'आसपास होते अन्याय का मरते दम तक विरोध करूंगा एवं अपनी सम्पूर्ण ईमानदारी के साथ अपने दिल की आवाज पर कार्य करना पसंद करूंगा !' - जनाब सतीश सक्सेना जी
किसी भी चीज़ के लिए केवल उसका दावा ही काफ़ी नहीं हुआ करता बल्कि उसके लिए दलील भी ज़रूरी होती है। यह दुनिया का एक लाज़िमी क़ायदा है। एक आदमी तैराक होने का दावा करे तो लोग चाहते हैं कि वे उसे तैरते हुए भी देखें। यह मनुष्य का स्वभाव है। ऐसी चाहत उसके दिल में खुद ब खुद पैदा होती है, यह उसका जुर्म नहीं है। लेकिन अगर कोई आदमी कभी तैर कर न दिखाए और पानी में पैर डालने तक से डरे तो लोग उसे झूठा, फ़रेबी और डींग हांकने वाला समझते हैं लेकिन मैं जनाब सतीश सक्सेना जी को ऐसा बिल्कुल नहीं समझता। इसके बावजूद भी मैं चाहता हूं कि वे अपने दावे पर अमल किया करें। उनका दावा है कि वे ईमानदार हैं, कि वे अमन चाहते हैं, कि वे हिंदू-मुस्लिम में भेद नहीं करते। यह तो उनका दावा है लेकिन मैंने जब भी उन्हें देखा तो हमेशा इसके खि़लाफ़ ही अमल करते देखा। आज हमारीवाणी पर एक अजीब से शीर्षक पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं वहां जा पहुंचा।
ज़ील (दिव्या) को पसंद है अंतर सोहिल की दाढ़ी
मैं वहां क्या देखता हूं कि एक महिला ब्लागर को अश्लील गालियां दी जा रही हैं और जनाब सतीश साहब उन गालियां देने वालों को या उन्हें पब्लिश करने वाले ब्लागर को न तो क़ानून की धमकी दे रहे हैं और न ही उनसे इस बेहूदा बदतमीज़ी को रोके जाने की अपील ही कर रहे हैं। मुझे बड़ा अजीब सा लगा। बड़ों को अपना दामन बचाकर वापस आते देख मुझे सख्त झटका लगा।
हालांकि दिव्या जी मेरे सवाल पूछने की वजह से मुझसे नाराज़ हैं, उन्होंने मुझे गालियां भी दी हैं और अपने ब्लाग पर एक पोस्ट भी मेरे खि़लाफ़ लिखी है और भविष्य में मुझे कभी उनसे कोई टिप्पणी मिलने की भी उम्मीद नहीं है लेकिन इसके बावजूद मैंने वहां एक कोशिश करना ज़रूरी समझा, दिव्या जी मो खुश करने के लिए नहीं बल्कि अपने मालिक को राज़ी करने के लिए। वहां का माहौल इतना भयानक था कि जो भी बोल रहा था उसी पर बेनामी बंधु गालियां बरसा रहे थे।
जनाब सतीश सक्सेना जी वहां यह कह कर वापस आ गए-
- ज़ील के बारे में कितना रद्दी वियू है यार लोगों का। छि: हम तो यहाँ से जा रहे हैं।
- किलर झपाटा जी ! आपको सादर प्रणाम ! ऐसा लगता है कि आप मूलतः एक सच्ची आत्मा हैं और टैलेंटेड भी लेकिन एक ज्यादती आपके ब्लाग पर डा. दिव्या जी के साथ हो रही है । आप उनका विरोध बेशक करें लेकिन उनकी खिल्ली न उड़ाएं । उन्हें गालियां न दें । वे जो कुछ कर रही हैं उनके पीछे उनकी कुछ मजबूरियां हो सकती हैं । वे आपकी और मेरी सगी बहन न भी सही तब भी वे इसी देश की नारी हैं , मनु की संतान हैं । और मनु निस्संदेह महान हैं। साड़ी दिव्या जी का परिधान है। उनकी साड़ी मत खींचिये। ख़ुद को दुःशासन मत बनाईये। प्लीज़, आपसे मेरी हाथ जोड़कर आंसुओं के साथ यह विनती है कि बेनामी अश्लील कमेंट हटा लीजिए। आपकी पोस्ट ठीक है । इतना चलता है । दर्द की दास्तान को एक औरत से ज़्यादा भला कौन पहचान सकता है ? औरत दर्द से जन्म लेती है , पहले बेटी और फिर बहू होने का दर्द सहती है । मासिक दर्द भी वही सहती है और प्रसव के समय का दर्द भी उसी का मुक़द्दर है और उसके बाद भी ढेरों दर्द हैं जिन्हें वह झेलती है और फिर भी मुस्कुराती है और तब वह कहलाती है प्यारी माँ इस प्यारे से ब्लाग के ज़रिए मैं एक मां के अज़ीम किरदार को सामने लाने की कोशिश कर रहा हूं और आपसे सहयोग की आशा रखता हूँ । कृप्या आप सभी भाई एक Follower और पाठक के रूप में इस ब्लाग से जुड़कर अपने अहसास और जज़्बात को सामने लाएं, शायद कि किसी की सेच और उसका दिल नर्म पड़ जाए अपनी मां के लिए और उसकी मां बुढ़ापे में ज़िल्लत उठाने से या दर-दर की ठोकरें खाने से बच जाए। माँ को अपनाईये ! माँ को बचाईये !! अपनी पवित्र मां की ख़ातिर एक औरत को अश्लील गालियों से बचाएं ।
- एक सवाल दोहरे पैमाने वालों से
@ जनाब सतीश सक्सेना जी ! आप तो कानून की धमकी भी देना जानते हैं और शिकायत करना भी। तब भी आपने यहाँ न तो किसी को कानून का संदर्भ दिया और न ही Abuse report की। आपने तो यहाँ फैली गंदगी का विरोध तक न किया और न ही आप अपने ब्लाग पर जाकर कोई पोस्ट ही किलर झपाटा जी के विरूद्ध लिखने की हिम्मत करेंगे ।
क्या इसी का नाम ईमानदारी है । अपनी टिप्पणी और मेरी अपील को देखिए और जान लीजिए कि आपसे नैतिकता भी दिल्ली की ही तरह दूर है । अभी आपने जाना है नहीं कि ईमान का नूर वास्तव में होता क्या है ?
मात्र गालियाँ खाने के डर से आप मिमियाते हुए निकल गए।
रचना जी की तो तौहीन की कल्पना मात्र से ही आप आगमयी गाली बक रहे थे और यहां पीठ दिखाकर भाग रहे हैं ?
रचना जी में और डा. दिव्या जी में आप अंतर क्यों कर रहे हैं ?
आप बुढ़ापे में धृतराष्ट्र बनेंगे तो बालक लड़ मरेंगे । ब्लाग जगत में मचे घमासान में आपका प्क्षपात और आपका भय सदा ही एक बड़ा कारण रहा है , सो आज भी है ।
मिटा दीजिए अपने प्रोफ़ाइल से अपनी ईमानदारी की तारीफ़ ।
वह एक ढोंग और पाखंड के सिवाय कुछ भी तो नहीं है।
अपने मुँह मियाँ मिठठू बनने से क्या लाभ ?
आपकी ब्लागिंग का कोई सार्थक उद्देश्य भी तो होना चाहिए ?
लेकिन ब्लागिँग तो आपके लिए एक नशा मात्र है।
कृप्या नशे से मुक्ति पाईये और छोटों को राह सीधी दिखाईये ।
और जनाब अरविंद मिश्रा जी से भी एक शिकवा किया-
- @ आदरणीय अरविंद मिश्रा जी ! मैंने भी डा. दिव्या जी से अपनी एक पोस्ट में कुछ सवाल पूछे थे और उस पोस्ट में आपका नाम होने के कारण आपकी मौजूदगी वहाँ वाजिब भी था और मैंने आपसे आने की विनती भी की थी लेकिन आपने कहा कि मैं खुद को उस औरत से बहुत दूर कर चुका हूँ लेकिन आप तो यहाँ सबसे पहले आसीन हैं जबकि यहाँ न तो आपका कोई जिक्र है और न ही क़ातिल बंधु ने ही कोई बुलावा आपको भेजा है । ये दो पैमाने क्यों ? आप हमारे मित्र हैं on the record भी और आप खुद भी मित्र और दोस्त कहते हैं। अब अपने इस दोस्त को कारण बता दीजिए प्लीज़ !
