Tuesday, December 20, 2011

श्री कृष्ण जी को इल्ज़ाम न दो

आजकल गीता पर चर्चा ज़ोरों पर चल रही है क्योंकि रूस में गीता पर पाबंदी लगाने की कोशिश की जा रही है। ज़्यादातर लोग तो गीता के पक्ष में बोल रहे हैं लेकिन कुछ स्वर गीता के विरोध में भी उठ रहे हैं। ऐसे ही एक ब्लॉग को हमने पढ़ा तो उसमें लेखक ने भारत की बर्बादी का इल्ज़ाम श्री कृष्ण जी पर ही डाल दिया और उसने आधार बनाया उस साहित्य को जो कि श्री कृष्ण जी के हज़ारों वर्ष बाद लिखा गया।
गीता महाभारत का एक अंश है। महाभारत के आदि पर्व 1, 117 से पता चलता है कि इसका नाम वास्तव में ‘जय‘ था और उसमें मात्र 8, 800 श्लोक थे और कृष्ण द्वैपायन व्यास ने सबसे पहले इसका संपादन किया था। इसके बाद वैशंपायन ने इसका संपादन किया और श्लोक 24, 000 हो गए। अब इसका नाम भारत हो गया। इसके बाद उग्रश्रवा सौति ने इसमें 96, 244 श्लोक बना दिए और फिर नाम बदलकर महाभारत हो गया। अब यह नहीं कहा जा सकता कि ‘जय‘ के नाम से प्रसिद्ध ग्रंथ के कितने श्लोक इस ग्रंथ में हैं और वे कौन कौन से हैं ?
इस बढ़ोतरी के बाद के अब यह कहना बहुत मुश्किल है कि मूल 8, 800 श्लोक कौन से हैं ?
अगर मूल कथा आज हमारे सामने होती तो शायद बहुत से प्रश्न खड़े ही नहीं होते।
महापुरूषों के चरित्र के बारे में भी बहुत से प्रश्न तब खड़े न होते।
कथा को रोचक बनाने के लिए कवियों ने जो प्रसंग अपनी ओर से बढ़ा दिए हैं, उनकी वजह से लोग श्री कृष्ण जी के बारे में अपमानजनक बातें कर रहे हैं।
यह सरासर ग़लत है।
प्रेरणा लेने से पहले ज्ञान की शुद्धता की जांच ज़रूर कर लेनी चाहिए।

