Friday, November 26, 2010

Rape बलात्कार का मूल कारण और सही निवारण क्या है ? - Anwer Jamal

विचारक बहन निर्मला जी और अंशुमाला जी के विचार से मैं सहमत हुँ , जो उन्होंने भाई गिरी जी के ब्लाग 'काम की बातें' पर दिए हैं। गिरी जी ने बलात्कार की एक ताज़ा घटना को लेकर इस समस्या पर चिंता प्रकट की है ।

बलात्कार एक ऐसा जुर्म है जो अपने घटित होने से ज़्यादा घटित होने के बाद दुख देता है, सिर्फ बलात्कार की शिकार लड़की को ही नहीं बल्कि उससे जुड़े हर आदमी को , उसके पूरे परिवार को ।
क़ानून और अदालतें हमेशा से हैं लेकिन यह घिनौना जुर्म कभी ख़त्म न हो सका बल्कि ख़ुद इंसाफ़ के मुहाफ़िज़ों के दामन भी इसके दाग़ से दाग़दार हैं ।

क्योंकि जब इंसान के दिल में ख़ुदा के होने का यक़ीन नहीं होता, उसकी मुहब्बत नहीं होती , उसका ख़ौफ़ नहीं होता तो उसे जुर्म और पाप से दुनिया की कोई ताक़त नहीं रोक सकती, पुलिस तो क्या फ़ौज भी नहीं । वेद कुरआन यही कहते हैं ।
गिरी जी ने जिन सुरक्षा उपायों की बात है , अमेरिका और सभी पश्चिमी देशों में उनसे ज़्यादा उपाय किए जाते हैं लेकिन फिर भी वहां बलात्कार होते हैं ,
क्यों होते हैं ?
यह जानने के लिए देखिए मेरेअंग्रेज़ी ब्लाग पर My favorite websites के लिंक्स

मनु के विधान मेँ बलात्कारी को ऐसे लोहे के पलंग पर बैठाकर मृत्युदण्ड देने का हुक्म है जिसे आग में तपाया गया हो । (मनु 8 : 371)
मैं एक मनुवादी हूँ और मनु के विधान की इस व्यवस्था को उसके शुद्ध और परिष्कृत रूप में आज भी प्रासंगिक मानता हूँ ।

इस व्यवस्था को भुलाकर हिंदू जाति आज ख़ुद को पश्चिमी रंग ढंग में ग़ारत करती जा रही है और तानाकशी उन मुस्लिम देशों पर की जाती है जहाँ बलात्कारियों को आज भी सज़ाए मौत ही दी जाती है जो कि मनु द्वारा प्रतिपादित है ।
यह दण्ड व्यवस्था भी यही बता रही है मनु की वैदिक व्यवस्था और पैग़ंबर मुहम्मद साहब स. की कुरआनी व्यवस्था में मात्र समानता नहीं बल्कि एकत्व है क्योँकि दोनों के ज्ञान का स्रोत एक ही ईश्वर है । एक ईश्वर ने दोनों को एक ही धर्म का बोध कराया । जिन देशों में यह दण्ड व्यवस्था आदर्श रूप में लागू है वहाँ तमाम देशों की अपेक्षा बलात्कार की घटनाएं आज भी कम हैं । ईरान इसकी एक मिसाल है ।

समाज के जो लोग इस आदर्श और मुक्तिदायिनी व्यवस्था की क़ायमी में बाधा बने हुए हैं वे सभी लोग बलात्कारियों को उनके घिनौने जुर्म की सज़ा से बचाने और उनके हौसले बुलंद करने के दोषी हैं । इस तरह परोक्ष रूप से हरेक बलात्कार के पाप में वे भी शरीक हैं । किसी रोज़ ख़ुद उनकी बहन बेटी भी कामातुर हैवानों का शिकार हो सकती है बल्कि हो ही रही है । ... रोज़ाना ।
लेकिन फिर भी सच को स्वीकारते नहीं , ख़ुद को सुधारते नहीं , जबकि ख़ुद को समझते सुधारक हैं ।

