एक पैमाने से नापिए सारे झगड़े खत्म हो जाएँगे
इस्लाम एक वैज्ञानिक और व्यवहारिक धर्म है । यह धर्म उसी ईश्वर द्वारा प्रदत्त है जिसने सारे जीव बनाए, जिसने उनके भोजन की व्यवस्था बनाई । उसी ईश्वर ने जन्म के साथ मृत्यु भी बनाई, उसी ने Food chain बनाई । जीव दूसरे जीवों को खाएँ , जीवों की यह प्रकृति भी उसी ने बनाई । उसी ने आहार के अनुसार जीवों के दाँत बनाए ,पाचन क्रिया बनाई । जब से दुनिया आबाद है तब से मनुष्य अपने आहार में दूसरी चीजों के साथ मांस भी लेता आ रहा है । हरेक जाति और समुदाय के ज्ञानी पूर्वज और वीर सैनिक मांस खाते आए हैं यह इतिहास से सिद्ध है ।
विश्व के श्रेष्ठ बुद्धिजीवी और वीर सैनिक आज भी मांस खाते हैं । मुसलमान भी ज्ञानी पूर्वजों और श्रेष्ठ बुद्धिजीवियों की परंपरा के अनुसार दूसरी चीजों के साथ मांस खाते हैं । जो श्रेष्ठ भोजन खुद खाते हैं वही अन्य गरीब भाइयों को भी मिल जाए । इसकी व्यवस्था इस्लामी पर्व बक़र: ईद में निहित है । कुर्बानी के गोश्त में से एक तिहाई गरीबों को देना लाज़िमी है । यह एक सच्चाई है । जो इसे समझ नहीं पाते उनकी अक़्लें बौनी हैं , जो इसे मानते नहीं हैं उनके दिल छोटे हैं , यही साबित होता है । उनके न मानने से न तो हकीकत बदलेगी और न ही Natural food chain .
कुछ लोग आज की दुनिया मेँ भी अंधविश्वास में जीते हैं और इस्लाम से जलते हैं या फिर ईश्वर की प्राकृतिक और धार्मिक व्यवस्था का ज्ञान नहीं रखते हैँ बल्कि अपने इतिहास की जानकारी भी ठीक से नहीँ रखते , ये नर नारी भावनाओं मेँ बहकर अपनी हद से निकल जाते हैं ।
ये कहते हैं कि जीव को मारना उसका मांस खाना पाप है । जो मांस खाता है वह तामसिक है राक्षस है । मुसलमानों पर निशाना साधने के चक्कर में ये अज्ञानी भाई बहन यह भी भुला देते हैं कि उनकी बदतमीज़ी की लपेट में उनके पूर्वज भी आ रहे हैं । वे पूर्वज, जिन्हें वे साकार ईश्वर मानते हैं ।
A- क्या वे सब दया शांति और ज्ञान से कोरे थे ?
B- क्या उन्होंने कभी अमन का पैग़ाम नहीं दिया ?
C- क्या ये सभी नीच पापी और राक्षस थे ?
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस बदतमीज़ी के काम में उनसे सहमत नहीं हैं । बहन रचना जी उनमें से एक हैं । अपनी ताजा पोस्ट में इस सोच के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है । मैंने उनकी पोस्ट पर कमेँट देते हुए कहा है कि -
@ Great sister रचना जी ! आपके विचार सुंदर और स्पष्ट हैं । आपने सही लिखा है कि हिंदू कल्चर और इस्लाम धर्म में दोनों में पाप पुण्य की परिभाषा में अंतर है । पहले परिभाषा तय कर ली जाए और फिर तर्क वितर्क किया जाए ।
वह दिन आना मुश्किल है क्योंकि अभी तक तो हिंदू शब्द की ही परिभाषा तय नहीं हो पाई है, पाप पुण्य की कैसे तय कर लेंगे ?
2- चलिए फिर भी आपकी नज़र में जो पाप है जिस पर आप इस्लाम और मुसलमानों को नाप रहे हैं उसी पैमाने से अपने पूर्वजों को भी नापिए । हमें कोई ऐतराज न होगा ।
3- रामचंद्र जी भरत जी और हनुमान जी का भोजन क्या था ?
4- क्या शिव जी शेर की खाल पर बैठ कर ध्यान नहीं लगाते थे ?
5- शिवा जी का फूड क्या था ?
6- सिक्ख गुरुओं आहार क्या था ?
