Thursday, November 25, 2010

Father Manu मैं चैलेंज करता हूँ कि पूरी दुनिया में कोई एक ही आदमी यह साबित कर दे कि मनु ने ऊँच नीच और ज़ुल्म की शिक्षा दी है , है कोई एक भी विद्वान ? Anwer Jamal

 'धर्म उतना जोड़ता नहीं जितना कि तोड़ता है'
आज यह शीर्षक ब्लाग एग्रीगेटर पर मेरी नज़र से गुज़रा । ब्लॉग पर जाकर पूरा लेख पढ़ा और कमेन्ट  भी दिया । उसी कमेन्ट को पूरा किया तो यह पोस्ट प्रकट हुई -

आपका तर्कपूर्ण और रोचक लेख पढ़ा ।
देशवासियों में आज भी वैज्ञानिक चेतना का अभाव है , ठीक ऐसे ही उनमें धार्मिक चेतना भी लुप्तप्रायः है ।
धर्म की शास्त्रीय परिभाषा पर उन्हें परख कर देख लीजिए ।
यह परिभाषा भी वेद पुराण या मनु स्मृति से ही ले लीजिए ।
अंधविश्वास और जड़ता धर्म नहीं होती । वाल्टेयर , बुद्ध और महावीर का विद्रोह जायज़ था । समाज के प्रवाह और विकास में जो भी चीज़ बाधा बनती है उसे अंततः विदा होना ही पड़ता है । तत्कालीन हालात ऐसे ही थे ।
लेकिन धर्म आज भी दुनिया के हर समाज में अपना मक़ाम बनाए हुए है तो केवल इसलिए कि इंसान के अस्तित्व और उसके मकसद के बारे में तमाम तरक्की के बावजूद आज भी विज्ञान आज भी कुछ बता पाने में असमर्थ है ।
विज्ञान का विषय  केवल ज्ञानेन्द्रियों की पकड़ में  आने वाली चीजों का निरीक्षण परीक्षण करके निष्कर्ष निकालना है लेकिन विज्ञान  तो अपने दायरे तक में बेबस पाया जाता है ।
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई ?
यह मूल प्रश्न भी वह आज तक न सुलझा पाया , तब वह उन सवालों के जवाब कैसे दे सकता है जिनका विषय चखने सूंघने और सुनने के दायरे से ही बाहर है ?
1. आखिर मैं हूँ कौन ?
2. मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं ?
3. क्या सही है और क्या ग़लत है ?
4. किस कर्म का फल क्या है ? और वह कब और किस रूप में मुझे मिलेगा ?
ये वे प्रश्न हैं जो हरेक के मन में कौंधते रहते हैं , उनके मन में भी जिन्होंने धर्म के विकृत रूप के प्रति विद्रोह किया । उन सभी लोगों ने भी इन प्रश्नों को अपने विचारानुसार हल करने की कोशिश की । फलतः अनेक दर्शन वजूद में आये । दुनिया को बांटने वाले वास्तव में यही दर्शन हैं धर्म नहीं ।
धर्म के अभाव में लोगों ने दर्शनों को अपनाया और बहुत से दर्शनों को अपनाने का यह हुआ कि मानव जाति बहुत से मतों में बंट गई । बांटने वाली चीज़ दर्शन है धर्म नहीं ।
पहले सब एकमन थे बाद में बंटकर अनेक हुए और फिर आपस में लड़े कि श्रेष्ठ कौन है ?
ज़मीन और उसके साधनों पर कब्जे की हवस में एक दूसरे का खून बहाया । इंसानियत को तबाह करने वाली चीज यही हवस है धर्म नहीं ।
ये सभी दर्शन आज भी समाज में मौजूद हैं , यह हवस आज भी इंसान में मौजूद है । नतीजा यह है कि तबाही के सारे कारण और साधन आज भी मौजूद हैं और खुद तबाह होने और करने के लिए इंसान भी ।
ऐसे आदमियों के हाथों विज्ञान का विकास होने का नतीजा यह हुआ कि उन्होंने सभी वैज्ञानिक साधनों को अपनी हवस पूरा करने का जरिया बना लिया और नतीजा यह हुआ कि इंसान के ख़मीर से लेकर आबो-हवा तक हर चीज़ का संतुलन तबाह होकर रह गया है । मनु का पहले विरोध किया था तो जल प्रलय हुई थी और अब फिर लोगों ने मनु को भुलाकर, उनकी निंदा करके जीने की कोशिश की तो अब फिर जल प्रलय होगी . ग्लेशियर पिघल रहे हैं . समुद्र के किनारे बसे शहर अब डूबने वाले हैं . समुद्रों का जल स्टार ४ फुट तक ऊँचा होने वाला है . और भी प्राकृतिक आपदाएं आने वाली हैं . गा लो , नाच लो और तीस साल तक. यह बात वैज्ञानिक खुद कह रहे हैं . कह रहे हैं की हम दुनिया नहीं बचा सकते , हाँ कोई और ग्रह मिल जाये तो शायद भागने में सफलता मिल जाये . अन्तरिक्ष में बसने लायक ग्रह ढूंढ रहे हैं वैज्ञानिक . मनु की रीति  से हट कर जीने वाला जब धरती में न बच सका तो आसमान में कैसे बचेगा ?
