लोग कहते हैं कि
अनवर जमाल ! आप हिंदुओं के धर्म पर , उनकी परंपराओं पर क्यों लिखते हैं ?भाई आपके साधु-सन्यासी से लेकर आम हिंदुओं तक हरेक ईश्वर की न्याय व्यवस्था और उसकी महिमा के खि़लाफ़ सवाल खड़े क्यों करता है ?
आप सवाल खड़े करना बंद कर दीजिए, अनवर जमाल उनके जवाब देना ख़ुद ब ख़ुद बंद कर देगा। अनवर जमाल ईश्वर और अल्लाह में भेद नहीं करता और न ही उसके बंदों में भेद करता है। अनवर जमाल ईश्वर का भक्त है क्योंकि वह अल्लाह का बंदा है और ईश्वर अल्लाह एक ही पालनहार प्रभु के दो अलग भाषाओं में दो नाम हैं लेकिन जिसके ये नाम हैं वह ख़ुद एक है। वही सबको हवा, पानी और भोजन देता है। आज हवा तो सबको मिल रही है लेकिन साफ़ पानी सबको मयस्सर नहीं है। सबको रोटी मयस्सर नहीं है। लोग परेशान हैं। जीवन काटना उन्हें भारी लग रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है ?
लोग भारत में जिन देवताओं को ईश्वर मानकर उनकी पूजा करते हैं, वे जब दुनिया में इंसान को रोटी नहीं दे सकते तो फिर वे स्वर्ग में अनंत सुख कैसे दे सकते हैं ?
यह सवाल कौन कर रहा है ?
क्या अनवर जमाल कर रहा है ?
नहीं यह सवाल कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद जी।
...और वे कह रहे हैं कि
आप इस पूरे लेख को ‘मेरा देश मेरा धर्म‘ पर देख सकते हैं।1- भारत को ऊपर उठाया जाना हैं ! गरीबों की भूख मिटाई जानी हैं ! शिक्षा का प्रसार किया जाना है ! पंडे पुरोहितो और धर्म के ठेकेदारों को हटाया जाना है ! हमने पंडे पुरोहित और धर्म के ठेकेदार नहीं चाहिए ! हमें सामाजिक आतंक नहीं चाहिए !
2- जनता के आध्यात्मिक उत्थान की एक ही शर्त हैए आर्थिक और राजनीतिक पुनर्निर्माण !
3- ‘किसी के कह देने मात्र से अंधों की तरह करोड़ों देवी-देवताओं पर विश्वास न करो।‘
क्या स्वामी जी की बात ग़लत है ?
नहीं, अनवर जमाल उनसे सहमत है। स्वामी जी ने साफ़ कर दिया है कि जिन देवताओं को लोग ईश्वर मानकर पूज रहे हैं ये स्वर्ग तो क्या देंगे, वे एक समय की रोटी भी नहीं दे सकते। ये देवी-देवता किसी की समस्या हल नहीं करते बल्कि इनके नाम पर पंडे-पुरोहित सामाजिक आतंक फैलाते हैं। भारत को उपर उठाने के लिए इन्हें हटाया जाना ज़रूरी है। स्वामी जी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार आंज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं। आज भी जब लोग देव-स्थलों पर जाते हैं तो लौटकर यही कहते हैं कि
‘यह स्थल निस्संदेह देव रहित हैं' -सतीश सक्सेना
भाई साहब ! जब आपको यह पता चल गया है कि यह स्थल देव रहित है तो आप यहां खड़े क्यों हैं ?
