Thursday, January 19, 2012

'Love Jihad' उर्फ़ नाच न जाने आंगन टेढ़ा

डा. दिव्या श्रीवास्तव उर्फ़ ZEAL: लव-जेहाद के जवाब में

लव जिहाद का चर्चा फिर उठाया जा रहा है और इसके नाम पर इस्लाम और मुसलमान को बदनाम किया जा रहा है.
लड़के लड़कियां साथ साथ पढ़ रहे हैं, काम काज भी साथ साथ ही कर रहे हैं. इन्हें अपने मां बाप की इज़्ज़त का भी ख़याल होता है। ऐसे में वे अपनी शादियां अपने मां बाप की पसंद से ही करते हैं या फिर अपनी पसंद उन्हें बताकर उनकी रज़ामंदी ले लेते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो उनसे ऊपर होकर ख़ुद अपनी शादी कर लेते हैं या फिर लिव इन रिलेशन में रहने लगते हैं।
क्या दूसरे समुदाय के लड़के और लड़कियों को ‘लिव इन रिलेशन‘ में रहने की प्रेरणा भी मुसलमान युवक ही देते हैं ?
इसमें इस्लाम और जिहाद कहां से आ गया ?
इस्लाम तो यह कहता है कि अजनबी औरत मर्द तन्हाई में आपस में इकठ्ठे ही न हों कि जज़्बात में उबाल आए और क़दम बहक जाएं.

अन्तर्जातीय और अंतरधार्मिक विवाह का प्रचलन आज आम है. किसी की भी लड़की किसी के साथ भी जा सकती है और जा रही है. जिस समाज में लड़की को पेट में ही मारा जा रहा है और बड़े होने पर उसके बाप से मोटा दहेज मांगा जाता है. उस समाज में लड़की के सामने क्या समस्याएं हैं, इन्हें तो उस समाज की लड़कियां ही जान सकती हैं.
ऐसी लड़कियों को पढ़ाया लिखाया इसलिए भी जाता है कि वे कमा सकें और ऐसी कमाऊ लड़की को कम दहेज के साथ भी क़ुबूल कर लिया जाता है सिर्फ़ इसलिए कि वह सोने का अंडा देने वाली मुर्ग़ी है.
उसके शरीर से लुत्फ़ उठाओ, उससे अपनी नस्ल चलाओ और फिर उसकी आमदनी से ही उसके बच्चे पालो और अपना जीवन स्तर भी ऊंचा उठा लो,
यह सोच आज आम हो चली है.
औरत भी अक्ल रखती है और अपना भला बुरा वह अच्छी तरह समझ सकती है.
वह देख भी रही है और सोच भी रही है.
इसी का नतीजा है कि वह एक ऐसे समाज का हिस्सा बनना चाहती है जहां लड़कियों को पेट में नहीं मारा जाता और न ही घरों से बाहर हवस के मारों के सामने धकेल दिया जाता है माल कमाने के लिए.
वह एक ऐसे समाज का हिस्सा बनना पसंद करती है जहां विधवा को भी दोबारा विवाह करने का अवसर ऐसे ही हासिल है जैसे कि किसी कुंवारी लड़की को.
जहां उसे मासिक धर्म के दिनों में भी सम्मान के साथ उसी बिस्तर पर सुलाया जाता है जिस पर कि वह पहले सोती थी और उसे बादस्तूर उसी रसोई में खाना पकाने दिया जाता है जिसमें कि वह रोज़ पकाती है.
इसी तरह की सहूलत और इज़्ज़त पाने के लिए आज दूसरे समुदायों की कन्याएं मुस्लिम युवकों से शादी कर रही हैं। दरअसल वे अपनी समस्याएं हल कर रही हैं और मुसलमानों की समस्याएं बढ़ा रही हैं.
जो औरत को ज़िंदा जलाने का रिकॉर्ड रखते हैं वे ही उनकी इन समस्याओं के जनक हैं. वे इनके पीछे अपनी भूमिका स्वीकारने के बजाय इल्ज़ाम मुस्लिम समुदाय पर ही लगा रहे हैं कि वे ‘लव जिहाद‘ कर रहे हैं. ऐसा वे केवल अपनी तरफ़ से ध्यान हटाने के लिए कर रहे हैं. इस देश में मुसलमान कोई लव जिहाद नहीं कर रहे हैं लेकिन ऐसा बेबुनियाद इल्ज़ाम लगाकर वे फ़साद ज़रूर कर रहे हैं। इसी के साथ वे अपने समुदाय की लड़कियों की बुद्धि पर भी प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं कि पढ़ाई लिखाई के बाद भी उनमें विवेक जाग्रत नहीं होता.
हरेक लड़का लड़की अपने साधनों को देखते हुए अपनी ज़रूरत और अपना शौक़ पूरा कर रहा है। जिसे जो भा रहा है, उसे वह अपना रहा है.
इसे लव जिहाद का नाम देना दूसरों को भरमाना है.
लव जिहाद नाम की कोई चीज़ हक़ीक़त में होती तो क्या हम न करते ?
लेकिन हमारा निकाह भी परंपरागत मुस्लिम घराने की लड़की से हुआ और हमारे दोस्तों का भी. हमारे बाप, दादा, चाचा, मामा, नाना और हमारे पीर मौलाना सबका निकाह परंपरागत घराने की मुस्लिम लड़कियों से ही हुआ और मुस्लिम समाज का आम रिवाज यही है.
‘लव जिहाद‘ के इल्ज़ाम को बेबुनियाद साबित करने के लिए हमारी ज़िंदगी ही काफ़ी है. जो लोग यह इल्ज़ाम लगाते हैं कि मुसलमान चार चार शादियां करते हैं. वे भी देख सकते हैं कि हमारे न तो 4 बीवियां हैं, न 3 और न ही 2 और यही हाल हमारे दोस्तों का है. हमारा ही नहीं बल्कि यही हाल इस्लाम के आलिमों का है. हिंदुस्तान भर के छोटे-बड़े सभी आलिमों को देख लीजिए और आप बताईये कि किसके 4 बीवियां हैं और किसके 25 बच्चे हैं ?
झूठे इल्ज़ाम लगाना सिर्फ़ नफ़रत फैलाना है और आज राष्ट्रवाद का अर्थ बस यही नफ़रत फैलाना भर रह गया है. इसका असर उल्टा हो रहा है. इस्लाम के बारे में जितना भ्रम फैलाया जा रहा है, लोग उसके बारे में जानने के लिए उतने ही ज़्यादा उत्सुक हो रहे हैं और जब वे सच जानते हैं तो उनकी सारी ग़लतफ़हमियां पल भर में काफ़ूर हो जाती हैं.

