अगर आप इन ऋषियों का सच्चा चरित्र सामने ला सकते हैं तो लाईये मैं आपकी मदद करूंगा और अगर आप उनके महान और पवित्र चरित्र को वापस नहीं ला सकते तो मुझे लाने दीजिए और आप मेरी मदद कीजिए। आपके द्वारा मेरे काम में रूकावट डालने की कोई भी ऐसी वजह आपके पास नहीं है जिसे पेश करके आप अपनी आत्मा को संतुष्ट कर सकें और जब आपकी आत्मा ही संतुष्ट न होगी तो फिर परमात्मा कैसे संतुष्ट होगी ?
और परमेश्वर को आप कैसे संतुष्ट कर पाएंगे जिसे कि आप जानते तक नहीं हैं। आप तो परमात्मा को ही परमेश्वर मानकर चल रहे हैं। आपको तो आज पता ही नहीं है कि परमेश्वर वह है जो कि परमात्मा का भी स्वामी और आराध्य है। लेकिन आप परमात्मा को ही कब जानते हैं ?
आपको क्या पता कि परमात्मा कौन है ?
आपको तो अपने ज्ञान का घमंड है। आप तो यह समझते हैं कि वास्तव में ज्ञान केवल आपके पास है और दुनिया भर की जातियां केवल मूढ़ हैं और इनमें मुसलमान सबसे बढ़कर हैं। जबकि हक़ीक़त इसके बिल्कुल उलट है।
ज्ञान पाने के लिए ज्ञानी का अनुसरण अनिवार्य है
परमेश्वर और परमात्मा के स्वरूप का भेद और उनकी प्राप्ति का मार्ग हमारे पूर्वज ऋषियों ने बताया है लेकिन उनकी प्राप्ति केवल बातों से, केवल ध्यान-मौन और समाधि से संभव नहीं है। उनकी प्राप्ति के लिए ऋषियों का अनुकरण करना अनिवार्य है और ऋषियों के अनुकरण के लिए उनके पवित्र चरित्र का सच्चा ज्ञान ज़रूरी है। यह ज्ञान आज मुसलमानों को घटिया समझने वाले एक भी हिन्दू के पास उपलब्ध ही नहीं है। अगर किसी के पास हो तो वह सामने आए ताकि मैं उसका अनुकरण कर सकूं वर्ना तो मैं कहता हूं कि यह ‘ज्ञान‘ मेरे पास है, आप सब मेरा अनुकरण करें।
जो कम जानता है वह अपने से ज़्यादा जानने वाले का अनुकरण करता ही है। इसमें झगड़े की क्या बात है ?
इसके बावजूद भी आपको मेरा प्रस्ताव मंजूर नहीं है तो कोई बात नहीं है, जाने दीजिए। मौत बहुत जल्द आपको आपके मालिक के सामने हाज़िर करने वाली है तब आप अपने अपराध का जवाब देते रहिएगा कि आपने किस आधार पर ऋषियों के पाक चरित्र पर लांछन लगाए ?
आपने किस आधार पर अपने धर्म से खिलवाड़ किया ?
आपने किस आधार पर ऋषियों की परंपरा को छोड़कर अंग्रेज़ों की परंपरा का अनुसरण किया ?
आज अंग्रेज़ अपनी परंपराओं से खुद परेशान हैं। वे खुद आपकी परंपराओं को और विश्व की दूसरी परंपराओं को आज़माकर देख रहे हैं। उन्होंने भी आपकी ही तरह अपने ऋषियों का चरित्र विकृत कर डाला। आप बाइबिल उठाकर देख लीजिए। हज़रत नूह अ. से लेकर हज़रत लूत तक जाने कितने ही नबियों के चरित्र पर कालिख पातने की कोशिश की और उन्होंने भी मुसलमानों को खुद से घटिया समझा।
बाइबिल में पवित्र नबियों पर घिनौने आरोप के दो प्रमाण
1. ‘और नूह किसानी करने लगा, और उसने दाख की बारी लगाई। और वह दाखमधु पीकर मतवाला हुआ; और अपने तम्बू के भीतर नंगा हो गया। तब कनान के पिता हाम ने, अपने पिता को नंगा देखा, और बाहर आकर अपने दोनों भाइयों को बतला दिया।‘ (उत्पत्ति, 9, 20-22)
2. ‘इस प्रकार से लूत की दोनों बेटियां अपने पिता से गर्भवती हुईं।‘(उत्पत्ति, 19, 36)
मैं इस बयान को पढ़कर सच ही मान लेता और तब मैं अपने पूर्वजों पर, इन दो महान सत्पुरूषों के प्रति अन्जाने ही एक भयंकर अपराध कर बैठता जैसे कि करोड़ों लोग आज भी इन दोनों झूठी कहानियों को सच मानकर कर रहे हैं। मुझे इस महापाप से बचाया पवित्र कुरआन ने। पवित्र कुरआन हज़रत नूह अ.