चलिए उस स्थल की ओर जहां देव भी है और देववाणी भी। जहां उसकी पूजा तो होती है लेकिन चढ़ावा कोई नहीं चढ़ाया जाता। आर्थिक और राजनैतिक पुनर्निमाण की पूरी योजना आपको वहीं मिलेगी। जब आप वहां पहुंचेगे तो आप देखेंगे कि हर रंग और नस्ल का आदमी चाहे वह अमीर हो या ग़रीब अपने दाता के सामने एक साथ खड़े हैं और एक साथ ही झुक रहे हैं। जो वाणी वे सुन रहे हैं, उसमें एक दूसरे पर ज़ुल्म करना हराम बताया जा रहा है। एक दूसरे की मदद करना फ़ज़ बताया जा रहा है और ब्याज लेना एक घातक मज़र््ा बताकर उससे मुक्ति दिलाई जा रही है। कहा जा रहा है कि तुम पर हराम है अगर तुम्हारा पड़ोसी भूखा सो रहा है और तुम पेट भरकर खा रहे हो।
हरेक बुराई को पाप ही नहीं बल्कि उसे सामाजिक जुर्म भी बताया जा रहा है और उस पर नर्क की यातना से पहले दुनिया में भी दंड दिया जा रहा है और जब ऐसा हो जाता है तो हरेक आदमी को रोटी मिलना निश्चित हो जाता है। तब आदमी कहता है कि वाक़ई यह ईश्वर जो मुझे रोटी दे रहा है वह मुझे स्वर्ग का अनंत सुख भी दे सकता है।
आदमी ईश्वर को अपने अंदर-बाहर हर जगह महसूस करेगा। तब आनंद के लिए किसी समाधि की ज़रूरत नहीं रह जाएगी। वह स्वयमेव आपको उपलब्ध हो जाएगा।
आज आदमी दुखी है तो उसके पीछे ख़ुद उसका नज़रिया ज़िम्मेदार है। जो वास्तव में ईश्वर है उसे पहचानता नहीं, उसकी योजना को मानता नहीं तो अंजाम तबाही के सिवा क्या होगा ?
तब यही होगा कि उन चीज़ों को ईश्वर माना जाएगा जो कि वास्तव में ईश्वर नहीं हैं। उसके नाम पर सामाजिक आतंक फैलाने वाले पंडे-पुरोहित ऐसी परंपराओं में लोगों का अन्न-धन और आबरू तक स्वाहा कर देंगे जो कि वास्तव में धर्म ही नहीं है बल्कि उनका बनाया हुआ दर्शन मात्र है।
अनवर जमाल का कुसूर यह है कि वह सच को सामने क्यों लाता है ?
वह क्यों बताता है कि ग़रीबी और भूख से तड़प-तड़प कर मरती हुई देश की जनता को कैसे बचाया जा सकता है ?
वह क्यों सबके हित की बात करता है ?
आखि़र कैसे इस धरती पर ही स्वर्ग का आभास किया जा सकता है ?
लोक-परलोक का सुख हरेक को अभीष्ट है। दुनिया में जितने भी धर्म-दर्शन हैं, जितने भी वैज्ञानिक अविष्कार हुए हैं, उन सबके पीछे यही भावना है कि सारे इंसानों को सुख प्राप्त हो जाए।
अनवर जमाल पर ऐतराज़ करने वाले बताएं कि स्वामी जी ने अपने दर्शन का प्रचार विदेशियों में क्यों किया ?
तब वे बताएं कि आखि़र अनवर जमाल अपने ही देशवासियों में ‘अटल सत्य‘ का प्रचार क्यों नहीं कर सकता ?
सबने सोचा कि दुनिया का दुख कैसे दूर किया जाए ?
और जो उन्होंने समझा कि यह हल सही है, उसे सबके सामने पेश किया।
खुद स्वामी जी ने भी यही किया। इस्लाम और मुसलमानों पर उनके विचार उनके साहित्य में संग्रहीत हैं। मुसलमानों को उनके द्वारा लिखे गए पत्र भी सुरक्षित हैं और ऐसा करने वाले वे अकेले विद्वान नहीं हैं।
बहरहाल हम तो यह कह रहे हैं कि देश में करोड़ों देवी-देवताओं की पूजा बंद होनी चाहिए। अगर आप हमारे कहने से ऐसा नहीं करते तो स्वामी जी के कहने से ही ऐसा कर लो।
आज स्वामी विवेकानंद जी जन्म दिवस है। इस अवसर पर गहनता से इस बात पर विचार किया जाए कि उन्हें ढेर सारी इज़्ज़्त और मान्यता देने के बावजूद हिंदू समाज ने उनकी बात पर आज तक अमल क्यों नहीं किया ?
जो हिंदू स्वामी विवेकानंद जी को ज्ञानी मानते हैं वे भी उनके सिद्धांतों का पालन नहीं करते, आख़िर क्यों ?
इसी लेख को मैंने एक और तरह से भी लिखा है। और वास्तव में शुरू में वही लिखा था लेकिन बीच में सिस्टम ठप्प हो गया और जब दोबारा लिखना शुरू किया तो फिर गूगल टाइप में नहीं लिखा। इस तरह आपके विचार व्यक्त करने के तरीक़े और उसकी क्रमबद्धता को यह बात भी प्रभावित करती है कि आप किस टूल का उपयोग कर रहे हैं ?