बचने का मार्ग केवल मनु का मार्ग है , यह सत्य है, बिलकुल अंतिम सत्य . कोई वैज्ञानिक और कोई दार्शनिक अब न ख़ुद बचेगा और न ही दुनिया वालों को बचा सकेगा. जब तबाही बिलकुल सर पर आ जाएगी तब लोग पश्चात्ताप करेंगे लेकिन आज गाफ़िल    है अपने अंजाम से , अफ़सोस .
अतः सिद्ध हुआ कि आदमी धर्म से कोरा हो तो विज्ञान भी उसका विनाश ही करेगा न कि कल्याण । मूल है धर्म , इस मूल से कटने के बाद न तो विज्ञान और दर्शन कुछ हैं और न ही खुद इंसान ।
शुभ गुणों से युक्त होकर सार्थक रीति से जीने का नाम धर्म है । मेरे पिता मनु ने यही रीति सिखाई थी ।
मनु महाराज के निष्कलंक होने के तीन प्रमाण 
मनु को बेवजह कोसना आज बुद्धिजीवियों का प्रिय शग़ल बन चुका है , जबकि ऐतिहासिक और तार्किक रूप से यह सिद्ध है कि आज की मनु स्मृति मनु के काल जितनी प्राचीन नहीं है ।
दूसरी बात यह है कि आर्य समाजी और सनातनी स्कॉलर दोनों ही मनु स्मृति को प्रक्षिप्त मानते हैं ।
तीसरी बात यह है कि जो श्रद्धालु इसे प्रक्षिप्त नहीं भी मानते वे भी यह देख सकते हैं कि मनु स्मृति में जितनी भी आपत्तिजनक चीजें हैं वे सब 63 वें श्लोक के बाद हैं , जहाँ से भृगु जी व्यवस्था देना शुरू करते हैं ।
शुरू के सभी 62 श्लोक भी मनु जी द्वारा नहीं कहे गए हैं । इसके बावजूद उनमें कहीं एक रत्ती भी जुल्म की तालीम या प्रेरणा नहीं है क्योंकि उनमें केवल वंशावली आदि का बयान है । जो बात महर्षि मनु ने कही ही नहीं उसका इल्ज़ाम उन पर धरना कैसे जायज़ कहा जा सकता है ?
मैं गर्व नहीं करता क्योंकि गर्व करना जायज नहीं है लेकिन मैं चैलेंज जरूर करूँगा कि पूरी दुनिया में कोई एक ही आदमी यह साबित कर दे कि जुल्म की तालीम मनु देकर गए ।
और अगर वे साबित न कर सकें तो फिर मेरे पिता मनु को इल्ज़ाम देना और कोसना छोड़ दें, तुरंत ।
अन्यथा उन्हें केवल पूर्वाग्रही माना जाएगा न कि विद्वान । अपुष्ट बातें कहना विद्वानों को शोभा नहीं देता ।
जो कुछ मनु वास्तव में सिखाकर गए थे, उसे तो कब का भुलाया जा चुका लेकिन कुछ चिन्ह ऐसे हैं जिन्हें देखकर आज भी मनु याद आते हैं और उनका धर्म भी । मनु मेरे मन में रहते हैं और मेरा मन दुखी होता है उनकी निंदा होते देखकर । मनु की महानता का परिचय पाने के लिए धर्म का सच्चा बोध होना जरूरी है । यह बोध केवल उन लोगों को होता है जो जीवन और उसके मकसद के प्रति सचमुच गंभीर हों ।
Eat, drink and be marry अमीर गरीब सबका तरीका आज प्रायः यही है । जीवन के मकसद को पाने के बजाए साधनों को पाने और बढ़ाने में लगे हैं । जिन्हें मिल गए हैं वे दूसरों पर छा जाने में लगे हैं और जिन्हें ये साधन कम मिले हैं वे कमी का रोना रोने में लगे हैं या फिर उनकी छीन झपट में लगे हैं ।
दुनिया को तोड़ने वाली हैं लोगों की नीयतेँ और नीतियां, और दोष दे रहे हैं मनु को और धर्म को ।
क्या यही है आधुनिक दुनिया के बुद्धिजीवियों की नैतिक चेतना और उनका इंसाफ़ ?

