Monday, January 17, 2011

...लेकिन इतना माल आया कहां से ? Pure gold does not fear the flame

आ बैल मुझे मार
विधान सभा चुनाव क़रीब हैं। हमारी मुख्यमंत्री बहन सुश्री मायावती जी एक भ्रष्टाचार और भयमुक्त समाज देने के लिए पूरी तरह कमर कस चुकी हैं। अपने वादे को पूरा करने के लिए वे कई ऐसे विधायकों तक को जेल भेज चुकी हैं जिन्होंने अपने बाहुबल का और अपने धन का इस्तेमाल लोगों को धमकाने, सताने या उन पर मुक़द्दमा क़ायम कराने में किया है। ‘आदर्श घोटाला‘ बेशक दूसरे प्रदेश में हुआ है लेकिन यह भी सच है कि किसी भी प्रदेश का कोई भी नगर आज घोटालों से बचा हुआ नहीं है। मायावती जी का संबंध बादलपुर से है जो कि नोएडा के बहुत क़रीब है। नोएडा भी मुख्यमंत्री साहिबा की एक महत्वाकांक्षी योजना का अंग है। इसमें वे किसी भी प्रकार की अनियमितता देखना नहीं चाहती हैं।
आज मंहगाई अपने चरम पर है। हरेक छोटा-बड़ा सरकारी कर्मचारी जो ईमानदार है और ‘केवल वेतन‘ पर ही जीवित है। उसके लिए अपने ख़र्च के लिए अपना वेतन भी कम पड़ रहा है। यह एक सच है जिसे सब जानते हैं। ऐसे कठिन समय में भी जनाब सतीश सक्सेना जी लोगों को बतौर ईनाम कई लाख रूपया बांटने के लिए तत्पर हैं। वे बांट सकते हैं क्योंकि उनके पल्ले माल है। लेकिन इतना माल आया कहां से ?
हम तो ख़ैर यह नहीं पूछेंगे लेकिन ‘विजिलेंस‘ वाले ज़रूर पूछेंगे। मोबाइल के एसएमएस तक पर सरकार की कड़ी नज़र है। हरेक ईमेल की छानबीन की जाती है। ख़ुफ़िया विभाग की कई शाखाओं की नज़र इंटरनेट यूज़र्स पर हर दम रहती है। मामूली बातों को वे जानबूझकर टालते हैं लेकिन इससे कोई भी आदमी यह न समझे कि उन्हें देखने वाला कोई नहीं है। ऐसा सोचना बेबक़ूफ़ी होगा और घातक भी। अगर किसी की नज़र जनाब सतीश सक्सेना जी के अभियान पर पड़ गई और उनका ध्यान इस पर भी चला गया या फिर दिला दिया गया कि ये जनाब एक सरकारी कर्मचारी भी हैं तो कई तरह की एजेंसियों की पकड़ में आ जाने की संभावना है। हालांकि आम तौर पर सरकारी कर्मचारी अपनी कोठी से लेकर कुतिया तक अपनी पत्नी के नाम से ख़रीदता है ताकि किसी रोज़ अगर उसकी जांच होने लगे तो वह अपना दामन पाक-साफ़ दिखा सके लेकिन जब जांच हुआ करती है तो फिर कोई हीला-हवाला काम नहीं आया करता। इस सूचना के अधिकार ने आम जनता को एक अधिकार ही नहीं बल्कि बेईमान भ्रष्ट लोगों के खि़लाफ़ एक मज़बूत हथियार भी दे दिया है। मा़त्र दस रूपये का पोस्टल आर्डर लगाकर कोई भी आदमी किसी भी सरकारी कर्मचारी का पूरा शजरा जान सकता है और बिना किसी 5 हज़ार रूपये के ही मुक़द्दमा क़ायम हो जाता है क्योंकि तब वादी सरकार हुआ करती है। जनाब दिनेश राय द्विवेदी जी से इस मामले में विधिक सलाह ली जा सकती है।
अगर नोएडा जैसी जगह में कोई भ्रष्टाचार करता हुआ मिलना तो दूर वहां कोई सरकारी कर्मचारी ‘उत्पात‘ मचाता हुआ भी दिख गया तो आदरणीया मायावती जी को भी ख़बर करने की ज़रूरत न पड़ेगी बल्कि जनाब नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी साहब ही उसे एटा-गोंडा की तरफ़ चलता कर देंगे, तुरंत। वहां एक पैसे की आमदनी ‘अलग से‘ होगी नहीं और जो पिछला जमा है, उसमें से भी काम आ जाएगा। संभल वाले जनाब शफ़ीकुर्रहमान बर्क़ साहब भी ऐसे ‘उत्पात‘ को हरगिज़ माफ़ नहीं करेंगे। आपको पता ही होगा कि पूरी बसपा में वे एकमात्र ऐसे नेता हैं जो बहन जी के साथ मीटिंग में कुर्सी पर बैठते हैं।
हमारी सलाह तो यही है कि अगर आपने दौलत किसी तरह कमा भी ली है तो इसे यूं ज़ाहिर करते फिरना ठीक नहीं है। किसी की नज़र लग गई या किसी की सरकारी-ग़ैर सरकारी नज़र पड़ गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। आप जिस इलाक़े में रहते हैं वहां हरेक आदमी नरेन्द्र भाटी की तरह शरीफ़ नहीं है। वहां माफ़िया भी हैं और वे माफियां भी मंगवा देते हैं। वे यारों के यार टाइप के लोग हैं। हिंदू-मुस्लिम का भेद इन लोगों में कभी हुआ नहीं करता।
क्यों ख़ामख्वाह किसी को अपने पीछे लगाते हो ?
चैन से अपने बच्चे ब्याह लीजिए। हमारी सलाह तो यही है। बाक़ी आपकी मर्ज़ी।
इस पोस्ट को मैं आपके लिए और ब्लाग जगत की स्वतंत्रता के लिए हितकर नहीं मानता। जिन लोगों ने याकूब कुरैशी द्वारा ईनाम घोषित करने की निंदा की थी, उन्हें चाहिए कि वे सतीश जी की इस टुच्ची और निहायत घटिया हरकत का भी विरोध करें, अगर वे बुद्विजीवी हैं तो।
उनकी इन्हीं घटिया हरकतों के कारण आज ब्लागजगत में गुट और धड़े बने हुए हैं। ब्लागिंग के बेहतर भविष्य के लिए सतीश जी को एक डॉन की भांति आचरण करने से रोका जाना चाहिए।
मैं कहता हूं सच को सच और इतना दम यहां हरेक में है नहीं।
आपके हित के लिए जो सूचना और चेतावनी मैं आपको दे सकता था, वह आपको दे दी है। यह पोस्ट आने वाले समय में आपके गले का फंदा ही साबित होगी, ऐसी संभावना साफ़ नज़र आ रही है।
आप सदा कुशलता से रहें, ऐसी हम कामना करते हैं।
Please go to this link to know the context-

