डा. आशुतोष शुक्ला जी पूछ रहे हैं कि ‘ पाक में घुसकर ओसामा को मारने के बाद भी लगता है कि अमेरिका की आँखों से अभी भी पाक का चश्मा उतरा नहीं है क्योंकि वहां के रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी आज भी पाक को दी जाने वाली सहायता में किसी भी तरह की कटौती के ख़िलाफ़ फिर से बोले हैं।‘
भाई अमेरिका की आंखों से कोई चश्मा तो तब उतरेगा जब कोई चश्मा उन पर चढ़ा हो। पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है वह अमेरिकी डालर की मदद से और उसकी योजना के अनुसार ही हो रहा है। अमेरिका दरअस्ल पाकिस्तान की मदद नहीं कर रहा है बल्कि वह अपनी योजनाओं को पूरा कर रहा है।
सऊदी अरब या पाकिस्तान, इनमें से अमेरिका किसी का भी दोस्त नहीं है। वह केवल अपना दोस्त है और अपना मतलब भी अपने नागरिकों की बहुसंख्या का नहीं बल्कि अमेरिकी पूंजीपति कंपनियों का, अमेरिका इन्हीं कंपनियों का हित साधने के लिए पूरे विश्व में धमाचैकड़ी मचाए हुए है और किसी भी कमज़ोर देश को उसके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं करने देना चाहता।
अपनी कंपनियों के हितों के लिए जो तबाही वह दुनिया में मचाए हुए है उसका विरोध विश्व बिरादरी के साथ ख़ुद उसके देश की जनता भी कर रही है लेकिन वह सुनता ही नहीं है। अमेरिका पर शासन करने वाले पब्लिक के वोटों से चुने जाते हैं लेकिन वे पूंजीपती कंपनियों के हितों के लिए ही अपनी अंतर्राष्ट्रीय नीतियां बनाते हैं और ‘शांति और न्याय‘ के नाम पर मुल्कों पर बम बरसाते हैं।
अमेरिका ने आज तक जिस देश को भी अपना दोस्त बनाया, उसे या तो ग़ुलाम बनाया या अगर उसने आज़ादी की कोशिश की तो उसे तबाह कर डाला। पाकिस्तान आज तबाह हो रहा है तो यह अमेरिका की दोस्ती का अंजाम ही है।
अमेरिका भी यह बात जानता है कि धीरे-धीरे पाकिस्तान ख़ुद ही तबाह हो जाएगा लेकिन तब तक उसे अपने हित भी साधने हैं।
हालांकि सोवियत संघ का विखंडन होने के बाद हमारे नेता भी अमेरिका के दोस्त बन गए हैं और बार-बार कह रहे हैं कि ‘अजी, आप पाकिस्तान को छोड़िए, हमें मदद दीजिए और हमारे अड्डों को इस्तेमाल कीजिए‘
अमेरिका की दोस्ती में तबाह होते हुए पाकिस्तान को देखकर भी यह कहा जा रहा है ?
हैरत है!
मामूली सी बातें लोग समझते नहीं या फिर पाकिस्तान की नफ़रत में समझना नहीं चाहते। अमेरिका और इस्राईल की दोस्ती में आज तक किसी एशियाई देश को कुछ तरक्की नसीब हुई हो तो वह हमें बताए ?
चश्मा अमेरिका की आंखों पर नहीं है बल्कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान के लोगों और उनके नेताओं की आंखों पर है, नफ़रत का।
इसी नफ़रत के कारण आज विदेशी ताक़तें ठीक उसी तरह वृहत्तर भारत को तबाह कर रही हैं जैसे कि पूर्व में बार-बार कर चुकी हैं।
जो लोग भारतीय राष्ट्रवाद का दंभ भरते हैं और पाखंड रचते हैं, वे भी आज वृहत्तर भारत और अखंड भारत की हितचिंता से कोई सरोकार नहीं रखते और विदेशियों का साथ देते आसानी से देखे जा सकते हैं।
दुःखद है यह सब होते देखना।