उस लेख को भी मैं आपके सामने लाऊंगा एक थोड़े से ब्रेक के बाद।
तब तब आप इस लेख का आनंद उठाईये और उस लेख में जो लिंक मैंने दिए हैं। तब तक आप एक नज़र उन पर भी डाल लीजिए।
ये रहे लिंक्स आपके लिए एक ज्ञान भेंट के रूप में। कृप्या स्वीकार करें और इन पर विचार भी करें।
1- http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/standard-scale-for-moral-values.html?showComment=1294670416731#c4645121125829265744
2- Hunger free India क्या भूखों की समस्या और उपासना पद्धतियों में कोई संबंध है ?- Anwer Jamal
3- 'जो ईश्वर मुझे यहाँ रोटी नहीं दे सकता, वो मुझे स्वर्ग में अनंत सुख कैसे दे सकेगा ?'
4- पछुआ पवन (pachhua pawan)
5- 'क्या सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?'
6- http://satish-saxena.blogspot.com/2010/12/blog-post_04.html
7- कहाँ है मानवता ?
8- महंगाई मार गई...!!
अब आप अपने आप से सवाल कीजिए कि-
देश के अन्न में आग लगाना कौन सी समझदारी है ?
एक तो देश में घी का उत्पादन पहले ही कम है और जो है उसे भी देश के फ़ौजियों और बालकों को देने के बजाए आग में डाल दिया जाए। आपकी इन्हीं परंपराओं के कारण पहले भी हमारे देश की फ़ौजे कमज़ोर रहीं और थोड़े से विदेशी फ़ौजियों से हारीं हैं। कम से कम इतिहास की ग़लतियां अब तो न दोहराओ। इन ज्ञान की बातों को समझने की कोशिश ज़रूर करना।
you can see this article on
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2011/01/hungers-cry.html
17 comments:
आपने बहुत अच्छा लिखा बहुत कुछ लिखा, कहीं मैंने पढा था कि स्नेह और सहिष्णुता के प्रचारक स्वामी विवेकानन्द कहते हैं ‘‘पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम संसार मे समानता के संदेशवाहक थे। वे मानवजाति में स्नेह और सहिष्णुता के प्रचारक थे। उनके धर्म में जाति-बिरादरी, समूह, नस्ल आदि का कोई स्थान नहीं है।’’
डॉ. जमाल जी ,
हमें मुल्ले मोलवी कट्टरवाद नहीं चाहिए |आप ने जिस स्वामी विवेकानंद के कथन को बना के पोस्ट लिखी हे उस से पहले आप को पता हो स्वामी विवेकानंद के गुरु राम कर्ष्ण परम हंस स्वयं एक बड़े पंडित ,तांत्रिक एवम कर्म कांडी थे |इतने बड़े गुरु के चेले स्वामी विवेकानंद हिन्दू धर्म के हर पक्ष के प्रति पूरी समानीय राय रखते थे केवल दिखावे के अलावा |आप की पोस्ट का शीर्षक झूठा हे ? रही बात घी और अन्न जलने की तो आप क्यों तकलीफ हो रही हे |कुर्बानी के नाम से लाखो जानवरों को तडपा तडपा के मोत के घाट उतारते तो हो तब आप की फिक्र कंहा रहती हे ?हवन पूजा लाखो वर्षो से चलती आरही हे ,ऋषि मुनि भी हवन यज्ञ करते थे |भारत को अपना देश मानते हो तो उन इस्लामिक लूटेरो के खिलाफ क्यों नहीं बोलते हो जोकि खरबों हजारो की दोलत सोमनाथ ,काशी विशव नाथ से लूट के ले गए |भारत को रोंदा ,आप के पूर्वजो को प्रताडित किया ,उनकी इस्त्रियो की इज्जत को खाक में मिलाया | आम आदमी को मीठी गोली खिलने से ही वो धर्म नहीं बदल लेता हे ?,उसकी तीन चार पीढ़िया भारी मानसिक झेलती हे |अभी भी पाकिस्तान ,अफगानिस्तान ,बंगलादेश में खेल जारी हे ,इंडोनेशिया , मलेशिया में खेल जारी हे |आप की इस पे भी ऊँगली चली हे कभी ,या गजनी गोरी ओरंगजेब ही आप के आदर्श बने रहेंगे ?