http://satish-saxena.blogspot.com/2011/01/blog-post_17.html

6 comments:

Aslam Qasmi said...

मौके पर बहुत अच्छा लिखा, आपको भटकाने के लिए पुरानी सभी युक्तियां प्रयोग कर ली गयी इसमें भी नया क्या है

पुराना है तो वही है कि अभी तक मुखालिफों ने आपका गुस्सा नही देखा
आपकी हो रही आलोचना से पता चलता है कि आपकी दिशा ठीक है


लगे रहो
अल्लाह हाफिज

प्रवीण said...

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आदरणीय डॉ० अनवर जमाल साहब,

काफी जटिल इंसान हैं आप... परंतु आपसे तमाम वैचारिक-आध्यात्मिक मतभेदों के बावजूद आप मेरे प्रिय ब्लॉगर हैं... चाहे कुछ दिन देर से पढ़ पाऊँ परंतु आपकी सभी पोस्ट मैंने पढ़ीं हैं... आप अक्सर अपनी सारी क्षमता का प्रयोग व्यक्तियों के ऊपर करने लगते हैं... याद रखिये 'विचार महत्वूर्ण हैं व्यक्ति नहीं'... आप अकसर अपनी ताकत को व्यक्तियों से उलझने में व्यर्थ कर देते हैं... फिर आप को गिला होता है 'मुकाम' न हासिल कर पाने का... अन्तर्मंथन कीजिये... शायद आप मेरी बात समझ पायें...