इसके बाद किसी बेनामी ने कहा-
- सतीश सक्सेना केवल कमजोरों को निशाना बनाता है और दिव्या जैसों को सहलाता है. देखो कल दिव्या का कमाल ZEAL said... . @- सतीश सक्सेना -- अभी तक आयी टिपण्णी में सिर्फ आपकी टिपण्णी ऐसी है जो मोडरेशन लायक है । और कोई लेख होता आपकी टिपण्णी मोडरेट करके सड़ने के लिए छोड़ देती । लेकिन इस लेख पर आपकी टिपण्णी प्रकाशित करके ये सिद्ध किया जाएगा की अनावश्यक एवं निरर्थक टिप्पणियों के लिए ही मोडरेशन लगाया जाता है। पाठकों से निवेदन है कृपया सतीश जी की टिपण्णी प्रकाशित होने का इंतज़ार करें। आभार।
यह तो मैंने जो कहा सो कहा। अब आप लोग बताईये कि क्या ख़ाली ईमानदारी का दावा काफ़ी है या आदमी को ईमानदार होना भी चाहिए ?
क्या दोहरा और ढुलमुल रवैये को ईमानदारी का नाम दिया जाएगा ?
या इसे मौक़ापरस्ती कहा जाएगा ?
अगर जनाब सतीश सक्सेना जी अपने बारे में कोई दावा न करते और मेरी आलोचना-समीक्षा न करते तो मुझे उनसे कोई भी अपेक्षा न होती जैसे कि मुझे दूसरे सैकड़ों ब्लागर्स से नहीं है लेकिन जब वे एक उपदेशक और व्यवस्थापक होने की कोशिश करते हैं तो मुझे उनसे अपेक्षा होना नेचुरल है।
उनके द्वारा मेरी अपेक्षा पर पूरा न उतरना हमेशा से ही मेरे लिए एक दुखद बात रही है। आज की घटना ने उसी पुराने अहसास को फिर से ताज़ा कर दिया है।
इस लेख का आशय उन्हें नीचा दिखाना हरगिज़ हरगिज़ नहीं है।
इसका आशय केवल उन्हें उनकी वास्तविकता से रू ब रू कराना है।
अगर उनमें आशातीत तब्दीली नोट नहीं की जाती है तो यह प्रयास शीघ्र ही एक अभियान का रूप ले लेगा।
कुम्हार घड़े के खोट पर चोट करता है तो उसका आशय कोई यह नहीं समझता कि यह कुम्हार इस घड़े का दुश्मन है और अपनी खुन्नस निकाल रहा है। मैं एक लंबे से उनसे आत्मनिरीक्षण करने और अपने साथ निष्पक्ष व्यवहार करने की अपील करता आ रहा हूं लेकिन वे समय की कमी की वजह से इस ओर उचित ध्यान नहीं दे पाए। लिहाज़ा अब थोड़ा खुलकर ध्यान दिलाना ज़रूरी हो गया है।
आशा है कि इसे ब्लागिंग के एक सामान्य व्यवहार की तरह ही लिया जाएगा।
किसी को मेरी किसी कमी की तरफ़ ध्यान दिलाना वांछित हो तो मैं उसका स्वागत करता हूं और अपनी कमी को हर समय छोड़ने के लिए तैयार हूं।
आपकी-हमारी गाढ़ी कमाई पर डाका (किस्त-1)...खुशदीप
आज भाई खुशदीप सहगल साहब के ब्लाग पर भी हमारी वाणी के तुफ़ैल जाना हो गया। उनका लेख सचमुच एक शानदार लेख है। उस पर भी मैंने आज अपने विचार दिए हैं। उन्हें अब आपके सामने पेश कर रहा हूं ताकि किसी को उनमें कुछ सुधार करना हो तो कर दे-
- भाई साहब ! आपने सच सामने रख दिया है लेकिन आम तौर पर ऐसा होता है कि जनता उस आदमी को अपना नेता नहीं चुनती जो नेक हो लेकिन गरीब या मध्यमवर्गीय हो बल्कि लोग उसे चुनते हैं जो अपना माल उसे 'पिलाता' है । वोट तो बड़ी चीज़ है यहाँ तो लोग टिप्पणी देने से पहले भी आदमी का धर्म जाति और प्रदेश देखते हैं ।
एक साहब को मैंने अपने ब्लाग का लिंक भेजा ,अपने टिनी-मिनी एग्रीगेटर में उसे नहीं जोड़ा । ये लालच और तंगनज़री हमारी पब्लिक में आम है, देशी भारतीयों में ही नहीं बल्कि प्रवासियों तक में ।
