की जो तुम्हारा है अर्जुन वह किसी भी प्रकार लड़कर छीन लो, फिर दूसरी तरफ गीता ने कहा की तुम क्या लाये तो जो तुम्हारा है, तुम क्या ले जाओगे, इस तरह की विरोधाभाषी वक्तव्य ने भारत के लोगों को भ्रमित कर दिया, तो जो लोग, ताकतवर थे, चालाक थे, उन्होंने दूसरों की भावनाओं का फायदा उठाकर, उन्हें उसी में उलझाये रखा और अपने पास धन-दौलत और जमीन-जायदाद अपने पास रखी, बस यही पारी पाटि भारत में चलती रही, और उसने कमजोर को वैरागी बना दिया, और ताकतवर को अय्याश बना दिया, कमजोर होकर वह वैराग का बाना ओढ़ लिया की अब उसे तो यह जामीन मिलने से रही तो उसने कहाँ की संसार मिथ्या है, और जो ताकतवर था उसने अय्याशी अपना ली | इस तरह से गीता ने पूरे भारत को दो भागों में बाँट दिया, एक जो उस जमीन-जायदाद के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे, उसके लिए किसी के साथ भी लड़ सकते थे, कोई भी पैंतरा अपना सकते थे, और अपने हाथ में दौलत काबू में रखते थे, और दूसरे वो जों भावनाओं के आगे जमीन-जायदाद को भी ठोकर मार देते थे, और अपने ईमान को कभी गन्दा नहीं करते थे, और अपने नाते-रिश्तों और बड़ों का सम्मान करते थे, आज भी भारत इसी ढर्रे पर चल रहा है, जों लोग पैसे वाले होते हैं वह भावुक नहीं होते हैं, और जों गरीब होते हैं वह भावुक होते हैं, और पैसे वाले किसी के सामने दिखावा तो करते हैं की हम सम्मान करते हैं, पर पीठ पीछे छुरा भी घोंप देते हैं, और उनकी भावना झूठी होती है, उस भावना में भी वह उससे गरीब के पास जों होता है, वह हथियाना चाहते हैं, और उसे और गरीब ही रहने देना चाहते हैं, बात तो बड़ी-बड़ी करते हैं की सब माया है, पर भारत वाले जितनी माया इक्कठी करते हैं उतना संसार का कोई आदमी नहीं करता है |

तो आज भी यह गीता किसी भी नाते और रिश्ते को तोड़कर जमीन और जायदाद को महत्त्व देने को कहती है, और गीता के बल पर वह किसी की परवाह नहीं करता है, और बड़े-बूढें की भावनाओं को देखता तक नहीं है, उसके लिए अपना अहंकार ही सबसे बड़ा होता है, और उसका अहंकार किसी भी प्रकार से जमीन और जायदाद हथियाना चाहता है | चाहे उसके लिए किसी को भी मारना पड़े, चाहे वह कोई भी हो, नाते में रिश्ते में।

Friday, December 9, 2011

आत्महत्या से बचाव की कारगर तदबीर

भाई ख़ुशदीप जी सवाल कर रहे हैं कि
ज़िंदगी से क्यों हार रहे हैं लोग ?
उनकी पोस्ट का विषय आत्महत्या है।
 
जीना दुश्वार क्यों ?
आखि़र लोग आत्महत्या का रास्ता क्यों अपना रहे हैं ?
यह आज चिंता का विषय है।
हरेक उम्र और हरेक लिंग और भाषा के लोग आत्महत्या कर रहे हैं।
इसके पीछे एक सही नज़रिये का अभाव है।
लोगों के जीवन में समस्याएं आती हैं और जो लोग उन्हें हल होते नहीं देखते और उनसे उपजने वाले तनाव से वे हताश हो जाते हैं तो ऐसे लोगों में आत्महत्या का विचार सिर उठाने लगता है और कुछ लोग सचमुच आत्महत्या कर लेते हैं।
कोई आदमी अकेला नहीं मरता बल्कि वह अपने से जुड़े हुए लोगों को भी मार डालता है। उन्हें वह सदा के लिए एक न भरने वाला ज़ख्म देकर चला जाता है।
अपने मां बाप और पत्नी-बच्चों के लिए जो भीषण संत्रास वह जीवन भर छोड़ कर जा रहा है और उन्हें जीते जी ही मुर्दा बना रहा है। यह घोर पाप है और इस पाप के दंड से मुक्ति संभव नहीं है।

इस समस्या का हल यह है आदमी यह जान ले कि अपने जीवन का मालिक वह स्वयं नहीं है बल्कि वह रब है जिसने उसे पैदा किया है। उसी ने उसके पैदा होने का समय नियत किया है और उसकी मौत का समय भी उसी ने नियत कर रखा है। उसकी मंशा के खि़लाफ़ हरकत करना एक दंडनीय अपराध है और उसकी सज़ा उसे हर हाल में मिल कर रहेगी। इस तरह वह एक समस्या से बचेगा तो दूसरे कष्ट में जा पड़ेगा।

आदमी यह जीवन ढंग से जी सके इसके लिए ज़रूरी है कि वह जान ले कि मौत के बाद उसके साथ क्या मामला पेश आने वाला है ?
इंसान का हरेक अमल मौत के बाद उसके सामने आना है, यह तय है और इसे हरेक धर्म-मत में मान्यता प्राप्त है।
आधुनिक शिक्षा इस मान्यता को नकारती है और इस तरह वह नई नस्ल को एक ऐसी बुनियाद से वंचित कर रही है जो कि उसे हर हाल में जिलाए रख सकती है।
जब आदमी अपनी योग्यता के बल पर अपने हालात सुधरने से नाउम्मीद हो जाता है, तब भी एक आस्तिक को यह उम्मीद होती है कि उसका रब उसके हालात सुधारने की ताक़त रखता है और वह आशा और विश्वास के साथ प्रार्थना करता रहता है। इससे उसका मनोबल बना रहता है और मनोविज्ञान भी यह कहता है कि अगर आत्महत्या के इच्छुक व्यक्ति को कुछ समय भी आत्महत्या से रोक दिया जाए तो कुछ समय के बाद वह फिर आत्महत्या नहीं करेगा।
ईश्वर में आस्था और पारिवारिक रिश्तों के प्रति ज़िम्मेदारी का सही भाव आदमी को आत्महत्या से बचाते हैं।