जम्मू का बाज़ार में |
बाज़ार की एक दुकान से गुज़रते हुए मेरी नज़र टी. वी. पर पड़ी। लोग हैरत से देख रहे थे। हादसे इस मुल्क में बहुत से हुए। बहुत बार तबाहियां आईं लेकिन यह स्टाईल अनोखा था। यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि दरिंदगी और वहशत के ऐसे मंज़र, जिन्हें हम टी. वी. पर देख रहे हैं, ये किसी फ़िल्म का नहीं बल्कि न्यूज़ का हिस्सा हैं। पैसे के लिए मारामारी जारी थी। जो विदेशी हमलावर गोलियों से शूटिंग कर रहे थे, वे भी पैसा लेकर आए थे और जो न्यूज़ रिपोर्टर शूट हुए लोगों की शूटिंग अपने कैमरों से कर रहे थे, वे भी पैसे के लिए ही कर रहे थे। वे अपने फ़ायदे के लिए आतंकवादियों को फ़ायदा पहुंचा रहे थे। उनकी लाइव कवरेज से हमलावरों को संवेदनशील जानकारी बराबर मिल रही थी। आतंकवादी भी पैसों की ख़ातिर अपना ज़मीर बेच चुके थे और लोकतंत्र का चैथा स्तंभ भी ग़ैरत से ख़ाली खड़ा था। लगता है कि ये सब अलग अलग मुल्कों के लोग हैं जो अलग अलग धर्मों को मानते हैं लेकिन हक़ीक़त यह है कि इन सब बेग़ैरत और बेज़मीर लोगों का ईमान-धर्म और ख़ुदा एक है और वह है सिर्फ पैसा। पैसे की चाहत में ही लोग विदेशों से हमले करने आ रहे हैं और पैसे की चाहत में ही लोग उनकी मदद कर रहे हैं। मुल्क और क़ौम को पैसे की हवस बर्बाद कर रही है।
हमले के बाद
कहा जा रहा था कि पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला कर दिया है। कोई भी व्यक्ति और वर्ग अपने अंदर किसी बुराई की मौजूदगी मानने के लिए तैयार नहीं होता। मेरा मन भी यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि ये हमलावर सचमुच मुसलमान ही हैं। इसी दरम्यान ख़बर आई कि हेमंत करकरे मारे गए। ऐसा लगा कि जो लोग करकरे के खि़लाफ़ थे, उन्होंने ही यह कांड कर डाला, लेकिन शायद मैं ग़लत था।
कसाब को ज़िंदा पकड़ लिया गया। सुरक्षा एजेंसियों की जांच से पहले अख़बार वालों ने जांच करके उसका गांव और पता ठिकाना ढूंढ निकाला। वह सचमुच पाकिस्तानी ही था। जांच हुई, केस चला और कसाब आखि़र फंस गया। अदालत सुबूत देखती है लेकिन सरकार सुबूत के अलावा हालात भी देखती है। अब तो अदालतें भी सुबूत के अलावा बहुत कुछ देखने लगी है। लोग न्याय के लिए उसके पास जाते हैं लेकिन वह देखती है कि अगर न्याय किया तो लोग उसे मानेंगे नहीं तो क्यों न फ़ैसला कर दिया जाए, ऐसा फ़ैसला जिसे दोनों पक्ष मानने पर मजबूर हो जाएं। अदालत से फ़ैसले भी आ जाते हैं तो फिर उन पर अमल नहीं हो पाता। अफ़जल गुरू आज भी इसी दुनिया में है, अदालत से सज़ा ए मौत का फ़ैसला आ जाने के बाद भी। ऐसे हालात में अरूंधति रॉय आदि के ख़िलाफ़ मुक़द्दमा दायर हो जाने से क्या फ़र्क़ पड़ेगा सिवाय इसके कि उन्हें अब ज़्यादा प्रचार मिलेगा, कुछ अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार और मिल जाएंगे, जिससे उनके रूतबे में इज़ाफ़ा ही होगा।
दुश्मन हमला कब करता है ?
जुर्म भी साबित है और मुजरिम भी क़ब्ज़े में है लेकिन सज़ा उनसे अभी बहुत दूर है। नफ़रतें अभी भी ज़िंदा है और साज़िशें भी जारी हैं। पिछली समस्याएं हल नहीं हुईं, नई और बढ़ती जा रही हैं। लोगों में न्याय और सुरक्षा के प्रति यक़ीन कमज़ोर से कमज़ोरतर होता जा रहा है। मुल्क के लिए ये हालात अच्छे नहीं हैं, ये बात सभी जानते और कहते हैं लेकिन कोई यह नहीं बताता कि
ऐसी कौन सी व्यवस्था को लागू किया जाए जो समाज को सभी समस्याओं से मुक्ति दिला सके ?
या फिर हो सकता है कि बहुत से लोग जानते भी हों और कहना न चाहते हों ?
कसाब दुश्मन है। दुश्मन हमला तब करता है जब वह विपक्षी को कमज़ोर पाता है ?
कसाब ने वही किया जो एक दुश्मन को करना चाहिए और अब उसे सज़ा भी वही मिलनी चाहिए जो एक दुश्मन क़ातिल को मिलनी चाहिए। उसे उचित सज़ा देने में देरी भारत को कमज़ोर ज़ाहिर कर रही है। देश को एक कमज़ोर देश के रूप में दुनिया के सामने दिखाने वाले पाकिस्तान से आए दुश्मन नहीं हैं, वे इसी देश के हैं। लोग उन्हें चुनते हैं।
लोग ऐसे प्रतिनिधियों को क्यों चुनते हैं, जो देश को कमज़ोर बनाते हैं ?