क्या यह ख़ुद एक विडंबना नहीं है ?
जो कि बलात्कार से भी बड़ी है क्योंकि यह बलात्कार शरीर के प्रति नहीं बल्कि उस न्याय चेतना के प्रति किया जा रहा है जो कि मालिक ने हरेक आदमी में रखी है । यह बलात्कार ख़ुद से ख़ुद के लिए ख़ुद के द्वारा किया जा रहा है , व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रूप से और समस्त राष्ट्र द्वारा सामूहिक रूप से । नर्क की आग वास्तव में इन्हीं बलात्कारियों के लिए भड़काई गई है ।
मनु और मुहम्मद की दण्ड व्यवस्था वास्तव में ईश्वर की ओर से है , जो आदमी इस सत्य को जीते जी न मानेगा , मरकर आख़िरकार वह भी मान ही लेगा ।
तो फिर अभी मान लेने में क्या हर्ज है ?

अपने द्वारा नित्य किए जा रहे बलात्कार को छोड़ दीजिए , बलात्कार ख़त्म हो जाएगा और फिर भी जो कोई करेगा वह मारा जाएगा , यह निश्चित है ।

21 comments:

Anonymous said...

यह बलात्कार ख़ुद से ख़ुद के लिए ख़ुद के द्वारा किया जा रहा है
sahi kaha aapne achcha lekh

Tausif Hindustani said...

मेरा तो सदा यही विचार रहा है की अपराधी को दण्डित करने हेतु इस्लामी विधान सबसे अच्छा है

DR. ANWER JAMAL said...

@ तौसीफ़ भाई , आपका ख़याल गलत नहीं है बल्कि ग़लत हैं वे जो जानते सब हैं लेकिन मानते नहीं ।

Taarkeshwar Giri said...

Sriman Anwar saheb... Aap ne dil se bulaya aur ham aa bhi gaye, han thoda let sahi.

Anwar saheb ishlamik kanoon lagu karwa dijiye fir dekhiye ki apka hi kunba virodh par utar jayega.


Aur ek bat Apradh se nafrat karen na ki Apradhi se. Agar saja de dene se apradh khatm ho jata to aaj ishlamik desh blatkar jaisi cheejo se pareshan nahi hota. Balki islamik desho main blatkar aur jyada hai.

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई तारकेश्वर जी ! आप आए आपका अहसान है लेकिन
1. क्या आप जानते हैं कि मुस्लिम देश और इस्लामी देश में क्या अंतर है ?
2. अपने कथन के सुबूत में किसी इस्लामी देश की तुलनात्मक बलात्कार दर पेश करें ।
3. अगर सज़ा से क्राइम कंट्रेल नहीं होता तो फिर आप बलात्कारियों का यौनांग क्यों काट लेना चाहते हैं ?
4. या फिर वह दिखावे के लिए कहा जा रहा था ?

S.M.Masoom said...

अनवर साहब एक बार फिर से बेहतरीन लेख़

S.M.Masoom said...

अनवर साहब एक बार फिर से बेहतरीन लेख़

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब मासूम साहब ! बहन निर्मला कपिला जी, अंशुमाला जी और दूसरे विद्वानों की टिप्पणियाँ भाई गिरी जी के ब्लाग पर पढ़ीं तो मैंने वहां एक कमेंट किया ।
फिर उस 'थॉट' को डेवलप किया तो यह पोस्ट प्रकट हुई ।
आमद के लिए शुक्रिया !

HaLaaaL हलाल said...

तौसीफ़ भाई सहमत

Fariq Zakir Naik said...

दुष्कर्म का दण्ड, मृत्यु
इस्लामी शरीअत के अनुसार यदि किसी व्यक्ति पर किसी विवाहित स्त्री के साथ दुष्कर्म (शारीरिक सम्बन्ध) का अपराध सिद्ध हो जाए तो उसके लिए मृत्युदण्ड का प्रावधान है। बहुतों को इस ‘‘क्रूर दण्ड व्यवस्था’’ पर आश्चर्य है। कुछ लोग तो यहाँ तक कह देते हैं कि इस्लाम एक निर्दयी और क्रूर धर्म है, नऊजुबिल्लाह (ईश्वर अपनी शरण में रखे) मैंने सैंकड़ो ग़ैर मुस्लिम पुरूषों से यह सादा सा प्रश्न किया कि ‘‘मान लें कि ईश्वर न करे, आपकी अपनी बहन, बेटी या माँ के साथ कोई दुष्कर्म करता है और उसे उसके अपराध का दण्ड देने के लिए आपके सामने लाया जाता है तो आप क्या करेंगे?’’ उन सभी का यह उत्तर था कि ‘‘हम उसे मार डालेंगे।’’ कुछ ने तो यहाँ तक कहा, ‘‘हम उसे यातनाएं देते रहेंगे, यहाँ तक कि वह मर जाए।’’ तब मैंने उनसे पूछा, ‘‘यदि कोई व्यक्ति आपकी माँ, बहन, बेटी की इज़्ज़त लूट ले तो आप उसकी हत्या करने को तैयार हैं, परन्तु यही दुर्घटना किसी अन्य की माँ, बहन, बेटी के साथ घटी हो तो उसके लिए मृत्युदण्ड प्रस्तावित करना क्रूरता और निर्दयता कैसे हो सकती है? यह दोहरा मानदण्ड क्यों है?’’

