बहन अपर्णा "पलाश" बेवजह मुझ से बदगुमान क्यों ?
मैं अब तक तक़रीबन 200 से ज़्यादा लेख लिख चुका हूं और कमेंट्स की तादाद याद नहीं है और न ही अब उन्हें काउंट किया जा सकता है। इन सबमें मैंने यही लिखा है कि ईश्वर एक है और उसका धर्म भी एक ही है। जो लोग ऐसा नहीं मानते, उन्होंने मुझ पर ऐतराज़ किए। मैंने उनके ऐतराज़ का खोखलापन साबित कर दिया, दलील से। तब उन्होंने मेरी नीयत पर शक ज़ाहिर किया। कहते हैं कि शक का इलाज हकीम लुक़मान के पास भी नहीं था। हां, तब नहीं था लेकिन अब है। कैसे है और किसके पास है, यह एक मुकम्मल और अलहदा पोस्ट का विषय है।ख़ैर, शक और बदगुमानी अगर ज़हन में लेकर आप किसी लेख को पढ़ते हैं तो यह लेख और लेखक दोनों के साथ अन्याय करना है।
बहन पलाश ने मेरे साथ ऐसा ही अन्याय किया है। आप खुद देख सकते हैं। नीचे आप लिंक पर जाकर पहले मेरा लेख देखिए और फिर उनकी टिप्पणी और फिर मेरा जवाब जो मैंने उन्हें दिया है।मेरे बारे में बदगुमानियों के पीछे एक बड़ी वजह आपकी ज़हनियत भी है।
क्या आप इसे स्वीकार करते हैं ?
ईश्वर का ही नाम अल्लाह है .
अपर्णा "पलाश" said...
आप जिस उपनिषद की बात कर रहे है , कृपया उसके रचयिता का नम भी बता दीजिये ।
और रही बात ईशवर और अल्लाह के अलग होने की , तो हो सकता है आप ने दोनो को साक्षात अलग अलग देखा हो , और यह आपका परम सौभाग्य रहा होगा ।
हो सकता है । आपका प्रयास सफल हो हम तो यही दुआ करते है । आप अपने जीवन में अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने में सफल हो जायें क्योकिं हमे तो इसकी तनिक भी जरूरत नही। हम सूरज को आइना नही दिखाते । क्या नवीन है और क्या पुरातन शायद यह जानने के लिये आपको अभी और अध्धययन की आवश्यकता है ।
November 24, 2010 8:13 PM
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मेरा जवाब जो मैंने उन्हें दिया है
@ सिस्टर पलाश ! मैंने कहाँ लिखा है कि अल्लाह और ईश्वर दो हैं ?
इसका मतलब यह हुआ कि आपने पोस्ट को ध्यान से नहीं पढ़ा है .
कृपया दोबारा पढ़ें .
किसी तत्वपूर्ण लेख पर केवल सरसरी नज़र डालकर टिपण्णी कर देना लेख और लेखक के साथ अन्याय करना भी है
और खुद को नादान ज़ाहिर करना भी , और आप ऐसी नहीं हैं .
प्लीज़ लेख दोबारा पढ़ें .
30 comments:
ईश्वर का ही नाम अल्लाह है
MAIN TO YAHI JANTA HOON.....
शक और बदगुमानी अगर ज़हन में लेकर आप किसी लेख को पढ़ते हैं तो यह लेख और लेखक दोनों के साथ अन्याय करना है.
अनवर जमाल साहब इसी की सजा हम जैसे लोग भी भगत रहे हैं...
अपर्णा जी से गुजारिश है कृपया लेख दोबारा से पढ़े
शायद कुछ छूट गया हो
और फिर अपने विचार दे
संजय
@ संजय भास्कर जी ! आपने दिल खुश कर दिया , सही बात को दोहराकर .
धन्यवाद .
@ जनाब सय्यद मासूम साहब ! मैंने बहन अपर्णा "पलाश" की ताज़ा रचना पर एक नया नवेला शेर अर्ज़ किया है , थोड़े फर्क से वह आप भी सादिक आता है .
