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Wednesday, December 29, 2010

एक निवेदन ब्लाग जगत की लौहकन्या बहन दिव्या जी से A friendly request

प्यारी बहन दिव्या जी ! आपका नाम भी सुंदर है और उपनाम भी और आप ख़ुद भी । ऐसा मैंने हमेशा ही कहा है । सुंदरता के साथ आपमें बुद्धिमत्ता भी है और उत्साह भी और इन सबके साथ है आपमें अपने देश और समाज के लिए कुछ करने का जज़्बा और इस रास्ते में आने वाली मुश्किलों का सामना करने के लिए फ़ौलादी हौसला भी। इसीलिए मैंने आपको 'अमन के पैग़ाम' ब्लाग पर ब्लाग संसार की पहली लौहकन्या का खिताब भी अता किया है जिस पर आपके किसी Follower तक ने भी आपको मुबारकबाद नहीं दी , यहाँ तक कि मेरे भाई अमित जी तक ने भी नहीं ।
आपमें ख़ूबियां केवल इतनी ही नहीं बल्कि इनसे कहीं ज़्यादा हैं । आपको 'सजेशन ट्रिक' के जरिए अपने रूट से डायवर्ट नहीं किया जा सकता और न ही आप मतभिन्नता को ज़ाती रंजिश और बायकॉट तक ही ले जाती हैं । जबकि इस विषय में काफ़ी उम्रदराज़ बुज़ुर्ग तक ग़च्चा खा चुके हैं , ख़ासकर मेरे बारे में । लेकिन आपने मेरी बात का कभी बुरा नहीं माना और न ही मेरे ब्लाग पर ही आना छोड़ा। इसका मतलब है कि हमारे संबध सामान्य हैं ।

आज भी मैंने हमेशा की तरह आपका ब्लाग देखा और कांग्रेस के विरोध में प्रकाशित आपकी ताज़ा पोस्ट को पढ़ा तो मैंने उसमें एक अंतर्विरोध देखा । उसी पोस्ट के बारे में आपसे मैं चंद सवाल पूछना चाहता हूँ । सवाल सामान्य हैं लेकिन एक डर है कि कहीं आपको बुरा न लग जाए । हरेक के बुरा मानने की तो मैं खुद परवाह नहीं करता लेकिन जिन्हें मैं सराहता हूं , उनके जज़्बात का खयाल रखने की कोशिश मैं ज़रूर करता हूँ ।
अगर आप नाराज़ न होने का आश्वासन दें तो मैं अपने सवाल दरयाफ़्त कर लूंगा वर्ना जाने दूंगा क्योंकि सवाल बहुत अहम नहीं हैं ।