1. पहली बात तो यह है कि हिंदू धर्म के बारे में कुछ भी कहने का हक़ एक हिंदू को क्यों है ?
अगर वह ग़लत बात कहता है, भ्रामक बात कहता है तो उसे हरगिज़ यह हक़ नहीं होना चाहिए। किसी भी विषय पर ग़लत बात कहने की इजाज़त नैतिकता और क़ानून हरगिज़ नहीं देता, धर्म भी नहीं देता।
2. अगर मैं सप्रमाण एक सही बात कहता हूं तो मुझे यह हक़ क्यों हासिल नहीं है ?
3. मैक्समूलर और अन्य पश्चिमी विद्वानों ने हिंदू कल्चर और साहित्य पर बहुत कुछ लिखा है। क्या आप उस सारे साहित्य को निरस्त मानती हैं ?
4. क्या आप उसमें से कभी उद्धरण न देंगी ?
5. पश्चिमी दुनिया आज उपनिषदों की तारीफ़ करती है तो इसके पीछे किसी ब्राह्मण प्रचारक की मेहनत नहीं है कि उसने उपनिषदों से दुनिया को परिचित कराया है बल्कि इसके पीछे एक मुसलमान का, दाराशिकोह की मेहनत है। उसने उपनिषदों का अनुवाद फ़ारसी में कराया। फ़ारसी से उनका अनुवाद पश्चिमी भाषाओं में हुआ और दुनिया ने हिन्दुस्तानी फ़लसफ़े को जाना और उसकी तारीफ़ की। निस्संदेह हिन्दुस्तानी दर्शन कुछ बातों में यूनानी दर्शन से उच्च है। अगर दाराशिकोह भी आपकी तरह मान लेता कि उसे हिन्दू दर्शन के बारे में सोचने और उसका प्रचार करने का हक़ नहीं है तो दुनिया शायद भारतीय दर्शन से इतना परिचित न होती जितना कि आज है।
6. क्या आज बहुत से ग़ैर हिन्दू लोग देश-दुनिया में हिन्दू साहित्य पर शोध नहीं कर रहे हैं ?
7. क्या उनके शोध निबंध को यूनिवर्सिटियां और हिन्दू समाज मान्यता नहीं देता ?
8. क्या बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में जो वेद भाष्य पढ़ाया जाता है वह मैक्समूलर द्वारा संकलित नहीं है ?
तब केवल मुझ पर ही पाबंदी क्यों ?
9. बहन रचना जी ! आप खुद को हिन्दुत्ववादी कहती हैं और हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा तक से ठीक से परिचित नहीं हैं। हिन्दुत्ववादी विचारकों ने मुसलमानों को ‘मुहम्मदी हिन्दू‘ कहकर हिन्दुओं का ही एक प्रकार माना है तब आप कैसे कह सकती हैं कि ‘अनवर, आप हिन्दू नहीं हैं ?‘
मैं हिन्दू हूं, वह भी यूनिक टाइप का
10. मैं खुद भी अपने आप को हिन्दू कहता हूं। तब आप मेरे हिन्दू होने का इन्कार किस आधार पर कर सकती हैं ?
11. मुसलमान होना किसी भी तरह से हिन्दू का विलोम नहीं है कि अगर आदमी मुसलमान है तो वह हिन्दू नहीं हो सकता। कहीं से सिद्ध होता हो तो कृप्या प्रमाण दें। बिना सुबूत के कोई बात कहना न तो एक बुद्धिजीवी को शोभा देता है और न ही उसे मान लेना मेरी आदत है।
12. अगर फिर भी मैं आपकी नज़र में हिन्दू शब्द और साहित्य के बारे में बोलने का अधिकार नहीं रखता तो कृप्या बताएं कि मैं क्या करूं कि वह काम करने के बाद सभी हिन्दू मतावलंबी मुझे हिन्दू स्वीकार कर लें ?
13. अगर हिन्दू शब्द की कोई परिभाषा है तो उसमें प्रवेश करने या उससे बाहर निकलने की कोई विघि तो होती ही होगी, वह विधि क्या है ?