के बारे में कहता है कि-
‘कहा गया कि ऐ नूह ! उतरो, हमारी तरफ़ से सलामती के साथ और बरकतों के साथ, तुम पर और उन समुदायों पर जो तुम्हारे साथ हैं।‘ (हूद, 48)
http://www.artbulla.com/zion/Noah.html |
परमेश्वर पवित्र कुरआन के माध्यम से हज़रत लूत अ. के बारे में बताता है कि-
‘और लूत को हमने हिकमत (तत्वदर्शिता) और इल्म अता किया और उसे उस बस्ती से छुटकारा दिया जो गंदे काम करती थी। निस्संदेह वह बहुत बुरे, फ़ासिक़ लोग थे। और हमने उसे अपनी रहमत में दाखि़ल किया। बेशक वह नेक लोगों में से था। (अलअंबिया, 75)कुरआन केवल इन दो ऋषियों-नबियों को ही आदर्श और सत्य घोषित नहीं करता बल्कि वह तमाम ऋषियों-नबियोंकहता है कि-
‘उनमें से हरेक नेक था।‘ (अलअनआम, 86)और फिर वह केवल इतना ही नहीं कहता बल्कि वह लोगों से कहता है कि तुम सब उन सभी ऋषियों-नबियों पर आस्था व्यक्त करो और कहो कि-
‘हम उस (ईश्वर) के रसूलों (ऋषियों) में से किसी के साथ भेदभाव नहीं करते।‘ (अलबक़राः, 284)पवित्र कुरआन के अलावा सभी ऋषियों की सच्चाई और पवित्रता का ऐसा उद्घोष आज किसी भी ग्रंथ में मुझे नहीं मिलता। अगर किसी और भाई को नज़र आए तो वह मुझे बताए।
हमारे पूर्वज ऋषियों के ऊपर लगने वाले तमाम आरोपों को बेबुनियाद क़रार देने वाले पवित्र कुरआन को भी जो लोग सत्य नहीं मानते, वे दरअस्ल नफ़रत में अंधे हो चुके हैं। अहंकार में आदमी अंधा हो जाता है। ज्ञान का द्वार उसके सामने होता है लेकिन वह उसमें प्रवेश नहीं कर पाता। हिन्दुओं और अंगेज़ों की प्रॉब्लम सेम है और उसका समाधान भी समान ही है।
हिन्दुओं और अंग्रेजों की ही नहीं बल्कि खुद मुसलमानों की भी सारी समस्याओं की जड़ ऋषियों के आदर्श का अनुकरण न करना है। बस दूसरी क़ौमों और मुसलमानों में जो बुनियादी अंतर है वह यह है कि दूसरी क़ौमों के पास वह ईशवाणी आज सुरक्षित नहीं है जो उनके ऋषियों के अंतःकरण पर अवतरित हुई थी लेकिन मुसलमानों के पास वह सुरक्षित है, न केवल उनके लिए वरन् सारी मानव जाति के लिए। इसी ईशवाणी पवित्र कुरआन में हिन्दुओं के ऋषियों का सच्चा चरित्र आज भी पूरी पवित्रता के साथ जगमगा रहा है। इसी पवित्र कुरआन में अंग्रेज़ों के पास पैग़ाम लाने वाले नबियों का बयान भी मौजूद है। जो चाहे देख ले, जो चाहे मान ले, किसी को कोई रोक-टोक नहीं है कि यह नहीं देख सकता, वह उसे नहीं छू सकता।
सब पढ़ें, सब बढ़ें
मौजूद तो आज वेद और बाइबिल भी हैं लेकिन उनके स्कॉलर्स मानते हैं कि वे प्रक्षिप्त हैं। वेदों में आस्था रखने वाले सनातनियों की संख्या ज़्यादा है। वे मानते हैं कि ब्राह्मण ग्रंथ वेदों का हिस्सा हैं जबकि आर्य समाजी विद्वान इसे नकारते हैं। यही तय नहीं है कि कितना हिस्सा वेद हैं और कितना हिस्सा उसमें वेद के अतिरिक्त है ?