गृहस्थ जीवन में ख़राबी कैसे आई ?
अपने समाज से युवक युवतियों का पलायन रोकने का उपाय मात्र यह है कि जो फ़ेसिलिटी इस्लाम उन्हें देता है, उसे अपने घरों में ही उन्हें उपलब्ध करा दिया जाए.
यह देखकर एक सुखद अहसास होता है कि अब हिंदू समाज में सती प्रथा लगभग ख़त्म हो चुकी है. विधवाओं के विवाह भी होने लगे हैं और मासिक धर्म के दिनों में भी अब हिंदू औरतों को घर गृहस्थी में काम करने का अधिकार मुसलमान औरतों की तरह ही दिया जाने लगा है. लेकिन शायद अभी कुछ और परिवर्तन की आवश्यकता है.
सन्यासियों को गृहस्थों ने अपना गुरू बनाया तो उन्होंने धर्म यह बताया कि पति अपनी पत्नी के साथ संभोग केवल तब करे जबकि संतान प्राप्ति की इच्छा हो. इसी के साथ कुछ सन्यासी गुरूओं ने गृहस्थ हिंदुओं को मुर्ग़ा, मछली, प्याज़ और लहसुन जैसी चीज़ों को भी खाने से रोक दिया जो कि वीर्यवर्द्धक और स्तंभक हैं. सन्यासियों को गृहस्थ धर्म का पालन करना नहीं होता. सो उन्हें इरेक्शन और रूकावट की भी ज़रूरत नहीं होती बल्कि उनकी ज़रूरत तो इनसे मुक्ति होती है. इसीलिए उन्हें ऐसे खान पान की ज़रूरत होती है जिससे उनके जज़्बात सर्द पड़ जाएं. सन्यासी की ज़रूरत अलग है और गृहस्थ की ज़रूरत अलग है लेकिन गृहस्थों को भी सन्यासियों ने वही खान पान बताया जो कि ख़ुद खाते थे. नतीजा यह हुआ कि घर घर में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और रूकावट की कमी जैसी समस्याएं खड़ी हो गईं. इस तरह की बातों ने भी दाम्पत्य जीवन को आनंद से वंचित किया है. नारी के कोमल मन को न जानने के कारण ही इस तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं। यह अच्छी बात है कि अब इन पाबंदियों को भी दरकिनार किया जा रहा है. कंडोम और मांस की बढ़ती हुई बिक्री यही बताती है.
ईश्वर इस तरह की पाबंदियां लगाता ही नहीं है, जिन्हें लोग निभा न सकें.
आज कम्पटीशन का ज़माना है और लोग बेहतर का चुनाव करना चाहते हैं.
पहले इस्तेमाल करो और फिर विश्वास करो का नारा भी आज सबके कानों में पड़ रहा है.
पति अगर मुसलमान है तो संतान की इच्छा के बिना भी पत्नी के साथ अंतरंग समय बिता सकता है और अपने आहार की वजह से उसे चरम सुख के शीर्ष पर भी पहुंचा सकता है.

