Monday, March 8, 2010

आदरणीय चिपलूनकर जी

आदरणीय चिपलूनकर जी
सादर प्रणाम आदमी एक जिज्ञासु प्राणी है । सैक्स और विवाद उसे स्वभावतः आकर्षित करते हैं। प्रस्तुत पोस्ट के माध्यम से आपने इसलाम के प्रति उसके स्वाभाविक कौतूहल को जगा दिया है । इसके लिए हम आपके आभारी हैं ।
आदमी नेगेटिव चीज़ की तरफ़ जल्दी भागता है । मजमा तो आपने लगा दिया है और विषय भी इसलाम है लेकिन ये मजमा पढ़े लिखे लोगों का है । इतिहास में भी ऐसे लोग हुए हैं कि जब वे इसलाम के प्रकाश को फैलने से न रोक सके तो उन्होंने दिखावटी तौर पर इसलाम को अपना लिया और फिर पैग़म्बर साहब स. के विषय में नक़ली कथन रच कर हदीसों में मिला दिये अर्थात क्षेपक कर दिया जिसे हदीस के विशेषज्ञ आलिमों ने पहचान कर दिया ।
इन रचनाकारों को इसलामी साहित्य में मुनाफ़िक़ ‘शब्द से परिभाषित किया गया ।
कभी ऐसा भी हुआ कि किसी हादसे या बुढ़ापे की वजह से किसी आलिम का दिमाग़ प्रभावित हो गया लेकिन समाज के लोग फिर भी श्रद्धावश उनसे कथन उद्धृत करते रहे । पैग़म्बर साहब स. की पवित्र पत्नी माँ आयशा की उम्र विदाई के समय 18 वर्ष थी । यह एक इतिहास सिद्ध तथ्य है । यह एक स्वतन्त्र पोस्ट का विषय है । जल्दी ही इस विषय पर एक पोस्ट क्रिएट की जाएगी और तब आप सहित मजमे के सभी लोगों के सामने इसलाम का सत्य सविता खुद ब खुद उदय हो जाएगा ।
क्षेपक की वारदातें केवल इसलाम के मुहम्मदी काल में ही नहीं हुई बल्कि उस काल में भी हुई हैं जब उसे सनातन और वैदिक धर्म के नाम से जाना जाता था।
महाराज मनु अर्थात हज़रत नूह अ. के बाद भी लोगों ने इन्द्र आदि राजाओं के प्रभाव में आकर वेद अर्थात ब्रहम निज ज्ञान के लोप का प्रयास किया था । वे लोग वेद को पूरी तरह तो लुप्त न कर सके लेकिन उन्होंने पहले एक वेद के तीन और फिर चार टुकड़े ज़रूर कर दिये । और फिर उनमें ऐसी बातें मिला दीं जिन्हें हरेक धार्मिक आदमी देखते ही ग़लत कह देगा । उदाहरणार्थ -
प्रथिष्ट यस्य वीरकर्ममिष्णदनुष्ठितं नु नर्यो अपौहत्पुनस्तदा
वृहति यत्कनाया दुहितुरा अनूभूमनर्वा
अर्थात जो प्रजापति का वीर्य पुत्रोत्पादन में समर्थ है ,वह बढ़कर निकला । प्रजापति ने मनुष्यों के हित के लिए रेत ( वीर्य ) का त्याग किया अर्थात वीर्य छौड़ा। अपनी सुंदरी कन्या ( उषा ) के ‘
रीर में ब्रह्मा वा प्रजापति ने उस ‘शुक्र ( वीर्य ) का से किया अर्थात वीर्य सींचा । { ऋग्वेद
10/61/5 }
संभोगरत खिलौनों को पवित्र हस्तियों के नाम से इंगित करना आप जैसे बुद्धिजीवियों को ‘
शोभा नहीं देता । गन्दगी को फैलाने वाला भी उसके करने वाले जैसा ही होता है । हमारे ब्लॉग पर आपको ऐसे गन्दे चित्र न मिलेंगे ।

ब्लॉग लेखन का मक़सद सत्य का उद्घाटन होना चाहिये न कि अपनी कुंठाओं का प्रकटन करना । हज़रत साहब स. के बारे में फैल रही मिथ्या बातों का खण्डन होना चाहिये ऐसा दिल से आप सचमुच कितना चाहते हैं ?
इस का निर्धारण इस बात से होगा कि आप मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी पर समान प्रकार के लगने वाले आरोप का निराकरण कितनी गम्भीरता से और कितनी जल्दी करते हैं ?
बाल्मीकि रामायण( अरण्य कांड , सर्ग 47 , ‘लोक 4,10,11 ) के अनुसार विवाह के समय माता सीता जी की आयु मात्र 6 वर्ष थी ।
माता सीता रावण से कहती हैं कि
‘ मैं 12 वर्ष ससुराल में रही हूं । अब मेरी आयु 18 वर्ष है और राम की 25 वर्ष है । ‘
इस तरह विवाहित जीवन के 12 वर्ष घटाने पर विवाह के समय श्री रामचन्द्र जी व सीता जी की आयु क्रमशः 13 वर्ष व 6 वर्ष बनती है ।
रंगीला रसूल सत्यार्थ प्रकाश की तरह दिल ज़रूर दुखाती है लेकिन वह कोई ऐसी किताब हरगिज़ नहीं है जिसके नक़ली तिलिस्म को तोड़ा न जा सके । जो कोई जो कुछ लाना चाहे लाये लेकिन ऐसे किसी भी सत्यविरोधी के लिए परम प्रधान परमेश्वर ने ज़िल्लत के सिवा कुछ मुक़द्दर ही नहीं किया । जो चाहे आज़मा कर देख ले । आशा है आप भविष्य में भी इसी प्रकार मजमा लगाकर इसलाम की महानता सिद्ध करने के लिए हमें आमन्त्रित करते रहेंगे ।
वर्तमान सहयोग के लिए धन्यवाद

1 comment:

Satish Saxena said...

किसी की श्रद्धा और धर्म का मज़ाक बनाना, अश्र्द्धालुओं को कभी शोभा नहीं देता जो भी ऐसा करता है वह देर सबेर जगहंसाई का कारण बनता ही है ! हर व्यक्ति विशेष की बुद्धि का अपना दायरा होता है तदनुसार ही उसके कार्यकलाप और धार्मिक और सामाजिक तथ्यों के विश्लेषण करने की, समझ होती है , अगर आप लोग अपनी बुद्धि पर भरोसा करके पूरे वैश्विक धर्म के पैरोकार बन रहे हैं तो निस्संदेह गलत कर रहे हैं , यह समस्या आप दोनों के बीच की है जिसे आप सार्वभौमिक बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं !

व्यक्ति श्रद्धा के सामने बेहद तुच्छ होता है आशा है कि यह बहस कर अच्छी अच्छी बाते बताइए ताकि समाज का कुछ भला हो !शुभकामनायें !