Tuesday, November 23, 2010
Hindi writers मदर इंडिया की सच्ची सेवा
बिना व्यवस्था को बेहतर बनाए देशवासियों का भला होने वाला नहीं , यह तय है ।
मेरे शफ़ीक़ बुजुर्ग आदरणीय जनाब सतीश सकसेना जी ! आपने चिंता प्रकट की है कि उर्दू जानने वाले जो मुस्लिम लेखक हिंदी में लिख रहे हैं, उनकी योग्यता के मुताबिक जायज मक़ाम उन्हें नहीं मिल पा रहा है ।
आपकी चिंता जायज़ है और उनकी प्रति आपकी फ़िक्रमंदी भी सराहनीय है , लेकिन यह बात भी क़ाबिले ग़ौर है कि बहुत से ऐसे हिंदी लेखक भी हैं जो अपना जायज़ मक़ाम न पा सके हालाँकि वे हिंदू हैं ।
जब इस देश में हिंदी के हिंदू लेखक ही यथोचित सम्मान से वंचित हैं तो फिर मुसलमान लेखकों के साथ न्याय कैसे हो पाएगा ?
इससे भी ज्यादा क़ाबिले फ़िक्र बात यह है कि लेखकों की दुर्दशा की बात तो जाने दीजिए , खुद हिंदी को ही कौन सा उसका जायज़ मक़ाम मिल गया है ?
इस देश की बेटी होने के बावजूद हिंदी आज भी उपेक्षित है , हिंदी की दशा शोचनीय है ।
हक़ीक़त यह है कि एक भ्रष्ट व्यवस्था से किसी को भी कुछ मिला ही नहीं करता , न हिंदू को और न ही मुस्लिम को ।
मिलता है केवल उन्हें जो व्यवस्था की तरह खुद भी भ्रष्ट होते हैं । आज भ्रष्ट नेता, डाक्टर, इंजीनियर और जज 'आदर्श घोटाले' कर रहे हैं । IAS ऑफ़िसर्स देश के राज़ दुश्मनों को बेच रहे हैं ।
बिना व्यवस्था को बेहतर बनाए देशवासियों का भला होने वाला नहीं , यह तय है ।
देश की व्यवस्था को बेहतर कैसे बनाया जाए ?
बुद्धिजीवी इस पर विचार करें तो इसे बौद्धिक ऊर्जा का सही उपयोग माना जाएगा ।
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13 comments:
आपकी चिंता जायज़ है और उनकी प्रति आपकी फ़िक्रमंदी भी सराहनीय है , लेकिन यह बात भी क़ाबिले ग़ौर है कि बहुत से ऐसे हिंदी लेखक भी हैं
देश की व्यवस्था को बेहतर कैसे बनाया जाए ?
बुद्धिजीवी इस पर विचार करें तो इसे बौद्धिक ऊर्जा का सही उपयोग माना जाएगा
जब इस देश में हिंदी के हिंदू लेखक ही यथोचित सम्मान से वंचित हैं तो फिर मुसलमान लेखकों के साथ न्याय कैसे हो पाएगा ?
मैं सहमत हूँ आपसे अनवर भाई !
@ मोहतरम सक्सेना जी ! हम तो आपकी मुस्कुराहट देखने के लिए ही तरस गए थे । एक तो आपकी आमद ने ही हमें मसरूर कर दिया और फिर आप सहमत भी हैं यह तो खुशी को दोबाला करने वाली बात हुई .
बिलकुल सही कहा!
अच्छी पोस्ट
अनवर जी आपने बिल्कुल सही लिखा
निजाम में तबदीली के लिए समाज की फ़िक्र में तबदीली लाना ज़रूरी है .
अच्छी फ़िक्र , अच्छा नजरिया सामने रखा है आपने .
आप से सहमत हैं अनवर जमाल साहब
बिना व्यवस्था को बेहतर बनाए देशवासियों का भला होने वाला नहीं , यह तय है. बात आपकी सही हैं. नागरिकों को जागरूक होना होगा और लेखकों को स्वम अपना हक माँगना होगा.
अनवर साहब एक ऐसे विषय पे आपने बात की है, जिसे अक्सर लोग अहमियत नहीं दिया करते.
@ जनाब मासूम साहब ! दुख तो इसी बात का है कि लोग अस्ल मुद्दे की तरफ से ग़ाफ़िल हैं ।
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