अपने प्रेम को पवित्र कैसे बनाएं ?
ख़त्ना का लाभ पति के साथ पत्नी को भी मिलता है. लिंग के अगले हिस्से को ढकने वाली खाल बचपन मे हटा दी जाती है ताकि वहां गंदगी के कण सड़कर बीमारियां न फैलाएं. जो औरतें बिना ख़त्ना वाले मर्दों के साथ रहती बसती हैं, उनके अंदर यही सड़न दाखि़ल हो जाती है और गर्भाशय कैंसर जैसी बहुत सी बीमारियां पैदा कर देती है. जिन औरतों का गर्भाशय निकाला जाता है, उनके पतियों के बारे में जाना जाए तो वे अधिकतर बिना ख़त्ना वाले होंगे. इस्लाम एक रहमत है लेकिन लोग इससे चिढ़कर अपना जीवन दुनिया में भी नर्क बना रहे हैं.
चरम सुख के शीर्ष पर औरत का प्राकृतिक अधिकार है और उसे यह उपलब्ध कराना उसके पति की नैतिक और धार्मिक ज़िम्मेदारी है.
प्रेम को पवित्र होना चाहिए और प्रेम त्याग भी चाहता है. ख़त्ना के ज़रिये फ़ालतू की खाल त्याग दी जाती है और इस त्याग के साथ ही प्रेम मार्ग पवित्र हो जाता है.
गर्भनाल भी काटी जाती है और बढ़े हुए बाल और नाख़ून भी शुद्धि और पवित्रता के लिए ही काटे जाते हैं. लिहाज़ा ख़त्ना पर ऐतराज़ केवल अज्ञानता है.
मुसलमान पति से मिलने वाले लाभ को हर घर में आम कर दिया जाए तो हर घर आनंद से भर जाएगा और नारी के मन पर किसी भौतिक अभाव का भी प्रभाव न पड़ेगा.
मुसलमानों को इल्ज़ाम न दो बल्कि जो वे देते हैं आप भी वही आनंद उपलब्ध कराइये.

एक दूसरे से अच्छी बातें सीखिए.
अच्छी बातें एक दूसरे से सीखने में कोई हरज नहीं है,
मुसलमान योग शिविर में जाते हैं और आसन सीखते हैं,
आप उनसे दाम्पत्य जीवन के आनंद का रहस्य जान लीजिए,
हक़ीक़त यह है कि पवित्र प्रेम में जो मज़ा आता है उसे अल्फ़ाज़ में बयान करना मुमकिन नहीं है.
ज़रा सोचिए कि आज मुसलमान को संदिग्ध बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. शिक्षा और आय में उसे पीछे धकेला ही जा चुका है. इसके बावजूद भी जब एक लड़की अपना दिल हारना चाहती है तो वह एक मुसलमान युवक को ही क्यों चुनती है ?
जबकि आधुनिक साधन लेकर ख़ुद उसके समुदाय के युवक भी उसके आस पास ही घूम रहे हैं.

