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Monday, June 6, 2011

एक सन्यासी और एक नेता होने के बावजूद बाबा रामदेव जी का औरतों के बीच छिपना कितना उचित कहलाएगा ? Baba Ramdev ji

बाबा रामदेव जी को महिला ड्रेस में देखने के लिए देखें  
http://loksangharsha.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html
योग गुरू बाबा रामदेव जी के साथ जो कुछ अभद्रता की गई वह निंदनीय है लेकिन यह भी सच है कि आदमी विपत्तिकाल में ही पहचाना जाता है। संकट में ही आदमी की वीरता और उसके नेतृत्व की परख होती है। यह देखकर बहुत दुख हुआ कि ज़रा सी मुसीबत पड़ते ही ‘भारत स्वाभिमान ट्रस्ट‘ के संस्थापक औरतों के आंचल तले जा दुबके जो कि न तो एक वीर गृहस्थ को शोभा देता है और न ही एक सन्यासी को। बाबा रामदेव एक आर्य समाजी सन्यासी हैं।
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद जी ने की थी। उन्होंने आजीवन हिन्दू मत के भ्रष्ट मठाधीशों से जमकर मुक़ाबला किया लेकिन न कभी कहीं से भागे और न ही कभी छिपे। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि उनकी जान को अमुक से ख़तरा है क्योंकि उन्हें पता था कि जो काम वे लेकर चल रहे हैं। उसमें जान जानी ही जानी है।
मैं उनके बहुत से विचारों से सहमत नहीं हूं तो भी उनके जीवट की प्रशंसा ज़रूर ही करूंगा।
ऐसे ही उनके जीवन की एक घटना और भी याद आती है। एक बार वे नदी किनारे ध्यान लगाए बैठे थे तभी एक औरत आई और उसने उनके पैर छू लिए। स्वामी जी ने तुरंत आंखें खोलीं और नदी में छलांग लगा दी। उन्हें यह गवारा नहीं था कि कोई औरत उन्हें छुए क्योंकि एक सन्यासी की मर्यादा यही है। स्वामी जी ने एक सन्यासी की मर्यादा का ध्यान रखा और जीवन के कठिन कष्टों को हंसकर झेला जबकि अच्छे अच्छे भाग खड़े होते हैं। बाबा रामदेव जी पर मुसीबत पड़ी तो वे अपने गुरू जी के पदचिन्हों पर भी न टिक सके और मामूली सी झड़प को अपने जीवन की सबसे काली रात घोषित कर दिया। ऐसी ऐसी रातें तो स्वामी दयानंद जी के जीवन में बहुत गुज़री हैं।
बाबा रामदेव जी को स्वामी दयानंद जी के जीवन से कुछ सबक़ हासिल करना चाहिए और जब तक उनमें नेतृत्व के गुण अच्छी तरह विकसित न हो जाएं तब तक उन्हें योग सिखाना चाहिए और कराटे-कुंगफ़ू सीखना चाहिए ताकि मुसीबत के मौक़ों पर अपनी जान बचाने के लिए आगे उन्हें औरतों के आंचल तले न छिपना पड़े। यह एक सन्यासी की मर्यादा के प्रतिकूल है। ऐसा दृश्य शायद इस महान भूमि पर पहली बार देखा गया है। यह वाक़ई एक शोकपूर्ण घटना है जिसमें कांग्रेस और बाबा दोनों ही फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी के ज़िम्मेदार हैं। 
अंत में हम ब्लॉग प्रसिद्ध वकील जनाब द्विवेदी के शब्दों में कहेंगे कि न बाबा कम और न सरकार!

इस विषय पर हमारी कुछ अद्भुत टाइप की टिप्पणियों का भी आनंद लेना न भूलिएगा।


ZEAL said...


.डॉ अनवर जमाल --

क्या वजह है की कोई भी मुसलमान इस बर्बरता की निंदा नहीं कर रहा ?
क्या आप भारतीय नहीं हैं ? यदि हैं तो आपको निर्दोष लोगों का इस तरह पिटना कष्ट नहीं दे रहा ?
क्या आप 'अल्पसंख्यक' कहलाने में फख्र महसूस करते हैं ।
क्या आपको कांग्रेस की यह बर्बरता की निति सही लगती है।
क्या आपको नहीं लगता की देश से भ्रष्टाचार दूर होना चाहिए ?
क्या आपको नहीं लगता की कला धन विदेशों से वापस लाया जाना चाहिए?
क्या आपको नहीं लगता की राजा और कलमाड़ी जैसे देश के लूटने वालों के खिलाफ कारवाई होनी चाहिए बजाये बाबा के।
क्या क्रूरता और बर्बरता की निंदा करना सिर्फ हिन्दुओं का काम है।
जो लोग घायल हुए हैं , पीटे गए हैं , क्या उनसे सहानुभूति नहीं है आपको ?
जो महिलाएं बेरहमी से घसीट घसीट कर मारी गयीं और भगायीं गयीं , वो किसी की माँ , बहन नहीं ? ....( आपका तो ब्लॉग ही है प्यारी माँ ) ।
क्यूँ नहीं मुसलामानों का रक्त खौलता जब भारत देश की मासूम जनता इस तरह क्रूरता का शिकार होती है तो? सलमान , शाहरुख़ से लेकर सभी ब्लॉगर मुसलमान भाई भी बाबा के खिलाफ क्यूँ है ? आखिर क्या वजह है इसकी?