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2010/11/blog-post_20.html
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दो पैमानों से नापना छोड़ना होगा
Mr. Tarkeshwar Giri at cps global , New Delhi |
1. आप मेरे लिखे शब्दों पर ध्यान दें तो आप पाएंगे कि मैंने हिन्दू देवी देवताओं का उदाहरण दिया है लेकिन मैंने यह नहीं लिखा है कि मांस खाकर उन्होंने कोई ग़लत काम किया है। मुझे उनका उदाहरण देने का कोई शौक़ नहीं है, मजबूरी में देना पड़ा उनका उदाहरण।
2. भाई अमित जी और बहन दिव्या जी ने हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम की कुरबानी की मिसाल दी और कहा कि जो पशुबलि करते हैं वे अधम पापी और राक्षस हैं, वे अमन का पैग़ाम दे ही नहीं सकते, वे इंसान ही नहीं हैं। इसी तरह की बहुत सी बेहूदा बातें कीं और नहीं जानते थे कि जिस मांसाहार को वे अधर्म बता रहे हैं। वही मांसाहार उन प्राचीन आर्यों का मुख्य भोजन था जिन्हें धर्म की स्थापना के लिए अवतरित हुआ बताते हैं। इसी प्रसंग में प्रमाण के तौर पर मुझे श्री रामचन्द्र जी व अन्य हिन्दू महापुरूषों का आचरण सामने लाना पड़ा।
मांस मुसलमानों का पवित्र धार्मिक भोजन है
3. आपने मुझे तो टोक दिया लेकिन आपने अमित जी और दिव्या बहन जी व अन्य ब्लागर्स को एक बार भी न कहा कि आप मुस्लिम महापुरूषों का उदाहरण न दें, ऐसा क्यों ? जवाब दीजिए। यह तो ठीक नहीं है कि ब्लागर्स इस्लाम के बारे में भ्रामक जानकारी फैलाते रहें और आप उन्हें बिल्कुल भी न टोकें और जब मैं उनके भ्रम का निवारण करूं तो आप मुझे समझाने के बहाने चुप करने चले आएं ?
4. आप मुझे रोक रहे हैं और खुद मांस की तुलना मदिरा से कर रहे हैं ?
जबकि इस्लाम में मांस एक पवित्र भोजन है और मदिरा व अन्य किसी भी प्रकार का नशा पाप और वर्जित है। खुद मुसलमानों के भोजन की तुलना एक गंदी और नापाक चीज़ से करें और फिर यह उम्मीद भी रखें कि सामने वाला ख़ामोश रहे, यह तरीक़ा ग़लत है।
5. आप देख लीजिए, मेरे जितने भी लेख हैं वे सभी जवाबी हैं। जब भी कोई आदमी इस्लाम के बारे में ग़लत बात फैलाकर लोगों में अज्ञान और नफ़रत के बीज बोएगा तो सही बात बताना मेरा फ़र्ज़ है क्योंकि मैं सही बात जानता हूं। अगर किसी को मेरी बात ग़लत लगती है तो वह सिद्ध कर दे। मैं उसे वापस ले लूंगा, अपनी ही बात के लिए हठ और आग्रह बिल्कुल नहीं करूंगा लेकिन सत्य के लिए आग्रह ज़रूर करूंगा। मैं सत्याग्रह ज़रूर करूंगा हालांकि मैं गांधीवादी नहीं हूं।
शांति के लिए मेरी तरफ़ से एक बेहतरीन आफ़र
मैंने पहले भी कहा था और आज फिर कहता हूं कि मेरे ब्लाग की जिस पोस्ट पर ऐतराज़ हो उसे डिलीट करवा दीजिए लेकिन पहले आप लोग भी इस्लाम के खि़लाफ़ दुर्भावनापूर्ण पोस्ट डिलीट कर दें।
अब आप बताइये कि मेरी कौन सी बात ग़लत है और आपकी कौन सी बात सही है ?
क्यों है न काम की बातें ?