22 comments:

Shah Nawaz said...

बहुत ही बेहतरीन लिखा है अनवर साहब... आपके सवाल जायज़ हैं!

Film ka Shoqeen said...

मनु पर कोई फिलम भी होवे क्‍या?

Unknown said...

nice dekhte hen? kaun bole kab bole,,,Sar khuja rahe honge. Mamla Kiya he?

Ram Pal Singh said...

डाक्‍टर साहब निम्‍न कमेंटस सबसे पहले आपकी ब्‍लाग पोस्‍ट में देखा गया, क्‍या दयान्‍नद जी बारे में गांधी जी ने सच में कहा है
कोई सबत भी है?

Anonymous said...
गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ में लिखते हैं-
‘‘मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है। जिस व्यक्ति को इन धर्मों का थोड़ा सा भी ज्ञान है वह आसानी से इन ग़लतियों को मालूम कर सकता है, जिनमें इस उच्च रिफ़ार्मर को डाला गया है। उन्होंने इस धरती पर अत्यन्त उत्तम और स्वतंत्र धर्मों में से एक को तंग बनाने की चेष्टा की है। यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है और वेदों में हरेक ज्ञान को विज्ञान से साबित करने की चेष्टा की है। मेरी राय में आर्य समाज सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं की विशेषता के कारण प्रगति नहीं कर रहा है बल्कि अपने संस्थापक के उच्च आचरण के कारण कर रहा है। आप जहां कहीं भी आर्य समाजियों को पाएंगे वहां ही जीवन की सरगर्मी मौजूद होगी। तंग और लड़ाई की आदत के कारण वे या तो धर्मों के लोगों से लड़ते रहते हैं और यदि ऐसा न कर सकें तो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं।
(अख़बार प्रताप 4 जून 1924, अख़बार यंग इंडिया, अहमदाबाद 29 मई 1920)

Tausif Hindustani said...

बहुत ही तार्किक एवं सार्थक लेख है ,
आजकल बिना पढ़े और जाने कोसना असं है धर्म के बारे में बोलते हैं किन्तु खुद को पता नहीं धर्म क्या है ,बस पिछलग्गू बन कर कोसना आरंभ कर देते हैं
dabirnews.blogspot.com

muk said...

किया लिखा क्‍यों लिखा समझ में नहीं आता फिर क्‍या कहें

darbar e islam said...

