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Sunday, June 19, 2011

पाताल लोक में कैसे पहुंचेगी हिंदी ब्लॉगिंग ? - Dr. Anwer Jamal

जागरण जंक्शन में सबसे ज़्यादा देखे जाने वाली एक पोस्ट यह भी है। इसमें लेखक ने एक विशेष पहलू उजागर किया है।

महिलायें कहीं खुद सेक्स सिंबल के सहारे तो जमीनी लड़ाई लडऩे के मूड में नहीं है। कारण, महिलायें भी खुद देह का इस्तेमाल औजार, हथियार के तौर पर करते हुये अब इसे खुले बाजार में वाद का हिस्सा बना दिया है। मर्डर-2 के पांच पोस्टर सबके सब अश्लील, बाजार में उतारे गये हैं। लोगों से अपील की गयी है कि मादक पोस्टर को चुनने में निर्माता-निदेशक को मदद करें। ये फिल्में बच्चों के लिये नहीं हैं। इसकी हीरोइन श्रीलंका से आयात की गयी हैं। क्योंकि भारतीय हीराइनें तो कपड़ा उतारने से रहीं सो श्रीलंकाई सुंदरी जैकलीन फर्नांडीज को सेक्स बम के रूप में परोसा गया है जो भारत के इमरान हाशमी सेलिपटेंगी और यहां के मर्द उसकी मादकता को झेलकर किसी अनजान, सड़कों पर गुजर-बसर करने वाली लड़की को हवस का शिकार बनायेंगे। आज समय ने जरूर सोच को बदल दिया है। लड़कियां हर क्षेत्र में अगुआ बन रही हैं लेकिन भोग्या के रूप में उसके चरित्र में कहीं कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा। वह आज भी दैहिक सुख की एक सुखद परिभाषा भर ही है। जमाना बदला है। सोच बदलने के बाद भी लड़कियां कहीं मर्डर-2 में कपड़े उतारती दिखती है तो कहीं ब्रिटनी सर्वश्रेष्ठ समलैगिंक आइकान चुनी जाती हैं। कारोबार चलाने की अचूक हथियार साबित हो रही हैं ऐसी लड़कियां। पान की दुकान पर बैठी महिला की एक मुस्कान को तरसते लोगों को देखकर तो यही लगता है। एक गांव है। वहां के पुल के बगल में एक पानवाली आजकल, इन दिनों, कुछ दिनों से दुकान चला रही हैं। उस दुकान में सिर्फ और सिर्फ कुछ है तो सिर्फ पान और वह पानवाली। कटघरे में वह दुकान एक जीर्ण मंदिर के कोख में है। वहां पहले रूकना क्या, कोई झांकना भी उचित नहीं समझता था। आज हर किसी की न सिर्फ वहां बैठकी होती है बल्कि जो गुजरता है पानवाली की एक झलक देखे बिना आगे नहीं बढ़ता। अगल-बगल के पानदुकानदारों के सामने एक खिल्ली भी बेचना मुश्किल। पता नहीं उस पानवाली की पान में क्या टेस्ट है कि हर शौकीन वहीं जुट रहे हैं, घंटों राजनीति की बाते वहीं उसी पानवाली की दुकान पर। घंटों बतियाते लोग कई बार पान खाते। बार-बार पानवाली को आंखों से टटोलते। देह विमर्श को निहारते और भारी मन से वहां से विदा होते हैं। शहरी संस्कृति में नित नये प्रयोग हो ही रहे हैं। 

http://manoranjanthakur.jagranjunction.com/2011/06/12/%E0%A4%88%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%B2-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87/

जो बात लेखक ने पान वाली के बारे में अनुभव की है। उसी बात को बहुत से लोग कुछ विशेष महिला लेखिकाओं के बारे में कह चुके हैं। बेचारा पुरूष ब्लॉगर अच्छी और सार्थक पोस्ट को बैठा हुआ ख़ुद ही पढ़ता रहेगा और बार बार स्टैट्स चेक करके देखता रहेगा कि मेरे अलावा कितनों ने और पढ़ी है मेरी पोस्ट ?
जबकि दूसरी तरफ़ वैसे ही बस चुहल करने के लिए भी कोई लिख देगी तो उसे पढ़ने के लिए पुरूष ब्लॉगर्स की भीड़ लग जाएगी बिल्कुल ऐसे ही जैसे कि पान वाली की दुकान पर लग जाती है।
जब भी कोई आवाज़ हिंदी ब्लॉग जगत में लगाई गई कि सार्थक लिखो, मार्ग पर चलो और मार्ग दिखाओ तो यह आवाज़ सबसे ज़्यादा नागवार ब्लॉग जगत की इन पान वालियों को और इनके टिप्पणीकारों को ही लगी।
ऐसा क्यों है ?
इस पर विचार किया जाना आवश्यक है।
कहीं ऐसा न हो कि अब स्वर्ग में ब्लॉगिंग तो एक कल्पना ही रहे और हिंदी ब्लॉगिंग को ही ये लोग पाताल में उतार डालें।