अब नवाज़ देवबंदी साहब का एक शेर अर्ज़ है-
मेरे पैमाने में कुछ है उसके पैमाने में कुछ
देख साक़ी हो न जाए तेरे मैख़ाने में कुछ
देख साक़ी हो न जाए तेरे मैख़ाने में कुछ
19 comments:
anwer sahb behtreen post ta'reef ke liye mere pass shabd nahin
anwer sahb behtreen post ta'reef ke liye mere pass shabd nahin
कोई अपनी ही माता को कुमाता बोले तो क्या जग ऐसी माता को अच्छा कहेगा? संभव नहीं.
हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम की कुरबानी की मिसाल दी और कहा कि जो पशुबलि करते हैं वे अधम पापी और राक्षस हैं, वे अमन का पैग़ाम दे ही नहीं सकते, वे इंसान ही नहीं हैं.
इनका धर्म केवल नफरत फैलाना है. लेकिन चलो इनका सही चेहरा सामने आ तो गया .
@ ठाकुर साहब ! आपकी लगन और मुहब्बत के लिए , आपके इखलास और ईसार के लिए मेरे पास भी शब्द नहीं हैं .
बात अस्ल में यह है कि
कुछ लोग हैं जो न तो अपने धर्म की जानकारी रखते हैं और न ही वे उसके पालन में ही दिलचस्पी लेते हैं लेकिन अपनी राजनीतिक कुंठाओं के चलते मुसलमानों के दीन ईमान और रिवाजों का मजाक उड़ाते रहते हैं ।
जो मुसलमान रजनीश जी की तरह चुप रहे उसे उदारवादी कहा जाता है और अगर कोई ग़ैरतमंद मोमिन जवाब देता है तो कहते हैं कि यह कट्टर है दुर्भावना फैला रहा है । ये खुले आम कहते रहते हैं कि मांसाहार राक्षसी और तामसिक भोजन है ।
1, क्या यह रवैया दुरुस्त है ?
2, क्या हमारी सेना मांस नहीं खाती ?
3, क्या हमारे वीर सैनिकों को राक्षस कहा जाना उचित है ?
4, क्या सिक्ख गुरु बलि नहीं देते थे या मांसाहार नहीं करते थे ?
5, ये थोड़े से शाकाहारी पूरी दुनिया को उनके भोजन के कारण राक्षस ठहराकर क्या लक्ष्य पाना चाहते हैं ?
अमित जी को पूरा अधिकार है कि वे चाहें तो हिन्दू धर्म के बारे में कुछ भी कह सकते हैं, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता : यह जिसने भी कहा है सही नहीं है
बुराई किसी भी धर्म की करो ही क्यों? और जब कोई अपने ही धर्म की बुराई बताए तो दूसरा क्यों उसको बुरा नहीं कहेगा ?
@ जनाब मासूम साहब ये confused people हैं और समझते हैं कि दुनिया में ज्ञान सिर्फ इनके पास है और संसार में अगर कोई इंसान है तो बस केवल यही हैं . अमन शांति कि बात सिर्फ यही कर सकते हैं .
jnaab aadaab tum kisi ke mzhb ko buraa mt kho khin aesaa naa ho ke log plt kr tumhare mzhb ko buraa khne lgen . yeh quraan kis shikshaa he or is pr hmen aml krna chaahiye qurana ki aese nirdeshon ki vjh se hi islaam sbhi dusre dhrmon se afzl mana jaata he lekin agr hm is mzhb ke maanne vaale log is bhs men pdh jaayenge to inmen or hmare men kya frq rh jayegaa . doston aek sch yeh he ke hindu koi dhrm nhin he hindu aek sbhytaa he or yeh naam angrezon ne sindhu ndi ke kinare bse logon ko diya tha ise dhrm naa kho dhrm to snaatn dhrm he or koi bhi dhrm ho kbhi dusre ke dhrm ko gali dene ki ijaazt nhin detaa to doston sb apnaa apnaa dhrm ghraayi se apni smjhi jane vali zubaan me pdh daalo inshaa allah sukun mil jaayegaa or saaraa jhgda pyar men bdl jaayega sbhi aek dusre se mafi mangte nzr aaoge meri chota munh bdhi baat he isliyen mafi chahta hun. akhtar khan akela kota raajsthaan
@ अख़्तर ख़ान साहब ! मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर हिंदू कहलाए जाने वाले लेखकों में वह कौन सा सुर्ख़ाब का पर टंका है कि वह इस्लाम की , खुदा की शान में गुस्ताख़ी करने के लिए आजाद है लेकिन अगर कोई मुसलमान उसका जवाब दे तो उस पर ऐतराज किया जाए ।
क्या जागरूकता और निष्पक्षता इसी दोग़लेपन का नाम है ?
