आतंकवादियों का असल काम लोगों को मारना नहीं होता। मात्र 20-30 लोगों को मारने से भारत की आबादी में कुछ भी कमी होने वाली नहीं है। दरअसल उनका मक़सद भारत के लोगों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास और संदेह पैदा करना होता है। आतंकवादी हमलों के बाद जो लोग एक वर्ग विशेष के प्रति सरेआम संदेह व्यक्त करते हैं, दरअसल वे जाने-अनजाने आतंकवादियों के ‘अगले चरण का काम‘ ही पूरा करते हैं। आरोप प्रत्यारोप और संदेह भारतवासियों के प्रेम के उस धागे को कमज़ोर करता है जिससे सारा भारत बंधा है। इस धागे को कोई आतंकवादी आज तक कमज़ोर नहीं कर सका है और न ही कर सकता है। यही हमारी शक्ति है। इस शक्ति को खोना नहीं है।
देश के दुश्मनों के लिए काम करने वाले ग़द्दारों को चुन चुन कर ढूंढने की ज़रूरत है और उन्हें सरेआम चैराहे पर फांसी दे दी जाए। चुन चुन कर ढूंढना इसलिए ज़रूरी है कि आज ये हरेक वर्ग में मौजूद हैं। इनका नाम और संस्कृति कुछ भी हो सकती है, ये किसी भी प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य हो सकते हैं। पिछले दिनों ऐसे कई आतंकवादी भी पकड़े गए हैं जो ख़ुद को राष्ट्रवादी बताते हैं और देश की जनता का धार्मिक और राजनैतिक मार्गदर्शन भी कर रहे थे। सक्रिय आतंकवादियों के अलावा एक बड़ी तादाद उन लोगों की है जो कि उन्हें मदद मुहैया कराते हैं। मदद मदद मुहैया कराने वालों में वे लोग भी हैं जिन पर ग़द्दारी का शक आम तौर पर नहीं किया जाता।
‘लिमटी खरे‘ का लेख इसी संगीन सूरते-हाल की तरफ़ एक हल्का सा इशारा कर रहा है :
उच्च स्तर पर बैठे एक राजनयिक और भारतीय विदेश सेवा की बी ग्रेड की अफसर माधुरी गुप्ता ने अपनी हरकतों से देश को शर्मसार कर दिया है, वह भी अपने निहित स्वार्थों के लिए। माधुरी गुप्ता ने जो कुछ भी किया वह अप्रत्याशित इसलिए नहीं माना जा सकता है क्योंकि जब देश को चलाने वाले नीतिनिर्धारक ही देश के बजाए अपने निहित स्वार्थों को प्रथमिक मान रहे हों तब सरकारी मुलाजिमों से क्या उम्मीद की जाए। आज देश का कोई भी जनसेवक करोडपति न हो एसा नहीं है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और इतिहास खंगाला जाए और आज की उनकी हैसियत में जमीन आसमान का अंतर मिल ही जाएगा। देश के सांसद विधायकों के पास आलीशान कोठियां, मंहगी विलसिता पूर्ण गाडिया और न जाने क्या क्या हैं, फिर नौकरशाह इससे भला क्यों पीछे रहें।
नौकरशाहों के विदेशी जासूस होने की बात कोई नई नहीं है। जासूसी के ताने बाने में देश के अनेक अफसरान उलझे हुए हैं। पडोसी देश पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में पकडी गई राजनयिक माधुरी गुप्ता पहली अधिकारी नहीं हैं, जिन पर जासूसी का आरोप हो। इसके पहले भी अनेक अफसरान इसकी जद में आ चुके हैं, बावजूद इसके भारत सरकार अपनी कुंभकर्णीय निंद्रा में मगन है, जो कि वाकई आश्चर्य का विषय है। लगता है इससे बेहतर तो ब्रितानी हुकूमत के राज में गुलामी ही थी।
भारतीय नौ सेना के एक अधिकारी सुखजिंदर सिंह पर एक रूसी महिला के साथ अवैध संबंधों की जांच अभी भी चल रही है। 2005 से 2007 के बीच उक्त अज्ञात रूसी महिला के साथ सुखजिंदर के आपत्तिजनक हालात में छायाचित्रों के प्रकाश में आने के बाद सेना चेती और इसकी बोर्ड ऑफ इंक्वायरी की जांच आरंभ की। इस दौरान सुखजिंदर पर विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकेश की मरम्मत का काम देखने का जिम्मा सौंपा गया था। सुखजिंदर पर आरोप है कि उसने पोत की कीमत कई गुना अधिक बताकर भारत सरकार का खजाना हल्का किया था।