डॉ अनवर जमाल ,
क्या आपको नहीं लगता की आप लोगों को - "अशफाक उल्ला खान" और श्री एपीजे अब्दुल कलाम जैसे देशभक्तों से कुछ सीखना चाहिए ?












डा. दिव्या श्रीवास्तव जी ! आपने दो तरह के मुसलमानों का ज़िक्र एक साथ कर दिया है :


1. फ़िल्मी मुसलमान

2. इल्मी मुसलमान

शाहरूख़ और सलमान दोनों फ़िल्मी मुसलमान हैं । सिल्वर स्क्रीन इनका फ़ील्ड है । अपने फ़ील्ड में ये लोग आये दिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते ही रहते हैं और देश के युवाओं को भी ऐसी ही प्रेरणा देते रहते हैं । इनकी फिल्मों से प्रेरणा पाने वाले बहुत सारे युवा आज बाबा के साथ हैं ।

दूसरे हैं इल्मी मुसलमान । वे जानते हैं कि बाह्य रूप से भारत में भ्रष्टाचार की केवल ब्राँच है जबकि इसका मूल अमेरिका , ब्रिटेन और इस्राईल में है ।
इल्मी मुसलमान भ्रष्टाचार के मूल पर प्रहार कर रहे हैं और अपने भारत में कोई उपद्रव करना या होते देखना नहीं चाहते । जो मुसलमान नहीं हैं , मूल पर प्रहार करने का माददा और हिम्मत उनमें है नहीं सो वे ब्राँच पर ही ज़ोर आज़माई कर रहे हैं । इस तरह जो कुछ वे कर रहे हैं , उससे एक सन्यासी की मर्यादा पर आँच आ रही है ।

...तो भी काँग्रेसी हिन्दुओं द्वारा अत्याचार निंदनीय है। क्रिश्चियन सोनिया और सिक्ख मनमोहन जी को इनके हाथों की कठपुतली नहीं बनना चाहिए या अगर परिस्थिति इसके विपरीत है तो वह भी नहीं होना चाहिए ।

मुझे बाबा की जान ख़तरे में नज़र आ रही है । लोग काँग्रेस से नाराज़ हैं । ऐसे में अगर बाबा को किसी साथ वाले ने महाप्रयाण करा दिया तो अगली सरकार निश्चित रूप से राष्ट्रवादियों की होगी ।
लेकिन हमें विश्वास रखना चाहिए कि सत्ता पाने के लिए राष्ट्रवादी ऐसा नहीं करेंगे ।

अब आपसे विनती है कि आप सिक्खों से भी पूछें कि वे मनमोहन सिंह जी की भ्रष्टाचारी सरकार को उखाड़ फेंकना क्यों नहीं चाहते ?
उनकी रगों के ख़ून की वफ़ादारी भी चेक कीजिए न ?
हरेक शक और सवाल के दायरे में केवल मुसलमान ही क्यों ?






DR. ANWER JAMAL said...जलियावालाँ काँड की इस घटना से तुलना ही कुछ नहीं । वह योग किस काम का जिसके ज़रिए योगी आत्मरक्षा भी न कर सके ? बाबा रामदेव जी को अब कराटे कुंगफ़ू भी सीखना और सिखाना चाहिए।सत्याग्रह में लाठी गोली और बम ही चलते आए हैं । बाबा जी को पुष्पवर्षा की आशा थी ही क्यों ? मारे डर के औरतों में छिपना सन्यासियों के इतिहास में पहली बार घटित होने वाली एक कलंकित घटना है । भारतीय सन्यासी मौत से कभी नहीं डरते । पता नहीं बाबा का सन्यास किस टाइप का है ?सन्यासी कभी पर स्त्री को स्पर्श नहीं करता।सारी पोल एक झटके में ही खुल गई लेकिन भक्त तो अक़्ल से कोरे ठहरे सो बाबा की अब आ गई मौज !
June 6, 2011 5:20 PM 
3. ज़ाकिर अली भाई के ब्लॉग पर हमारी एक नायाब टिप्पणी

DR. ANWER JAMAL ने कहा…


इसमें कोई शक नहीं है कि मंदिरों और मज़ारों पर चढ़ावे में जो धन संपत्ति दान दी जाती है उसे वहाँ के ज़्यादातर व्यवस्थापक लोकसेवा में लगाने के बजाय अपनी ऐशो इशरत में ख़र्च करते हैं और यह सरासर धार्मिक भ्रष्टाचार है । इसे दूर करना भी उतना ही ज़रूरी है जितना कि विदेशों में जमा काले धन का राष्ट्रीयकरण करना।
...और यह काम बाबा के बस का है नहीं ।
 6/06/2011 3:32 PM
 ...और एक पूरी पोस्ट ‘हिन्दी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल‘ पर