चढ़ावे की बात पर जमाल जी आप को पता हो तो भारत में खवाजा निजामुद्दीन ओलिया अजमेर शरीफ की दरगाह ही भारतीय मुस्लिमो के लिए बड़ा स्थान हे ,वंहा देश के कोने कोने से लाखो हजारो गरीब मुस्लिम आते हे |हिन्दू भाई भी जाते हे ,लेकिन वंहा के खानदानी खादिम यदि गरीबो के पास देने के लिए नोट नहीं हो तो उनकी इज्जत उतरने के लिए तेयार रहते हे ?में 2009 वंहा जा के आया था तो एक गरीब मुस्लिम ओरत ने दस रुपए चढ़ाये ,तो खदीम उस से मारपीट करने के तेयार हो गया ,हम पांच जाने थे , हमने उस खादिम की गुदी पकड़ ली ,हम पांच जनों ने केवल दस रुपए चढ़ाये ,तो वो फिर भड़का फिर हमने जूता खोला ,हमने कहा हम यंहा मांगने आये हे ना की देने |पुष्कर में भी यही स्थिति हे |
इस्लाम में पुरोहितवाद की कोई जगह नहीं है
@ भाई मान जी ! आपने सही कहा है कि बहुत से विदेशी लुटेरों ने भारत पर हमले किये हैं और यहां का माल लूट कर बाहर ले गये हैं। उनकी निंदा की जानी चाहिए लेकिन हरेक बात का एक अवसर होता है। कल स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन था और एक राष्ट्रवादी ब्लाग ‘मेरा देश मेरा धर्म‘ पर स्वामी जी के विचार प्रकाशित हुए थे। आप स्वामी जी की जिस बात को झूठ बता रहे हैं, कृप्या आप उक्त ब्लाग पर जाकर भी बताएं। इससे पता चलेगा कि राष्ट्रवादी ब्लागर भारतीय सन्यासियों के नाम झूठ फैलाकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
या फिर हो सकता है कि उक्त ब्लागर आपको संतुष्ट कर दे कि स्वामी के विचार वास्तव में यही थे। वे साहब भी एक अच्छे विद्वान व्यक्ति हैं और उनकी पोस्ट कल हमारी वाणी की लिस्ट में सबसे ऊपर थी। मुझे यक़ीन है कि आप अभी तक उक्त ब्लाग पर नहीं गए होंगे बल्कि एक भी हिंदू ने उक्त ब्लागर से नहीं कहा होगा कि आपकी बात ग़लत है लेकिन आप लोग मुझ पर ऐतराज़ करने चले आते हैं। क्योंकि आप लोगों का उसूल है कि हिंदू जो चाहे लिखे उसे मत टोको लेकिन अनवर को रोको। यह ठीक नहीं है। मुस्लिम बादशाहों से मुझे कोई मोह नहीं है और इसी लिए मैंने आज तक उनकी तारीफ़ में कुछ नहीं लिखा बल्कि इससे पिछली पोस्ट में यह ज़रूर लिखा कि ग़ालिब के ज़माने के मुस्लिम रईस और साहित्यकार शराब और शबाब के रसिया थे और वह दौर बहादुर शाह ज़फर का था। ग़लती गलती है। चाहे अनवर करे या ग़ालिब या फिर कोई हिंदू या मुस्लिम राजा।
2- कुरबानी में बकरे काटे जाते हैं तो उनका मांस जलाया नहीं जाता बल्कि उसके एक तिहाई मांस को तो ग़रीबों में बांट दिया जाता है और एक तिहाई मांस दोस्तों और रिश्तेदारों में दे दिया जाता है और बाक़ी खुद खा लिया जाता है। उनकी खालों से जूते आदि अन्य प्रयोग की वस्तुए बनती हैं जो कि हिंदू-मुस्लिम सबके काम आती हैं। भैंस आदि की खाल से बने जूतों पर पालिश करके व उनकी मरम्मत करके बहुत से चर्मकार अपने बच्चों का पेट पालते हैं और उन जूतों को बनाकर बाटा व अन्य कंपनियां पूंजी का ढेर कमा लेती हैं और ये ज़्यादातर कंपनियां भी हिंदू भाईयों की ही हैं और ग़रीब चर्मकार भी हिंदू समाज का ही हिस्सा हैं। इस तरह कुरबानी ग़रीब मुसलमानों को भी लाभ पहुंचाती है और हिंदुओं के ग़रीबों के साथ अमीरों को भी लाभ पहुंचाती है। यज्ञ में अन्न और घी जलाने की तुलना कुरबानी से नहीं की जा सकती है।
आपकी इस बात का भी मैं समर्थन करता हूं कि लोगों को ग़लत जानकारी देकर दंगे भड़काऊ मुल्ला मौलवी भी हमें नहीं चाहिएं।
3-अजमेर की दरगाह के बारे में भी आपने सही बताया है। ये लोग मुस्लिम पंडे कहलाएंगे। इस्लाम में पुरोहितवाद की कोई जगह नहीं है लेकिन इन लोगों ने बना डाली है। हर ग़लत बात का विरोध होना ही चाहिए।
आपके विचारों के लिए आपका धन्यवाद !