मनु स्मृति में कहा गया है कि विधि से काटे गए पशु का मांस ही खाने योग्य है विधि रहित मांस कभी नहीं खाना चाहिए !
विधि है हलाल करना क्योंकि जानवर को इसमें कोई कष्ट नहीं होता । 'हमारी अंजुमन' ब्लाग पर वैज्ञानिक प्रमाण देकर सिद्ध कर दिया है कि इस्लाम सरासर रहमत है सबके लिए , जानवरों के लिए भी ।
प्राचीन आर्य शहद और मांस आदि का भरपूर सेवन करते थे और वे धर्म का पालन करने वाले आदर्श व्यक्ति माने जाते हैं . दशरथ जी और राम जी का शिकार खेलना जग प्रसिद्ध है ही । ऐसे में उनके भोजन को घृणित क्यों मान लिया गया ?
इस पर विचार किया जाना चाहिए ।
2- आज भी देश की नीतियाँ बनाने वाले और सीमाओं की रक्षा करने वाले अधिसंख्य हिंदू मांसाहारी हैं । मांसाहारियों को अधम, पापी और राक्षस कहना प्राचीन हिंदू आदर्शों के साथ साथ आपने वर्तमान हिंदू सैनिकों का भी अपमान करना है
अपने ज्ञान को और मजबूत करें , दारा शिकोह पहले हिन्दू ही था. पश्चिमी लोगो ने हमारे धर्म ग्रंथो पर शोध किया तो उनको विषय कि जानकारी भी मिली और वो लोग पूरी दुनिया मैं विज्ञानं के नाम पर, अविष्कार के नाम पर आज भी आगे हैं . लेकिन आप का शोध का विषय ज्ञान से नहीं बल्कि धर्म से हैं. आपके विषय सिर्फ धर्म के ऊपर आधारित होकर ही रह जाते हैं . आपने आज तक कोई ऐसा लेख लिखा हो जिसमे सिर्फ समाज कि या सिर्फ इंसानियत कि बात कही गई हो.
आप गलत रस्ते पर जा रहें हैं अनवर साहेब. इस से हिन्दू -मुस्लिम का प्यार घटेगा , बढेगा नहीं. जबकि जरुरत हैं प्यार फ़ैलाने के , आम आदमी रोज -रोज कि धार्मिक तू-तू मैं- मैं से तंग आ चूका हैं, आम आदमी तो बस कमाना चाहता हैं सिर्फ और सिर्फ ------------ दो वक्त कि रोटी -------वेद और कुरान नहीं.
Hinustan main srif Insan ke liye jagah hai, kisi dharm vishesh ke liye nahi.
mera chitr daalnae sae pehlae mujh sae permission nahin lee gayee haen aur yae internet ki neetiyon kae khillaf haen
kripa kar chitr hataa dae
@ सम्मानीय बहन रचना जी ! आपकी आज्ञा के अनुसार आपका चित्र हटा दिया जाएगा लेकिन मुझे अपने सवालों के जवाब भी चाहिएं जो कि इंटरनेट की नीतियोँ के पूरी तरह अनुकूल है ।
मुद्दा उठाया है तो कृप्या जवाब भी दें !
@ मेरे सत्यप्रेमी बंधु तारकेश्वर जी ! मैं दारा सिंह की नहीं बल्कि शाहजहां के बेटे दाराशिकोह की बात कर रहा हूं । वह पहले हिंदू था , यह जानकारी मेरे लिए नई है ।
क्या आप उसके पिछले जन्म की बात कर रहे हैं ?