बीजिंग में भारतीय दूतावास के एक वरिष्ठ अधिकारी मनमोहन शर्मा को 2008 में चीन की एक अज्ञात महिला के साथ प्रेम की पींगे बढाने के चलते भारत वापस बुला लिया गया था। भारत सरकार को शक था कि कहीं उक्त अधिकारी द्वारा उस महिला के मोहपाश में पडकर गुप्त सूचनाएं लीक न कर दी जाएं। सरकार मान रही थी कि वह महिला चीन की मुखबिर हो सकती है। 1990 के पूर्वार्ध में नेवी के एक अधिकारी अताशे को आईएसआई की एक महिला एजेंट ने अपने मोहपाश में बांध लिया था। उक्त महिला करांची में सेन्य नर्सिंग सर्विस में काम किया करती थी। बाद में अताशे ने अपना गुनाह कबूला तब उसे नौकरी से हटाया गया।
इसी तरह 2007 में रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी (1975 बेच के अधिकारी) को हांगकांग में एक महिला के साथ प्रगाढ संबंधों के कारण शक के दायरे में ले लिया गया था। उस महिला पर आरोप था कि वह चीन की एक जासूसी कंपनी के लिए काम किया करती थी। रॉ के ही एक अन्य अधिकारी रविंदर सिह जो पहले भारत गणराज्य की थलसेना में कार्यरत थे पर अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए काम करने के आरोप लग चुके हैं। रविंदर दक्षिण पूर्व एशिया में रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी के बतौर कर्यरत था। इस मामले में भारत को नाकमी ही हाथ लगी, क्योकि जब तक रविंदर के बारे में सरकार असलियत जान पाती तब तक वह बरास्ता नेपाल अमेरिका भाग चुका था। 80 के दशक में लिट्टे के प्रकरणों को देखने वाले रॉ के एक अफसर को एक महिला के साथ रंगरेलियां मनाते हुए पकडा गया। उक्त महिला अपने आप को पैन अमेरिकन एयरवेज की एयर होस्टेस के बतौर पेश करती थी। इस अफसर को बाद में 1987 में पकडा गया।
इस तरह की घटनाएं चिंताजनक मानी जा सकतीं हैं। देशद्रोही की गिरफ्तारी पर संतोष तो किया जा सकता है, पर यक्ष प्रश्न तो यह है कि हमारा सिस्टम किस कदर गल चुका है कि इनको पकडने में सरकारें कितना विलंब कर देतीं हैं। भारत पाकिस्तान के हर मसले वैसे भी अतिसंवेदनशील की श्रेणी में ही आते हैं, इसलिए भारत सरकार को इस मामले में बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की आवश्यक्ता है। वैसे भी आदि अनादि काल से राजवंशों में एक दूसरे की सैन्य ताकत, राजनैतिक कौशल, खजाने की स्थिति आदि जानने के लिए विष कन्याओं को पाला जाता था। माधुरी के मामले में भी कमोबेश एसा ही हुआ है।
माधुरी गुप्ता का यह बयान कि वह अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बदला लेने के लिए आईएसआई के हाथों की कठपुतली बन गई थी, वैसे तो गले नही उतरता फिर भी अगर एसा था कि वह प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही थी, तो भारत की सडांध मारती व्यवस्था ने उसे पहले क्यों नहीं पकडा। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भारत का गुप्तचर तंत्र (इंटेलीजेंस नेटवर्क) पूरी तरह भ्रष्ट हो चुका है। आज देश को आजाद हुए छ: दशक से ज्यादा बीत चुके हैं, और हमारे ”सम्माननीय जनसेवकों” द्वारा खुफिया तंत्र का उपयोग अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए ही किया जा रहा है। क्या यही है नेहरू गांधी के सपनों का भारत!