धर्म-मतों की दूरियां अब ख़त्म होनी चाहिएं. जो बेहतर हो उसे सब करें और जो ग़लत हो उसे कोई भी न करे और नफ़रत फैलाने की बात तो कोई भी न करे. सब आपस में प्यार करें. बुराई को मिटाना सबसे बड़ा जिहाद है.
जिहाद करना ही है तो सब मिलकर ऐसी बुराईयों के खि़लाफ़ जिहाद करें जिनके चलते बहुत सी लड़कियां और बहुत सी विधवाएं आज भी निकाह और विवाह से रह जाती हैं।
हम सब मिलकर ऐसी बुराईयों के खि़लाफ़ मिलकर संघर्ष करें.
आनंद बांटें और आनंद पाएं.
पवित्र प्रेम ही सारी समस्याओं का एकमात्र हल है.

5 comments:

Rajesh Kumari said...

हिंदू और मुस्लिम की दूरियां अब ख़त्म होनी चाहिएं. जो बेहतर हो उसे सब करें और जो ग़लत हो उसे कोई भी न करे और नफ़रत फैलाने की बात तो कोई भी न करे.
सब आपस में प्यार करें.
जिहाद करना ही है तो सब मिलकर ऐसी बुराईयों के खि़लाफ़ जिहाद करें जिनके चलते बहुत सी लड़कियां और बहुत सी विधवाएं आज भी निकाह और विवाह से रह जाती हैं।
हिंदू और मुसलमान दोनों ही ऐसी बुराईयों के खि़लाफ़ मिलकर संघर्ष करें.
समस्याओं का समाधान यही है.
very nice thoughts i agree with u.

Zafar said...

'Love Jihad'
क्या दूसरे समुदाय के लड़के और लड़कियों को ‘लिव इन रिलेशन‘ में रहने की प्रेरणा भी मुसलमान युवक ही देते हैं ?
इसमें इस्लाम और जिहाद कहां से आ गया ?
इस्लाम तो यह कहता है कि अजनबी औरत मर्द तन्हाई में आपस में इकठ्ठे ही न हों कि जज़्बात में उबाल आए और क़दम बहक जाएं.

Thanks for your nice post on the subject.

Iqbal Zafar.

Atul Shrivastava said...

दु‍निया में और भी चीजें हैं जिसके खिलाफ जेहाद की जा सकती है.... लव यानि प्‍यार को तो इससे दूर रखा जाए.....
बढिया लेखन।

Ayaz ahmad said...

सही कहा आपने .

राजन said...

मुसलमानों पर यदि कोई गलत इल्जाम लगा रहा हैं तो आपको विरोध करने का हक हैं.आपको विरोध करना चाहिये और आपने किया भी हैं.हालाँकि लव जेहाद वाली बात पूरी तरह गलत भी नहीं हैं.और खुद कुछ मुस्लिम भी इसका विरोध करते हैं क्योंकि ऐसे लोग इस तरह इस्लाम को ही बदनाम कर रहे हैं.केवल धर्म परिवर्तन के लिए प्यार और शादी तो धोखा ही हैं.हाँ दिव्या जी ने जैसे इसे आम मुसलमानों के साथ जोडा है,वो बिल्कुल गलत हैं.

लेकिन मेरी आपत्ति आपके द्वारा इशारो इशारों में हिंदू महिलाओं को पलायनवादी और कायर बताने से हैं.क्या कहना चाहते हैं आप कि हिंदू महिलाएँ संघर्ष करने से डरती हैं?हिंदू महिलाएँ अपने धर्म में व्याप्त कुरीतियों से अपने दम पर लड रही हैं और उन्होने बहुत हद तक अपने समाज को बदला भी हैं.उन्हें इसके लिए इस्लाम की शरण में जाने की जरूरत नहीं हैं.और न ही मुसलमानों या किसीके रहमोकरम की.समझ में नहीं आता हम लोग महिलाओं को अपने झगडों के बीच में क्यों लाते हैं वो भी इतने भद्दे तरीके से.कभी मुस्लिम महिलाओं की तकलीफों को जानने की कोशिश की हैं आपने?उफ्फ्..आप मुझे भी वही करने पर मजबूर कर रहे हैं.