ब्लॉगवुड में संकलक विहीनता की इस स्थिति में बनाये गये फीडरीडर आधारित छोटे संकलक बनाने वाले ब्लॉगरों ने जिस तरह से आपके ब्लॉगों को नजरअंदाज किया है वह भविष्य के लिये सही संकेत नहीं है... ब्लॉगिंग को आल इन्क्लूसिव होना चाहिये ऐसा मेरा मानना है...

आपकी आज की यह पोस्ट और इसका कारण बनी दूसरी पोस्ट भी... दोनों निराश करतीं हैं... समय की कमी है परंतु शीघ्र ही लिखूंगा इस मुद्दे पर...

आभार!



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Anwar Ahmad said...

एजाज़ के बड़े भाई साहब का इंतेक़ाल हो गया है और हमारी जिस बहन का इंतेक़ाल हो गया है उसके शौहर भी विदेश से मुस्तक़िल तौर पर आ चुके हैं। वे अब यहीं अपना काम जमाने में लगे हुए हैं और मैं उनके साथ मसरूफ़ हो गया हूं। अब मैं न लिख पा रहा हूं और न ही किसी को टिप्पणी दे पा रहा हूं लेकिन मैं आपके लेख पढ़ता ज़रूर हूं। आप न तो अकेले हैं और न ही आपके ब्लाग पर कम टिप्पणियां देखकर कोई यह समझे कि आप अकेले हैं और आपको घेरना आसान है। आप तो एक बड़े सिलसिले की एक कड़ी मात्र हैं। जो आपको झिंझोड़ेगा, वह आपसे जुड़े हुए हरेक आदमी को झिंझोड़ेगा और झिंझोझड़ने वाला आपसे जुड़े हुए तमाम लोगों को नहीं जानता।
ब्लाग जगत में टकराव टालने की कोशिश के तौर पर आपकी यह पोस्ट एक अच्छी कोशिश है। आपकी हरेक अच्छी कोशिश में तन-मन से ही आपके साथ हैं क्योंकि धन की ज़रूरत आपको है नहीं और कभी ज़रूरत भी पड़ी तब भी आप हमसे तो लेने वाले नहीं हैं क्योंकि आप जिससे लेंगे उसे भी मैं जानता हूं।

DR. ANWER JAMAL said...

