शिव जी से मेरा ख़ास ताल्लुक़ है। शिव जी का एक नाम भोले भी है। ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि शिव जी ने न कभी भाँग पी और न ही कभी ज़हर पिया। शिव जी सारी मनुष्य जाति के आदि पिता हैं , यह बात भी कम लोग जानते हैं । प्राचीन काल में भारत में शैव , वैष्णव और शाक्त आदि बहुत से मत बने और सभी ने अपने अपने हिसाब से अपने महापुरुषों की महिमा को बढ़ा चढ़ाकर बयान किया और दूसरे मतों के महापुरुषों में दोष सिद्ध करने के लिए काल्पनिक कहानियाँ रचीं । इसके चलते आज हमें अपने पूर्वजों के बारे में बहुत सी ऐसी बातें पढ़ने के लिए मिलती हैं जो कि किसी भी ज्ञानी और सत्पुरूष के चरित्र में होना संभव ही नहीं है ।
आज महाशिव रात्रि है । लोगों में अपने पूर्वजों के प्रति उत्साह और आस्था का एक अद्भुत जोश है जो कि एक बहुत अच्छी बात है लेकिन इस अवसर पर हमें अपने पूर्वजों की भाँति ज्ञान से भी युक्त होना चाहिए और सोचना चाहिए कि जो बातें हम अपने माता-पिता के बारे में नहीं कह सकते उससे भी ज्यादा बुरी बातें हम अपने आदि पिता शिव जी और आदि माता पार्वती जी के बारे में कैसे कह सकते हैं ?
हम कैसे मान सकते हैं कि वे कभी किसी राक्षस भस्मासुर से डर कर भाग सकते हैं ?
न तो श्रीलंका में आज किसी को राक्षस मिले , न ही पाताल लोक अर्थात अमेरिका में कोई वासुक़ि जैसे साइज़ का साँप मिला और न ही पूरी ज़मीन पर कोई दूध का सागर ही मिला । इसलिए न कभी समुद्र मंथन हुआ और न कोई ज़हर ही निकला , जिसे शिव जी को पीकर मौत के डर से उसे अपने गले में रोकना पड़ा हो।
इस तरह की बातें बुद्धिजीवियों को सच्चाई से दूर लगती हैं और फिर वे यह समझने लगते हैं कि जैसे यह कहानी काल्पनिक है ऐसे ही शिव जी भी काल्पनिक होंगे और फिर वे कहते हैं कि ईश्वर मनुष्य के मन की कल्पना मात्र है। इस प्रकार काल्पनिक कथाएँ लोगों को अपने पूर्वजों से भी दूर करती हैं और उन्हें नास्तिक भी बनाती हैं ।
हमें सोचना चाहिए कि अगर आज हम यहाँ हैं तो कभी हमारे पूर्वज भी ज़रूर ही रहे होंगे और जब हम इस गए गुज़री हालत में भी नैतिक नियमों के पालन की कोशिश करते हैं तो निश्चय ही हमारे पूर्वजों ने इनका पालन हमसे बढ़कर किया होगा क्योंकि ये नैतिक नियम हमने नहीं बनाए हैं बल्कि ये हमें पहले से चलते हुए और समाज में स्थापित मिले हैं।
विज्ञान की बड़ी से बड़ी खोज से भी बड़ी खोज है 'नैतिक नियमों की खोज' और यह खोज किसी आधुनिक वैज्ञानिक या समाज शास्त्री ने नहीं की बल्कि इनकी खोज करने वाले थे हमारे पूर्वज । इन्हीं नैतिक नियमों की वजह से जानवर और इंसान में फर्क पैदा होता है । जानवर माँ और पत्नी के दरमियान अंतर नहीं कर सकते लेकिन इंसान कर सकता है । हमारे पूर्वजों ने हमें जानवर से इंसान बनने का मार्ग दिखाया । उन्होंने ही हमें रिश्तों का ज्ञान और उनसे मुहब्बत की दौलत दी है और यह रुपए-पैसों से बड़ी दौलत है । जिन पूर्वजों ने हमें इतना कुछ दिया है , हमने उन्हें क्या दिया ?
क्या हम ढंग से उनकी तारीफ़ भी नहीं कर सकते ?
महाशिव रात्रि के अवसर पर जब मैं डेक पर बजते हुए ऐसे गाने सुनता हूँ जो कि शिव जी की स्तुति नहीं बल्कि निंदा मात्र हैं तो मेरे मन में यह अहसास पैदा होता है क्योंकि शिव जी से मेरा ख़ास ताल्लुक़ है।
आप क्या महसूस करते हैं, ज़रा उपरोक्त तथ्यों की रौशनी में सोचकर बताएँ ?
3 comments:
Sundar Vichar. Fir Quran ko asmani kitab aur us par andha vishwash kyon karte hain.
@ भाई तारकेश्वर जी ! आपने उल्टी सीधी कहानियां सुनीं और उनपर विश्वास कर लिया . अपने पूर्वजों की योनि में लिंग फांसकर उसपर दूध चढाने लगे . अँधा विश्वास करना इसका नाम है. कुरआन पर विश्वास हम रखते हैं तो सोच समझकर रखते हैं और आप जैसे भाइयों को समझा भी सकते हैं की सबका मालिक एक ही है और सबको उसी की पूजा करनी चाहिएऔर हरेक पाप और जुर्म को त्याग देना chahiye .
ईश्वर एक है और वही सबका मालिक है। लेकिन हम क्यों माने कि एकमात्र मोहम्मद ही उस ईश्वर के पैगंबर हैं। हम क्यों ना माने कि उस हजरत आदम(शिव) को अपना मार्गदर्शक मानें जिसे खुद ईश्वर(अल्लाह) ने अपने हाथों से गढ़ा था।
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