हिंदू भाई ब्लॉग लिखते है और जिस मत में वे आस्था रखते हैं उसके बारे में वे अक्सर लिखते रहते हैं और आप देखेंगे कि उनकी रीति-नीतियों में कोई मुसलमान वहां कमियां निकालता हुआ नहीं मिलेगा।
इसके विपरीत अगर मुसलमान इस्लाम में आस्था रखता है और वह उसके बारे में लिख रहा है तो आप देखेंगे कि कुछ उत्साही युवा जो हिंदू समझे जाते हैं, अक्सर कमियां निकालने आ जाते हैं।
यह क्या है ?
क्या हिंदू युवा ज़्यादा प्रबुद्ध हैं ?
क्या उनके मुक़ाबले मुसलमान सुप्त हैं ?
क्या हिंदू भाई सत्य के लिए ज़्यादा जिज्ञासा रखते हैं ?
क्या मुसलमान सत्य के प्रति लापरवाह हैं ?
या इसके बात इसके विपरीत है ?
क्या मुसलमान निश्चिंत हैं कि कोई अपने मत का कितना ही प्रचार कर ले, वह किसी मुसलमान को आकर्षित करने के लिए काफ़ी नहीं है ?
क्या हिंदू भाईयों को यह चिंता सताती है कि अगर इस्लाम की छवि पर लगातार कीचड़ न उछाला गया तो अपने पुरातन संस्कारों से दूर भागता हुआ हमारा समाज कहीं इस्लाम की ओर ही आकर्षित न हो जाय ?
हो सकता है कि इनमें से कुछ कारण हों या ये सब कारण हों या इनमें से कोई भी कारण न हो बल्कि कारण कुछ और ही हो लेकिन मुस्लिम ब्लॉगर्स जब भी इस्लाम पर कोई पोस्ट लिखते हैं तो दनादन सवालों की बौछार सी हो जाती है और हम यही सोचते रह जाते हैं कि आखि़र ऐसा हो क्यों रहा है ?
देखिये :
इसके विपरीत अगर मुसलमान इस्लाम में आस्था रखता है और वह उसके बारे में लिख रहा है तो आप देखेंगे कि कुछ उत्साही युवा जो हिंदू समझे जाते हैं, अक्सर कमियां निकालने आ जाते हैं।
यह क्या है ?
क्या हिंदू युवा ज़्यादा प्रबुद्ध हैं ?
क्या उनके मुक़ाबले मुसलमान सुप्त हैं ?
क्या हिंदू भाई सत्य के लिए ज़्यादा जिज्ञासा रखते हैं ?
क्या मुसलमान सत्य के प्रति लापरवाह हैं ?
या इसके बात इसके विपरीत है ?
क्या मुसलमान निश्चिंत हैं कि कोई अपने मत का कितना ही प्रचार कर ले, वह किसी मुसलमान को आकर्षित करने के लिए काफ़ी नहीं है ?
क्या हिंदू भाईयों को यह चिंता सताती है कि अगर इस्लाम की छवि पर लगातार कीचड़ न उछाला गया तो अपने पुरातन संस्कारों से दूर भागता हुआ हमारा समाज कहीं इस्लाम की ओर ही आकर्षित न हो जाय ?
हो सकता है कि इनमें से कुछ कारण हों या ये सब कारण हों या इनमें से कोई भी कारण न हो बल्कि कारण कुछ और ही हो लेकिन मुस्लिम ब्लॉगर्स जब भी इस्लाम पर कोई पोस्ट लिखते हैं तो दनादन सवालों की बौछार सी हो जाती है और हम यही सोचते रह जाते हैं कि आखि़र ऐसा हो क्यों रहा है ?
देखिये :
6 comments:
यह व्यक्तिगत नासमझी है भाई,
और कुछ नहीं ||
सुधार सतत चलने वाली प्रक्रिया है
और sab jante हैं ki इस्लाम बहुत पुराना नहीं ||
कमियां हर जगह हैं --
एक उंगली के विपरीत अन्य उंगलियाँ उठती हैं --
नासमझों को क्षमा करें --
सभी धर्म श्रेष्ठ हैं --
यदि दोष दिखता है तो वह दोष
आचरण-कर्त्ता में है --
किसी धर्म में नहीं |
यह मेरी पहली टिप्पणी है जो अतुकांत है --
पर इसका तुक और केवल तुक ही है--बेतुक-बेतुकी नहीं
क्या ख्याल है भाईजान का ??
इस्लाम कितना पुराना है ?
आदरणीय रविकर जी ,
ईश्वर 1400 साल से नहीं है बल्कि सदा से है। उसने किसी समय विशेष में सृष्टि की रचना की और फिर इसी सिलसिले में मनुष्य को उत्पन्न किया। पहले जोड़े को संस्कृत साहित्य में मनु और शतरूपा कहा गया है जबकि हिब्रू और अरबी में इस जोड़े को आदम और हव्वा कहा गया है। ईश्वर ने इस जोड़े को जीवन भी दिया और भले-बुरे की तमीज़ भी जो कि धर्म का मूल है। इसी धर्म को संस्कृत में सनातन धर्म कहा गया है और अरबी में इसी धर्म को इस्लाम कहा गया है।
पैग़म्बर आदम अलैहिस्सलाम अर्थात पहले मनु के बाद समय समय पर बहुत से ऋषि-पैग़म्बर हुए हैं। इसी क्रम में जल प्लावन वाले मनु महर्षि भी हुए हैं जिन्हें बाइबिल और क़ुरआन में नूह कहा गया है। इस्लामी मान्यता के अनुसार लगभग 1 लाख चौबीस हजार हुए हैं। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. का नाम इस क्रम में सबसे अंत में आता है।
अब आप तय कर सकते हैं कि इस्लाम कितना पुराना है।
हमने अपनी पोस्ट के अंत में एक लिंक भी दिया है ‘इस्लाम में नारी‘
2. इस पोस्ट में या इस पूरे ब्लॉग में किसी की तरफ़ भी उंगली नहीं उठाई गई है तब क्यों इस्लाम की तरफ़ उंगलियां उठाई जा रही हैं ?
3. कमी की बात कभी धर्म नहीं होती इसीलिए धर्म में कभी कमी नहीं होती और मानव समुदाय सदा से ही उत्थान और पतन का शिकार रहा है, यह सही है।
आपका शुक्रिया !
धन्य-धन्य यह मंच है, धन्य टिप्पणीकार |
सुन्दर प्रस्तुति आप की, चर्चा में इस बार |
सोमवार चर्चा-मंच
http://charchamanch.blogspot.com/
जी नई जानकारी प्राप्त हुई शुक्रिया ||
आप इस पोस्ट पर टिप्पणी करने वाले को धन्य बता रहे हैं और दरअसल आपके अलावा यहां टिप्पणी करने वाला दूसरा बस मैं ही हूं।
शुक्रिया !
:)
भाईजान !
दरअसल किसी भी मंच के टिप्पणीकारों के लिए यह दोहा है |
यह निमंत्रण है कल के चर्चा - मंच का ||
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