हर दुख का मदावा हैं प्यार और हमदर्दी के दो बोल
नया तौलिया टंगा देखा तो मेरे मुंह से बेइख्तियार निकला-‘यह तो मैं अनम के लिये लाया था।‘
उसकी मां ने कहा-‘नहीं, वह दूसरा है।‘
‘अनम की चीज़ें देखकर उसकी याद आती है।‘-मेरी सात वर्षीय बेटी आफ़िया बोली। वह कल भी रोयी और आज भी। खेलती भी है और फिर उदास होकर लेट जाती है और उदासी भरी नींद उसपर छा जाती है। उसकी मां ने उसकी वजह से अनम की चीज़ें छिपा दीं।
वह कहने लगीं कि मैं तो इन बच्चों की वजह से रोने की भी चोर हो गई। इनसे छिपकर रोना पड़ता है।
उससे बड़ा बेटा अनस आने वालों के लिये भागदौड़ कर रहा है। आफ़िया से छोटा बेटा अकमल अपने में मस्त रहने वाला बच्चा है लेकिन वह भी कभी भी पूछ लेता है कि ‘मम्मा अनम कहां चली गई ?‘
अनम की मां रात को सोने के लिये लेटीं तो रोने लगीं। मेरी वालिदा उठकर बैठ गईं। देखा तो बहू को रोते हुए पाया। उन्होंने समझाया, उन्हें दिलासा दिया और दिलासा वाक़ई काम करता है। वह कुछ देर बाद चुप हो गईं।
दिल + आसा = दिलासा
आदमी आशा के सहारे ही तो ज़िन्दा है।
ब्लाग बिरादरी ने भी मुझे आशा का संबल दिया जिसके लिये मैं उन सभी बुजुर्गों और भाइयों का आभारी हूं। उनके अल्फ़ाज़ ने मेरे हौसले को ताक़त दी है। उनका आना इस बात का सुबूत है कि अहसास और इनसानियत हमारे समाज में अभी तक ज़िन्दा है।
मेरे कुछ लिखने से पहले ही एजाज़ साहब ने अपने ब्लॉग पर अनम की जुदाई की ख़बर दे दी थी।
http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/07/blog-post.html
सलीम भाई ने भी अपने ब्लॉग पर अनम के ज़िक्र को जगह दी है। http://swachchhsandesh.blogspot.com/2010/07/blog-post_23.html
ब्लाग 4 वार्ता ने भी इज़्हारे हमदर्दी किया है और उसपर कमेंट करने वालों ने भी।
http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/1088-4.html
महक भाई इस ख़बर से अन्जान थे उन्होंने फ़ोन किया तो मैं घर से बाहर था। उन्हें मेरी अहलिया से पता चला। उन्होंने भी ब्लॉग पार्लियामेंट पर अपनी संवेदनाएं ज़ाहिर कीं।
http://blog-parliament.blogspot.com/2010/07/death-of-our-daughter.html
भड़ास परिवार ने भी अनम के लिये अपने नेक जज़्बात ज़ाहिर किये हैं। इस ब्लॉग पर जाना हुआ तो पता चला कि मुनव्वर सुल्ताना साहिबा भी औलाद की जुदाई का दुख सह चुकी हैं। उनके बेटे अब्दुल माजिद की मौत पर मैं भी अल्लाह से उनके लिये अजरे आखि़रत की दुआ करता हूं।
http://bharhaas.blogspot.com/2010/07/blog-post_22.html
ब्लॉग 4 वार्ता पर जनाब गगन शर्मा जी ने एक सवाल उठाया है कि
‘ मासूम बच्चों का क्या गुनाह होता है जिन्हें इतनी जल्दी वापस जाना पड़ता है ? पता नहीं यह कैसा न्याय है ?'http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/1088-4.html#comment-1836290072174952516
इसी तरह का ऐतराज़ श्री जय कुमार झा जी ने ब्लॉग पार्लियामेंट पर किया है। वे कहते हैं कि
‘भगवान को ऐसा नहीं करना चाहिये था।‘
http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/1088-4.html#comment-1836290072174952516