मुलाहिजा कीजियेगा .
अर्ज़ है कि-
न जाने क्या सोचकर दिल आप लगा बैठे
कड़वा तजरबा मेरा आप भी दोहरा बैठे
डॉ अनवर जी हमने तो अपर्णा जी से वाही कहा जो हमे सही लगा
दोबारा से पढने के बाद उनको जैसा लगे वैसे विचार दे
शक हमने किया , ये शक वो हम पर कर बैठे
हमारे सवालों को वो इल्जाम समझ बैठे
@ संजय भास्कर जी ! आपके लिए अर्ज़ है -
दुनिया पीछे लग जाएगी , आपके भी
फिर सोच लो, टिपण्णी कहाँ लगा बैठे
@ सिस्टर पलाश का इस्तकबाल हम एक बिलकुल नवजात शेर से करना चाहेंगे .
उनकी शान ए ज्ञान में अर्ज़ किया है कि -
ऐतराज़ के लहजे में वो सवाल था आपका
तौबा हमारी , जाने क्या हम समझ बैठे
वाह अनवर जमाल जी
क्या जवाब दिया है शेर के माध्यम से......बहुत खूब
bhaaiyon or bhnon aadaab prnaam slaam st sirir akaal bhaayi koi kisi ke dhrm ke bare men kuch bhi bura likhe kyun yeh glt bat he or agr glt he to fir hm aesa kyun kren agr pehle kiya ho to ab tobaa kr len or ldaayi ldaayi maf kren bhn bhayi bn kr aek dusre ke saath or is desh ke saath insaaf kren. akhtar khan akela kota rajsthan
चलिए भाई मुझे लगता है बात की सफाई हो गयी. अब कोई आज के युग मैं यह तो कहेगा नहीं ग़लती हो गयी..
@ अख्तर खान अकेला जी ! अमन के पैगाम पर भी जाकर आप यह बात कहें .
मैंने भी वहां यह कमेन्ट दिया है .
बुलंदी पर जाने के लिए ईमान शर्त है।
@ भाई तारकेश्वर गिरी जी की पर्सनैलिटी दमदार है। ऐसी जानदार बात कहते हैं कि हरेक नर नारी तुरंत सहमत हो जाता है, कभी सोचकर और कभी बिना सोचे ही। उनकी अमन की बात पर तो आदमी बिना सोचे भी सहमत हो जाए तो नफ़े में रहेगा लेकिन यह क्या कि उनके शेर पर भी मेरी दिव्योत्साही बहन दिव्या जी सहमत हो गईं ?
अगर वे जानतीं कि शेर का मतलब क्या है तो वे हरगिज़ सहमत न होंतीं।
शेर यह है -
‘जितनाझुकेगा जो, उतना उरोज पाएगा
ईमां है जिस दिल में, वो बुलंदी पे जाएगा‘
चलिए अपने गिरी बाबू तो भोले जी के भगत हैं लेकिन क्या हिंदी-उर्दू के दूसरे मूर्धन्य जानकारों का ध्यान भी इस तरफ़ न गया कि ‘यहां झुकने से कौन सा उरोज पाया जा रहा है ?‘
इससे पता चलता है कि पोस्ट को ज़्यादा लोग कम ग़ौर से पढ़ते हैं।
इससे यह भी पता चलता है कि लोग जिससे सहमत होने का मूड एक बार सैट कर लेते हैं तो फिर न उसके कलाम को देखते हैं और न उसके शब्दों के अर्थ को।
भाई तारकेश्वर गिरी जी को ब्लाग जगत का इतना ज़बरदस्त समर्थन मिलता देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूं और उनकी बुलंदी की कामना करता हूं क्योंकि बुलंदी पर जाने के लिए ईमान शर्त है।
@ जनाब मासूम साहब ! कहना आपका बिलकुल सही है . अब यह देखना है कि आप क्या कहते है , ऊपर वाली मिस्टेक पर .