आप ठीक कहते हैं आजकी मनुस प्राचीन नहीं है इसमें ऐसी ऐसी बातें डाल दी गयीं जिन्‍हें पढकर नारियों को शर्म आए

स्त्रियों के लिए मनु के नियमः सृष्टिकर्ता ने स्‍त्री की सृष्टि करते समय उसमें जो विशेषता भर दी उसे जानते हुऐ पुरूष को उस पर नियंत्रण रखने का पूरा प्रयत्‍न कना चाहिए (IX/16)

स्‍त्रीयां सुंदरतता पर ध्‍यान नहीं देती, आयु पर ध्‍यान नहीं देतीं, पुरूश होना पर्याप्‍त है, वे स्‍वयं को सुदर या कुरूप को अर्पित कर देती हैं (IX/14)

स्‍त्री पति के साथ जुडी होती है और उसके पुत्रों को जन्‍म देती है-- इसलिए पति को अपनी पत्‍नी पर सावधानी से नजर रखनी चाहए ताकि संतान शुद्ध हो (IX/9)

उनकी (स्तियों) सृष्टि करते समय मनु ने उनकें अपनी शैया, अपनी पीठ पर अपने आभूषणों, अपवित्र इच्‍छाएं, क्रोध, बेईमानी, दुर्भावना, कदाचार भर दिए (IX/17)

Fariq Zakir Naik said...

क्या यही है आधुनिक दुनिया के बुद्धिजीवियों की नैतिक चेतना और उनका इंसाफ़ ?????????????

Dead body of FIRON - Sign of Allah
विडियो
http://www.youtube.com/watch?v=0hWGjmbAzPs

S.M.Masoom said...

अनवर जमाल साहब एक बार फिर एक बेहतरीन लेख़. धर्म को लोग समझते ही नहीं हैं आज के युग मैं और अपनी बुराईयों का इलज़ाम धर्म को देते हैं.

S.M.Masoom said...

अनवर जमाल साहब एक बार फिर एक बेहतरीन लेख़. धर्म को लोग समझते ही नहीं हैं आज के युग मैं और अपनी बुराईयों का इलज़ाम धर्म को देते हैं.

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब मासूम साहब ! नाच न जानै , आंगन टेढ़ा
यह कहावत इन्हीं लोगों के लिए है ।

Ayaz ahmad said...

मैं गर्व नहीं करता क्योंकि गर्व करना जायज नहीं है लेकिन मैं चैलेंज जरूर करूँगा कि पूरी दुनिया में कोई एक ही आदमी यह साबित कर दे कि जुल्म की तालीम मनु देकर गए

awyaleek said...

आपने उपर जो प्रश्न किए हैं कि मैं कौन हूँ.....आदि-आदि,ये सब तो साधारण से प्रश्न हैं..सिर्फ वेद ही पर्याप्त हैं सब प्रश्नों के उत्तर देने में..सभी वेदों,उपनिषदों,पुरानों आदि धर्म-ग्रंथों का सार गीता में समाहित है..सिर्फ गीता ही हरेक प्रश्नों के उत्तर दे सकता है कि आपको कौन से कार्य कर्ने चाहिए और नहीं....मैंने ना तो वेद पढ़ा है और ना ही मनु-स्मृति..मैंने हमेशा संतों के प्रवचन सुने और पढ़े हैं जिसमें हर धर्म-ग्रंथों(वेद-उपनिषद आदि) की मिली-जुली बातें निहित्त होती हैं..इसलिए ये तो मुझे पता नहीं है कि मनु पर क्या इल्जाम लगाए गए है..मैं क्या शायद ही किसी हिंदु को पता हो कि मनु जी पर क्या इल्जाम लगाए गए हैं..हिंदुओं की यही तो विशेषता है कि वो गलत चीजों पर ध्यान देते ही नहीं..जो अच्छी बातें हैं उसे अपना लेते हैं बाकि चीज से मतलब ही नहीं रखते..
हमलोग अपने मनु को अपने महान पूर्वज के रुप में जानते हैं इससे ज्यादा कुछ नहीं.......
मुझे नहीं लगता है कि आपके इन सब बातों से कोई फर्क पड़ेगा किसी पर..
एक बात और कहना चाहूँगा डाक्टर साहब कि किसी को भी हिंदु के बारे में कुछ भी कहने का पूरा-पूरा हक है पर मुझे नहीं लगता कि कोई मुसलमान हिंदु धर्म को समझ सकता है...और दूसरी बात ये कि आप यह बताना चाहते हैं कि धर्म किसी को अलग नहीं करता तो शायद आपको पता भी नहीं है कि धर्म है क्या..?? किसी पूजा-पद्धति या ईश्वर की उपासना को धर्म नहीं कहा जाता है..धर्म एक सम्पूर्ण जीवन-पद्धति है जिसमें पूजा या ईश-भक्ति बस उसका एक अंग है...वैसे तो आपके इस्लाम धर्म को मैं धर्म की श्रेणी में नहीं गिनता पर अगर आप ये सिद्ध करना चाहते हैं कि इस्लाम धर्म हिंसा नहीं सिखाता, तो ये आप एक अधर्म का कार्य कर रहे हैं..
बाँकि आप एक मुसलमान होकर भी हिंदु धर्म को जानने क प्रयास अक्र रहे हैं ये अच्छी बात है शायद किसी दिन समझ में आ जाय आपको पर याद रखिएगा जिस दिन आपको हिंदु धर्म समझ में आ गया उस दिन आपको लोग मुसलमान बिरादरी से बाहर कर देंगे क्योंकि दोनों धर्म एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं..एक को अगर आप धर्म मानते हैं तो दूसरा अपने आप अधर्म बन जाता है..