इस तरह की बातें शायद उनके मुंह से इस मासूम बच्ची के प्यार में ही निकली हैं।
ऐसी ही बातों का जवाब देती हुई टिप्पणी जनाब शरीफ़ ख़ान साहब ने की है। अगर उनके कथन पर विचार किया जाये तो मन की दुनिया में ‘ज्ञान‘ का सूरज चमक सकता है जो हर ऐतराज़ और शंका के अंधेरों को दूर कर देगा।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/07/flower-of-jannah-anwer-jamal.html?showComment=1279874790138#c5939136347855156586
अक्सर लोग कुछ मौतों को देखकर कहते हैं कि बहुत बुरा हुआ या ऐसा नहीं होना चाहिए था। आदि आदि ! जबकि हमको यह बात सोचते हुए सन्तोष कर लेना चाहिए कि अल्लाहए जिसने सम्पूर्ण सृष्टि रची हैए का कोई भी कार्य ग़लत नहीं हो सकता।
उदाहरणार्थ ऐसे समझिये कि एक बग़ीचे का माली है। उसे मालूम है कि कौन से पौधे को कब और कहां से उखाड़ना है और किस पौधे को कब और कितना छांटना है। आस पास के पौधे चाहे यह देखकर और सोचकर दुखी हों कि यह तो इस माली ने बहुत बुरा किया परन्तु माली को तो पूरे बग़ीचे के हित को ध्यान में रखते हुए काट छांट करनी होती है जिसे कम से कम उस बग़ीचे के पौधे तो समझ नहीं पाएंगे। इसी प्रकार सृष्टि के रचियता के कार्यों को समझना हमारी समझ से बाहर की बात है .
जिन लोगों ने अपने अल्फ़ाज़ से मेरे दिल को सहारा दिया उनमें मनीषा जी, शाहनवाज़, शिवम मिश्रा जी, शहरोज़, सतीश सक्सेना जी, जनाब उमर कैरानवी साहब, शादाब, महक,तालिब, ज़ीशान ज़ैदी, प्रवीण शाह, डा. अयाज़,अदा, समीर लाल जी, इन्द्र अनिल भट्टाचार्य जी, एजाज़ उल हक़, शरीफ़ ख़ान, सलीम ख़ान, भावेश, दिव्या जी, सत्य गौतम, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद, असद अली, विचार शून्य जी के नाम प्रमुख हैं।
‘सिरातल मुस्तक़ीम‘ पर भी कई भाइयों ने अपने अच्छे जज़्बात का इज़्हार किया,
जिनमें से मास्टर अनवार साहब, साजिद, श्री सुरेश चिपलूनकर और संजय बेंगाणी जी के नाम प्रमुख हैं।अलग अलग ब्लॉग्स पर कई पोस्ट्स में इतने भाइयों ने अनम को अपना प्यार दिया है कि उन सभी के नाम देना संभव नहीं है और यह सिलसिला अभी जारी है। यह तो वे चन्द पोस्ट्स हैं जो मुझे चिठ्ठाजगत की हॉट लिस्ट में नज़र आ गईं और ज़ाहिर है कि हॉट लिस्ट में सभी शामिल नहीं हो पातीं।
मैं अपने सभी साथियों, भाईयों और बुजुर्गों का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूं।
अनम की मौत ने हम सबको अहसास दिलाया है कि ज़िन्दगी महज़ चंद रोज़ा है, अस्थायी है । हमें यहां से जाना है।
काश ! हम यहां से वह ‘ज्ञान‘ लेकर जाएं जो हरेक अंधेरे को मिटा दे और हमारे दिलों में मालिक और उसके बंदो की मुहब्बत के चिराग़ जला दे।
आदमी के दिल में मुहब्बत हो तो फिर उसे दुख भी लज़्ज़त देने लगते हैं। जो मुहब्बत करता है वह इस लज़्ज़त को जानता है।
कुरआन मजीद में आस्तिक का एक प्रमुख गुण यही मुहब्बत बताया गया है।
वल्लज़ीना आमनू अशद्दू हुब्बल्-लिल्लाह
जो लोग ईमान वाले हैं वे परमेश्वर से अत्यंत प्रेम करते हैं।