7- हमारे सैनिकों और अधिकांश हिंदुओं का भोजन आज क्या है ?
8- उड़ीसा और दक्षिण के वेदपाठी ब्राह्मणों का भोजन आज भी क्या है ?
9- क्या ये सब अमन के दुश्मन और राक्षस हैं ?, अधम और पतित हैं ?
बलि विरोधी जवाब दें ।
एक पैमाने से नापेँगे तो झगड़े खुद ख़त्म हो जाएगे ।
हमारे पूर्वज धर्म और नैतिकता के आदर्श हैं , यह एक स्थापित सत्य है। धर्म और करुणा की जो भी चेतना आज हममें पाई जाती है वह चेतना हम तक उन्हीं से पहुँची है ।
तो फिर क्या बलि के विरोधियों को राक्षस कहा जाएगा ?
नहीं , इन्हें भी राक्षस नहीं कहा जाएगा बल्कि इन्हें ऐसा नादान समझा जाएगा जिन्हें धर्म और महापुरुषों के इतिहास की सही जानकारी नहीं है ।
That's all .
17 comments:
डा. अनवर साहब जो आँख के अंधे हैं उनकी तो मजबूरी समझ में आती है किन्तु जिनके पास दृष्टि, बुद्धि और सुनने समझने की शक्ति है , अगर वो अंधे बने तो हंसी आती है इन लोगों पर ,(काफी बहस के बाद )
फिर कहते हैं मांस खाओ किन्तु ऐसे हलाल न करो बहुत दर्द होता है ,
थोड़े दर्द बहुत दर्द से क्या मतलब है , दर्द तो दर्द है चाहे जैसे पशु को जिबह करो ,
बस अपना अपना तरिका होता है , कोई पेड़ को कुल्हाड़ी से काटता है कोई आरी से ,
अब कोई कहे इसे कुल्हाड़ी से धीरे धीरे न काटो पेड़ को दर्द होता है तो सही बात है दर्द होता है , क्या हम सब पेड़ को कुल्हाड़ी से काटना बंद कर दे सीधे सीधे मशीन से काटे ?
ये सब अवैज्ञानिक बाते है जिनका कोई आधार नहीं है ,
जिहोने हज़ारों साल तक अपनी माँ बहन को सती के नाम पर जिंदा जलाया ,
उन्हें आज मानवता और इंसानियत की याद आ रही है ,
वह क्या नौटंकी है हज़म नहीं हुआ
मेरी नजर में तो शाकाहार या मांसाहार का मुद्दा उठाना ही समय ख़राब करना है | हर युग में हर समुदाय ने इन दोनों खाद्यों का इस्तेमाल किया है व कर रहे है यह भोजन श्रंखला है इसमें बहस करने का कोई औचित्य नहीं |
ईश्वर ने आदमी को विवेक दिया है वह परिस्थियों के अनुसार अपने भोज्य पदार्थों का चयन कर उपभोग कर सकता है |
रतन जी आपने बिलकुल सही फ़रमाया है
dabirnews.blogspot.com
डॉ अनवर जमाल
सुरेश के साथ साथ ब्लॉग जगत मे मै भी हिन्दुतत्ववादी मानी जाती हूँ और मुझे फक्र हैं कि मै हिन्दू हूँ । आप ये कहना कि "हिंदू शब्द की ही परिभाषा तय नहीं हो पाई है" शालीनता कि परिधि के बाहर हैं । आगे से ध्यान रखे कि अगर मै आपके धर्म का अपमान नहीं करती तो आप को भी मेरे धर्म के प्रति अपमानजनक होने का कोई अधिकार नहीं हैं । भारतीये संविधान मे जो आस्था रखते हैं वोहर धर्म से ऊपर हैं क्युकी देश का धर्म संविधान ही होता हैं
@ सीनियर ब्लागर बहन रचना जी ! 'हिंदू शब्द की परिभाषा में भारी अनिश्चितता है' यह कहने से अगर हिंदू धर्म का अपमान होता है तो इसका जिम्मेदार मैं नहीं हूँ । इसके जिम्मेदार हैं मेरे भाई अमित जी , क्योंकि आपने ब्लाग पर हिंदू शब्द की विवेचना करते हुए उन्होंने यही बात कही है । आप वहाँ देख लें और उन्हें अपनी शिकायत दर्ज करा दें और साथ ही हिंदू शब्द की सर्वसम्मत और सुनिश्चित परिभाषा बताकर उनकी गलतफहमी भी दूर कर दें और कृप्या मुझे भी बता दें ताकि मेरी नॉलिज में भी इज़ाफ़ा हो जाए ।
धन्यवाद !