सनातनी पब्लिक को डील करने वाले शंकराचार्यों की ओर से आज भी औरत और शूद्र को धर्मतः वेद पढ़ने व सुनने की अनुमति नहीं है। यूं लोग अपनी मुठमर्दी से उसे पढ़ने लगें तो आज लोकतंत्र में वे कुछ कर नहीं पाते लेकिन पूर्वकाल में इस जुर्म की भयानक सज़ाएं वे हमेशा से देते आए हैं।
बाइबिल की मूल प्रति के नए नियम की पुस्तकें हज़रत ईसा अ. के सामने नहीं लिखी गईं और न ही उनकी भाषा ही में उन्हें लिखा गया है। वे वेटिकन सिटी में रखी हुई हैं। हरेक आदमी तो छोड़िए, हरेक ईसाई भी उन्हें नहीं देख सकता।
ऋषि पवित्र हैं
यही ढकना-छिपाना हमेशा ऋषियों के चरित्र और इतिहास को भूलने का कारण बना है। बहरहाल आज हिन्दू साहित्य में उनके बारे में चाहे कैसे भी क़िस्से-कहानियां मशहूर हों, वे वास्तव में पवित्र थे, यह उनकी उपाधि ‘ऋषि‘ शब्द से ही बिल्कुल साफ़ ज़ाहिर है।
आपको ऋषियों को पवित्र मानना होगा और उनका अनुकरण करना होगा। उनसे जुड़ना होगा। आज दुनिया का कोई भी आदमी बिना कुरआन की मदद के अपने ऋषि से जुड़ ही नहीं सकता। अगर कोई जुड़ सकता है, अगर वाक़ई वह बिना कुरआन की मदद के अपने ऋषि की परंपरा का पालन कर सकता है तो वह करके दिखा दे।
मुझ पर बेवजह ऐतराज़ क्यों ?
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यह संवाद डा. श्याम गुप्ता जी के लिए क्रिएट किया गया है। उन्होंने मुझसे पूछा था कि -
‘...सब कुछ ठीक कहते हुए भी निम्न उद्धृत वाक्य की क्या आवश्यकता थी। यह प्रोवोकेटिव ... होता है और प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। इससे बचना चाहिये।यह है जानबूझकर नादान बनने की एक्टिंग करना। जब आप खुद कह रहे हैं कि भागवत की रचना करने वाले ने चतुराई से काम लिया है और अनीश्वरवादी बुद्ध तक को विष्णु का अवतार घोषित कर दिया है तो आप खुद यह स्वीकार कर रहे हैं कि हिन्दू साहित्य में समय-समय पर मिलावटें होती रही हैं। वही बात मैं कह रहा हूं तो आप मानने के बजाय ऐतराज़ क्यों कर रहे हैं ?
‘‘...हिंदू साहित्य में ऋषियों के चरित्र आज वैसे शेष नहीं हैं जैसे कि वास्तव में वे पवित्र थे। कल्पना और अतिरंजना का पहलू भी उनमें पाया जाता है।‘‘
देखिए आपने खुद क्या लिखा है कि हिन्दू साहित्य में परिवर्तन हुआ है .
हिन्दू साहित्य ऋषियों को पवित्र मानने में मेरी कोई सहायता नहीं करता क्योंकि उनमें कल्पना और अतिरंजना का पहलू मुझे भी मिला है और मुझसे पहले के हिन्दू स्कॉलर्स को भी। उन्हें पवित्र मानने का आदेश मुझे हदीसों में मिलता है।
अब बताईये कि आपको मेरी किस बात पर ऐतराज़ है ?
मेरे द्वारा ऋषियों को हदीस के मुताबिक़ पवित्र घोषित करने में ?
या हिन्दू साहित्य में परिवर्तन हुआ बताने में, जो कि आप खुद भी मानते हैं ?
मेरे द्वारा ऋषियों को हदीस के मुताबिक़ पवित्र घोषित करने में ?
या हिन्दू साहित्य में परिवर्तन हुआ बताने में, जो कि आप खुद भी मानते हैं ?