Source : http://www.pravakta.com/story/9288
लिहाज़ा भावुकता में बहकर अंधे न हों और बेबुनियाद शक न करें। चंद लोगों के कारण पूरे समुदाय की निष्ठा पर सवालिया निशान न लगाएं।
10 comments:
kiya hoga hindusthan ka
bahut kub kaha aap ne
bahut kuch jankare de hai aap ne
Kya kahoon ke aaj har koi bika hua hai...
hmne to mangi thi aman se bhari zandagi...
ai khuda ! ab tu hi bta ke ye kaisi dua hai ?
दोस्तो ! हमें गर्व और अफ़सोस से आज तक कुछ हासिल नहीं हुआ है। हमें अब वह काम करना होगा जिससे कि कुछ हासिल हो। आज लोगों ने दौलत को ही सब कुछ समझ लिया है। आज देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो कि दौलत की ख़ातिर कुछ भी कर सकते हैं। इनमें ग़रीबी से जूझते हुए लोग भी हैं और वे लोग भी हैं जिनकी तोंद पर हद से ज़्यादा चर्बी जमा है यानि कि ख़ूब खाते-पीते हैं। इन आतंकवादियों में नास्तिक भी हैं और धर्म की विकृत समझ रखने वाले आस्तिक भी। इन लोगों के दिलो-दिमाग़ का प्यूरिफ़िकेशन ज़रूरी है। हमारे लिए करने का काम यही है। जब तक यह काम नहीं किया जाएगा तब तक आतंकवाद का सिलसिला थमने वाला नहीं है। इसे सेना, पुलिस और क़ानून की मदद से रोकना मुश्किल है। विकसित देश तक इसके सामने लाचार हैं। आतंकवाद जीवन के सही बोध के अभाव से जन्म लेता है। जब तक मानव जाति को वह बोध उपलब्ध नहीं कराया जाएगा, मानव जाति को आतंकवाद से मुक्ति मिलने वाली नहीं है।
ये बुज़दिल हरामी आतंकवादी क्या पाना चाहते हैं ?
ये दरअसल अमन के दुश्मन हैं। इनके कुछ आक़ा हैं, जिनके कुछ मक़सद हैं। ये लोकल भी हो सकते हैं और विदेशी भी। जो कोई भी हो लेकिन इनके केवल राजनीतिक उद्देश्य हैं। ये लोग चाहते हैं कि भारत के समुदाय एक दूसरे को शक की नज़र से देखें और एक दूसरे को इल्ज़ाम दें। कभी कभी जनता का ध्यान बंटाने के लिए भी ये हमले किए जाते हैं। कुछ तत्व नहीं चाहते कि जनता अपनी ग़रीबी और बर्बादी के असल गुनाहगारों को कभी जान पाए। जनता को बांटकर आपस में लड़ाने की साज़िश है यह किसी की। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं, उन तक पहुंचना भी मुश्किल है और उन्हें खोद निकालना भी। कुछ जड़ों से तो लोग श्रृद्धा और समर्पण तक के रिश्ते रखते हैं। ऐसे में कोई क्या कार्रवाई करेगा ?
इस बार भी बस ग़रीब ही पिसेगा !
उसी का ख़ून पानी है वही बहेगा !!
ये बुज़दिल हरामी आतंकवादी क्या पाना चाहते हैं ?