अनवर जमाल जी
अमित एक हिन्दू हैं और वो अपने धर्म को बुरा केही भला कहे कोई फरक नहीं पड़ेगा क्युकी वो अपने धर्म को कह रहे हैं लेकिन अगर आप वही बात कहेगे तो पडेगा क्युकी आप दूसरे धर्मं मे आस्था रखते हैं । यही बात मैने पोस्ट मे भी कही हैं । क्यूँ एक दूसरे के धर्म कि बुराई करे । मेरा धर्मं कैसा हैं सवाल ये होना चाहिये ना कि ये कि आप का धर्म कितना बुरा हैं ।
एक बार गौर कर के देखे कि अगर एक मुसलमान हिन्दू धर्म के ऊपर बात करना बंद कर दे और एक हिन्दू मुसलमान धर्म के ऊपर बात करना बंद करदे तो कितना फरक पड़ेगा ।
अब आते हैं परिभाषा पर तो अगर आप किताबी और पढ़ी हुई बातो से ऊपर सोचते हैं तो एक परिभाषा यहाँ दी हैं इस पर भी नज़र डाले http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2008/10/blog-post_4047.हटमल
आप ने बहिन कह कर जो सम्मान दिया हैं उसकी तहे दिल से आभारी हूँ ।
डॉ जमाल आपका ज्ञान वाकई काबिल-ए-तारीफ है. शाकाहार मांसाहार आदि विषय पर विवाद फ़िज़ूल है. अश्वमेध यग्य में भी बलि दी जाती थी. बात उसकी नहीं है बात यह है कि रसोई से सत्ता कैसे चलेगी. आदमी तो गौड़ हो गया है
किन्तु क्या आप बताने का कष्ट करेगे कि आपके पूर्वज कौन थे और कहा से सम्बंधित थे. यदि बताये तो महँ कृपा होगी.
सधन्यवाद
Anwar Ji aur apke sathi bloger mahoday:- Kabhi -Kabhi kya balki aksar aap log bahas ke chakkar main apni maryada ko tod dete hain, aur sidhe Hindu Devi-Devatawo par aakar ke rook jate hain. Meri apse se vintee hai ki kripaya aise Examle naa de jis se ki kisi dharm vishes ko chot lage
आजकल मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी की गाथाएं बड़ी लोकप्रिय हैं, परन्तु उनकी गाथाओं के मूल आधार वाल्मीकि रामायण का साधारण जनता को कम ही ज्ञान है। वाल्मीकि रामायण में अनेकों स्थानों पर श्री रामचन्द्र जी के शिकार करने और मांस खाने का उल्लेख है। केवल एक उदाहरण यहां उद्धृत किया जा रहा है -
तां तदा दर्शयित्वा तु मैथिली गिरिनिम्नगाम् ।
निषसाद गिरिप्रस्थे सीतां मांसेन छन्दयन् ।।
इदं मध्यमिदं स्वादु निष्टप्तमिद मग्निना ।
एवमास्ते स धर्मात्मा सीतया सह राघवः ।।
(वाल्मीकि रामायण, अयोध्या काण्ड, 96, 1 व 2)
अर्थात इस प्रकार सीता जी को (नदी के) दर्शन कराकर उस समय श्री रामचन्द्र जी उनके पास बैठ गए और तपस्वी जनों के उपभोग में आने योग्य मांस से उनका इस प्रकार लालन करने लगे,
‘‘इधर देखो प्रिये, यह कितना मुलायम है, स्वादिष्ट है और इसको आग पर अच्छी तरह सेका गया है।‘‘
इसके अतिरिक्त श्री रामचन्द्र जी के मृगादि के शिकार तथा मांस खाने के वृतान्त के लिए वाल्मीकि रामायण में देखें - अयोध्या काण्ड, 52-102; 56-22 से 28; और अरण्य काण्ड 47-23 व 24 आदि।
एक और मांस भक्षण चर्चा। गजब। वैसे मैं अभी तक तो स्वयं को शाकाहारी मानता रहा था, पर इस लेख को पढ़कर मेरी चूलें हिल गयी हैं।
@ जनाब पवन कुमार मिश्रा जी ! आपने मेरी सराहना की इसके लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ।
2- मेरे पूर्वज वहीं से आए थे जहाँ से आपके पूर्वज आए थे क्योंकि मैं एक पठान हूँ , शुद्ध आर्य रक्त . और शायद आप भी ?