काश कम से कम वे तो छोड़ते तंगदिली। अगर वे छोड़ते तो फिर वे भारतीयों को भी समझाते और यहां के लोग उनसे समझते भी क्योंकि यहां के लोग हीनभावना के शिकार हैं । जो साहब लोगों के देश में रहता है उसे तुरंत महान मान लेते हैं । विवेकानंद जी की भी पहले किसी ने न सुनी लेकिन गोरों के देश से आते ही उन्हें युगदृष्टा मान लिया गया। जर्मनी दो टुकड़ों में था लेकिन आज एक है । काश उस देश के लोगों से ही हमारे देश के लोग प्रेरणा लेकर आपस में जुड़ना सीखते ।
आपके लेख ने और इस पर आई टिप्पणियों ने मेरे अंदर कुछ इस तरह का वैचारिक अंधड़ पैदा कर दिया है ।
शुभ प्रभात ।
यहां ब्लागजगत में कितनी मीटिंग्स हुईं क्या उसमें कभी एक बार भी उस सभा का अध्यक्ष उसे बनाया गया जो आर्थिक रूप से दरिद्र और वैचारिक रूप से समृद्ध हो ?
नहीं न ?
ऊँची उड़ान वाले की औलाद की शादी में शिरकत के फोटो की तो यहां प्रदर्शनी लगाई जाती है लेकिन वही आदमी अपनी ज़िंदगी में किसी ग़रीब की शादी में भी तो कभी गया होगा ?
उसका तो फ़ोटो न कभी उसने खींचा और न कभी उसने दिखाया ।
केवल धन कुबेरों की ही लल्लो चप्पो क्यों ?
केवल इसलिए ताकि वे झूठ को महज़ औपचारिकतावश भी बुलावा भेजें तो ये विदेश घूमने की अपनी दबी पड़ी इच्छाओं को पूरा करने पहुंच जाएं और नाम होगा दोस्ती का , कि देखो बेचारा कितना प्यार करता है , बुलाते ही भागा चला आया।
नहीं भाई , पीठ में छुरी मारने वाले ये जनाब दोस्ती को क्या जानें ?
हाई सोसायटी में घूम फिर कर ये अपना क़द बढ़ा रहे हैं , लुत्फ़ ले रहे हैं और अपने बच्चों के लिए रिश्ते भी ढूंढ रहे हैं । दोस्तों को अपनी ग़र्ज़ के लिए यूज़ कर रहे हैं ये मियां मिठठू ।
ब्लागिंग को ये लोग अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं...
- ...लेकिन अफ़सोस हर जगह ऐसे ही स्वहितपोषकों को सिर माथे पर बिठाया जाता है क्योंकि इनके पास दौलत का जलवा है, जिससे लोगों की आंखे चौंधिया जाती हैं और तब लोग इनके ऐब को नहीं देखते लेकिन ... अनवर जमाल इन सबसे जुदा है और इसीलिए उसका कलाम भी सबसे जुदा है । मुल्क की बदहाली को अगर ख़ुशहाली में बदलना है तो हमें अपने अंदर न्याय चेतना का विकास करना होगा , सही आदमी को इज्जत देने के साथ साथ ख़ुदग़र्ज़ों को किनारे करना भी सीखना होगा और इसकी शुरूआत अपने होल्ड वाले एरिया से करनी होगी , ब्लाग जगत से करनी होगी वर्ना पूर्व मुख्यमंत्री श्री राजनाथ सिहं जी के शब्दों में 'बिना कृति के कुछ अर्थ नहीं है बड़े शब्दों का' भाई साहब बुरा मत मानिएगा लेकिन अगर मानना चाहें तो मान लेना जो मेरे दिल में आ चुका है उसे कहूंगा जरूर और अगर मेरी बात ग़लत हुई तो फिर बिना देर किए आपसे माफी भी मांगूगा । अगर हमारे नेता बुरे हैं तो इसका मतलब यह है कि हम बुरे हैं क्योंकि उन्हें चुनने वाले , उन्हें अपना नेता बनाने वाले हम लोग ही तो हैं । बार बार बुरे आदमी संसद भवन आदि जगहों में आखिर पहुँच कैसे रहे हैं ? हम सुधरेंगे तभी जग सुधरेगा । हमेशा सच का साथ खुलकर दीजिए ।
आज ब्लॉगजगत के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया ऐसे लोगों ने...http://www.amankapaigham.com/2011/01/blog-post_14.html
एक्सक्यूज़ मी, क्या मैं भी मियां मिट्ठू बन सकता हूँ ?