केवल राम said...

काश दुनिया इस वास्तविकता को समझ पाती.....सार्थक प्रयास है आपका ....
चलते चलते पर आपका स्वागत है

DR. ANWER JAMAL said...

@ awyaleek ji ! आप मेरे आह्वान पर पधारे और अपने विचार भी रखे ।
आपका धन्यवाद !
1. आपने कहा है कि आपने वेद और मनु स्मृति नहीं पढ़ी है । इसके बावजूद आप खुद को हिंदू धर्म का इतना बड़ा जानकार जाहिर कर रहे हैं कि मेरे इल्म पर भी कटाक्ष कर गुज़रे ।
2. आप मनु को मात्र एक पूर्वज मानते हैं तो यह आपका अल्प ज्ञान है । पूर्वज तो हमारे करोड़ों लोग हैं लेकिन मनु विशिष्ट हैं क्योंकि वे मनुष्य मात्र के आदि पिता हैं और फिर उनके बाद भी कई मनु हुए ।
4. जितने मनु हैं उतने ही मन्वंतर भी हैं । दुख की बात है कि आपको आज तक यही पता न चला कि आज तक कुल कितने मनु हो चुके हैं आप किस मनु के मन्वंतर में जी रहे हैं ?
5. मनु धर्म का आदर्श हैं , आपको धर्म के मूल आदर्श का ही पता नहीं है तो फिर धर्म का पता क्या ख़ाक होगा ?
6. संतों के संग समय गुजार कर भी आपको वेद , स्मृति और मनु के बारे में कुछ पता नहीं है , यह दुख की बात है । इससे उन संतों के ज्ञान का भी पता चल गया जिनके साथ आपने अपना समय गंवाया है ।
7. आपको धर्म की सही जानकारी नहीं है इसीलिए आपको लगा कि इस्लाम विपरीत है धर्म के ।
8. जिस धर्म के प्रति आप लगाव जाहिर कर रहे हैं जब आपको उसी का पता नहीं है तो इस्लाम का पता कहाँ से होगा ?
9. जानकारी आपकी खुद की कम है और ऐतराज कर रहे हैं आप इस्लाम पर ?
10. क्या संतों ने यही सिखाया है आपको ?
11. अपने ब्लाग पर आप पैग़म्बर साहब को गालियाँ भी देते हैं , क्या आपके संत भी ऐसे ही गालियाँ देते हैं ?
आपकी जानकारी और आपका लेखन देखकर अफसोस हुआ , हम आपकी और अपनी बेहतरी और बुद्धि शुद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं ।
अंत में पुनः धन्यवाद !

awyaleek said...

