आम तौर पर कामाकाजी औरत उस औरत को माना जाता है जो कि मर्दों की तरह घर से बाहर जाकर कुछ काम करती है और कुछ रक़म कमाकर लाती है। जबकि देखा जाय तो घर के काम काज भी काम काज की ही श्रेणी में ही आते हैं। घर के कामों को भी काम काज की श्रेणी में रखा जाए तो कामकाजी औरतों का क्लासिफ़िकेशन यह है -
घरकाजी और बाहरकाजी
दोनों की समस्याएं हैं।
इन दोनों की ही समस्याओं पर विचार विमर्श करना ज़रूरी है।
जो औरतें अपने बाल बच्चों को छोड़ कर बाहर जाकर कमा रही हैं तो वे ऐसा मजबूरी में ही कर रही होंगी। बहरहाल औरत जिस हाल में , जिस मक़ाम पर अपनी योग्यताओं से काम लेकर देश का भला कर रही है, तारीफ़ के लायक़ है।
उन्हें सुरक्षा और सद्प्रेरणा देना हमारी ज़िम्मेदारी है।
जिस समाज की बेहतरी मंज़ूर हो तो उस समाज की औरतों को बेहतर बना दीजिए, ऐसा कहना है डा. अनवर जमाल का।
जो असहमत हो, वह आकर बहस कर ले, वर्ना सब के सब सहमत समझे जाएंगे।
................
यह एक हल्की फुल्की पोस्ट है, जिसे बस यूं ही लिख दिया लेकिन जो भी लिखा है, वह एक हक़ीक़त के तौर पर ही लिखा है।
घरकाजी और बाहरकाजी
दोनों की समस्याएं हैं।
इन दोनों की ही समस्याओं पर विचार विमर्श करना ज़रूरी है।
जो औरतें अपने बाल बच्चों को छोड़ कर बाहर जाकर कमा रही हैं तो वे ऐसा मजबूरी में ही कर रही होंगी। बहरहाल औरत जिस हाल में , जिस मक़ाम पर अपनी योग्यताओं से काम लेकर देश का भला कर रही है, तारीफ़ के लायक़ है।
उन्हें सुरक्षा और सद्प्रेरणा देना हमारी ज़िम्मेदारी है।
जिस समाज की बेहतरी मंज़ूर हो तो उस समाज की औरतों को बेहतर बना दीजिए, ऐसा कहना है डा. अनवर जमाल का।
जो असहमत हो, वह आकर बहस कर ले, वर्ना सब के सब सहमत समझे जाएंगे।
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यह एक हल्की फुल्की पोस्ट है, जिसे बस यूं ही लिख दिया लेकिन जो भी लिखा है, वह एक हक़ीक़त के तौर पर ही लिखा है।
5 comments:
जिस समाज की बेहतरी मंज़ूर हो तो उस समाज की औरतों को बेहतर बना दीजिए, ऐसा कहना है डा. अनवर जमाल का।
जो असहमत हो, वह आकर बहस कर ले, वर्ना सब के सब सहमत समझे जाएंगे।
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यह एक हल्की फुल्की पोस्ट है, जिसे बस यूं ही लिख दिया लेकिन जो भी लिखा है, वह एक हक़ीक़त के तौर पर ही लिखा है।
जो भी आपने लिखा है एक एक शब्द सही है और आपसे बहस कर क्या किसी को फंसना है क्या सही गलत के मसले में.किन्तु आप ये मत समझिएगा की ये मैंने आपकी पूरी पोस्ट के लिए कहे हैं ये शब्द मात्र इन पंक्तियों के लिए हैं जो मैंने यहाँ प्रस्तुत की हैं .
कितनी ही महिलाएं वो योग्यता रखती हैं जो देश के नव निर्माण में ज़रूरी है और इसलिए सभी मजबूरी वश नहीं बल्कि योग्य होने पर भी काम के लिए घर से बाहर आती हैं ऐसे में जो पुरुष घर से बाहर काम के योग्य नहीं हैं उनके लिए भी ये बात कही जा सकती है की वे आदमी होने की मजबूरी के चलते बाहर काम को विवश हैं उन्हें ऐसे में घर संभालना चाहिए.
न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार
क्या यह जानने का कोई तरीक़ा है कि औरतों और मर्दों में से कौन बाहर के कामों की प्रकृति वाला है और कौन घर के काम संभालने वाला ?
जी हां इसे जानने का तरीक़ा मौजूद है और बहुत आसान है।
आप देखिए कि जब भी घर से बाहर चार औरतें इकठ्ठी होंगी तो वे बातें घर की करेंगी चाहे वे ‘कामकाजी औरतें‘ ही क्यों न हों !
जबकि आप घर के अंदर चार मर्दों को इकठ्ठे बैठे देखकर उनकी बातें सुनिए वे घर से बाहर की बातें कर रहे होंगे।
यह चीज़ें औरतों और मर्दों का स्वभाव है।
विद्वान लोग इन बातों को ख़ूब जानते हैं, आप भी जानती होंगी।
अनवर जी हम ये सब भली भांति जानते हैं और ये भी जानते हैं की जितनी बातें आदमी करते हैं उतनी महिलाएं कभी नहीं कर सकती वे कभी कभी मिलती हैं और इसलिए उनमे कुछ देर बातें हो जाती हैं और जो जिसकी चिंता करता है उसी की बातें करता है.पर हम ये भी जानते हैं की बहुत से आदमी केवल अपने घर की ही बातें बाहर करते हैं और दूसरों से भी उनके घर की ही बातें जानना चाहते हैं.
मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का
कैसी खुशी ले के आया चाँद ईद का
ईद की बहुत-बहुत मुबारकबाद.
सबसे पहले तो ईद की शुभकामनायें स्वीकार करें !
आपसे एक बात पे असहमत हूँ, हर औरत केवल मजबूरी के चलते ही बाहर काम करने जाती है यह गलत सोच है ...
कई औरत अपना करियर बनाना चाहती है ... अच्छी पोस्ट पे जाना चाहती है ... इसलिए भी काम करती है ... कोई मजबूरी के तहत नहीं ...
हाँ आप चाहे तो अपनी बेहतरी करने की इच्छा को भी मजबूरी कह सकते हैं ...
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