http://www.amankapaigham.com/2011/01/blog-post_12.html
7 comments:
बिलकुल ही बेकार पोस्ट हैं. आप जैसे लोगो से ईस तरह कि उम्मीद तो बिलकुल ही नहीं थी.
मुद्दे बहुत हैं मेरे यार लिखने के लिए
पढने कि हिम्मत तो रखो.
बुरा न सोचो किसी का.
खुद कि तो इज्जत रखो.
अनवर भाई मैं कभी गुजरात नहीं गया. आप गये होंगे तो आप को पता होगा. मैं बात इंसानियत कि कर रहा हूँ.
अगर कोई धर्म या कोई धार्मिक तरीका इंसानियत का दुश्मन बन जाय तो वो कभी भी धर्म नहीं हो सकता. ऐसे धर्म से तो दुरी ही अच्छी हैं, बल्कि दुरी ही क्यों ऐसे धर्म से नफरत करनी चाहिए. मेरी पोस्ट में गुजरात या मोदी का कोई जिक्र नहीं था. रही बात गुजरात में मोदी कि तो गुजरात कि जनता मुझसे और आप से अच्छा जानती हैं. और में जंहा तक जनता हूँ गुजरात के बारे में तो ये कि - गुजरात दिल्ली और उत्तर प्रदेश से ज्यादे खुशहाल हैं.
आप अपनी राय सिर्फ मेरी पोस्ट पर दे.
आपकी राय का इंतजार रहेगा..........
अनवर भाई आपका विश्लेषण बिल्कुल सही है । अपने बिल्कुल सही लिखा अपने आप को सच्चा और ईमानदार कहने वाले कथित लोगों की असलियत यही है और फिर इन जैसे लोग सच्ची बात का बुरा भी जल्दी ही मान जाते है । मगर आप सच सामने लाने से चूकते नही यही आपकी खास बात है । एक और सच सामने लाने पर आपका धन्यवाद ।
गिरी जी आपने तो लगता है अपनी आदत के मुताबिक पोस्ट पढ़ी ही नही होगी । तभी तो गैरज़रूरी टिप्पणी दी ।
गिरी जी ! रही मोदी की बात तो आपके पता होना चाहिए कि हमारे देश अधिकतर गुंडे बदमाश ही आसानी से चुनाव जीत जाते है । शरीफ आदमी को तो यहाँ कोई गाँव या किसी संस्था का अदना सा मेँबर भी नही बनाता
डॉ. अयाज जी हमें ऐसे ही छोटे राजन जेसे गूंडे बदमाशो की जरुरत हे ,जो की सिम्मी के पर्मुख अयाज भटकल को को पाकिस्तान की करांची में जा के टपका सके और राजन ने कर दिखाया |में सलाम करता हूँ उसकी रास्ट्र भक्ति को |
man जी! अनवर भाई जो कुछ सही मानते है उसे खुद पर भी लागू करते है मगर आप दूसरों को ही ऐसा देशभक्त देखना चाहते है जिसमे जान का खतरा हो । manसाहब खुद भी आगे बढ़ कर पाकिस्तान पहुँचे और किसी आतंकवादी सरगना को मारकर आए तो आपकी देशभक्ति का पता चले या यह सब बातों तक ही सीमित हैं
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