ख़ैर पहले आप ‘मेरा देश मेरा धर्म‘ पर जाकर कहें जो कि मैंने आपसे कहा है फिर आप लौटकर मुझे बताएं कि आपको उनसे क्या जवाब मिला ?
दूसरी तरफ खवाजा मोहिनुदीन जी के जब कोई वि. आई .पी .आ जाये तो खादिम घोडी बन जाते हे ,क्यों ? आप कह रहे हे वंहा सभी समान हे तो फिर खवाजा जी इन खादिमो को सदबुधि क्यों नही देते हे ?में अजमेर में ही रह्ता हूँ ,में देखता हूँ इन के तोर तरीके ये खादिम हर गेर कानूनी काम में लिप्त हे ?ये चढ़ावे के लिए आपस में कुत्ते बन जाते हे जब कोई वि. आई .पी बाप आता हे और शेर बन जाते हे जब कोई गरीब दर पे आता हे |फिर भी आप इस्लाम की समानता की फाल्गुनी चंग बजावो तो सम्झंगे की मदनोतस्व आ गया हे |
@ भाई मान जी ! अजमेर की दरगाह के बारे में भी आपने सही बताया है। ये लोग मुस्लिम पंडे कहलाएंगे। इस्लाम में पुरोहितवाद की कोई जगह नहीं है लेकिन इन लोगों ने बना डाली है। हर ग़लत बात का विरोध होना ही चाहिए।
आपके विचारों के लिए आपका धन्यवाद !
ख़ैर पहले आप ‘मेरा देश मेरा धर्म‘ पर जाकर कहें जो कि मैंने आपसे कहा है फिर आप लौटकर मुझे बताएं कि आपको उनसे क्या जवाब मिला ?
डॉ.साहब आपकी की काफी बाते गोर करने लायक हे ,लेकिन उन्हें आप धर्म की चासनी से बाहर लाइए ,मेरे इष्ट के प्रति जो में आदर रखता होऊं हो सके दुसरे को उसका पता ही नहीं लेकिन यदि में सच्चा होऊंगा मेरे ईस्ष्ठ के प्रति तो अकाल म्रत्य से वो हमें टाल देंगे
" अनवर जमाल ईश्वर और अल्लाह में भेद नहीं करता और न ही उसके बंदों में भेद करता है। अनवर जमाल ईश्वर का भक्त है क्योंकि वह अल्लाह का बंदा है और ईश्वर अल्लाह एक ही पालनहार प्रभु के दो अलग भाषाओं में दो नाम हैं "
आपके इस जुमले में तो कोई सवाल नही करना चाहता क्योकि ये तो आपने अपने लिए जाती तौर पर खुद के लिए तय किया है, लेकिन अपने इल्म में इजाफ़ा के लिए एक सवाल है कि ईश्वर का अर्थ क्या होता है ?
अगर इस शब्द का संधि विच्छेद करते है तो
ईश + वर होता है !
ईश का सही अर्थ क्या होता है ?
क्योकि ये शब्द तो कई नामो में मिलता है! जैसे महेश, रूपेश, गणेश, सुरेश आदि !
वर का अर्थ वर-वधु यानि पति के रूप में भी होता है, वर का और भी कई अर्थो में प्रयोग किया जाता है !