समय के साथ सामंजस्य बैठाना ही बुद्धिमानी है.वेद उस जमाने की बात है जब लोग संस्कृत के जानकार थे.मैं हिंदी जानता हूँ..मेरे अंदर इतनी शक्ति नहीं है कि मैं वेद पढ़कर उसका अर्थ समझ सकूँ इसलिए साधु-संतों की शरण में जाता हूँ ताकि वो सरल भाषा में हरेक बात को समझा सके..मेरे संत आपके मुहम्मद साहब को भी हिंदु संत की तरह एक संत की संज्या देते हैं पर यही एक बात उनकी ऐसी है जो मैं मानने के लिए तैयार नहीं..अगर कोई वृक्ष बबूल का फल दे रहा है तो आप ये नहीं कह सकते कि इसका बीज आम का है..फल बबूल का है तो बीज भी निःसंदेह बबूल का ही बोया गया होगा..मुसलमान क्या सोचते हैं और क्या करते हैं ये किसी से छिपा नहीं रह गया है आज..आप कितना भी कह लें कि आपके वृक्ष का बीज आम का है पर अगर वो वृक्ष काँटे दे रहा है तो लोग उसे काटेंगे ही..लोगों को बीज से मतलब नहीं उसके फल से होता है...अब आप कोई कुतर्क देकर यह सिद्ध करने का प्रयास मत करिएगा कि मुसलामानों ने दुनिया को शांति दी है..मैंने अपने जीवन में एक-दो मुसलमान को छोड़कर बाकी सब मुसलमानों को
देश-द्रोही,कट्टर,हिंसक और हिंदु से घृणा करने वाला ही देखा है..
रही बात अपने धर्म को जानने की तो जब सब बातों का सार गीता में समाहित है तो मैं क्यों पढ़ने जाऊँ बाँकि चीजों को..हिंदु धर्म में हजारों ग्रंथ हैं सबको पढ़ना बुद्धिमानी नहीं हो सकती है क्योंकि सबको पढ़ते-पढ़ते आयु खत्म हो जाएगी और जितना ज्यादा पढ़ूँगा उतना ही ज्यादा दुविधा में फँसता जाऊँगा..
कृष्ण भगवान ने गीता को कलयुग के ठीक पहले द्वापर में प्रदान की थी हमें यनि हमारे लिए सबसे उपयुक्त गीता है,तो गीता मैंने पूरी पढ़ी है और कलयुग में मैं संतों की वाणी को सबसे ज्यादा उपयुक्त मानता हूँ.इसलिए सबसे ज्यादा ध्यान मैं उनकी बातों पर देता हूँ..आज मैं धर्म के नाम पर बस इतना ही जानता हूँ कि गुरु से दीक्षा लेकर मैं अपने आत्म-सक्षात्कार का प्रयत्न करुँ,मेरे कारण किसी का अहित ना हो,मैं अपना नुकसान करके भी औरों का भला कर सकूँ,किसी भी गलत का कभी समर्थन ना करुँ,हमेशा सत्य यनि धर्म के साथ रह सकूँ और अधर्म का विनाश कर सकूँ,अपने कर्त्तव्य को मैं अच्छी तरह निभा सकूँ..
मैं सबसे बड़ा कर्त्तव्य और सबसे बड़ा धर्म देश-धर्म को समझता हूँ और देश के लिए सबसे बड़ा खतरा मुझे मुसलमान में नजर आता है..मुसलमान अगर प्यार से समझने वाले होते तो आज तक समझ चुके होते..जो सैकड़ों सालों में नहीं समझे वो कभी नहीं समझेंगे..जिस प्रकार कौरव को समझाकर जब पाण्डव हार गए और जब कौरवों ने पाँच गाँव तो क्या सूई की नोंक बराबर भी जमीन देने से इन्कार कर दिया तब महाभारत हुआ..बिल्कुल वही हाल मुसलमानों का है..हिंदु अपना हक दे-देकर थक गए,समझा-बुझाकर थक गए पर वो नहीं समझे...अब समझाने का नहीं युद्ध का समय है..धर्म या अधर्म का साथ देने का समय है..अभी मुसलमान धर्म अधर्म के साथ है इसलिए बेशक मैं उसके विरुद्ध खड़ा रहूँगा अगर हिंदु अधर्म के साथ होते तो बेशक मैं उनके विरुद्ध खड़ा होता और बचपन से हुआ भी हूँ चाहे वो बलि-प्रथा को लेकर हो या जाति-प्रथा,छुआछूत को लेकर या आशाराम जी जैसे गुरु को लेकर..लेकिन अभी भारत का सबसे बड़ा दुश्मन इस्लाम है इसलिए मुहम्मद और कुराण के विरुद्ध तो लिखूँगा ही पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं गलत लिखूँगा..मैं जो भी लिखूँगा सत्य लिखूँगा अगर मैंने कुछ गलत लिखा है तो बताइए कि मैंने क्या गलत लिखा है.मैं अपनी गलती मान लूँगा....