3- वास्तविक ईश्वर के धर्म को भुला देंगे तो आदमी को गौण होने से कोई नहीं रोक सकता । आदमी का सम्मान ईश्वर महान से जुड़ने में है और यह जोड़ तब होता है जब आदमी उसकी आज्ञा का पालन करता है ।
क्या हिन्दू राष्ट्र में एक मुसलमान के लिए कोई जगह नहीं है ?
दुनिया को वेद और उपनिषदों से परिचित कराने वाले हैं ईसाई और मुस्लिम
@ सीनियर ब्लॉगर बहन रचना जी ! आपने कहा है कि भाई अमित जी को पूरा अधिकार है कि वे चाहें तो हिन्दू धर्म के बारे में कुछ भी कह सकते हैं, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लेकिन मुझे अमित जी की तरह हिंदू कल्चर और साहित्य के बारे में कुछ भी कहने का हक़ हासिल नहीं है क्योंकि मैं हिंदू नहीं हूं।
1. पहली बात तो यह है कि हिंदू धर्म के बारे में कुछ भी कहने का हक़ एक हिंदू को क्यों है ?
अगर वह ग़लत बात कहता है, भ्रामक बात कहता है तो उसे हरगिज़ यह हक़ नहीं होना चाहिए। किसी भी विषय पर ग़लत बात कहने की इजाज़त नैतिकता और क़ानून हरगिज़ नहीं देता, धर्म भी नहीं देता।
2. अगर मैं सप्रमाण एक सही बात कहता हूं तो मुझे यह हक़ क्यों हासिल नहीं है ?
3. मैक्समूलर और अन्य पश्चिमी विद्वानों ने हिंदू कल्चर और साहित्य पर बहुत कुछ लिखा है। क्या आप उस सारे साहित्य को निरस्त मानती हैं ?
4. क्या आप उसमें से कभी उद्धरण न देंगी ?
5. पश्चिमी दुनिया आज उपनिषदों की तारीफ़ करती है तो इसके पीछे किसी ब्राह्मण प्रचारक की मेहनत नहीं है कि उसने उपनिषदों से दुनिया को परिचित कराया है बल्कि इसके पीछे एक मुसलमान का, दाराशिकोह की मेहनत है। उसने उपनिषदों का अनुवाद फ़ारसी में कराया। फ़ारसी से उनका अनुवाद पश्चिमी भाषाओं में हुआ और दुनिया ने हिन्दुस्तानी फ़लसफ़े को जाना और उसकी तारीफ़ की। निस्संदेह हिन्दुस्तानी दर्शन कुछ बातों में यूनानी दर्शन से उच्च है। अगर दाराशिकोह भी आपकी तरह मान लेता कि उसे हिन्दू दर्शन के बारे में सोचने और उसका प्रचार करने का हक़ नहीं है तो दुनिया शायद भारतीय दर्शन से इतना परिचित न होती जितना कि आज है।
6. क्या आज बहुत से ग़ैर हिन्दू लोग देश-दुनिया में हिन्दू साहित्य पर शोध नहीं कर रहे हैं ?
7. क्या उनके शोध निबंध को यूनिवर्सिटियां और हिन्दू समाज मान्यता नहीं देता ?
8. क्या बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में जो वेद भाष्य पढ़ाया जाता है वह मैक्समूलर द्वारा संकलित नहीं है ?
तब केवल मुझ पर ही पाबंदी क्यों ?
9. बहन रचना जी ! आप खुद को हिन्दुत्ववादी कहती हैं और हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा तक से ठीक से परिचित नहीं हैं। हिन्दुत्ववादी विचारकों ने मुसलमानों को ‘मुहम्मदी हिन्दू‘ कहकर हिन्दुओं का ही एक प्रकार माना है तब आप कैसे कह सकती हैं कि ‘अनवर, आप हिन्दू नहीं हैं ?‘
मैं हिन्दू हूं, वह भी यूनिक टाइप का
10. मैं खुद भी अपने आप को हिन्दू कहता हूं। तब आप मेरे हिन्दू होने का इन्कार किस आधार पर कर सकती हैं ?