2- ख़ैर आप रचना जी से पूछे गए सवालों के बजाए उन सवालों के जवाब दें जो कि आप से पूछे गए हैं ।
3- जो बात आप मुझसे कह रहे हैं इस्लाम को गालियाँ देने बालों के ब्लाग पर तो आपने आज यह बात न कही ?
4- क्या इस्लाम के बारे में सामूहिक रूप से फैलाए जा रहे भ्रम को दूर न किया जाए ?
5- आम आदमी को वेद कुरआन नहीं चाहिए तो वह मेरे ब्लाग पर आते भी नहीं हैं । उन्हें रोज़ी रोटी चाहिए तो वे कमाने में लगे ही हैं । आप आम आदमियों से पूछ कर देख लीजिए वे मेरा नाम तक नहीं जानते ।
कृप्या पूछे गए सवालों के जवाब दें ।
chitr hatayae sheeghr hi
Please remove my photo immediately
@ आदरणीया रचना जी ! आपके हुक्म की तामील करते हुए मैंने आपका फोटो पोस्ट से हटा दिया है लेकिन आपके कमेँट्स में आपका चेहरा मेरे ब्लाग की शोभा अभी भी बढ़ा रहा है । आपके इतने जबरदस्त आग्रह की कोई मुनासिब वजह मैं अभी तक भी नहीं समझ पाया हूँ ।
खैर , अब आप मेरे सवालों का जवाब देने की कृपा करें ।
गिरी भाई.... गलत चाहे अनवर जमाल बोले या शाहनवाज़, अमित बोले या दिव्य... गलत-गलत होना चाहिए और सही-सही... गलत या सही को गलत या सही के हिसाब से देखना चाहिए ना कि किसने कहा इस हिसाब से उसका निर्धारण होना चाहिए...
जैसे मैं बिना कीसी मुस्लिम व्यक्ति की सहायता से उर्दू या अरबी नहीं सीख सकता वैसे ही ऐसा कितना बड़ा विद्वान था वो दाराशिकोह ,जो बिना संस्कृत सीखे ही अरबी में अनुवाद किया और पश्चिमी देशों में प्रचार किया,क्या उसे कीसी अनुवादक की ज़रूरत नहीं थी..ऐसा बिना कीसी ब्राह्मण या हिन्दू-प्रचारक के संभव ही नहीं था ज़माल साहब...
अगर एक हिन्दू मुसलमान के बारे में कुछ नहीं कह सकता,("हमारा संविधान भी इस्लाम के कायदों को ही मुसलामानों के लिए उपयोग में लाता है...")
तो फिर एक मुसलमान को यह अधिकार क्यूँ....की वो हिन्दुओं के बारे में कुछ काहे..एक मुस्लिम संविधान के दायरे में आता है तो वो संविधान के बारे में जो काहे..ये अधिकार है उन्हें....पर हिन्दू धर्मं को उसके ही हाल पे छोर दें...गीत तो आप जानते ही हैं न..गीता में खुद भगवान् कृष्ण ने कहा है-
"..यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिम भवति भारत...,
अभ्युत्थानाया अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम .
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम,
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे....!...
अर्थात धर्मं की रक्षा उनका(भगवान का) कर्त्तव्य है और वो समय आने पर हमेशा ऐसा करते हैं..इसलिए हिन्दू धर्मं के बारे में कीसी और को सोचने की क्या ज़रूरत है..हाँ आप अपने धर्मं का प्रचार करें और उनके बारे में जो भ्रम हो समाज में उसे दूर करें..ये एक अच्छी और स्वीकार्य बात हो सकती है..वैसे आप्का लेख अच्छा था..पर बीच-बीच में आप खामख्वाह बुराई भी करते रहे जो एक बुद्धिमान को शोभा नहीं देता..अगर आप अभी भी समझ लें तो मेरा ये क्षुद्र- प्रयास सार्थक होगा...ऐसा मैं समझता हूँ..
अंत में धन्यवाद...
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