संजय भास्‍कर said...

आपके सवाल जायज़ हैं!

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई अव्यालीक जी ! विस्तृत उत्तर दोबारा देने के बजाय आप पूर्व में लिखे मेरे शब्दों को आपने संतों को दिखाएँ और वो जो गलती उसमें बताएं , आप मुझे उससे आगाह करें ताकि मैं आपने विचारों में सुधार कर सकूँ .
२- आप वीर हैं , आप मुसलमानों का समूल नाश करने कि शक्ति रखते हैं तो भला मेरी क्या औकात है आपके सामने , आप शौक़ से इनका विनाश कर दीजिये और फिर जैसा पतन भारत का महाभारत के बाद हुआ उसे सहन करने के लिए भी तैयार रहिये क्योंकि कोई भी युद्ध विनाश के सिवाय कुछ नहीं लाता .
३- गालियाँ बकना कौन सा संत सिखाता है . गाली तो आसाराम जी भी नहीं देते . अगर आप इस एक बात को भी कमी नहीं मानते तो फिर मैं आपको और कमियां बताकर क्या करूं ?
४- गीता का दर्शन वेद के एकदम विपरीत है . वेदों में सकाम योग है जबकि गीता में निष्काम योग है . मूल वेद ही है , गीता नहीं .
धन्यवाद .

अविनाश वाचस्पति said...

अनवर जमाल भाई,

आपकी रचना और विचार पूरे पढ़ने का प्रयास किया और यही पाया है कि अच्‍छाई को किसी परिचय की जरूरत नहीं होती है। जो अच्‍छा है, वो सबके लिए अच्‍छा है, तो सबसे सच्‍चा वही है और जो बुरा है, वो सबके लिए बुरा है तो सबसे झूठा वही है।

इधर-उधर न उलझें। हम सब सीधी राह चलें। अपनी सर्जनात्‍मकता को अच्‍छाई के प्रसार में लगायें परन्‍तु अच्‍छाईयों को साबित करने का प्रयत्‍न न करें, इसी प्रकार बुराईयों को भी साबित नहीं करना पड़ता है।

अपनी ऊर्जा को संजोये और सार्थक रचनात्‍मकता में लगायें, मन में भी शांति मिलेगी और सबको शांति देने के वाहक भी बन सकेंगे। उलझनों की झनझनाहट आकर्षित करती है, उससे मानव को बचायें और खुद भी बचे रहें।
मानवसेवा की रूखी-सूखी मेवा सबको पसंद है
सादर/सस्‍नेह

shyam gupta said...

अव्यालीक ने सही प्रशन व समाधान दिया है----आखिर जमाल जी द्वारा लिखी इस पोस्ट का अर्थ ही क्या है...कोई भी यह बात/इस अफ़वाह को प्रामाणिक नहीं मानता कि मनु ने एसा कहा है, अपितु अर्थ/ अनर्थ करना मानता है---यह वास्तव में किसी बात को प्रचार करने का नकारात्मक तरीका है ताकि अपना उल्लू सीधा किया जा सके...

हरीश सिंह said...

bahut achchha lekh. aap nishchay hi vivekshil vyakti hai. bas ap gusse par thoda niyantran rakhe. gussa buddhi ko kund kar deta hai. aap nishchay hi ek achchhe vicharak hai.

Sumit Pratap Singh said...

बेहतरीन लिखा है अनवर साहब...