ये दरअसल अमन के दुश्मन हैं। इनके कुछ आक़ा हैं, जिनके कुछ मक़सद हैं। ये लोकल भी हो सकते हैं और विदेशी भी। जो कोई भी हो लेकिन इनके केवल राजनीतिक उद्देश्य हैं। ये लोग चाहते हैं कि भारत के समुदाय एक दूसरे को शक की नज़र से देखें और एक दूसरे को इल्ज़ाम दें। कभी कभी जनता का ध्यान बंटाने के लिए भी ये हमले किए जाते हैं। कुछ तत्व नहीं चाहते कि जनता अपनी ग़रीबी और बर्बादी के असल गुनाहगारों को कभी जान पाए। जनता को बांटकर आपस में लड़ाने की साज़िश है यह किसी की। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं, उन तक पहुंचना भी मुश्किल है और उन्हें खोद निकालना भी। कुछ जड़ों से तो लोग श्रृद्धा और समर्पण तक के रिश्ते रखते हैं। ऐसे में कोई क्या कार्रवाई करेगा ?
इस बार भी बस ग़रीब ही पिसेगा !
उसी का ख़ून पानी है वही बहेगा !!
बहुत दिनों के अंतराल के बाद आपको आज के ज्वलंत पोस्ट पर देख कर अच्छा लगा ! समाचार सुन कर दिल को धक्का सा लगा !
कैसी है आज की हमारी नकारी सरकार ?
कि मनमोहन सिंह अब भी वही रटा रटाया वाक्य कह रहे हैं की
कोई हमारे धैर्य की परीक्षा न ले |
ना जाने कब इनका धैर्य टूटेगा ? क्या चाहते हैं ये ?
हर कोई सब कुछ जानता है फिर भी ये सरकार चुप्पी लगा कर बैठी हुई है |
इनके लिए तो बाबा रामदेव जैसे देश भक्त महा ठग व पुलिसिया दरिंदगी के पात्र है
जब कि कसाब तथा लादेन जैसे दुर्दांत आतंकवादी आदर व मानवीय संवेदना के पात्र है |
क्या ये देश को रसातल में जाने कि प्रतीक्षा कर रहे हैं ?
किसी भी धर्म को मानने वाले लोग इस तरह का जघन्य कांड करने का कभी नही सोचेंगे | इस तरह का कांड तो कोई शैतान को मानने वाला ही कर सकता है| मेरी भगवान से प्रार्थना है की वह इन शैतानो को पालने वालो के साथ इन शैतानो को भी पूरी दुनिया से ख़त्म करे|
@ मदन शर्मा जी ! आज की सरकार भी ठीक वैसी ही निकम्मी है जैसी कि इससे पूर्ववर्ती सरकारें थीं । भारत में गंगा और सन्यासी को बहुत आदर दिया जाता है । पवित्र गंगा की रक्षा के लिए सन्यासी निगमानंद ने आवाज़ उठाई तो राष्ट्रवादियों की सरकार ने उनकी भी नहीं सुनी और पता नहीं 'किसके' इशारे पर ऋषियों की तप: स्थली में उनकी हत्या कर दी गई ?
अब आप ही बताएँ कि जब राष्ट्रवादीयों की सरकार में गंगा के मुद्दे पर एक सन्यासी की नहीं सुनी गई और उसे मार दिया गया तो फिर आम जनता की रक्षा के लिए उम्मीद किससे रखी जाए ?
काँग्रेस को कोसने के बजाय हमें सच्चे समाधान की तलाश करनी चाहिए !
आपके विचार हम अक्सर दिव्या जी के ब्लॉग पर पढ़ते रहते हैं और आपको जानते भी हैं ।
आप आए अच्छा लगा !
सादर !!
bhtrin chintan ke saath likhaa gyaa saahsik lekh hai aapko mubarkbad ..akhtar khan akela kota rajsthan
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