अगर आपको इस बारे सही जानकारी हो तो बताए, क्योकि मै आपके जवाब को आखरी जवाब नही मानूँगा, क्रास चैक जरूर करूँगा ! अगर नही मालूम हो तो कोई बात नही !
तुम लोगों को धर्म के अंध प्रचार के अलावा कोई काम है या नही । इस्लाम -इस्लाम चिल्ला रहे हो। औरतो की क्या स्थिति है मालूम है । शरियत में दोअ औरत की गवाही को एक मर्द के बराबर माना गया है । मोहम्मद साहेब ने कितनी शादी की थी ? सबसे छोटी बीबी छह वर्ष की थी मालूम है न । आज के जमाने में जेल के पीछे होते मोहम्मद साहब । एक अनपढ जो खुद किसी योग्य नही था । वह न सिर्फ़ पैगंबर बन गया बल्कि उसकी आलोचना करने पर गोली तक मारी जा रही है । नशा है धर्म । लडाता है धर्म । भगवान सिर्फ़ अमिरों का है । खुद शेषनाथ पर बैठकर लक्ष्मी के संग मस्ती करने वाला विष्णु इंसानो की क्या खाक फ़िक्र करेगा । चर्च में जो होता है पता हीं होगा । नन की जिंदगी । इसलिये धर्म के दलालो मानवता को हीं धर्म मानो। और हां मेरी टि्प्पणी हटाना नही । वरना कायर समझुंगा तुम सबको ।
@ YM ! संस्कृत में जो भी शब्द होता है, वह किसी धातु से बना होता है। ईश्वर शब्द की सिद्धि ‘ईश ऐश्वर्य‘ धातु से होता है। ‘य ईष्टे सर्वैश्वर्यवान् वर्त्तते स ईश्वरः‘ जिस का सत्य विचारशील ज्ञान और अनंत ऐश्वर्य है, वह ईश्वर है।
अब आप मेरी बात की क्र्रास चैकिंग जहां चाहे कर लीजिए। इंशा अल्लाह, मेरी बात नहीं कटेगी।
do. sahab mera desh mera bharam alink dijiye |
लोग ग़ज़नवी को बुरा-भला कहते हैं लेकिन...
@ भाई मान जी ! आप पुष्कर के मंदिर और अजमेर की दरगाह के रखवालों के दुर्व्यवहार की शिकायत कर रहे हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि वे आपका शोषण कब करते हैं ?
वे आपका शोषण तब करते हैं जबकि आप वहां जाते हैं। आप वहां जाना बंद कर दीजिए। आपका शोषण भी बंद हो जाएगा। दुनिया का निज़ाम कोई देवी-देवता या पीर-फ़क़ीर स्वयं अपने बल पर नहीं देख रहा है और न ही वे किसी की मुराद पूरी करने की शक्ति ही रखते हैं। आप उनके पूरे जीवन को देख लीजिए। उनका पूरा जीवन आपको कष्टों में घिरा हुआ नज़र आएगा। अगर वे कुछ कर सकते तो सबसे पहले वे अपने जीवन के कष्टों को ज़रूर दूर करते। अगर उन्होंने कुछ पाया भी है या किसी राक्षस का अंत भी किया है तो मात्र अपने आदेश से ही उसे नहीं मार डाला बल्कि इसके लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा, लड़ना पड़ा है। जो ज़रूरत पड़ने पर भी नहीं लड़े और देवी-देवताओं पर भरोसा किये बैठे रहे उन्हें मरना पड़ा।
महमूद ग़ज़नवी ने जब सोमनाथ पर हमला किया तो हज़ारों लोगों को क़त्ल कर दिया। लोग ग़ज़नवी को बुरा-भला कहते हैं लेकिन यह नहीं देखते कि उसने जिन्हें मारा वे सोचे क्या बैठे थे ?