घोटाले करने वाले नेता और रिश्वत लेकर ख़ुफ़िया राज़ विदेशियों को बेचने वाले अफ़सरों को भी कसाब के साथ ही जेल में होना चाहिए और जो सज़ा कसाब को मिले उन्हें उससे ज़्यादा नहीं तो कम से कम उसके बराबर तो ज़रूर ही मिलनी चाहिए। ऐसा मेरा मानना है। जो लोग मेरी सही बातों का भी विरोध करते हैं, उन्हें मुझसे असहमत होने का पूरा अधिकार है।
20 comments:
@ जीतेन्द्र जौहर जी ! आप अपनी पत्रिका में मेरा यह लेख शामिल कर सकते हैं .
nice post
अब तो अदालतें भी सुबूत के अलावा बहुत कुछ देखने लगी है। लोग न्याय के लिए उसके पास जाते हैं लेकिन वह देखती है कि अगर न्याय किया तो लोग उसे मानेंगे नहीं तो क्यों न फ़ैसला कर दिया जाए, ऐसा फ़ैसला जिसे दोनों पक्ष मानने पर मजबूर हो जाएं। अदालत से फ़ैसले भी आ जाते हैं तो फिर उन पर अमल नहीं हो पाता।
असहमत होने का पूरा अधिकार है।
वाकई मुल्क और क़ौम को पैसे की हवस बर्बाद कर रही है
Dead body of FIRON - Sign of Allah
विडियो
http://www.youtube.com/watch?v=0hWGjmbAzPs
कोई यह नहीं बताता कि
ऐसी कौन सी व्यवस्था को लागू किया जाए जो समाज को सभी समस्याओं से मुक्ति दिला सके ?
एक कसब को सँभालने मैं कितने करोड़ रुपये लगे? सवाल दिमाघ मैं आता है आखिर क्यों?
एक कसाब को सँभालने मैं कितने करोड़ रुपये लगे? सवाल दिमाग मैं आता है आखिर क्यों?
अनवर जमाल जी,
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yahi to hamri nyyayvyavastha hai
koi uttar nahi ....
@ जनाब मासूम साहब ! मुझे ईरान में हुए एक आतंकवादी हमले की याद आ रही है जिसमें 2 मर्द और 1 औरत शामिल थी । केस की सुनवाई 3 दिनों में पूरी कर ली गई और तीनों को एक क्रेन में लटकाकर सरेआम फांसी देकर समाज को अमन का पैग़ाम ही नहीं दिया बल्कि उसे हिफ़ाज़त और इंसाफ़ का भी यक़ीन दिला दिया । उस वाक़ये की वीडियो नेट पर देखी जा सकती है ।
क्या एक अच्छी बात केवल इसलिए न सीखी जाए कि वह मुस्लिम देश का दस्तूर है ?
6/10
जनाब अनवर जमाल साहब आपने पुरजोर वाजिब फरमाया है. आपको ऐसा क्यूँ लगा कि कोई आपसे असहमत हो सकता है ? आप जब भी समाज और देशहित में कोई भी वाजिब और तर्कसंगत बात करेंगे, सभी सहमत होंगे.
इस देश में कठोर और त्वरित न्याय प्रक्रिया अब समय की मांग है.
@ उस्ताद जी ! आप खुद देख सकते हैं कि लुच्चे लोगों की टुच्ची बातों की वाह वाह करने के लिए तो सभी सम्मानित ब्लागर और ब्लागरनियां भागम भाग पहुंचते हैं और देशहित में लिखे मेरे लेख पर 8 टिप्पणियाँ करने के लिए इन सबकी उँगलियाँ ठिठुर जाती हैं ।
इस पोस्ट को ही देख लीजिए ।
मेरी पोस्ट की तारीफ न भी करते तो कम से कम कसाब को तो बुरा भला कह सकते हैं ?
अगर यह लेख किसी शर्मा ने लिखा होता तो शायद यहाँ 140 टिप्पणियाँ पाई जातीं.
डॉ. जमाल अच्छी पोस्ट
लोग ऐसे प्रतिनिधियों को क्यों चुनते हैं, जो देश को कमज़ोर बनाते हैं ?
...yahi sabse badi durbhgya hai...saarthak chintansheel prastuti.....
लुच्चे लोगों की टुच्ची बातों की वाह वाह करने के लिए तो सभी सम्मानित ब्लागर और ब्लागरनियां भागम भाग पहुंचते हैं.
अनवर साहब बात सही है लेकिन सवाल पैदा होता है क्यों?
अच्छी पोस्ट
एस.एम.मासूम said...
लुच्चे लोगों की टुच्ची बातों की वाह वाह करने के लिए तो सभी सम्मानित ब्लागर और ब्लागरनियां भागम भाग पहुंचते हैं.
अनवर साहब बात सही है लेकिन सवाल पैदा होता है क्यों?
पूर्णता सहमत हूँ.........
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@-दुश्मन हमला तब करता है जब वह विपक्षी को कमज़ोर पाता है ?
कसाब ने वही किया जो एक दुश्मन को करना चाहिए और अब उसे सज़ा भी वही मिलनी चाहिए जो एक दुश्मन क़ातिल को मिलनी चाहिए। उसे उचित सज़ा देने में देरी भारत को कमज़ोर ज़ाहिर कर रही है। ...
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सहमत हूँ आपसे। कसाब को सजा न देकर उसकी दामाद की तरह तीमारदारी कर रहे हैं। सत्ता में बैठे भ्रष्ट नेता अपनी कमजोरी छुपाने के लिए पडोसी देश को दोष देकर अपनी जिम्मेदारोयों से मुक्त नहीं हो सकते । लेकिन हम सभी [आम जनता] मजबूर हैं। क्योंकि जब सारे ही भेड़िये हों तो प्रतिनिधि इन्हीं में से चुनने के लिए मजबूर भी हैं।
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