दो लेख नज़र से गुजरे , दोनों के सब्जेक्ट अलग । एक का विषय औरत और दूसरे का धर्म ।
दोनों पर ही चल रही है बहस गरमागर्म ।
और तब लफ़्ज़ों में ढल गए मेरे अहसास
देखिए अमन के पैग़ाम पर मेरा पैग़ाम
@ सोने की चिड़िया अर्थात प्राचीन भारत जी ! औरत की तरक्की औरत होने में है न कि मर्द बनने की कोशिश में, अपनी हया ग़ैरत और आबरू गंवाकर माल कमाने में।
कभी हमारे ब्लाग पर भी पधारकर उसे भी सुनहरा कर दें ।
विचित्र ज्ञान पहेली
क्या आप जानना चाहेंगे कि मैंने निम्न सिद्धांत किसके ब्लाग पर प्रतिपादित किया ?
1, भारतीय नागरिक जी से पूरी तरह सहमत ।
2, कमी कभी धर्म नहीं होती इसीलिए धर्म में कभी कमी नहीं होती । कमी होती है इनसान में जो धर्म के बजाए अपने मन की इच्छा पर या परंपरा पर चलता है और लोगों को देखकर जब चाहे जैसे चाहे अपनी मान्यताएँ खुद ही बदलता रहता है ।
3, जिसके पास धर्म होगा वह न अपने मन की इच्छा पर चलेगा और न ही परंपरा पर , वह चलेगा अपने मालिक के हुक्म पर , जिसके हुक्म पर चले हमारे पूर्वज ।
4, धर्म बदला नहीं जा सकता क्योंकि यह कोई कपड़ा नहीं है ।
5, जो बदलता है उस पर धर्म वास्तव में होता ही नहीं है ।
6, अब आप बताइए कि नित्य और हर पल आप उस मालिक के आदेश पर चलते हैं या अपनी इच्छाओं पर ?
तब पता चलेगा कि वास्तव में आपके पास धर्म है भी कि नहीं ?
संकेत सूत्र
देखें -
tarkeshwergiri.blogspot.com
12 comments:
anvr bhaayi ort maa bhn bivi jese aadrniy alfazon kaa naam he yeh bchche ko pet men palti he fir use chlna bolna sikhaati he fir duniya me ldne or chlne laayq bnati he to fir kon mhan huaa yeh maa hi he jiske per ke niche jnnt he lekin mryadaaon men rhe tb ort ort he vrna behyai brbaadi kaa raasta he . akhtar khan akela kota rajsthan
@ अकेला जी ! आपका यह अकेला कमेँट ही बहुत वज़्नदार है क्योंकि इसमें रसूले पाक स. की अज़ीम हदीस शामिल है ।
शुक्रिया !
nice post
तुमने पुकारा और हम चले आये रे. ऐसा लगता है की मासूम साहब की अमन की आवाज़ अब लोगों तक पहुँचने लगी है.जवाब है.
http://aqyouth.blogspot.com/2010/11/blog-post_21.html
@ Golden bird !
आप आए बहार आई ।
खुशियों की सौगात आई ।।
अच्छी पोस्ट
@ डाक्टर अयाज़ साहब ! कमेंट के लिए शुक्रिया , लेकिन लगता है आजकल वक़्त कम निकाल पा रहे हैं ?
यदि आप को "अमन के पैग़ाम" से कोई शिकायत हो तो यहाँ अपनी शिकायत दर्ज करवा दें. इस से हमें अपने इस अमन के पैग़ाम को और प्रभावशाली बनाने मैं सहायता मिलेगी,जिसका फाएदा पूरे समाज को होगा. आप सब का सहयोग ही इस समाज मैं अमन , शांति और धार्मिक सौहाद्र काएम कर सकता है. अपने कीमती मशविरे देने के लिए यहाँ जाएं
यदि आप को "अमन के पैग़ाम" से कोई शिकायत हो तो यहाँ अपनी शिकायत दर्ज करवा दें. इस से हमें अपने इस अमन के पैग़ाम को और प्रभावशाली बनाने मैं सहायता मिलेगी,जिसका फाएदा पूरे समाज को होगा. आप सब का सहयोग ही इस समाज मैं अमन , शांति और धार्मिक सौहाद्र काएम कर सकता है. अपने कीमती मशविरे देने के लिए यहाँ जाएं
क्यु बार-बार दरकते है रिश्ते, अपने को अपने में ढूंढ़ते है रिश्ते.
खून भी वही है, रंगे भी वही,
दर्द भी वही है,अहसास भी वही
फिर क्यु जहर में घुलते हे रिश्ते .
जमी भी वही है , फिजा भी वही
गुल भी वही,गुले बहार भी वही
फिर क्यु दर-दर भटकते है रिश्ते
गर मोहब्बत हुई होती कम ,तो बात ओंर थी,
यहा तो सियासत ने बदल दिए है रिश्ते
अब तो बार-बार आँखों से ढलकते है रिश्ते,
विश्वास को मार भय मे जीते है रिश्ते.
रिश्तों में उपजती खटास पर अच्छी लगी शमा जी की कविता.
शमा जी की कविता पढ़ रहा था तो किसी का एक बहुत प्यारा और मौजूं शेर याद आ गया,सुनियेगा:-
करवटें लीं मेरे हालात ने जैसे जैसे.
दोस्त भी अपने बदलते गए वैसे वैसे.
अगर हम अपना ego त्याग दें तो इस मुसीबत से बचा जा सकता है.न त्याग सकें तो कम से कम ego पर नियंत्रण रखने की कोशिश तो करें.
Post a Comment