वे सब यही सोच रहे थे कि हमारा देवता इस म्लेच्छ को नष्ट कर देगा। यह बेचारा काल के गाल में आ गया है। इसी सोच का परिणाम था कि महमूद ग़ज़नवी से कोई लड़ने को तैयार ही नहीं हुआ। वे मरने वाले आपसे ज़्यादा अपने इष्ट के प्रति निष्ठावान थे तो भी उनकी निष्ठा के कारण उनकी कोई रक्षा नहीं हो पाई। इतिहास की ग़लतियों से आपको सबक़ लेना चाहिए और उन्हें दोहराकर नुक्सान उठाने से बचना चाहिए। मंदिरों के पंडे बैठे बिठाए खाने के लिए लोगों में अंधविश्वास फैलाते हैं और जब मुसीबत पड़ती है तो अंधविश्वास में फंसा हुआ वह बेचारा मारा जाता है। अक्सर दरगाहों के मुजाविर भी आस्था का व्यापार कर रहे हैं। ये डाकुओं से बदतर हैं। इन्होंने उस नेक बुजुर्ग के सादा जीवन से कोई शिक्षा नहीं ली, लेकिन उनके नाम पर अपने महल तामीर कर लिए हैं। जहां ऊंचनीच और दुव्र्यवहार हो, आप समझ लीजिए कि आपको यहां ज्ञान नहीं बल्कि अपमान ही मिलेगा।
मैंने अपने लेख में मज़ार की विशेषता नहीं बताई है बल्कि मस्जिद की विशेषता बताई है कि वहां समाज का हरेक सदस्य आता है और सब मिलकर बराबर खड़े होते हैं , उसकी वाणी सुनते हैं और उसे शीश नवाते हैं। इस पूजा में किसी भी तरह का अन्न-फल या धन ख़र्च नहीं होता।
आप वहां जाईये जहां बराबरी है, सम्मान है लेकिन विडंबना यह है कि आप वहां जाने के लिए तैयार नहीं हैं और मज़ारों पर टूटे पड़े हैं। अपने शोषण के लिए आधी ज़िम्मेदारी खुद आपकी भी है।
2. आपसे मैंने कहा था कि ‘मेरा देश मेरा धर्म‘ वाले भाई से पूछकर मुझे बताईये कि स्वामी विवेकानंद ने हिंदुओं को करोड़ों देवी-देवताओं की पूजा से क्यों रोका ?
और रोका भी है या वैसे ही उनकी तरफ़ से झूठी अफ़वाह फैलाई जा रही है ?
आपने क्या पता किया है ?
अब ज़रा मुझे बता दीजिए, कई दिन हो चुके हैं।
यह कोई तरीक़ा नहीं है कि अनवर जमाल की बात की काट करो और हिंदुओं को उसी बात पर कुछ भी न कहो। यह तरीक़ा न्याय और निष्पक्षता का नहीं है। आदमी मत देखिए। ग़लती देखिए, जिसकी पाओ उसे ही रोक दो। मैं तो ऐसे ही करता हूं। मुझे गुटबाज़ी से क्या मतलब ?
ग़लत को ग़लत कह देता हूं चाहे मेरा क़रीबी हो या मेरा विरोधी। चाहे मुझसे छोटा हो या फिर बड़ा। सही का साथ देता हूं चाहे कहने वाला कोई भी हो। स्वामी विवेकानंद जी की बात सही है तो मैंने उनका समर्थन किया। स्वामी जी के कहने से कोई सही बात ग़लत थोड़े ही हो जाएगी। वे एक सन्यासी थे और पूरा जीवन वे मंदिर और तीर्थों का ही भ्रमण करते रहे। ऐसे में अगर वे कुछ कह रहे हैं तो उस पर ध्यान अवश्य दिया जाना चाहिए.
http://commentsgarden.blogspot.com/2011/01/faith-and-business.html
@ Man ji ! have a look on
http://meradeshmeradharm.blogspot.com/2011/01/blog-post.html
@ DR. ANWER JAMAL, मुझे संस्कृत नही आती,आपने जो संस्कृत में लिखा उसका अनुवाद आपने किया मुझे नही पता कि सही किया या गलत ?
मैंने जो भी उदहारण दिए हिन्दी भाषा के दिए, अब जो ईश्वर शब्द को मानते है और उसकी पूजा करते है उनमे इस बात पर शायद बहस छिड़ जाए कि ईश्वर शब्द का अर्थ संस्कृत वाला ले या हिन्दी वाला, खैर ये उनका मसला है, बाकी जवाब देने के लिए शुक्रिया !
@ मदन कुमार ति्वारी, आप सिर्फ बिहार के पीछे क्यों पड़े है ?
अगर ये सवाल आप अपने आप से पूछेंगे तो आपको ने जो आरोप लगाए है उनका जवाब उन्ही में मिल जाएगा !
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