‘नर हो, न निराश करो मन को‘
प्रिय प्रवीण जी ! ‘गहरी चाल‘ के नाम से एक फ़िल्म आई थी लेकिन आपने उसे नहीं देखा होगा क्योंकि उसे मैंने भी नहीं देखा। जिसे न आपने देखा और न ही मैंने उस पर हम दोनों का बात करना ही बेकार है। ‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना‘ मुखड़े वाला गीत भी बहुत मशहूर है उसे आपने भी सुना होगा क्योंकि उसे मैंने भी सुना है जैसे कि मैंने एक हॉलीवुड वाली फ़िल्म ‘मैट्रिक्स‘ देखी है क्योंकि उसे आपने भी देखा है। ‘मैट्रिक्स‘ क्या है ?
इसे आप भी खूब जानते हैं और मैं भी। जिस चीज़ को हम दोनों ही जानते हैं, उस पर हम बात करके वक्त बेकार बर्बाद क्यों करें ?
आप मेरे ब्लाग पर टिप्पणी नहीं करते, यह मुझे अच्छा लगता है क्योंकि इससे आपका और मेरा दोनों का ही वक्त बचता है। लेकिन आप मेरे लेख पढ़ने का वक्त ज़रूर निकालते हैं, यह जानकर आपके द्वारा टिप्पणी न करने का मलाल बाक़ी नहीं बचता।
‘निराश होना आपके लिए जायज़ नहीं है।‘ क्योंकि एक कवि जी ने कहा है कि ‘नर हो, न निराश करो मन को‘ और आप केवल ‘नर‘ ही नहीं हैं बल्कि ‘महानर‘ हैं, ‘अल्फ़ा मेल‘ हैं। मुझे आपके निराश होने पर ताज्जुब है। जब मैं आपसे आज तक निराश नहीं हुआ। आपकी कोई भी पोस्ट मुझे आज तक निराश नहीं कर पाई तो फिर आप मेरी पोस्ट देखकर क्यों निराश हो गए भाई ?
आप कहते हैं कि मेरे लिखे को बहुत से आदमी कभी नहीं समझ पाएंगे। अब मैं आपसे पूछता हूं कि क्या मेरे इस कमेंट को हरेक आदमी समझ सकता है ?
...लेकिन इसे आप समझ सकते हैं। इसीलिए मैंने यह कमेंट सिर्फ़ आपके लिए लिखा है।
...और एक बात और।
अपनी रज़ाई के बारे में आपने हमारी सलाह कुबूल की या नहीं ?
इसके बारे में तो आपने बताया ही नहीं। हमें तो ऐसा लगता है कि निराश आप पहले से थे और ऐसी निराशा में ही आपने हमारी पोस्ट पढ़ डाली और यह समझे कि मेरी निराशा का कारण पोस्ट है।
ख़ैर, आपका मेरे ब्लाग पर आकर शिकायत करना बताता है कि आप मुझसे निराश नहीं हैं। आदमी जिस दर से सचमुच निराश होता है, उस पर जाकर कभी अपने दोस्त को आवाज़ नहीं लगाता। ‘ईमान-धर्म‘ के पाखंड से मुझे आपकी ‘नास्तिकता‘ हमेशा अच्छी लगती है क्योंकि इसी फ़ॉर्मेट मारने के बाद आदमी को वास्तव में ‘ईमान-धर्म‘ की प्राप्ति होती है।
आप मेरे ब्लाग पर आते रहेंगे तो हल्के-हल्के मेरे रंग में रंगते चले जाएंगे।
ऐसा ही हुआ करता है हिंदी फ़िल्मों में। शुरू में दो आदमी एक दूसरे के जानी दुश्मन होते हैं एक दूसरे की आदत औ विचारों के एक दम खि़लाफ़। किसी मजबूरी में उनका वक्त साथ-साथ गुज़रता है। तब उनके दिल में थोड़ी सी गुंजाइश पैदा हो जाती है। फिर वे एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं और फिर वे एक दूसरे को प्यार करने लगते हैं।
आपने मुझे अपना प्रिय कहा है तो आप खुद देख सकते हैं कि आप कहां तक बदल चुके हैं ?
और अभी यह प्रोसिस जारी है।
इंशा अल्लाह, दोनों एक साथ जन्नत में दाखि़ल होंगे।
भाई मरकर मिट्टी में मिल जाने की कल्पना से बेहतर है एक आशा का दीप जलाये रखना कि हम एक दिन इस धरती से फिर निकाले जाएंगे और तब उस दुनिया में वह अधूरापन न होगा जो कि इस दुनिया में मौजूद है। आशा ईमान से है और नास्तिकता केवल निराशा ही देती है।
प्लीज़ इस पर ग़ौर कीजिएगा।
अच्छे लोग भी अगर अच्छाई को पनाह न देंगे तो अच्छाई इस ज़मीन पर कहां ठिकाना पाएगी ?

DR. ANWER JAMAL said...

Please see
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/11/father-manu-anwer-jamal_25.html

http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/11/father-manu-anwer-jamal_25.html

http://blog-parliament.blogspot.com/2011/01/absolute-peace.html#comments

Lies Destroyer said...

वाकई अनवर जमाल और प्रवीण शाह एक दूसरे के प्रिय ब्लॉगर हैं।
इंशा-अल्लाह काफी विचार मिलते है।
सही भी है,'विचार महत्वूर्ण हैं व्यक्ति नहीं'...

बाकि सतीश सक्सेना बिचारे जल्दी बच्चों की शादी वगेरा से निपट ले तो अच्छा वर्ना……पोस्ट एम लिखा ही है।