श्रीनगर में बर्फ़बारी हो रही है। डल झील का पानी तक जम चुका है। यहां इतनी बर्फ़ पड़ती है लेकिन क्यों पड़ती है ?
 |
बर्फ़ के दरम्यान अपने साथियों के साथ बादामी बाग़ में |
भारत के नक्शे में कश्मीर को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि जैसे गोया वह भारत का मस्तक हो। खोपड़ी में दिमाग़ होता है और दिमाग़ तभी सही फ़ैसला कर पाता है जबकि वह ठंडा हो। शायद ख़ुदा नेचर के ज़रिए इशारे की ज़ुबान में यही तालीम देना चाहता है। यहां केसर भी पैदा होता है और ज़ैतून भी। यहां सेब भी पैदा होता है और बादाम-अख़रोट भी। पानी की कुदरती दौलत भी यहां बेशुमार है। जिससे कि बिजली बनाई जाती है और देशभर को सप्लाई की जाती है। दिमाग़ शरीर से जुड़ा रहे तो ज़िंदगी बाक़ी रहती है और उससे अलग हो जाए तो मौत वाक़ै हो जाती है। कश्मीर के नेता कश्मीर को देश से अलग करना चाहते हैं। यह एक तरह की आत्महत्या है। कोई आदमी आत्महत्या करना चाहे तो देखने वाले उसे रोकते हैं, समझाते हैं। कश्मीरी नेताओं की अलगाववादी सोच को बदलने के लिए उन्हें देशभर के लोग एक लंबे अर्से से समझाते आ रहे हैं। अपने देश की अखंडता की रक्षा के लिए मैं भी अपने साथियों के साथ श्रीनगर पहुंचा और वहां पहुंचते ही हम सभी आतंकवादियों के निशाने पर आ गए। किसी भी पल जान जा सकती थी लेकिन भारतीय सैनिक और जेकेपी के सिपाही हमें हर दम घेरे हुए थे कि आपकी जान जाने से पहले अमन के दुश्मनों को हमसे मुक़ाबला करना पड़ेगा। नतीजा यह हुआ कि हमारी मुहिम सफल रही और हम जो करने गए थे उसे कामयाबी के साथ अंजाम दिया , लेकिन काम अभी जारी है।
कश्मीरी नेता कश्मीरी अवाम को गुमराह कर रहे हैं। मैं कश्मीरी अवाम को यह समझा रहा हूं और मेरी दलीलों की रौशनी में वे मेरी बात मानते भी हैं।
 |
पीछे नज़र आ रही है शंकराचार्य हिल
|
बहरहाल ठंड पड़ रही है और मैं ख़ुदा से यही दुआ कर रहा हूं कि कश्मीरियों का दिमाग़ भी ठंडा हो और उनकी आंखें भी। ठंडे दिमाग़ से सोचें और अपनी ज़िंदगी की बेहतरी के लिए सोच समझकर सही फ़ैसला लें।
दो ख़ास बातें दो ख़ास लोगों से
(1)- क्यों Alpha male प्रिय प्रवीण जी ! पहचाना Gamma male को ?
(2)- मासूम साहब ! इस फ़ोटो में मेरे साथ Q. Naqvi भी मेरी बाईं जानिब खड़े हैं यानि कि एक ऐसी हस्ती, जिसे जाफ़री युवा ख़ूब पहचानते हैं।