हमने पिछले साल भी अपने ब्लॉग ‘अहसास की परतें‘ पर ऐतराज़ जताया था कि इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में ग़ैर इस्लामी गतिविधियां क्यों होती हैं ?
हुस्नो-इश्क़ और मयकशी पर शायरी का ताल्लुक़ फ़न ए शायरी से है न कि इस्लाम से।
इस सेंटर में पिछले साल की तरह इस साल भी ग़ालिब की याद में एक मुशायरा संपन्न हुआ और इसमें कुछ काम ऐसे भी हुए जो कि सरासर ग़ैर इस्लामी हैं। इस्लाम के ज़िम्मेदार जो कि दिल्ली में रहते हैं उन्हें इस तरफ़ ध्यान देना चाहिए।
आज दिनांक 28 दिसंबर 2011 के उर्दू अख़बार राष्ट्रीय सहारा में छपी ख़बर भी साथ में मौजूद है।
हुस्नो-इश्क़ और मयकशी पर शायरी का ताल्लुक़ फ़न ए शायरी से है न कि इस्लाम से।
इस सेंटर में पिछले साल की तरह इस साल भी ग़ालिब की याद में एक मुशायरा संपन्न हुआ और इसमें कुछ काम ऐसे भी हुए जो कि सरासर ग़ैर इस्लामी हैं। इस्लाम के ज़िम्मेदार जो कि दिल्ली में रहते हैं उन्हें इस तरफ़ ध्यान देना चाहिए।
आज दिनांक 28 दिसंबर 2011 के उर्दू अख़बार राष्ट्रीय सहारा में छपी ख़बर भी साथ में मौजूद है।
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