अख्तर जी भाई बहन का झगडा ना कभी खत्म हुआ है और ना ही होना चाहिये । यही तो वो चीज है जो इस पवित्र बंधन को मजबूत करती है ।
और फिर विचारों का तर्क वितर्क कोई बुरी बात नही हाँ कुतर्क नही होना चाहिये
@ नेकदिल बहन अपर्णा ! सच कहता हूँ कि जब से ब्लॉग जगत में आया हूँ , झगड़े तो मुझसे लोगों के कई बार हुए लेकिन ऐसा झगड़ा आज पहली बार हुआ कि हारने को दिल चाह रहा है .
शक और बदगुमानी अगर ज़हन में लेकर आप किसी लेख को पढ़ते हैं तो यह लेख और लेखक दोनों के साथ अन्याय करना है.
ऐसा झगड़ा आज पहली बार हुआ कि हारने को दिल चाह रहा है ..
कहीं यह हार मैं जीत वाला मसला तो नहीं?
शक और बदगुमानी अगर ज़हन में लेकर आप किसी लेख को पढ़ते हैं तो यह लेख और लेखक दोनों के साथ अन्याय करना है.
@ जनाब मासूम साहब ! आपकी दिल की गहराइयों से जो बात भी निकलती है हमेशा गहरी ही निकलती है और ऐसा हो भी आखिर क्यों न ?
आपका शजरह उस ज़ाते आली से मिलता है कि जिससे ज़्यादा गहरी नज़र और बुलंद फ़िक्र वाला इस आसमान के तले कभी हुआ ही नहीं .
बहन अपर्णा कि कविता में जो दर्द है , कभी अप अपनी गहरी नज़र उस पर भी डालियेगा .
शब् बखैर .
@ ठाकुर इस्लाम भाई ! आपकी आमद से हमें हौसला और ताक़त दोनों मिलते हैं.
बराए करम आप आते रहें .
शुक्रिया .
jai ho !
शक और बदगुमानी अगर ज़हन में लेकर आप किसी लेख को पढ़ते हैं तो यह लेख और लेखक दोनों के साथ अन्याय करना है।
जय हो .........
शक और बदगुमानी अगर ज़हन में लेकर आप किसी लेख को या किसी की टिप्पणी को पढ़ते हैं तो यह लेख , लेखक और टिप्पणी करने वाले सभी के साथ अन्याय करना है।
Jai ho kashi wale BABA ki
chalo sulah ho gai na
jaankar bahut hi acha laga anwer ji..
@ भाई तारकेश्वर जी !
जय हो महाप्रभु की ,
जय हो महाप्रभु का जयकारा लगाने वालों की ,
अब चाहे वे काशी में रहते हों या कश्मीर में !
भाई अनवर जमाल साहब,
मुझे जो बात कहनी थी मैंने कही आगे भी जो कहना होगा कहूगी रही बात झगडे की तो ये तब तक चलेगा जब तक सत्य का उद्घाटन नहीं हो जाता. आप मुझे बार बार एक ही बात घुमाते प्रतीत होते है. स्पष्ट नहीं है अभी आपके लिए ईश्वर और उसका धर्म एक है लेकिन वह धर्म इस्लाम ही है केवल यह बात लेटेस्ट वर्जन के माद्ध्यम से कहना विद्वत्ता नहीं है. आप खुद में क्लीयर है कि आपका इरादा क्या है किन्तु दूसरो को पट्टी पढ़ाने से नहीं चूकते. सनातन धर्म की आड़ में इस्लाम का फैलाव कम से कम मेरे रहते संभव नहीं है
भास्कर जी आप की मति और तौर तरीके हलके व्यक्तित्व को दर्शाते है. मासूम जी भला शक पर शक कौन करेगा
जमाल साहब दुनिया तो जनम लेते ही पीछे पड़ जाती है मेरी गजल के शब्द अपने टिप्पणी बॉक्स पर लगाकर मेरा मान बढाया
शुक्रिया
चलते चलते ये लिंक देखिएगा पवन भैया ने बात आगे बढ़ाई है
http://pachhuapawan.blogspot.com/2010/12/blog-post_03.html
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