भारत की पवित्र भूमि पर सदाचारी मार्गदर्शकों का अपमान हमारे नैतिक पतन का प्रमाण है।
इस आशय का कमेंट हमने इस पोस्ट पर दिया है। इसे आप भी देखें और हमें अपने विचारों से अवगत करायें:
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/ORISON/entry/%E0%A4%97-%E0%A4%A4-%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%AC-%E0%A4%A6-%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%AD-%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95
ओरिसन लिखता है :
गीता ने बर्बाद किया भारत को 
गीता ने बरबाद किया भारत को, भारत में भावनाओं के अथाह समंदर को गीता ने बरबाद कर दिया, लोग ने लोगों पर विश्वास करना छोड़ दिया, और लोग आपस में नातें-रिश्ते भूलकर, जमीन-जायदाद और धन के लिए अपने ही अपनों के गले काटने लगे, क्यूंकि गीता में ऐसा लिखा है, जिसमे इंसानी भावनाओं से ऊपर जमीन-जायदाद और धन-संम्पत्ति को बड़ा माना गया, और उसके पीछे यह मिसाल दी गयी की जो अपना है, वह अगर किसी के पास भी है तो छीन लो, भले ही वह भाई-हो, नातेदार हो, रिश्तेदार हो, उस भावना को दबा दो, और जमीन और धन के लिए अपने से बड़ों से भी लड़ पड़ो, यह गीता ने सिखाया, जिससे भारत बरबाद हो गया, और भारत में जमीन-जायदाद और धन संम्पति को ज्यादा महत्त्व दिया गया, जबकि भावनाओं और हृदय की बातों को कमजोरी समझा गया, और इसका फायदा उठाया गया, तो इस तरह तो गीता ने एक तरफ कहाँ की जो तुम्हारा है अर्जुन वह किसी भी प्रकार लड़कर छीन लो, फिर दूसरी तरफ गीता ने कहा की तुम क्या लाये तो जो तुम्हारा है, तुम क्या ले जाओगे, इस तरह की विरोधाभाषी वक्तव्य ने भारत के लोगों को भ्रमित कर दिया, तो जो लोग, ताकतवर थे, चालाक थे, उन्होंने दूसरों की भावनाओं का फायदा उठाकर, उन्हें उसी में उलझाये रखा और अपने पास धन-दौलत और जमीन-जायदाद अपने पास रखी, बस यही पारी पाटि भारत में चलती रही, और उसने कमजोर को वैरागी बना दिया, और ताकतवर को अय्याश बना दिया, कमजोर होकर वह वैराग का बाना ओढ़ लिया की अब उसे तो यह जामीन मिलने से रही तो उसने कहाँ की संसार मिथ्या है, और जो ताकतवर था उसने अय्याशी अपना ली | इस तरह से गीता ने पूरे भारत को दो भागों में बाँट दिया, एक जो उस जमीन-जायदाद के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे, उसके लिए किसी के साथ भी लड़ सकते थे, कोई भी पैंतरा अपना सकते थे, और अपने हाथ में दौलत काबू में रखते थे, और दूसरे वो जों भावनाओं के आगे जमीन-जायदाद को भी ठोकर मार देते थे, और अपने ईमान को कभी गन्दा नहीं करते थे, और अपने नाते-रिश्तों और बड़ों का सम्मान करते थे, आज भी भारत इसी ढर्रे पर चल रहा है, जों लोग पैसे वाले होते हैं वह भावुक नहीं होते हैं, और जों गरीब होते हैं वह भावुक होते हैं, और पैसे वाले किसी के सामने दिखावा तो करते हैं की हम सम्मान करते हैं, पर पीठ पीछे छुरा भी घोंप देते हैं, और उनकी भावना झूठी होती है, उस भावना में भी वह उससे गरीब के पास जों होता है, वह हथियाना चाहते हैं, और उसे और गरीब ही रहने देना चाहते हैं, बात तो बड़ी-बड़ी करते हैं की सब माया है, पर भारत वाले जितनी माया इक्कठी करते हैं उतना संसार का कोई आदमी नहीं करता है |

तो आज भी यह गीता किसी भी नाते और रिश्ते को तोड़कर जमीन और जायदाद को महत्त्व देने को कहती है, और गीता के बल पर वह किसी की परवाह नहीं करता है, और बड़े-बूढें की भावनाओं को देखता तक नहीं है, उसके लिए अपना अहंकार ही सबसे बड़ा होता है, और उसका अहंकार किसी भी प्रकार से जमीन और जायदाद हथियाना चाहता है | चाहे उसके लिए किसी को भी मारना पड़े, चाहे वह कोई भी हो, नाते में रिश्ते में।

1 comment:

Rajesh Kumari said...

shayad orison ji gita ke saar ko achchi tarah samajh nahi paaye
jab jab dharam ka naash arthat adharm hua tab tab krashn ne janm liya.jab kisi ki bahu ko koi apshabd kahe ya apni janghaa par balpoorvak baithye to mahabhaarat hi hoga na ya chup baith jaayen.kisi bhi dharmik pustak me adharm karne vaalo ki jeet nahi dikhaai humesh bura karne vaalon ka naash hota hai yahi gita samjha rahi hai vishya ko grahan karne vaalon ki mati bhram hai aur kuch nahi Russia jaise desh bharat ki bhaavna ko kya samjhenge.
aapke tark se mai poorntah sahmat hoon.