11. मुसलमान होना किसी भी तरह से हिन्दू का विलोम नहीं है कि अगर आदमी मुसलमान है तो वह हिन्दू नहीं हो सकता। कहीं से सिद्ध होता हो तो कृप्या प्रमाण दें। बिना सुबूत के कोई बात कहना न तो एक बुद्धिजीवी को शोभा देता है और न ही उसे मान लेना मेरी आदत है।
12. अगर फिर भी मैं आपकी नज़र में हिन्दू शब्द और साहित्य के बारे में बोलने का अधिकार नहीं रखता तो कृप्या बताएं कि मैं क्या करूं कि वह काम करने के बाद सभी हिन्दू मतावलंबी मुझे हिन्दू स्वीकार कर लें ?
13. अगर हिन्दू शब्द की कोई परिभाषा है तो उसमें प्रवेश करने या उससे बाहर निकलने की कोई विघि तो होती ही होगी, वह विधि क्या है ?
दो पैमानों से नापना छोड़ना होगा
@ भाई तारकेश्वर जी ! आपकी विनती मेरे लिए बहुत अहमियत रखती है।
1. आप मेरे लिखे शब्दों पर ध्यान दें तो आप पाएंगे कि मैंने हिन्दू देवी देवताओं का उदाहरण दिया है लेकिन मैंने यह नहीं लिखा है कि मांस खाकर उन्होंने कोई ग़लत काम किया है। मुझे उनका उदाहरण देने का कोई शौक़ नहीं है, मजबूरी में देना पड़ा उनका उदाहरण।
2. भाई अमित जी और बहन दिव्या जी ने हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम की कुरबानी की मिसाल दी और कहा कि जो पशुबलि करते हैं वे अधम पापी और राक्षस हैं, वे अमन का पैग़ाम दे ही नहीं सकते, वे इंसान ही नहीं हैं। इसी तरह की बहुत सी बेहूदा बातें कीं और नहीं जानते थे कि जिस मांसाहार को वे अधर्म बता रहे हैं। वही मांसाहार उन प्राचीन आर्यों का मुख्य भोजन था जिन्हें धर्म की स्थापना के लिए अवतरित हुआ बताते हैं। इसी प्रसंग में प्रमाण के तौर पर मुझे श्री रामचन्द्र जी व अन्य हिन्दू महापुरूषों का आचरण सामने लाना पड़ा।
मांस मुसलमानों का पवित्र धार्मिक भोजन है
3. आपने मुझे तो टोक दिया लेकिन आपने अमित जी और दिव्या बहन जी व अन्य ब्लागर्स को एक बार भी न कहा कि आप मुस्लिम महापुरूषों का उदाहरण न दें, ऐसा क्यों ? जवाब दीजिए। यह तो ठीक नहीं है कि ब्लागर्स इस्लाम के बारे में भ्रामक जानकारी फैलाते रहें और आप उन्हें बिल्कुल भी न टोकें और जब मैं उनके भ्रम का निवारण करूं तो आप मुझे समझाने के बहाने चुप करने चले आएं ?
4. आप मुझे रोक रहे हैं और खुद मांस की तुलना मदिरा से कर रहे हैं ?
जबकि इस्लाम में मांस एक पवित्र भोजन है और मदिरा व अन्य किसी भी प्रकार का नशा पाप और वर्जित है। खुद मुसलमानों के भोजन की तुलना एक गंदी और नापाक चीज़ से करें और फिर यह उम्मीद भी रखें कि सामने वाला ख़ामोश रहे, यह तरीक़ा ग़लत है।
5. आप देख लीजिए, मेरे जितने भी लेख हैं वे सभी जवाबी हैं। जब भी कोई आदमी इस्लाम के बारे में ग़लत बात फैलाकर लोगों में अज्ञान और नफ़रत के बीज बोएगा तो सही बात बताना मेरा फ़र्ज़ है क्योंकि मैं सही बात जानता हूं। अगर किसी को मेरी बात ग़लत लगती है तो वह सिद्ध कर दे। मैं उसे वापस ले लूंगा, अपनी ही बात के लिए हठ और आग्रह बिल्कुल नहीं करूंगा लेकिन सत्य के लिए आग्रह ज़रूर करूंगा। मैं सत्याग्रह ज़रूर करूंगा हालांकि मैं गांधीवादी नहीं हूं।
शांति के लिए मेरी तरफ़ से एक बेहतरीन आफ़र
मैंने पहले भी कहा था और आज फिर कहता हूं कि मेरे ब्लाग की जिस पोस्ट पर ऐतराज़ हो उसे डिलीट करवा दीजिए लेकिन पहले आप लोग भी इस्लाम के खि़लाफ़ दुर्भावनापूर्ण पोस्ट डिलीट कर दें।
अब आप बताइये कि मेरी कौन सी बात ग़लत है और आपकी कौन सी बात सही है ?