‘‘हमारे देश भारत में प्रगति और ज्ञान के विकास के नाम पर समाज में फै़शन, नग्नता और स्वेच्छाचार बढ़ा है, पश्चिमी संस्कृति का प्रसार टी.वी और सिनेमा आदि के प्रभाव से जितनी नग्नता और स्वच्छन्दता बढ़ी है उससे न केवल हिन्दू समाज का संभ्रांत वर्ग बल्कि मुसलमानों का भी एक पढ़ा लिखा ख़ुशहाल तब्क़ा बुरी तरह प्रभावित हुआ है। आज़ादी और प्रगतिशीलता के नाम पर परंपरागत भारतीय समाज की मान्यताएं अस्त-व्यस्त हो रही हैं, अन्य अपराधों के अतिरिक्त बलात्कार की घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। चूंकि हमारे देश का दण्डविघान पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है अतः इसमें भी स्त्री-पुरूष को स्चेच्छा और आपसी सहमति से दुष्कर्म करने को दण्डनीय अपराध नहीं माना जाता, भारतीय कानून में बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की सज़ा भी कुछ वर्षों की कैद से अधिक नहीं है तथा न्याय प्रक्रिया इतनी विचित्र और जटिल है कि बहुत कम अपराधियों को दण्ड मिल पाता है। इस प्रकार के अमानवीय अपराधों को मानव समाज से केवल इस्लामी कानून द्वारा ही रोका जा सकता है। इस संदर्भ में इस्लाम और मुसलमानों के कट्टर विरोधी भाजपा नेता श्री लाल कृष्ण आडवानी ने बलात्कार के अपराधियों को मृत्यु दण्ड देने का सुझाव जिस प्रकार दिया है उस से यही सन्देश मिलता है कि इस्लामी कानून क्रूरता और निर्दयता पर नहीं बल्कि स्वाभाविक न्याय पर आधारित है। यही नहीं केवल इस्लामी शरीअत के उसूल ही प्रगति के नाम पर विनाश के गर्त में गिरती जा रही मानवता को तबाह होने से बचा सकते हैं।’’

HAKEEM YUNUS KHAN said...

मजबूत दलील है हरेक आपकी , न कोई काट सके है और न कोई मान सके है .

URDU SHAAYRI said...

Nice post .

Shah Nawaz said...

सही लिखा है आपने, मेरे विचार से तो बलात्कारी के लिए सजाए-मौत से भी बढ़कर अगर कोई सज़ा हो सकती हो तो वह मुक़र्रर करनी चाहिए.... Fariq Zakir Naik की दलील भी एकदम दुरुस्त लगी.


प्रेमरस.कॉम

DR. ANWER JAMAL said...

@ शाहनवाज़ भाई ! मेरी ख्वाहिश तो यह है कि बलात्कारियों को एक दर्दनाक मौत दी जाये, चौराहे पर सबके सामने, ताकि भविष्य के मुजरिमों के दिल दहल जाएँ और हम सबकी मां बहनें महफूज़ रहें .
आमीन ..

Man said...

डॉ. जमाल आप से सहमत

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

अनवर भाई,
‘बलात्कार’ जैसे जघन्य अपराध पर आपका यह आलेख समाजोन्मुखी एवं उपयोगी है।

well wisher said...

सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि कविराज श्री सतीश कुमार सक्सेना जी की कविता और उस पर डा. अनवर जमाल जी का कमेन्ट दोनों Comment pot में सुरक्षित कर लिए गए हैं .
देखिये निम्न पोस्ट -
जवानी दोबारा हासिल करने का बिलकुल आसान उपाय

http://commentpot.blogspot.com/2010/11/best-comment-no-3.html

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

विज्ञप्ति०
‘मुक्तक विशेषांक’ हेतु रचनाएँ आमंत्रित-
देश की चर्चित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ का आगामी एक अंक ‘मुक्‍तक विशेषांक’ होगा जिसके अतिथि संपादक होंगे सुपरिचित कवि जितेन्द्र ‘जौहर’। उक्‍त विशेषांक हेतु आपके विविधवर्णी (सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, शैक्षिक, देशभक्ति, पर्व-त्योहार, पर्यावरण, श्रृंगार, हास्य-व्यंग्य, आदि अन्यानेक विषयों/ भावों) पर केन्द्रित मुक्‍तक/रुबाई/कत्अ एवं तद्‌विषयक सारगर्भित एवं तथ्यपूर्ण आलेख सादर आमंत्रित हैं।

इस संग्रह का हिस्सा बनने के लिए न्यूनतम 10-12 और अधिकतम 20-22 मुक्‍तक भेजे जा सकते हैं।

लेखकों-कवियों के साथ ही, सुधी-शोधी पाठकगण भी ज्ञात / अज्ञात / सुज्ञात लेखकों के चर्चित अथवा भूले-बिसरे मुक्‍तक/रुबाइयात/कत्‌आत भेजकर ‘सरस्वती सुमन’ के इस दस्तावेजी ‘विशेषांक’ में सहभागी बन सकते हैं। प्रेषक का नाम ‘प्रस्तुतकर्ता’ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। प्रेषक अपना पूरा नाम व पता (फोन नं. सहित) अवश्य लिखें।

इस विशेषांक में एक विशेष स्तम्भ ‘अनिवासी भारतीयों के मुक्तक’ (यदि उसके लिए स्तरीय सामग्री यथासमय मिल सकी) भी प्रकाशित करने की योजना है।

चूँकि अभी तक मुक्तक-संसार को समीक्षात्मक दृष्टि से खँगाला नहीं गया है, अतः इस दिशा में पहल की आवश्यकता महसूस करते हुए भावी शोधार्थियों की सुविधा के लिए मुक्तक संग्रहों की संक्षिप्त परिचयात्मक टिप्पणी/समीक्षा सहित संदर्भ-सूची तैयार करने का कार्य भी प्रगति पर है।इसमें शामिल होने के लिए कविगण अपने प्रकाशित मुक्तक/रुबाई के संग्रहों की प्रति प्रेषित करें! प्रति के साथ समीक्षा भी भेजी जा सकती है।

प्रेषित सामग्री के साथ फोटो एवं परिचय भी संलग्न करें। समस्त सामग्री केवल डाक या कुरियर द्वारा (ई-मेल से नहीं) निम्न पते पर अति शीघ्र भेजें-

जितेन्द्र ‘जौहर’
(अतिथि संपादक ‘सरस्वती सुमन’)
IR-13/6, रेणुसागर,
सोनभद्र (उ.प्र.) 231218.
मोबा. # : +91 9450320472
ईमेल का पता : jjauharpoet@gmail.com
यहाँ भी मौजूद : jitendrajauhar.blogspot.com

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

आप यह निम्नांकित विज्ञप्ति अपने मित्रों-परिचितों तक फ़ॉर्वर्ड करने का कष्ट करें ताकि नये-पुराने सभी लेखकों को इस दस्तावेजी विशेषांक में सहभागी बनने का अवसर मिल सके!


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DR. ANWER JAMAL said...

@ जीतेन्द्र जौहर जी ! आप अपनी पत्रिका में मेरा यह लेख शामिल कर सकते हैं .
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/11/kasab-and-indians.html

Ejaz Ul Haq said...

@ अनवर जमाल साहब !
@ फाखिर नाइक साहब !
बहुत ही अच्छा लेख... बहुत खूब ..ऐसे ही लिखते राहिए, अल्लाह आपके क़लम की उम्र दराज़ करे. आमीन.....
अरे भाई तराकेश्वर जी कहाँ चले गए.??????????