Monday, March 5, 2012

अरब और हिंदुस्तान का ताल्लुक़ स्वयंभू मनु के ज़माने से ही है Makka

काबा वह पहला घर है जो मालिक की इबादत के लिए बनाया गया है। इसे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने सबसे पहले बनाया था। आदम अलैहिस्सलाम को स्वयंभू मनु कहा जाता है। जब उनके बाद जल प्रलय आई तो उसका असर इस घर पर भी पड़ा था। इसके बाद हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आज से लगभग 4 हज़ार वर्ष पहले काबा की जगह पर कुछ दीवारें ऊंची की थीं। छत वह डाल नहीं पाए क्योंकि तब यह इलाक़ा बिल्कुल निर्जन था। उन्होंने वहां अपने बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को उनकी मां के साथ आबाद किया। उस समय उस घर में कोई मूर्ति वग़ैरह न थी। बस उस पैदा करने वाले मालिक को ही पूजा जाता था। तब हिंदुस्तान से भी लोग वहां जाते थे। मक्का को भारतीय लोग मख के नाम से जानते हैं। यज्ञ के पर्यायवाची के तौर पर ‘मख‘ शब्द भी बोला जाता है जैसा कि तुलसीदास ने विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा हेतु श्री रामचंद्र जी के जाने का वर्णन करते हुए कहा है कि
*प्रात कहा मुनि सन रघुराई। निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई॥
होम करन लागे मुनि झारी। आपु रहे मख कीं रखवारी॥1॥
भावार्थ:-सबेरे श्री रघुनाथजी ने मुनि से कहा- आप जाकर निडर होकर यज्ञ कीजिए। यह सुनकर सब मुनि हवन करने लगे। आप (श्री रामजी) यज्ञ की रखवाली पर रहे॥1॥

मख‘ शब्द वेदों में भी आया है और मक्का के अर्थों में ही आया है। यज्ञ को यज भी कहा जाता है। दरअस्ल यज और हज एक ही बात है, बस भाषा का अंतर है। पहले यज नमस्कार योग के रूप में किया जाता था और पशु की बलि दी जाती थी। काबा की परिक्रमा भी की जाती थी। बाद में यज का स्वरूप बदलता चला गया। हज में आज भी परिक्रमा, नमाज़ और पशुबलि यही सब किया जाता है और दो बिना सिले वस्त्र पहने जाते हैं जो कि आज भी हिंदुओं के धार्मिक गुरू पहनते हैं।
मक्का का ज़िक्र बाइबिल में भी आया है। देखिए किताब ज़बूर 84, 4 व 6
बाइबिल में यहां मक्का का नाम ‘बक्का‘ बताया गया है। क़ुरआन ने भी बताया है कि मक्का का नाम बक्का है जिसका अर्थ है रूलाने वाला। जो यहां आता है, वह यहां से वापस नहीं जाना चाहता और जब उसे लौटना पड़ता है तो वह रोता है।
संस्कृत में रूलाने वाले को रूद्र कहा जाता है। वेदों में कई रूद्रों का ज़िक्र आया है उनमें से एक काबा है।
ऋग्वेद 5,56,1 में मरूतगण को रूद्र के पुत्र कहा गया है।
मरूतगण का अर्थ मरूस्थलवासी है।
इन मरूतगणों की वेदों में बहुत प्रशंसा आई है और इन्हें इंद्र से भी ज़्यादा महान कहा है।
यह सब बातें हमें याद हो आईं जैसे ही हमें पता चला कि देवबंद में काबा के इमाम डा. शैख़ अबू इब्राहीम अलसऊद तशरीफ़ ला रहे हैं। हमने उनका भाषण सुना जो कि अरबी में था और फिर उर्दू में भी उसका अनुवाद करके बताया कि उन्होंने यह कहा कि मुसलमान दीन की दावत का काम करें और लोगों के साथ नरमी का बर्ताव करें चाहे उनका अक़ीदा कुछ भी हो।
उनके इस्तक़बाल में जो अरबी काव्य पढ़ा गया, उसे सुनकर भी बहुत लुत्फ़ आया और अरबी में इतने सारे भाषण सुनकर ऐसा लगने लगा था मानो हम मक्का की ही एक गली में बैठे हैं।
बहुत ज़्यादा भीड़ थी। मस्जिद ए रशीद के आस पास की गलियां मुसलमानों से भरी हुई थीं। लोग अपने अपने घरों की छतों और दुकानों में भी नमाज़ के लिए बैठे हुए थे।
अरब और हिंदुस्तान का ताल्लुक़ आज से नहीं है बल्कि पहले दिन से है, इस बात को वही लोग जानते हैं जो कि तत्व को जानते हैं।
देखें इस मौक़े की एक रिपोर्ट-

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Shikah al-Shuraim Admires Deoband & Leads Zuhr Salah

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This was historic day in Deoband. The Imam of Ka'ba, Shaikh Abu Ibrahim Sa'ud ibn Ibrahim ibn Muhammad ash-Shuraim visited Darul Uloom Deoband today on 4 March 2012 Sunday.

He arrived in Darul Uloom Deoband via helicopter and landed here around 1 O'clock. Mufti Abul Qasim Nomani presented him Words of Thanks in the grand Jama Rashid and welcomed him in Deoband. The Imam also addressed the gathering and admired Deoband for its important role in the cause of Islam. He conveyed a message of peace and uity and invited the Muslims to pay attention to Dawah and Tabligh. Maulana Arshad Madani summarized the essence of his speech in Urdu for the common audience.

Later, the Imam al-Shurain led the Zuhar Salah and lakhs of Muslims offered the prayer behind him. All the streets leading to Darul Uloom and around were packed with the crowd of people gathered to welcome the Imam and to perform Zuhar Salah behid him.

Imam Ka'ba Shaikh al-Shurain had lunch with the Ulama in Darul Uloom Guest House and flew back from Deoband at around 3:30 pm.
Source : http://www.deoband.net/4/post/2012/03/shaikh-shuraim-deoband-visit.html