क्यों है न काम की बातें ?
अब नवाज़ देवबंदी साहब का एक शेर अर्ज़ है-
तेरे पैमाने में कुछ है और मेरे पैमाने में कुछ
देख साक़ी हो न जाए तेरे मैख़ाने में कुछ
बहुत खूब
Dead body of FIRON - Sign of Allah
http://www.youtube.com/watch?v=0hWGjmbAzPs
विडियो
बकरी पाती खात है , ताके काढी खाल
जो जन बकरी खात है , ताको कोन हवाल
एक महाशय आये और बोले बहुत सही कहा है कबीर दास जी ने. अहिंसा ही हमार परम धर्म होना चाहिए और तभी अमन का सन्देश भी पूर्णता लेकर जन-जन तक पहुंचेगा।
वही महाशय किसी दूसरी जगह पे गए और , बोले: स्वाद के लिए मांस खाना है तो खाइए. मांसाहार करना व्यक्ति का निजी निर्णय है। ये तो उसके स्वाद से related है कोई क्या खाता पिता है ये उसकी पूर्ण स्वतंत्रता है ।पशुओं में animal प्रोटीन है , यह भी ठीक है। जिसको जो रुचिकर लगे उसे शौक से खाए। इस पर प्रश्न चिन्ह नहीं है।
मैंने सोंच रहा था अहिंसा किसी कहते हैं?
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एक महाशय ने पुछा : धर्म के नाम पर आज हमारे हिन्दू भाई बहन तो नर बलि तक दे रहे हैं। मासूम बच्चों कि जान ले रहे और देवी-देवताओं को प्रसन्न करने में ही अपने जीवन कि सफलता समझ रहे । क्या आप धर्म [हिन्दू, मुस्लिम दोनों ] से जुडी, ऐसी आस्थाओं को उचित ठहरायेंगी जो पशुओं तथा बच्चों कि बलि दे रहा है ?
मैं सोंचने लगा क्या पशु और इंसान का बच्चा इनकी नजर मैं एक सामान है? यदि नहीं तो यह ऐसे बेवकूफी के सवाल का मतलब?
नर बलि की तुलना पशु बलि से करने वाले यही महाशय बकरा काट से स्वाद के लिए खाने की हिमायती हैं.
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हैं ना एक मज़ाक?
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ऐसी बातों से नफरत फैलेगी या मुहब्बत?
एक साहिबा हैं, खुद को डॉ कहा करती हैं. उनका कहना है जो बकरा खाता है, वोह अमन का पैग़ाम नहीं दे सकता. कौन हैं यह लोग जो शांति नहीं चाहते? और तरह तरह से बेवकूफ बना रहे हैं लोगों को धर्म के नाम पे
@ जनाब मासूम साहब ये confused people हैं और समझते हैं कि दुनिया में ज्ञान सिर्फ इनके पास है और संसार में अगर कोई इंसान है तो बस केवल यही हैं . अमन शांति कि बात सिर्फ यही कर सकते हैं .
बात अस्ल में यह है कि
कुछ लोग हैं जो न तो अपने धर्म की जानकारी रखते हैं और न ही वे उसके पालन में ही दिलचस्पी लेते हैं लेकिन अपनी राजनीतिक कुंठाओं के चलते मुसलमानों के दीन ईमान और रिवाजों का मजाक उड़ाते रहते हैं ।
जो मुसलमान रजनीश जी की तरह चुप रहे उसे उदारवादी कहा जाता है और अगर कोई ग़ैरतमंद मोमिन जवाब देता है तो कहते हैं कि यह कट्टर है दुर्भावना फैला रहा है । ये खुले आम कहते रहते हैं कि मांसाहार राक्षसी और तामसिक भोजन है ।
1, क्या यह रवैया दुरुस्त है ?
2, क्या हमारी सेना मांस नहीं खाती ?
3, क्या हमारे वीर सैनिकों को राक्षस कहा जाना उचित है ?
4, क्या सिक्ख गुरु बलि नहीं देते थे या मांसाहार नहीं करते थे ?
5, ये थोड़े से शाकाहारी पूरी दुनिया को उनके भोजन के कारण राक्षस ठहराकर क्या लक्ष्य पाना चाहते हैं ?
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